Rajasthan Notes in Hindi - Page 2

RSMSSB Livestock Assistant (Pashudhan Sahayak) Exam 04 June 2022 (Answer Key)

RSMSSB (Rajasthan Staff Selection Board) द्वारा आयोजित राजस्थान पशुधन सहायक (Livestock Assistant) की परीक्षा का आयोजन 04 जून, 2022 को प्रथम पाली में आयोजित किया गया। RSMSSB Livestock Assistant (Pashudhan Sahayak) Exam 2022 की परीक्षा का प्रश्नपत्र उत्तर कुंजी के साथ यहाँ पर उपलब्ध है।

RSMSSB (Rajasthan Staff Selection Board) Conduct the RSMSSB Livestock Assistant (Pashudhan Sahayak) Exam 2022 held on 04 June, 2022 Morning Shift. RSMSSB Livestock Assistant (Pashudhan Sahayak) Exam 2022 exam paper with answer key available here. 

Post — पशुधन सहायक (Livestock Assistant)
Organized by — RSMSSB (Rajasthan Subordinate and Ministerial Services Selection Board)
Date of Exam – 04 June, 2022
Total Question —
120

RSMSSB Livestock Assistant (Pashudhan Sahayak) Exam 2022
(Answer Key)

1. झालावाड़ शैली की राजपूत पेंटिंग, किस राजपूत पेंटिंग स्कूल का हिस्सा है ?
(A) मेवाड़
(B) मारवाड़
(C) हाड़ौती
(D) ढूंढाड़

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Answer – (C)

2. मेवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्ध गैर लोक नृत्य ____ के अवसर पर किया जाता है।
(A) बच्चे का जन्म
(B) होली
(C) विवाह
(D) मानसून

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Answer – (B)

3. लोक देवता गोगाजी की समाधि, गोगामेड़ी राजस्थान के ______ जिले में स्थित है।
(A) उदयपुर
(B) जैसलमेर
(C) भरतपुर
(D) हनुमानगढ़

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Answer – (D)

4. निम्नलिखित में से कौन सा नाटक भवाई सीर लिखा गया है जो राजस्थान में प्रसिद्ध है?
(A) अंजन सुंदरी
(B) मैना सुंदरी
(C) जैस्मा ओडेन
(D) रासधार

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Answer – (C)

5. रणकपुर जैन मंदिर, पाली निम्नलिखित में से किस तीर्थंकर को समर्पित है ?
(A) ऋषभनाथ
(B) वासुपूज्य
(C) अजितनाथ
(D) नेमिनाथ

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Answer – (A)

6. राजस्थान की भाषा के लिए पहली बार “राजस्थानी” शब्द का प्रयोग किसने किया ?
(A) कवि कुशल लाभ
(B) जॉर्ज अब्राहम ग्रिसन
(C) सूर्यमल मिश्रण
(D) जेम्स टॉड

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Answer – (B)

7. 1818 में अंग्रेजों के साथ संधियों पर हस्ताक्षर करने वाला जयपुर राज्य का शासक कौन था ?
(A) महाराजा मान सिंह
(B) महाराणा भीम सिंह
(C) राव विष्णु सिंह
(D) सवाई जगत सिंह

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Answer – (D)

8. बूंदी किसान आंदोलन के नेता कौन थे?
(A) जय नारायण व्यास
(B) नैनू राम
(C) नजफ अली
(D) इनमें से कोई नहीं

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Answer – (B)

9. निम्न प्रसिद्ध ग़ज़ल गायकों में से कौन राजस्थान से संबंधित है ?
(A) अनूप जलोटा
(B) जगजीत सिंह
(C) गुलाम अली
(D) पंकज उधास

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Answer – (B)

10. निम्नलिखित में से कौन सी महिला राजस्थान से संबंधित है जो राजनीतिक जागृति और विकास का हिस्सा थी?
(A) अंजना देवी चौधरी
(B) एनी बेसेंट
(C) सरला देवी चौधरानी
(D) सुशीला देवी

