Demand for Land Law in Uttarakhand

उत्‍तराखंड में भू-कानून की मांग (Demand for Land Law in Uttarakhand)

उत्तराखंड में हमेशा चुनाव से पूर्व सत्ताधारी सरकार व विपक्ष की पार्टी लोगों को लुभाने के लिए किसी न किसी मुद्दे को जनता के सामने प्रस्तुत करती है और चुनाव के बाद वह मुद्दा कहाँ चला जाता है पता नहीं। लेकिन इस बार का मुद्दा कुछ अलग है, क्योकि यह मुद्दा किसी भी राजनीति पार्टी का नहीं बल्कि उत्तराखंड के हजारों युवाओं के द्वारा उठाया जा रहा है, यह मुद्दा है उत्तराखंड में भू-कानून (Demand for Land Law in Uttarakhand) को जल्द से जल्द लागू किया जाए। और हिमाचल की तर्ज पर ही उत्तराखंड में भी इस कानून को लागू करने की बात कर रहे हैं। 

उत्तराखंड में लागू वर्तमान भू-कानून

उत्तराखंड बनने के बाद राज्य में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 लागू किया गया। इसके बाद यहां इस कानून में समय-समय पर संशोधन हुए।

  • 2005-06 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बाहरी व्यक्तियों के लिए राज्य में भूमि खरीद की सीमा 500 वर्ग मीटर की गई।
  • 2007 में भाजपा सरकार में शामिल उक्रांद विधायक दिवाकर भट्ट के आग्रह पर सरकार ने इस सीमा को घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया।
  • बाद में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने 6 अक्टूबर 2018 को उक्त आदेश को समाप्त कर दिया। साथ ही जिलाधिकारियों को यह अधिकार दे दिए कि 100 बीघा तक बंजर जमीन उद्यमियों को आवंटित कर दी जाए। सरकार के इस निर्णय से भूमि के मूल मालिकों का मालिकाना हक समाप्त हो रहा है।

भू कानून की मांग क्यों ?

भू कानून का मतलब है भूमि पर केवल और केवल आपका अधिकार। उत्तराखंड पलायन का शिकार है और उसके बाद यहां पर लगातार बाहरी लोग जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं और बड़ी संख्या में पहाड़ों पर जमीनें खरीदी और बेची जा रही हैं जिसका खामियाजा यहां के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

  • उत्तराखंड में आकर कोई भी कितनी भी जमीन अपने नाम से खरीद सकता है, पहाड़ी राज्यों में सस्ते दामों पर जमीन खरीदकर उसे बाहरी लोग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। लोगों का आरोप है कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बाहरी हस्तक्षेप से यहां की संस्कृति को बड़ा खतरा है, इसीलिए अब एक सख्त भू कानून की मांग छिड़ गई है।
  • जब उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य हिमाचल में कानूनी प्रावधानों के चलते कृषि भूमि की खरीद लगभग नामुमकिन है। सिक्किम में भी भूमि की बेरोकटोक बिक्री पर रोक के लिए बीते वर्ष ही कानून बना है। मेघालय का कानून भी भूमि बिक्री पर पाबंदी लगाता है। जब दूसरे हिमालयी राज्यों में कानून हैं तो फिर उत्तराखंड में क्यों नहीं?
  • पहाड़ में भूमि खरीदने के लिए बाहरी राज्यों के लोगों की बाढ़ सी आ गई। दूरदराज गांवों में भी बाहरी प्रदेश के लोगों की ओर से जमीनें खरीदने के प्रयास किए जा रहे हैं। जो पहाड़ के सामाजिक ताने बाने, संस्कृति व बोली-भाषा के लिए खतरे का कारण बन सकता है।
  • सख्त भूमि कानून के अभाव में उत्तराखंड के जंगल भी खतरे में हैं। पलायन का कारण भी उत्तराखंड में यही रहा कि खेती से वहां रोजगार के खास प्रयास नहीं हुए. उत्तराखंड में इन्हीं कारणों से गांव बचाओ यात्रा जैसे आंदोलन भी हो रहे हैं।

क्या है हिमांचल का भू-कानून

  • हिमाचल को 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और यहां अगले ही साल भूमि सुधार कानून लागू हो गया। कानून की धारा 118 के तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति कृषि की जमीन निजी उपयोग के लिए नहीं खरीद सकता।
  • लैंड सीलिंग एक्ट में कोई भी व्यक्ति 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकता।
  • गैर हिमाचली नागरिक को यहां जमीन खरीदने की इजाजत नही। कमर्शियल प्रयोग के लिए आप जमीन किराए पे ले सकते हैं।
  • 2007 में धूमल सरकार ने धारा -118 में संशोधन किया और कहा कि बाहरी राज्य का व्यक्ति, जो हिमाचल में 15 साल से रह रहा है, वो यहां जमीन ले सकता है। इसका बड़ा विरोध हुआ और बाद में अगली सरकार ने इसे बढ़ा कर 30 साल कर दिया।

 

Read Also :
Uttarakhand Study Material in Hindi Language (हिंदी भाषा में) Click Here
Uttarakhand Study Material in English Language
Click Here 
Uttarakhand Study Material One Liner in Hindi Language
Click Here
Uttarakhand UKPSC Previous Year Exam Paper Click Here
Uttarakhand UKSSSC Previous Year Exam Paper Click Here
Uttarakhand Police Previous Year Exam Paper Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!