medieval Indian History

देवगिरि के यादव (Yadav of Devagiri)

देवगिरि के यादव (Yadav of Devagiri)

इस परिवार का पहला व्यक्ति दृधप्रहार था। उनके पुत्र सेउनाचंद्र I ने सर्वप्रथम परिवार के लिए सामंतों का स्तर प्राप्त किया था। उनके महत्त्व को इस बात से समझा जा सकता है कि यादवों के राज्य को सेउना-देश के नाम से जाना गया। भील्लम II के समय राष्ट्रकूट राज्य में पश्चिमी चालुक्यों ने नष्ट कर दिया। उनके बाद वेसुंगी, भील्लाम III, के भील्लाम IV, सेउनाचन्द II, सिम्हराज, मल्लुजी तथा भील्लाम V आए।

भील्लाम V (Bhillam V)

  • जब भील्लाम V गद्दी पर आए तो चालुक्य शक्ति का पतन हो रहा था। 
  • यादवों ने इस स्थिति का फायदा उठा अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। 
  • भील्लाम ने इस तरह जिस यादव साम्राज्य की नींव रखी वह लगभग एक शताब्दी तक चली।

जैतुगी (Jaitugi)

  • इन्होंने अपनी दक्षिणी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए काकातियों की उभरती शक्ति पर आक्रमण किया।
  • काकातिया राजा रुद्र इसमें मारा गया तथा उसके भतीजे गणपति को बन्दी बना लिया गया। जैतुगी ने गणपति को गद्दी पर बिठाया। 
  • जैतुगी मात्र एक सैनिक नहीं था बल्कि एक विद्वान भी था। महान खगोलशास्त्री भास्कराचार्य का पुत्र लक्ष्मीधर इनका मुख्य दरबारी कवि था।

सिम्हन (Simhan)

  • यह पूरे परिवार का सबसे शक्तिशाली राजा था। 
  • इन्होंने परमार राजा अर्जुनवर्मण को पराजित कर उसे मौत के घाट उतार दिया। 
  • इस तरह यादव राज्य अपने पराक्रम तथा वैभव के शीर्ष पर पहुंच गया। 
  • होयशाल, काकातिया, परमार तथा चालुक्य में से किसी ने उनकी स्थिति को चुनौती देने की हिम्मत नहीं की।
  • सिम्हन एक योद्धा के साथ-साथ संगीत तथा साहित्य में रुचि रखने वाला व्यक्ति था। 
  • संगीत पर बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य, सारंगदेव का संगीतरत्नाकर इनके दरबार में लिखा गया था। 
  • अनन्तदेव तथा चांगदेव इनके दरबार के दो प्रसिद्ध खगोलशास्त्री थे। 
  • चांगदेव ने अपने दादा भास्कराचार्य की याद में खानदेश के पटाना में एक खगोलीय महाविद्यालय की स्थापना की थी। 
  • अनन्तदेव ने ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फूत सिद्धान्त तथा वराहमिहिर के वृहद जातक पर टिप्पणियां लिखी थीं।

कृष्ण (Krishna)

  • इनके शासनकाल में वेदान्तकल्पतरु, जो कि भामती पर टिप्पणी (जो खुद शंकराचार्य के वेदांतसूत्रभाष्य पर टिप्पणी लिखी गई थी) है।

महादेव (Mahadev)

  • इन्होंने काकातिया राजा रुद्रंब को पराजित किया परन्तु उन्हें जीवनदान दिया। 
  • हेमादी, जो एक महत्त्वपूर्ण स्मृति लेखक था, महादेव का एक महत्त्वपूर्ण अधिकारी था। 
  • इन्होंने अपने व्रतखांदा की रचना महादेव के शासनकाल में की।

रामचन्द्र (Ram Chandra)