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Answer – (A)

11. एकी आंदोलन के नेता कौन थे ?
(A) मोहनदास करमचंद गांधी
(B) जय नारायण व्यास
(C) कुंभराम आर्य
(D) मोतीलाल तेजावत

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Answer – (D)

12. भारत की स्वतंत्रता के बाद राजस्थान के गठन के कितने चरण थे ?
(A) पाँच
(B) सात
(C) नौ
(D) ग्यारह

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Answer – (B)

13. भर्तृहरि मेला राजस्थान के किस जिले में लगता है ?
(A) अजमेर
(B) अलवर
(C) सवाई माधोपुर
(D) सिरोही

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Answer – (B)

14. निम्नलिखित में से किस राज्य की सीमा राजस्थान के साथ साझा नहीं है ?
(A) पंजाब
(B) उत्तर प्रदेश
(C) हरियाणा
(D) दिल्ली

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Answer – (D)

15. _________अपने बहुआयामी रूपों जैसे ऊंट की खाल पर मीनाकारी, स्वर्ण मीनाकारी और महलों और हवेलियों में चित्रों (उस्ता कला) के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
(A) बीकानेर
(B) जोधपुर
(C) गंगानगर
(D) उदयपुर

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Answer – (A)

16. पचपदरा, राजस्थान के किस जिले में स्थित खारे पानी की झील है?
(A) भीलवाड़ा
(B) बाड़मेर
(C) चुरु
(D) भरतपुर

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Answer – (B)

17. निम्नलिखित में से कौन सी नदी राजस्थान में नहीं बहती है ?
(A) रूपारेल
(B) माही
(C) ताप्ती
(D) लूनी

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Answer – (C)

18. कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार राजस्थान का कौन सा क्षेत्र ‘Aw’ प्रकार की जलवायु का अनुभव करता है ?
(A) सबसे दक्षिणी क्षेत्र
(B) उत्तर पूर्वी क्षेत्र
(C) पश्चिमी क्षेत्र
(D) सबसे उत्तरी क्षेत्र

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Answer – (D)

19. बनास बेसिन राजस्थान के किस भौगोलिक विभाजन का हिस्सा है ?
(A) पश्चिमी रेतीले मैदान
(B) अरावली पर्वतमाला और पहाड़ी क्षेत्र
(C) पूर्वी मैदान
(D) हाड़ौती पठार

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Answer – (C)

20. निम्नलिखित में से किस जिले में राजस्थान का कुल वन आच्छादित क्षेत्र सबसे अधिक है ?
(A) उदयपुर
(B) पाली
(C) बारां
(D) अजमेर

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Answer – (A)

Rajasthan High Court LDC Exam Paper – 13 March 2022 (Answer Key)

Rajasthan High Court द्वारा आयोजित राजस्थान उच्च न्यायालय अवर श्रेणी लिपिक (Rajasthan High Court Lower Division Clerk) की परीक्षा का आयोजन 13 मार्च 2022 को आयोजित किया गया। Rajasthan High Court LDC Exam Paper 2022 की परीक्षा का प्रश्नपत्र उत्तर कुंजी के साथ यहाँ पर उपलब्ध है।

Rajasthan High Court Conduct the Rajasthan High Court Lower Division Clerk Exam 2022 held on 13 March 2022. Rajasthan High Court  LDC Exam Paper 2022 with answer key available here. 

