ई0 गार्डनर (E. Gardner) को 1815 ई0 में कुमाऊँ का पहला कमिश्नर नियुक्त किया गया। उनके सहायक के रूप में ट्रेल को नियुक्ति मिली। इसके साथ ही उत्तराखण्ड के प्रशासनिक नवाचार के एक नए युग का शुभारम्भ हुआ। अपने नौ महीनों के कार्यकाल में गार्डनर ने तहसीलों, थानों, सदर कार्यालय, भूराजस्व,नानकर भूमियों की जाँच इत्यादि का कार्य प्रारम्भ किया। सात तहसीलों और पाँच थानों की स्थापना की। सहायक ट्रेल को बंदोबस्त के कार्य में लगाया। यद्यपि इस बीच आंग्ल-नेपाल संघर्ष जारी था एवं गार्डनर राजनीतिज्ञ एजेण्ट की भूमिका भी इसमें निभा रहे थे। इस कारण उन्हें प्रशासन में सुधार का अधिक समय न मिल पाया।
गार्डनर को सिंगोंली की संधि की पुष्टि के लिए कम्पनी के राजनीतिज्ञ एजेण्ट के रूप में नेपाल की राजधानी काठमाण्डु जाने के कारण उनके सहायक जार्ज विलियम ट्रेल (George William Trail) को कुमाऊँ गढ़वाल के द्वितीय आयुक्त के रूप में प्रोन्नति मिली। ट्रेल ने कुमाऊँ गढ़वाल में 20 वर्ष सेवा दी जिसमें लगभग 19 वर्ष तक वे यहाँ के आयुक्त रहे। उन्हें कुमाऊँ का प्रथम वास्तविक आयुक्त भी माना जा सकता है क्योंकि उनके कार्यकाल में ही यहाँ प्रशासन के वास्तविक स्वरूप की आधारशिला रखी गई।
ट्रेल ने प्रशासन के सभी क्षेत्रों में अपनी व्यक्तिगत रूचि दिखाई। उन्होंने सामान्य प्रशासन, राजस्व प्रशासन, पर्वतीय श्रमिकों की समस्याओं, ब्रिटिश कुमाऊँ प्रान्त की राजनैतिक एवं प्रशासनिक सीमाओं के निर्धारण, सड़क एवं पुलो के निर्माण, वन व्यवस्था, पोस्टल सेवाओं एवं कोषागार और मुद्रा विनियम इत्यादि मामलों में व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप किया। उन्होने पिछले 25 वर्षों से चली आ रही गोरखा राजस्व व्यवस्था के स्थान पर स्थानीय परिस्थितियों एवं पूर्व परम्पराओं के अनुसार कुमाऊँ प्रान्त का 26 परगनों में विभाजन किया। अस्सी के बंदोबस्त के रूप में राजस्व का ग्रामवार राजकीय अभिलेखों में अंकन कराया। इस बंदोबस्त ने प्रथम बार ग्रामीणों को उनके गाँव की सीमा, सीमा में समाहित भूमि, वन एवं नैसर्गिक सम्पदा की जानकारी प्राप्त हुई।
माह अक्टूबर, 1816 ई0 को इस क्षेत्र को बोर्ड ऑफ कमिश्नर के नियंत्रण में कर दिया गया था। ट्रेल ने उत्तराखण्ड को एक नई व्यवस्था दी जो वर्तमान में भी इस राज्य की विशिष्ट पहचान है। उन्होंने नानकर भूमि के अधिग्रहण से प्राप्त बचत की राशि से 1819 में पटवारी के 9 पद सृजित किए। यह एक प्रकार से राजस्व पुलिस व्यवस्था थी। पटवारी का पद पर्वतीय क्षेत्रों के प्रशासन में अत्यंत महत्वपूर्ण पाया गया। उसका कार्य अपने क्षेत्र से लगान की वसूली करना, गाँव की पैमाइश करना, लड़ाई-झगड़ों का स्थानीय निपटारा करना, सदर कचहरी को सूचना प्रदान करना एवं तहसीलदारों को सूचना पहुँचाना इत्यादि था। एक प्रकार से पटवारी ग्रामीण क्षेत्र में राजस्व एवं पुलिस दोनो के कार्य करता था।