  • रामचन्द्र के शासन के अन्तिम दो दशक बहुत विनाशकारी थे जिसमें यह राजवंश ही समाप्त हो गया। 
  • प्रारंभ में 1296 में अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरी पर आक्रमण कर रामचन्द्र को शान्ति के लिए बाध्य कर दिया। 
  • यद्यपि रामचन्द्र अपना राज्य बचा पाने में सफल रहा परन्तु अपनी स्वतंत्रता खो बैठा। 
  • रामचन्द्र ने 1303-04 तक अलाउद्दीन को कर भेजना जारी रखा। 

शंकरदेव (Shankardev)

  • विदेशी शासन के खिलाफ रहे तथा गद्दी पर आते ही पुन: अलाउद्दीन को चुनौती दे बैठे। 
  • अलाउद्दीन ने फिर से काफूर को भेजा जिन्होंने शंकरदेव को मारकर यादव राज्य पर कब्जा कर लिया।

 

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पूर्वी चालुक्य शासक (Eastern Chalukya Ruler)

पूर्वी चालुक्य शासक (Eastern Chalukya Ruler)

बादामी के राजा पुलकेषिन II ने पिशहतापुर के राजा तथा विष्णुकुंदीन को पराजित कर इस नए जीते गए क्षेत्र का वाइसराय अपने भाई विष्णुवर्धन को बना दिया। जल्दी ही यह एक स्वतंत्र राज्य बन गया तथा विष्णुवर्धन ने वेंगी के पूर्वी चालुक्य वंश की स्थापना की। यह मुख्य राज्यवंश से कहीं लंबा चला। 

प्रारम्भिक शासक

  • विष्णुवर्धन ने 18 वर्षों तक शासन किया। उनकी रानी अय्याना-महादेवी ने विजयवाड़ा में एक जैन मंदिर का निर्माण करवाया। 
  • तेलुगू प्रदेश में यह जैन धर्म का पहला उल्लेख है। 
  • विष्णुवर्धन स्वयं एक भागवत था। 
  • विष्णुवर्धन के बाद उनका पुत्र जयसिम्हा I आया जो अपने पिता की तरह ही भागवत था। 
  • जयसिम्हा I के बाद विष्णुवर्धन II, विजयासिद्धी, विजयासिम्हा II, विक्रमादित्य, विष्णुवर्धन III तथा विजयादित्य एक के बाद एक आए।

विजयादित्य (Vijayaditya)

  • विजयादित्य के शासनकाल में दक्षिण में एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन आया जब राष्ट्रकूटों ने महान चालुक्यों की मुख्य शाखा को उखाड़ फेंका।

विष्णुवर्धन IV (Vishnuvardhan IV)

  • उन्हें राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से शान्ति समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा। 
  • इनका विवाह ध्रुव की पुत्री शिलम्हा देवी से हुआ था। 
  • जिसके साथ ही वेंगी राष्ट्रकूटों के अधीनस्थ बन गए।

विजयादित्य II (Vijayaditya II)

  • ये एक शक्तिशाली राजा थे तथा इन्होंने 40 वर्षों तक शासन किया। 
  • इनके बाद विजयादित्य III आए जिनकी मां राष्ट्रकूट शिलम्हा देवी थीं।

जियादित्य III गुनागा (Jiyaditya III Gunaga)

  • इन्होंने उग्र साम्राज्यवाद की नीति का पालन किया। जिसमें इनकी मदद इनके योग्य मंत्री विनयदिशरमण तथा सैनिक अध्यक्ष पांदुरंगा ने किया। 
  • इन्होने अपने आपको पूरे दक्षिणपंथ का स्वामी घोषित कर दिया। 
  • ये परे वंश का सबसे महान शासक था तथा इसका राज्य उत्तर में महेन्द्र गिरि से दक्षिण में पुलिकट झील तक फैला था। 
  • 44 वर्षों के लंबे शासनकाल के बाद गद्दी पर इनके भाई का पुत्र भीम आया।

भीम I (Bheem I)