Post — अवर श्रेणी लिपिक (Lower Division Clerk)
Organized by — Rajasthan High Court
Date of Exam – 13 March, 2022
Total Question —
150

Rajasthan High Court LDC (Lower Division Clerk) Exam 2022
(Answer Key)

हिंदी 

1. ‘जिसका अनुभव किया गया हो’ वाक्यांश के लिए सार्थक शब्द है
(1) अनुभवयोग्य
(2) अनुभवी
(3) अनुभूत
(4) अनुभाव्य

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Answer – (3)

2. ‘पानी में आग लगाना’ मुहावरे का सही भवार्थ है
(1) सब कुछ मटियामेट कर देना।
(2) लोगों को चमत्कृत कर देना।
(3) गर्मी के कारण जलाशयों का सूख जाना।
(4) जहाँ झगड़ा होना असंभव हो, वहाँ झगड़ा करा देना।

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Answer – (2)

3. निम्नलिखित में पुष्प का पर्याय नहीं है
(1) प्रसून
(2) सुमन
(3) किसलय
(4) कुसुम

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Answer – (3)

4. बहुव्रीहि समास का उदाहरण है
(1) रसाईघर
(2) घुड़सवार
(3) पद्मनाभ
(4) यथाविधि

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Answer – (3)

5. अशुद्ध वाक्य नहीं है
(1) फल पका होना चाहिए।
(2) इस विषय की एक भी पुस्तकें नहीं हैं।
(3) हम देश के लिए जान पर कुर्बान हो जाएंगे।
(4) उसके मन की थाह का पता नहीं चलता।

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Answer – (1)

6. ‘मान’ प्रत्यय से निर्मित शब्द नहीं है
(1) विद्यमान
(2) विराजमान
(3) सम्मान
(4) यजमान

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Answer – (3)

7. निम्नलिखित में अशुद्ध शब्द नहीं है
(1) झूठन
(2) सूजबूझ
(3) धोकाधड़ी
(4) अंधाधुंध

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Answer – (*)

8. किस विकल्प में सभी शब्द ‘पुत्र’ के पर्याय हैं?
(1) तनय, नंदन
(2) अंगज, बल्लभ
(3) तरूण, आत्मज
(4) वत्स, प्रणेता

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Answer – (1)

9. ‘सु’ उपसर्ग का उदाहरण नहीं है
(1) स्वलय
(2) सूक्ति
(3) सौजन्य
(4) स्वस्थ

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Answer – (4)

10. वाक्यांश हेतु उपयुक्त शब्द नहीं है
(1) साथ अध्ययन करने वाला ब्रह्मचारी – सहाध्यायी
(2) एक लेखक के सभी ग्रंथों का प्रकाशन, एक जिल्द में – आत्मकथा
(3) जो मापा न गया हो – अमित
(4) एक ही प्रकार की पचास चीजों का संग्रह – पंचाशिका

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Answer – (3)

11. ‘जिसमें अपमान का भाव हो वह हँसी’ के लिए उपयुक्त शब्द है
(1) हास
(2) विनोद
(3) व्यंग्य
(4) उपहास

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Answer – (4)

12. ‘निषिद्ध’ का विलोम है
(1) विहित
(2) संलिप्त
(3) स्वीकृत
(4) प्रसिद्ध

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Answer – (1)

13. निम्नलिखित में असंगत है
(1) चंद्र के समान मुख = चंद्रमुख
(2) आप पर बीती = आपबीती
(3) जितना शीघ्र हो सके = अतिशीघ्र
(4) माल को ढोने वाली गाड़ी = मालगाड़ी

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Answer – (3)

14. ‘अक्ष’ शब्द का अर्थ नहीं है
(1) धुरी
(2) पहिया
(3) पासा
(4) चावल

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Answer – (4)

15. अशुद्ध शब्द है
(1) स्वादिष्ठ
(2) वेतनिक
(3) ऐच्छिक
(4) कवयित्री

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Answer – (2)

16. ‘अपनी दशा, बुराई या दोष आदि को देखकर अनुत्साह, रूचि और खिन्नता’ का भाव व्यक्त करने वाला सार्थक शब्द है
(1) घृणा
(2) व्रीडा
(3) ग्लानि
(4) जुगुप्सा

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Answer – (3)

17. अशुद्ध वाक्य है
(1) मेले में यात्रियों का ताँता बँधा था।
(2) गले में पराधीनता की बेड़ियाँ पड़ी हैं।
(3) कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है।
(4) जैन साहित्य प्राकृत में लिखा गया है।

