भारत में ब्रिटिश शिक्षा नीति
(British Education Policy in India)
1772 ई. में बंगाल से भारत में प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी शासन का आरंभ हुआ। परन्तु एक लम्बे समय तक कम्पनी के डायरेक्टरों ने भारतीयों की शिक्षा के लिए कोई भी कदम उठाना अपना उत्तरदायित्व नहीं समझा। जो कुछ भी प्रयत्न हुआ, वह भारत में निवास करने वाले अंग्रेज अधिकारियों के प्रयत्नों से हुआ।
- वारेन हेस्टिंग्स ने 1781 ई. में कलकत्ता-मदरसा की स्थापना की, जहाँ फारसी और अरबी भाषा की शिक्षा का प्रबंध किया गया।
- 1791 ई. में अंग्रेज रेजीडेण्ट जोनाथन डनकन के प्रयत्नों से बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना हुई।
- लॉर्ड वेलेजली ने अंग्रेज कर्मचारियों को भारतीय भाषाओं तथा रीति-रिवाजों की शिक्षा प्रदान करने के लिए 1800 ई. में फोर्ट विलियम कॉलेज की, स्थापना की परन्तु 1802 में डायरेक्टरों के आदेश के कारण उसे बन्द कर दिया गया ।
- 1813 ई. के आदेश-पत्र में यह निश्चित किया गया, कि भारतीयों की शिक्षा के लिए कम्पनी की सरकार प्रतिवर्ष एक लाख रुपया व्यय करेगी।
- विभिन्न ईसाई पादरी और उदार भारतीय तथा राजा राम मोहन राय अंग्रेजी शिक्षा को आरंभ किये जाने के पक्ष में थे। परन्तु अनेक भारतीय तथा अंग्रेज ऐसे भी थे जो ऐसा नहीं चाहते थे ।
बाद में अंग्रेजों व भारतीयों के सहयोग से कई आयोगों के गठन किये गए जो इस प्रकार हैं –
- मैकॉले का विवरण पत्र (1835)
- वुड घोषणा पत्र (1854)
- हंटर कमीशन (1882-83)
- कर्जन की शिक्षा नीति (1901)
- 1913 का शिक्षा-नीति संबंधी सरकारी प्रस्ताव
- सैडलर विश्वविद्यालय कमीशन (1917-19)
- हर्टाग (HARTOG) समिति (1929)
- वुड-एबट रिपोर्ट (1936)
- बेसिक शिक्षा की वर्धा योजना (1937)
- सार्जेण्ट शिक्षा योजना (1944)
- स्वाधीनता के पश्चात शिक्षा का विकास (1947-1950 ई.)
Read More : |
---|