  • इनके उत्तराधिकार को इनके चाचा युद्धमल्ला ने चुनौती दी तथा राष्ट्रकूट कृष्ण II के सहयोग से वेंगी पर कब्जा कर लिया, परन्तु चालुक्य सामंतों ने कृष्णा II को पराजित कर पुन: भीम को गद्दी पर बिठाया। 
  • ये एक शैव थे तथा इन्होंने पूर्वी गोदावरी जिले में भीमवरम् तथा दराक्षरभम् मंदिरों का निर्माण करवाया।

 

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कल्याणी के चालुक्य शासक (Chalukya Ruler of Kalyani)

कल्याणी के चालुक्य शासक
(Chalukya Ruler of Kalyani)

तैल II (Tail II)

  • तैल II ने अपना जीवन राष्ट्रकूट राजा कृष्ण III केस के रूप में प्रारंभ किया था, परन्तु शीघ्र ही उसने राष्ट्रकट राजा करक्का II को मारकर अपने को मुक्त कर लिया। 
  • वह गुजरात छोड पूरे राष्ट्रकूट राज्य का मालिक बन गया। 
  • तैल II ने परमार राज्य पर 6 बार आक्रमण किए परन्तु प्रत्येक बार मुंज उसे वापस खदेड देता था। 
  • जब मुंज ने चालुक्य राज्य पर आक्रमण किया तो तैल ने उसे पराजित कर मार डाला। 
  • तैल की राजधानी मान्यखेत थी।  
  • तैल के बाद उनका पुत्र सत्यसराया ने शासन किया। 

विक्रमादित्य V (Vikramaditya V)

  • सत्यसराया के बाद उनका भतीजा विक्रमादित्य V आया जिसने 6 सालों तक शासन किया। 
  • इसके शासन की एकमात्र महत्त्वपूर्ण घटना राजेन्द्र चोल का आक्रमण था।

जयसिम्हा II (Jaysimha II)

  • जयसिम्हा II ने अपने पूर्वजों के समय चोलों को हारे क्षेत्र पर पुनः कब्जा करने का प्रयास किया। 

सोमेश्वर I (Someshwar I)

  • सोमेश्वर I के गद्दी पर आते ही कल्याणी के चालुक्यों के इतिहास का वह गौरवपूर्ण काल प्रारंभ हुआ जो उनके पुत्र विक्रमादित्य VI के समय अपने शीर्ष पर पहुंचा। 
  • सोमेश्वर I का काल चोलों से संघर्ष से भरा रहा। 
  • इन्होंने राजधानी मान्यखेत से कल्याणी स्थानान्तरित की तथा इसके अनेक नए भवनों का सजाया। 
  • गद्दी पर आते ही सोमेश्वर ने वेंगी पर आक्रमण किया।
  • इन्होंने उत्तरी कोंकण पर विजय प्राप्त कर गुजरात तथा मालवा पर भी आक्रमण किया तथा परमार राज भोज की राजधानी धार पर आक्रमण कर उन्हें पराजित किया। 
  • सोमेश्वर I के चार पर थे जिनमें से उन्होंने अपने सबसे बड़े पुत्र सोमेश्वर II को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

सोमेश्वर II (Someshwar II)

  • इनके आठ साल के छोटे शासन काल में इनके तथा इनके भाई विक्रमादित्य VI के बीच संघर्ष होता रहा। 
  • अन्ततः विक्रमादित्य ने अपने बड़े भाई की हत्या कर 1076 में गद्दी पर अधिकार कर लिया। 

विक्रमादित्य VI (Vikramaditya VI)

  • इन्हें भी अपने छोटे भाई जयसिम्हा के विद्रोह का सामना करना पड़ा जो अन्तत: विफल रहा। 
  • विक्रमादित्य के शासनकाल में चार होयशाल प्रधान हुए – विनयादित्य, इरेयांगा, बल्लाल I तथा विष्णुवर्धन। 
  • विक्रमादित्य का राज्य उत्तर में नर्मदा तक तथा दक्षिण में तुमकुर तथा कोद्दापाह जिला तक था। 
  • 50 सालों का इसका लम्बा शासनकाल कला तथा साहित्य के क्षेत्र में भी विकास का समय था। 