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Answer – (2)

18. ‘खरादी का काठ काटे ही से कटता है’ लोकोक्ति का निकटम अर्थ है
(1) काम करने ही से समाप्त होता है।
(2) नकद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है।
(3) एक को देखकर दूसरा बिगड़ता है।
(4) खाली आदमी बेकाम का काम किया करता है।

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Answer – (1)

19. निम्नलिखित में ‘सूर्य’ का पर्यायवाची है
(1) तरिणी
(2) मार्तण्ड
(3) केतु
(4) हिरण्य

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Answer – (2)

20. किस विकल्प के सभी शब्दों में उपसर्ग का प्रयोग हुआ है?
(1) उज्ज्वल, धीमान्
(2) क्रमश:, अभ्यागत
(3) मनस्वी, स्वत्व
(4) उल्लेख, उद्घाटन

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Answer – (4)

राजस्थान के शिलालेख (Inscriptions of Rajasthan)

शिलालेख (Inscriptions)

पुरातात्विक स्रोतों (Archaeological Sources) के अन्तर्गत अन्य महत्वपूर्ण स्रोत अभिलेख (Record) हैं। इसका मुख्य कारण उनका तिथियुक्त एवं समसामयिक होना है। ये साधारणत पाषाण पट्टिकाओं, स्तम्भों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मूर्तियों आदि पर खुदे हुए मिलते हैं। इनमें वंशवली, तिथियाँ, विजय, दान, उपाधियाँ, शासकीय नियम, उपनियम, सामाजिक नियमावली अथवा आचार संहिता, विशेष घटना आदि का विवरण उत्कीर्ण करवाया जाता रहा है। इनके द्वारा सामन्तों, रानियों, मन्त्रियों एवं अन्य गणमान्य नागरिकों द्वारा किये गये निर्माण कार्य, वीर पुरूषों का योगदान, सतियों की महिमा आदि जानकारी मिलती है।

इनकी सहायता से संस्कृतियों के विकास क्रम को समझने में भी सहायता मिलती है। प्रारम्भिक शिलालेखों की भाषा संस्कृत है, जबकि मध्यकालीन शिलालेखों की भाषा संस्कृत, फारसी, उर्दू राजस्थानी आदि है। जिन शिलालेखों में मात्र किसी शासक की उपलब्धियों की यशोगाथा होती है, उसे ‘प्रशस्ति’ भी कहते हैं। शिलालेखों में वर्णित घटनाओं के आधार पर हमें तिथिक्रम निर्धारित करने में सहायता मिलती है। बहुत से शिलालेख राजस्थान के विभिन्न शासकों और दिल्ली के सुल्तानों तथा मुगल सम्राटों के राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्धों पर प्रकाश डालते हैं। शिलालेखों की जानकारी सामान्यत विश्वसनीय होती है परन्तु यदा कदा उनमें अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन भी पाया जाता है।

संस्कृत शिलालेख (Sanskrit Inscriptions)

घोसुण्डी शिलालेख (Inscriptions of Ghosundi) (द्वतीय शताब्दी ईसा पूर्व) –  यह लेख कई शिलाखण्डों में टूटा हुआ है। इसके कुछ टुकड़े ही उपलब्ध हो सके हैं। इसमें एक बड़ा खण्ड उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है। यह लेख घीसुण्डी गाँव (नगरी, चित्तौड) से प्राप्त हुआ था। इस लेख में प्रयुक्त की गई भाषा संस्कृत और लिपि ब्राह्मी है।

मानमोरी अभिलेख (Monomery Record) (713 ई.) – यह लेख चित्तौड़ के पास मानसरोवर झील के तट से कर्नल टॉड को मिला था। चित्तौड़ की प्राचीन स्थिति एवं मोरी वंश के इतिहास के लिए यह अभिलेख उपयोगी है। इस लेख से यह भी जात होता है कि धार्मिक भावना से अनुप्राणित होकर मानसरोवर झील का निर्माण करवाया गया था ।

