सिंगोली की संधि (Treaty of Singoli)

बमशाह एवं अंग्रेजो में मध्य हुई संधि पत्र पर 15 मई 1815 का अमर सिंह थापा ने हस्ताक्षर कर दिए थे किन्तु नेपाल पहुँचते ही उन्होने बमशाह की संधि को मानने से इन्कार कर दिया। बनारस से नेपाल के राजगुरु गजराज मिश्र को काठमाण्डु बुलाया गया। 2 दिसम्बर 1815 को सिंगौली (Singoli) नामक स्थल पर लै0 कर्नल पेरिस ब्रेडसॉ और नेपाल नरेश शाह बहादूर शमशेरजंग के प्रतिनिधि गजराज मिश्र एवं चन्द्रशेखर उपाध्याय के मध्य एक संधि का मसौदा हस्ताक्षरित हुआ। इसके अनुसार तराई क्षेत्र और काली नदी के पश्चिम पहाड़ी प्रदेश अंग्रेजो को सौंप दिए जाने के साथ ही नेपाल में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखने पर भी सहमति हो गई। नेपाल में गुटबंदी शुरु हो गई और थापा दल ने गजराज मिश्र द्वारा तय की गई संधि शर्तों को मानने से साफ मना कर दिया। थापा दल इसकी बजाय युद्ध के पक्ष में था। अतः पुनः संघर्ष की तैयारी प्रारम्भ हो गई।

जनरल डेविड ऑक्टरलोनी के नेतृत्व में एक बड़ी सेना आक्रमण को भेजी गई। इसके साथ ही कर्नल निकोलस को डोटी, पाल्या एवं पलवल पर आक्रमण का आदेश हुआ। 10 फरवरी 1816 ई0 को ऑक्टरलोनी ने अपनी सेना चोरियाघाट दर्रे से नेपाल घाटी की ओर बढाई एवं काठमांडु से 20 मील दूर मकवानपुर के पास ले जाकर खड़ी कर दी। 28 फरवरी 1816 ई0 को यहीं पर आंग्ल-गोरखा युद्ध हुआ जिसमें गोरखों को हार का सामना करना पड़ा। जब हार की सूचना काठमांडु पहुंची तो पूर्ववत् संधि की यथास्थिति में पुष्टि हो गई। अतः 4 मार्च 1816 ई0 को हुई इस संधि को इतिहास में सिंगोली की संधि के नाम से जाना जाता है। इस संधि की शर्ते इस प्रकार थी –

  • दोनों पक्षों ने युद्ध समाप्ति की घोषणा की।
  • पूर्व में हुई संधि के द्वारा तराई का जो प्रदेश अग्रेजों को सौंपा गया था उसे वापस नेपाल को लौटा दिया गया।
  • अवध की सीमा से लगे तराई क्षेत्र को अवध को दे दिया गया।
  • मंची नदी एवं तीस्ता नदी के मध्य की पट्टी को सिक्किम के राजा को हस्तगत कर दिया गया।
  • व्यास के निकट स्थित तिनकर (टिंकर) और छांगरु नामक क्षेत्र नेपाल को हस्तगत कर दिया गया।
  • 2 दिसम्बर को गजराज मिश्र के साथ हुई संधि शर्तों की पुष्टि भी नेपाल के राजा ने कर दी।
  • सबसे महत्वपूर्ण यह था कि अंग्रेज रेजीडेण्ट को नेपाल में रखना स्वीकार कर लिया।
  • अंग्रेजों ने भी गोरखों को अपनी सेना में भर्ती करना स्वीकार लिया।
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अन्ततः सिंगौली की संधि ने अंग्रेजो और गोरखों के मध्य एक स्थायी शांति स्थापित कर दी। उत्तराखण्ड एवं हिमाचल प्रदेश इसके द्वारा ब्रिटिश नियंत्रण में चले गए। तिब्बत एवं मध्य एशिया से व्यापारिक लाभ इस संधि से अंग्रेजो को हुआ। इस संधि से ही अंग्रेजो को गोरखों के रुप में ईमानदार और अपने स्वामी पर मर-मिटने वाले सैनिक दिए जिन्होंने कालान्तर में अपने शौर्य एवं वीरता की मिशाल कायम कर अंग्रेजी राज्य को स्थायित्व प्रदान करने में सहयोग कर स्वयं को एक मार्शल कौम के रुप में स्थापित किया।

 

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