सोमेश्वर III (Someshwar III)

  • विक्रमादित्य के बाद गद्दी पर सोमेश्वर III आए जिनके शासनकाल में चालुक्य राज्य बिखरने लगा। 
  • होयशाल सामंत विष्णुवर्धन ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी तथा पश्चिमी चालुक्य राज्य के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया। 
  • सोमेश्वर III अभिलाषीतर्पचिन्तामणि अथवा मनासोल्लासा  विश्वकोष के रचियता थे तथा इस कारण इन्हें सर्वज्ञ भी कहा जाता था।

बाद के शासक

  • सोमेश्वर के पुत्र जगदेकामाल्ल तथा तैल III के समय कालचुरियों की शत्रुता के कारण चालुक्य राज्य टूट गया। 
  • तैल के पुत्र सोमेश्वर IV ने कुछ समय तक राज्य को सम्भाल लिया परन्तु यादव राजा भिल्लामा ने उसे पूरी तरह तोड़ दिया। 
  • इसके साथ ही कर्नाटक में चालुक्य शासन समाप्त हो गया तथा यहां अब तुंगभद्रा के ऊपर यादवों का तथा उसके नीचे होयशालों का राज्य था।

 

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दक्षिण भारत के चोल शासक (Chola Ruler of South India)

चोल राजवंश (Chola Dynasty)

विजयलया (Vijayalaya)

  • पांड्यों के सहयोगी गुत्तरयार से 850 ई०पू० के लगभग विजयलया द्वारा तंजौर छीनना तथा उसके द्वारा निशुंभसुदीनी (दुर्गा) के मंदिर की स्थापना-चोलों (Chola) के उदय से पहले चरण थे जो उस समय पल्लवों के सामंत थे।

आदित्य (Aditya)

  • आदित्य ने अपने पल्लव अधिराज को युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी तथा पूरे तोंडाइमंडलम पर अधिकार कर लिया। 
  • आदित्य ने उसके बाद कोंगु राज्य पर भी अधिकार किया। 
  • आदित्य  ने कावेरी नदी के दोनों तटों पर शिव के मंदिरों का निर्माण करवाया।

परान्तक I (Parantak I)

  • परान्तक I ने शासन के प्रारंभिक दिनों में पांड्य राज्य पर आक्रमण किया तथा ‘मदुरै कोंडा’ (मदुरै को जीतने वाला) की उपाधि धारण की। 
  • 916 में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण II ने चोल राज्य पर आक्रमण किया, उन्हें वल्लाल में बुरी तरह पराजित होना पड़ा। 
  • राष्ट्रकूट राजा कृष्ण III ने परांतक को तावकोलम के युद्ध में 949 में पराजित कर उत्तरी चोल राज्य के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया।
  • परांतक I के बाद अगले 30 वर्षों तक काफी अव्यवस्था रही। 
  • उनके उत्तराधिकारी गणरादित्य, अरिंजय, परांतक II तथा उत्तम चोल थे। 
  • इनमें से मात्र परांतक II का कुछ महत्त्व है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रकूटों से हारे गए क्षेत्र में से कुछ वापस जीता।

राजाराज I (Rajaraj I)

  • ये मूलत: अरुमोलिवर्मण के नाम से जाने जाते थे तथा परांतक II के पुत्र थे। 
  • चोलों का वास्तविक महान युग उनके समय से प्रारंभ हुआ। 
  • उन्होंने पांड्य, केरल तथा सिलोन राज्य की एक सम्मिलित सेना को पराजित कर इनके राज्यों पर अधिकार कर लिया। 
  • महेंद्र V को पराजित कर सिलोन की राजधानी अनुराधापुरा को नष्ट कर उत्तरी सिलोन में चोल प्रान्त की स्थापना की गई जिसकी राजधानी पोलोन्नारुवा थी। 
  • उन्होंने तंजौर के भव्य शिव अथवा वृहदेश्वर (राजराजेश्वर) मंदिर का निर्माण करवाया था। 