सारणेश्वर प्रशस्ति (Saraneshwar Prashasti) (953 ई.) – यह उदयपुर के श्मशान के सारणेश्वर नामक शिवालय पर स्थित इस प्रशस्ति से बराह मन्दिर की व्यवस्था, स्थानीय व्यापार, कर, शासकीय पदाधिकारियों आदि के विषय में पता चलता है। गोपीनाथ शर्मा की मान्यता है कि मूलत यह प्रशस्ति उदयपुर के आहड़ गाँव के किसी वराह मन्दिर में लगी होगी। बाद में इसे वहाँ से हटाकर वर्तमान सारणेश्वर मन्दिर के निर्माण के समय में सभा मण्डप के छबने के काम में ले ली हो ।

बिजौलिया अभिलेख (Bijoulaia Record) (1170 ई.) – यह लेख बिजौलिया कस्बे के पार्श्वनाथ मन्दिर परिसर की एक बड़ी चट्टान पर उत्कीर्ण है। लेख संस्कृत भाषा में है और इसमें 93 पद्य हैं। यह अभिलेख चौहानों का इतिहास जानने का महत्त्वपूर्ण साधन है। इस अभिलेख में उल्लिखित ‘विप्रः श्रीवत्सगोत्रेभूत् के आधार पर डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहनों का वत्सगोत्र का ब्रहामण कहा है। इस अभिलेख से तत्कालीन कृषि धर्म तथा शिक्षा सम्बन्धी व्यवस्था पर भी प्रकाश पड़ता है।

चीरवे का शिलालेख (Inscriptions of Chirve) (1273 ई.) – यह चीरवा (उदयपुर) गाँव के एक मन्दिर से प्राप्त संस्कृत में 51 श्लोकों के इस शिलालेख से मेवाड के प्रारम्भिक गुहिल वंशीय शासकों, चीरवा गाँव की स्थिति, विष्णु मन्दिर की स्थापना शिव मन्दिर के लिए भू-अनुदान आदि का ज्ञान होता है । इस लेख द्वारा हमें प्रशस्तिकार रत्नप्रभसूरि, लेखक पार्श्वचन्द्र तथा शिल्पी देलहण का बोध होता है जो उस युग के साहित्यकारों तथा कलाकारों की परम्परा में थे।

रणकपुर प्रशस्ति (Ranakpur Prashasti) (1439 ई.) – यह रणकपुर के जैन चौमुख मंदिर से लगे इस प्रशस्ति में मेवाड के शासक बापा से कुम्भा तक वंशावली है। इसमें महाराणा कुम्भा की विजयी का वर्णन है । इस लेख में नाणक शब्द का प्रयोग मुद्रा के लिए किया गया है। स्थानीय भाषा में आज भी नाणा शब्द मुद्रा के लिए प्रयुक्त होता है । इस प्रशस्ति में मन्दिर के सूत्रधार दीपा का उल्लेख है।

कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति (Kirti Column Prashasti) (1460 ई.) – यह प्रशस्ति कई शिलाओं पर खुदी हुई थी और संभवत कीर्ति स्तम्भ की अन्तिम मंजिल की ताकों पर लगाई गई थी। किंतु अब केवल दो शिलाएँ ही उपलब्ध हैं। वर्तमान में 1 से 28 तथा 162 से 187 श्लोक ही उपलब्ध हैं। इनमें बापा, हम्मीर, कुम्भा आदि शासकों का वर्णन विस्तार से मिलता है। इससे हमें कुम्भा द्वारा विरचित ग्रंथों का ज्ञान होता है जिनमें चण्डीशतक, गीतगोविन्द की टीका, संगीतराज आदि मुख्य हैं। कुम्भा द्वारा मालवा और गुजरात की सम्मिलित सेनाओं को हटाना प्रशस्ति 179 वे श्लोक में वर्णित है। इस प्रशस्ति के रचयिता अत्रि और महेष थे