ट्रेल ने अपने कार्यकाल में कुल 7 बंदोबस्ती चक्र पूर्ण किए। उन्होनें कुमाऊँ की अत्यंत दयनीय अर्थव्यवस्था की समीक्षा की। ट्रॉन्स हिमालयी व्यापार के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व को समझा और उसे अनुकूल बनाने के विशिष्ट उपाय किए। निजी यात्रा मार्गों को यात्री मार्ग में परिवर्तित कर बद्रीनाथ-केदारनाथ तक चरणबद्ध सड़क निर्माण आरम्भ करवाया। व्यापारिक सीमावर्ती भोटिया जाति को लगान माफी के साथ ही परम्परागत मेलों के आयोजन स्थल पर ही व्यापारिक मुकदमों की सुनवाई का प्रयास किया। इससे व्यापारियों और कृषकों का उत्साह बढ़ा जिसका प्रमाण ट्रेल के सात बंदोबस्तों की वित्तीय सफलता के आकड़ों से होता है।
कुमाऊँ की प्रशासनिक सीमा निर्धारण में ट्रेल का मुरादाबाद के कलेक्टर हाल हेड से लम्बा विवाद चला जिसका निस्तारण 1825 में बोल्डरसन्की अध्यक्षता में हुआ। सन् 1826 ई0 में देहरादून व चंडी क्षेत्र को कुमाऊँ में शामिल किया गया। 1 मई 1829 तक देहरादून कुमाऊँ प्रांत का हिस्सा रहा। 1820 ई0 में ट्रेल ने कोर्ट फीस के रूप में स्टॉम्प जारी किए।
अतः ट्रेल ने कुमाऊँ के उजड़े प्रान्त में पुनः एक व्यवस्था कायम की। विश्प हीबर नामक यात्री जो 1824 ई0 में उत्तर भारत भ्रमण पर आए थे, उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है कि कमिश्नर ट्रेल निरन्तर भ्रमण पर रहते थे एवं केवल वर्षाकाल को ही अपने मुख्यालय में व्यतीत करते थे। केनेय मेंसन ने लिखा है कि स्वयं ट्रेल को अनुमान न रहा होगा कि कालान्तर में पर्वतीय जन किसी विवाद का निर्णय करेगें तो उदाहरण देगें कि कमिश्नर ट्रेल के जमाने में ऐसा होता था।
Key Notes –
- कुमाऊँ का पहला कमिश्नर – ई0 गार्डनर को 1815 ई0 में
- ई0 गार्डनर ने अपने 9 माह के कार्यकाल में सात तहसीलों और पाँच थानों की स्थापना की।
- कुमाऊँ गढ़वाल के द्वितीय आयुक्त – जार्ज विलियम ट्रेल
- ट्रेल ने कुमाऊँ गढ़वाल में 20 वर्ष सेवा दी जिसमें लगभग 19 वर्ष तक वे यहाँ के आयुक्त रहे।
- ट्रेल को कुमाऊँ का प्रथम वास्तविक आयुक्त भी माना जा सकता है क्योंकि उनके कार्यकाल में ही यहाँ प्रशासन के वास्तविक स्वरूप की आधारशिला रखी गई।
- ट्रेल ने अस्सी के बंदोबस्त के रूप में राजस्व का ग्रामवार राजकीय अभिलेखों में अंकन कराया।
- ट्रेल ने अपने कार्यकाल में कुल 7 बंदोबस्ती चक्र पूर्ण किए।
- कुमाऊँ की प्रशासनिक सीमा निर्धारण में ट्रेल का मुरादाबाद के कलेक्टर हाल हेड से लम्बा विवाद चला जिसका निस्तारण 1825 में बोल्डरसन्की अध्यक्षता में हुआ।
- सन् 1826 ई0 में देहरादून व चंडी क्षेत्र को कुमाऊँ में शामिल किया गया।
- 1 मई 1829 तक देहरादून कुमाऊँ प्रांत का हिस्सा रहा।
- 1820 ई0 में ट्रेल ने कोर्ट फीस के रूप में स्टॉम्प जारी किए।
ब्रिटिश कालीन उत्तराखंड
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