राजेन्द्र I (Rajendra I)

  • उन्होंने चोल राज्य को विस्तारित कर उस समय का सबसे सम्माननीय राज्य बना दिया। 
  • उन्होंने महेन्द्र V को पराजित कर उसे बंदी बना लिया तथा सिलोन की विजय को पूरा किया। 
  • उन्होंने पांड्य तथा केरल राज्यों को पराजित कर अपने एक बेटे को इस क्षेत्र का वाइसराय बना दिया तथा मदुरै को इसकी राजधानी। 
  • उन्होंने कलिंग के पूर्वी गंगा राजा मधुकुमारनव को भी पराजित किया जिसने पश्चिमी चालुक्यों का साथ दिया था।
  • राजेन्द्र I ने गंगा घाटी पर एक सफल सैनिक अभियान का नेतृत्व किया तथा इस अवसर पर एक नई राजधानी तथा मंदिर का निर्माण करवाया जिसका नाम था गंगाई कोंडाचोलापुरम। 

राजाधिराज (Rajadiraj)

  • उन्होंने पांड्य, केरल तथा सिलोन में विद्रोहों का दबाया था। 
  • उन्होंने वेंगी में चोल राज्य को पुनः स्थापित करन के लिए भी अभियान छेडा। 
  • येतागीरी (याडगीर) में उन्होंने शेर चिह्न वाला एक स्तम्भ बनवाया। 
  • कल्याणी पर अधिकार कर राजाधिराज ने वहां विराभिषेक (विजय उत्सव) या तथा ‘विजयराजेन्द्र’ की उपाधि धारण की। 
  • अपने शासन के अन्तिम दिनों में उन्होंने पश्चिमी चालुक्य शासन सोमेश्वर के खिलाफ अभियान छेड़ा परन्तु इसमें उनकी मृत्यु हो गई। 

राजेन्द्र II (Rajendra II)

  • विजय के बाद उसने एक जय स्तम्भ कोल्लापुरा में लगवाया तथा अपनी राजधानी वापस लौट गया। 
  • बाद में सोमेश्वर को कोप्पम की पराजय को बदलने का प्रयास किया किन्तु उसमें वह असफल रहा। 
  • इसके कुछ ही दिनों के बाद राजेन्द्र की मृत्यु हो गई।

वीर राजेन्द्र (Veer Rajendra)

  • सोमेश्वर ने वीर राजेन्द्र को चुनौती दी जिसके परिणामत: कुदाल-संगमम का युद्ध हुआ परन्तु चालुक्य राजा अपनी बीमारी के कारण इस युद्ध में नहीं आए तथा कुछ समय बाद अपने को तुंगभद्रा में डुबोकर परमयोग प्राप्त किया। 
  • वीर राजेन्द्र ने सहायता तथा संरक्षण के लिए अपनी शरण में आए राजकुमार के पक्ष में कदारम (श्री विजय) एक नौसैनिक अभियान भेजा (1068)।

कुलुतुंगा I (Kulutunla I)

  • वेंगी के राजराजा नरेन्द्र तथा चोल राजकुमारी अम्मंगादेवी के इस पुत्र का मूल नाम राजेन्द्र II था। 
  • इसने वीर राजेन्द्र की मृत्यु का फायदा उठाकर चोल गद्दी पर अधिकार कर लिया। 
  • इस तरह उसने वेंगी तथा चोल राज्यों को मिला दिया। 
  • कुलुतुगा ने पूरे राज्य पर पुनः एक मजबूत सैन्य अभियान छेड़ दिया। 
  • 1115 तक सिलोन को छोड़कर चोल राज्य का स्वरूप मारवतित रहा; परन्तु अपने शासन के अंतिम दिनों में यह वेंगी 9 मसूर चालुक्य राजा विक्रमादित्य को हार गए। 
  • कुलुतुगा I ने 72 व्यापारियों का एक दल चीन भेजा तथा श्री विजया से भी उनके अच्छे संबंध थे जहां से उसके लिए भी एक दूत भेजा गया था। 
  • पुरालेख तथा लोक अवधारण उन्हें ‘शुंगम तविर्त’ की उपाधि देता है। 