रायसिंह की प्रशस्ति (Prashasti of Raisingh) (1594 ई.) – यह कृबीकानेर दुर्ग के द्वार के एक पार्श्व में लगी यह प्रशस्ति बीकानेर नरेश रायसिंह के समय की है। इस प्रशस्ति में बीकानेर के संस्थापक राव बीका से रायसिंह तक के बीकानेर के शासकों की उपलब्धियों का जिक्र है। इस प्रशस्ति से रायसिंह की मुगलों की सेवा के अन्तर्गत प्राप्त उपलब्धियों पर प्रकाश पड़ता है। इसमें उसकी काबुल, सिन्ध, कच्छ पर विजयों का वर्णन किया गया है। इस प्रशस्ति से गढ़ निर्माण के कार्य के सम्पादन का ज्ञान होता है।

आमेर का लेख (Articles of Amer) (1612 ई.) – यह कृआमेर के कछवाह वंश के इतिहास के निर्माण में यह लेख महत्वपूर्ण है । इसमें कछवाह शासकों को रघुवंशीतलक कहा गया है। इसमें पृथ्वीराज, भारमल, भगवन्तदास और मानसिंह का उल्लेख है। इस लेख में मानसिंह को भगवन्तदास का पुत्र बताया गया है । मानसिंह द्वारा जमुआ रामगढ़ के दुर्ग के निर्माण का उल्लेख है। लेख संस्कृत एवं नागरी लिपि में है

जगन्नाथराय का शिलालेख (Inscription of Jagannathrai) (1652 ई.) – यह उदयपुर के जगन्नाथराय मंदिर के सभा मण्डप के प्रवेश हार पर यह शिलालेख उत्कीर्ण है। यह शिलालेख मेवाड़ के इतिहास के लिए उपयोगी है। इसमें बापा से महाराणा जगतसिंह तक के शासकों की उपलब्धियों का उल्लेख है। इसमें हल्दीघाटी युद्ध, महाराणा जगतसिंह के समय में उसके द्वारा किये जाने वाले दान-पुण्यों का वर्णन आदि किया गया है । इसका रचयिता तैलंग ब्राह्मण कृष्णभट्ट तथा मन्दिर का सूत्रधार भाणा तथा उसका पुत्र मुकुन्द था ।

राजप्रशस्ति (Raj Prashasti) (1676 ई.) – यह उदयपुर सम्भाग के राजनगर में राजसमुद्र की नौचौकी नामक बांध पर सीढ़ियों के पास वाली ताको पर 25 बड़ी शिलाओं पर उत्कीर्ण ‘राजप्रशस्ति महाकाव्य’ देश का सबसे बड़ा शिलालेख है। इसकी रचना बांध तैयार होने के समय रायसिंह के कल में हुई। इसका रचनाकार रणछोड़ भट्ट था। यह प्रशस्ति संस्कृत भाषा में है, परन्तु अन्त में कुछ पंक्तियों हिन्दी भाषा में है। इसमें तालाब के काम के लिए नियुक्त निरीक्षकों एवं मुख्य शिल्पियों के नाम है। इसमे तिथियों तथा एतिहासिक घटनाओं का सटीक वर्णन है। इसमें वर्णित मेवाड़ के प्रारम्भिक में उल्लिखित है की राजसमुद्र के बांध बनवाने के कार्य का प्रारम्भ दुष्काल पीड़ितों की सहायता के लिए किया गया था। इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि राजसमुद्र तालाब की प्रतिष्ठा के अवसर पर 46,000 ब्राह्मण तथा अन्य लोग आये थेतालाब बनवाने में महाराणा ने 1,05,07,608 रुपये व्यय किये थे। यह प्रशस्ति 17वीं शताब्दी के मेवाड़ के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन को जानने के लिए उपयोगी है।