बाद के शासक 

  • कुलुतुंगा I के बाद विक्रम चोल, कुलुतुंगा II, राजराजा II, राजाधिराज II, कुलुतुंगा III आए। 
  • राजाधिराज II के समय से सामंतों की बढ़ती स्वतंत्रता राजाधिराज II के समय पूरी तरह उभरने लगी। 
  • कुलुतुंगा III ने चोल राज्य के विघटन को कुछ समय तक रोके रखा। 
  • कुलुतुंगा III के बाद चोल स्थानीय प्रमुखों के रूप में बने रहे।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (तोमर राजवंश)

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तोमर राजवंश (Tomar Dynasty)

तोमरों (Tomar) को 36 राजपूत वंशों में से एक माना जाता है। पारम्परिक स्रोतों के अनुसार अनंगपाल तोमर ने 736 में दिल्ली की नींव डाली तथा तोमर वंश की स्थापना की। तोमरों ने हरियाणा पर अपनी राजधानी दिल्लिका अथवा दिल्ली से शासन किया। जौला राजा तोमर वंश का एक छोटा सामंत था। इस वंश का अगला महत्त्वपूर्ण शासक वजरत था जो 9वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था।

वजरत के बाद उनका पुत्र जिज्जुक आया जिसके तीन पुत्र थे – गोग्गा, पुर्णराजा तथा देवराजा। इन तीनों भाइयों ने करनाल जिले के पृथुदक में सरस्वती नदी के किनारे विष्णु के तीन मंदिरों का निर्माण करवाया। 11वीं शताब्दी के प्रारंभ में तोमर मुस्लिम आक्रमणकारियों से भिड़े। शाकंभरी के चाहमनों के उदय के साथ ही उन पर दबाव बढ़ने लगा। रुद्रसेन नामक एक तोमर प्रधान की मृत्यु चाहमन राजा चंदनराजा II के साथ युद्ध में हुई थी। यह संघर्ष 12वीं शताब्दी के मध्य में चाहमनों ने विग्रहराजा के नेतृत्व में दिल्ली पर अधिकार कर हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (कालचुरी या हयहयों राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

कालचुरी या हयहयों राजवंश (Kalchuri or Hayahayon Dynasty)

कालचुरी अथवा हयहयों (Kalchuri or Hayahayon) का उल्लेख महाकाव्यों तथा पुराणों में मिलता है। चेदी राज्य से संबंध स्थापित होने के बाद इन्हें चेदी नाम से भी जाना गया। 

छठी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कालचुरी राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे। उनके राज्य में गुजरात, उत्तरी महाराष्ट्र तथा माला का कुछ हिस्सा सम्मिलित था। 550 – 620 के बीच तीन कालचुरी राजाओं ने – कृष्णाराज, उनके पुत्र शंकरागन तथा उनके बुद्धराज ने शासन किया था। 

त्रिपुरी के कालचुरी (Kalchuri of Tripuri)

  • 8वीं शताब्दी में कालचुरियों की विभिन्न शाखाएं उत्तर भारत के विभिन्न भागों में स्थित थीं। उनमें से एक ने आधुनिक गोरखपुर जिले के सरयुपारा में अपने राज्य की स्थापना की। 
  • दूसरी सबसे शक्तिशाली शाखा बुंदेलखंड के चेदी प्रांत पर शासन कर रहा था। 
  • चेदी के कालचुरी जिन्हें ढाल-मंडल के राजा के नाम से भी जाना जाता था, ने अपनी राजधानी मध्य प्रदेश के जबलपुर के निकट त्रिपुरी में बनवाया था।

कोकल्ला I (Kokalla – I)

  • त्रिपुरी के कालचुरियों का इतिहास 845 में अथवा उसके आसपास कोकल्ला I के आने के साथ प्रारंभ होता है। 
  • उनका संघर्ष प्रतिहार राजा भोज-I के साथ हुआ जिसे उन्होंने बुरी तरह पराजित किया। 
  • उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पूर्वी बंगाल में वांग को लूटा, राष्ट्रकूट राजा कृष्णा II (जो कि उनके रिश्तदार थे) को हराया तथा उत्तरी कोंकण पर आक्रमण किया। 
  • उसके बाद कृष्ण III के समय तक कालचरियों के राष्ट्रकूटों के साथ अनेक वैवाहिक संबंध हुए तथा इन दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता बना रहा।

शंकरागन I (Shankragan – I)

  • रस शंकरागन ने अपने पिता सोमवंशी को पराजित
  • कोकल्ला I ने चंदेल राजकुमारी नट्ट देवी से विवाह किया तथा उनके 18 पुत्र हुए।
  • सबसे बड़े लड़के ने अपने पिता का स्थान लिया तथा कोशल राजा को पराजित किया। 
  • उनके बाद उनका पुत्र बालहर्ष आया परंत उसका शासनकाल बहुत छोटा था।

युवराज I (Yuvraj – I)

  • कालचुरी तथा राष्ट्रकूटों के बीच के मधुर संबंधों के बाद भी राष्ट्रकूट कृष्ण III ने युवराज I के राज्य पर हमला किया। 
  • बाद में युवराज राष्ट्रकूटों को अपने राज्य से भगा पाने सफल रहे। यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी तथा इसकी याद में कालचुरी दरबार में रह रहे प्रसिद्ध कवि राजशेखर ने विद्धासलाभिंजका नामक प्रसिद्ध नाटक युवराज के दरबार में किया ।

लक्ष्मणराज तथा शंकरागन II (Laxman Raj and Shankaragan – I)

  • युवराज I के बाद उनका पुत्र लक्ष्मणराज गद्दी पर आया तथा उसने चालुक्य अथवा सोलंकियों के संस्थापक मूलराज I को पराजित किया। 
  • अपने पिता की तरह नसणराज ने शैव धर्म को प्रश्रय दिया। 
  • उनके बाद गद्दी पर उनका भाई शंकरागन II आया जो एक वैष्णव था। 
  • उसके बाद गद्दी पर उनका भाई युवराज II आया। वे एक अच्छे योद्धा नहीं थे तथा उनके शासनकाल में राज्य को बहुत नुकसान हुआ। 
  • युवराज II के मामा चालक्य तैल II ने उनके राज्य पर हमला किया। 

कोकल्ला II (Kokalla – II)

  • परमारों के लौटने के बाद शंकरागन II के मंत्रियों ने उनके पुत्र कोकल्ला II को गद्दी पर बिठा दिया। 
  • उनके शासनकाल में कालचुरी पुनः शक्तिशाली हो गए। 
  • उनके बाद गद्दी पर उनका पुत्र गंगेयदेव आया।

गंगेयदेव (Gangeydev)

  • उनके शासनकाल में कालचुरी उत्तर भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गए। 
  • उनकी सफलता का प्रमुख कारण यह था कि कालचुरी सुल्तान महमूद के आक्रमणों से बचे रहे। 
  • वे उडीसा के समुद्र तट तक अपनी शक्ति ले गए। 
  • उन्होंने अपनी इस जीत के उपलक्ष्य में ‘त्रीकलिंगाधिपति’ अथवा ‘त्राकलिग के स्वामी’ की उपाधि को धारण किया। 
  • उन्होंने अपने पुत्र करण के नेतृत्व में अंग तथा मगध के विरुद्ध एक अभियान भजा जो उस समय पाल राजा नयापाल के अधीन था। 

करण (Karan)