फारसी शिलालेख (Persian Inscriptions)

भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना के पश्चात् फारसी भाषा के लेख भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। ये लेख मस्जिदों, दरगाहों, कब्रों, सरायों, तालाबों की घाटों, पत्थरों आदि पर उत्कीर्ण करके लगाये गये थे। राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास के निर्माण में इन लेखों से महत्वपूर्ण सहायता मिलती है। इनके माध्यम से हम राजपूत शासकों और दिल्ली के सुल्तानों तथा मुगल शासकों के मध्य लड़े गये युद्धों, राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों पर समय-समय पर होने वाले मुस्लिम आक्रमणों, राजनीतिक सम्बन्धों आदि का मूल्यांकन कर सकते हैं। इस प्रकार के लेख सांभर, नागौर, मेड़ता, जालौर, सांचोर, जयपुर, अलवर, टोंक, कोटा आदि क्षेत्रों में अधिक पाये गये हैं ।

  • फारसी भाषा में लिखा सबसे पुराना लेख अजमेर के ढाई दिन के झौंपडे के गुम्बज की दीवार के पीछे लगा हुआ मिला है
  • यह लेख 1200 ई. का है और इसमें उन व्यक्तियों के नामों का उल्लेख है जिनके निर्देशन में संस्कृत पाठशाला तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाया गया।
  • चित्तौड़ की गैबी पीर की दरगाह से 1325 ई. का फारसी लेख मिला है जिससे ज्ञात होता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर दिया था।
  • जालौर और नागौर से जो फारसी लेख में मिले हैं, उनसे इस क्षेत्र पर लम्बे समय तक मुस्लिम प्रभुत्व की जानकारी मिलती है।
  • पुष्कर के जहाँगीर महल के लेख (1615 ई.) से राणा अमरसिंह पर जहाँगीर की विजय की जानकारी मिलती है।
Read Also :

 

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोत

पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)

पुरातत्व सम्बन्धी सामग्री का राजस्थान के इतिहास (History of Rajasthans) के निर्माण में एक बड़ा स्थान है। इसके अन्तर्गत खोजों और उत्खनन से मिलने वाली ऐतिहासिक सामग्री है। गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है, “यह ठीक है कि ऐसी सामग्री का राजनीतिक इतिहास से सहज और सीधा सम्बन्ध नहीं है, परन्तु इमारतें भवन, किले, राजप्रसाद, घर, बस्तियाँ, भग्नावशेष मुद्राएँ, उत्कीर्ण लेख, मूर्तियाँ, स्मारक आदि से हम ऐतिहासिक काल क्रम का निर्धारण तथा वास्तु और शिल्प-शैलियों का वर्गीकरण कर सकते हैं।”

प्रागैतिहासिक काल से मध्यकाल के अनेक भग्नावशेष तत्कालीन अवस्था का चित्र हमारे सम्मुख उपस्थित करते हैं। इसी प्रकार सिक्के, शिलालेख एवं दान-पत्र भी अपने समय की ऐतिहासिक घटनाओं एवं स्थिति के साक्षी है। पुरातात्विक सामग्री का अध्ययन हम निम्न भागों में कर सकते हैं।

उत्खनित पुरावशेष (Excavated Antiquity)

इतिहास लेखन को नए आधार पर खड़ा करने हेतु इतिहासकारों का ध्यान लम्बे समय से राजस्थान के पुरातत्व की ओर है। प्राक् ऐतिहासिक एवं ऐतिहासिक राजस्थान के इतिहास को जानने के लिए पुरातात्विक साक्ष्य राजस्थान में बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। पुरातात्विक स्रोतों में उत्खनित पुरावशेष, मृद्भाण्ड, औजार एवं उपकरण, शैलचित्र, शिलालेख, सिक्के, स्मारक (दुर्ग, मन्दिर, स्तूप, स्तम्भ), मूर्तियाँ आदि प्रमुख हैं। राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य सर्वप्रथम (1871 ई.) प्रारम्भ करने का श्रेय ए.सी.एल. कार्लाइल को जाता है।

पुरातत्ववेत्ताओं की बागौर कालीबंगा, नगरी, बैराठ, आहड, गिलुण्ड, तिलवाडा, गणेश्वर रंगमहल, रेढ़ सांभर, मण्डोर डीडवाना सुनारी, नोह, जोधपुरा बालाथल आदि के उत्खनन कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन स्थानों से प्राप्त सामग्री के आधार पर राजस्थान की कई नवीन संस्मृतियों का ज्ञान होता है।

राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में तथा चम्बल नदी की घाटी में ऐसे शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं, जिनसे प्रागैतिहासिक काल के मानव द्वारा प्रयोग में लाये गये पाषाण उपकरण, अस्थि अवशेष एवं अन्य पुरा सामग्री प्राप्त हुई है।

शिलालेख (Inscription)

  • संस्कृत शिलालेख
  • फारसी शिलालेख

 

राजस्थान के इतिहास के प्रामाणिक स्रोत

प्रारम्भ से ही भारतीय इतिहास में राजस्थान का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जब हम स्रोतों को आधार बनाकर राजस्थान के इतिहास की चर्चा करते हैं तो यह ऊपरी पायदान पर दिखाई देता है। किसी भी काल का इतिहास लेखन हम प्रामाणिक स्रोतों के बिना नहीं कर सकते हैं। राजस्थान के सन्दर्भ में इतिहास लेखन हेतु पुरातात्विक, साहित्यिक और पुरालेखीय सामग्री के रूप में सभी प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं। ये स्रोत हमारे वर्तमान ज्ञान के आधार पर राजस्थान का एक ऐसा चित्र प्रस्तुत करते हैं कि किस तरह मानव ने राजस्थान में कालीबंगा, आहड़, गिलुंड, गणेश्वर इत्यादि स्थलों पर सभ्यताएं विकसित की।

स्वतन्त्रता से पूर्व राजस्थान का विशाल प्रदेश अनेक छोटी-बड़ी रियासतों में विभाजित था। इन सभी रियासतों का इतिहास अलग-अलग था और यह इतिहास सामान्यतः उस राज्य के संस्थापक तथा उसके घराने से ही प्रारम्भ होता था और उसमें राजनैतिक घटनाओं तथा युद्धों के विवरणों का ही अधिक महत्व था।

आधुनिक काल में सबसे पहले जेम्स टॉड ने समूचे राजस्थान का इतिहास लिखा और एक नई दिशा प्रदान की। तदन्तर कविराजा श्यामलदास गौरीशंकर हीराचन्द ओझा जैसे मनुष्यों ने राजस्थान के इतिहास में विविध आयाम जोड़कर पूर्णता प्रदान करने की कोशिश की। टॉड ने 19वीं शताब्दी के तीसरे दशक में आधुनिक पद्धति से राजस्थान के इतिहास लेखन की एक अद्वितीय पहल की । टॉड का इतिहास ‘एनल्स एण्ड एण्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान’ दोषपूर्ण होते हुए भी आज राजस्थान के सन्दर्भ में ‘मील का पत्थर’ है। इसमें उसके द्वारा संग्रहित अभिलेखों, सिक्कों, बहियों, खातों आदि के आधार पर लिखा मेवाड, मारबाड, बीकानेर, जैसलमेर, सिरोही, बूंदी ब कोटा का इतिहास है।

राजस्थान के इतिहास के प्रामाणिक स्रोत इस प्रकार हैं – 

  • पुरातात्विक स्रोत
  • उत्खनित पुरावशेष
  • शिलालेख
  • संस्कृत शिलालेख
  • फारसी शिलालेख
  • ताम्रपत्र
  • सिक्के
  • स्मारक एवं मूर्तियों
  • चित्रकला
  • साहित्यिक स्रोत

 

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