  • गंगेयदेव के बाद गद्दी पर उनका पुत्र लक्ष्मीकरण आया जिसे करण के नाम से भी जाना जाता था। 
  • वह अपने समय के महानतम योद्धाओं में से था। 
  • उसने प्रतिहारों से इलाहाबाद छीन लिया था। 
  • उसने चंदेल राजा कीतिवर्मण को पराजित कर बुंदेलखंड पर अधिकार कर लिया परंतु चंदेलों के एक सामंत ने इसे कालचुरियों से वापस जीत लिया। 
  • करण ने गुजरात के चालुक्य राजा भीम I के साथ मिलकर मालवा के परमारों पर आक्रमण किया।
  • इस युद्ध के दौरान परमार राजा भोज की मृत्यु हो गई तथा दोनों ने मालवा पर अधिकार कर लिया। 
  • बाद में इसके बंटवारे के प्रश्न पर करण तथा भीम के बीच झगड़ा हो गया।
  • वह अपने पैतृक राज्य में मात्र इलाहाबाद जोड़ पाया। 
  • अपने शासन के अंतिम दिनों में करण का जिन पराजयों का सामना करना पड़ा उससे उसके सम्मान को काफी चोट पहुंची तथा उसके सामंतों के ऊपर उसकी पकड़ कमजोर हुई।

बाद के शासक

  • करण ने अपने पुत्र यशकरण के लिए गद्दी त्याग दी। उसके ऊपर अनेक आक्रमण हुए। 
  • चालुक्य राजा विक्रमादित्य VI ने उन पर आक्रमण किया; गहदवाल वंश के चंद्रदेव ने उनसे इलाहाबाद तथा बनारस छीन लिया; चंदेलों ने उन्हें पराजित किया तथा परमार राजा लक्ष्मणदेव ने उनकी राजधानी को लूटा। 
  • विजयसिंह अंतिम महत्त्वपूर्ण कालचुरी राजा थे। 
  • चंदेल राजा त्रैलोक्यवर्मण ने उन्हें पराजित कर पूरे दहाल मंडल पर अधिकार कर लिया।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (चंदेल राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

चंदेल राजवंश (Chandel Dynasty)

प्रतिहारों के राज्य के बिखरने के बाद बुंदेलखंड में चंदेल (Chandel) राज्य का उदय हुआ। अधिकांश मध्यकालीन राजवंशों की तरह चंदेल भी अपना उदय चंद्रवंशी चंद्रात्रेय से मानते थे। चंदेलों की पहली राजधानी शायद खजुराहो थी, जो 10वीं शताब्दी में अपने वैभव के शीर्ष पर पहुंच गई। 

प्रारम्भिक शासक

  • 9वीं शताब्दी के पहले भाग में कन्नौज ने इस देश की स्थापना बुंदेलखंड में खजुराहो के समीप की। 
  • नान्नुका के पुत्र तथा उत्तराधिकारी वाकपति ने, जो 9वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुए थे, अपने समकालीन पाल देवपाल तथा प्रतिहार भोज से युद्ध किया। 
  • वाकपति के दो पुत्र थे – जयशक्ति तथा विजयशक्ति। 
  • जयशक्ति जो अपने पिता के बाद गद्दी पर आया, एक प्रसिद्ध राजा था तथा चंदेल राज्य उसी के नाम से ‘जेजक भुक्ति’ के नाम से जाना जाता था। 
  • जयशक्ति के बाद उनके भाई विजयशक्ति आए तथा उनके बाद उनका पुत्र राहिल आया।

यशोवर्मण (Yashovarman)

  • राहिल के बाद उनका पुत्र यशोवर्मण आया जिसे लक्षवर्मण के नाम से भी जाना जाता था। 
  • प्रतिहारों की क्षीण होती शक्ति का फायदा उठाकर उन्होंने चंदेलों पर आक्रामक सैन्य की शुरुआत की। 
  • यशोवर्मण ने उत्तर भारत में व्यापक जीत हासिल की तथा चंदेल शक्ति को स्थापित किया। 
  • यशोवर्मण ने खजुराहो में विष्णु के एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जिसका नाम चतुर्भुज मंदिर है।

धांग (Dhang)

  • यशोवर्मण के बाद उनके पुत्र धांग गद्दी पर आए (954 – 1002) तथा वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक सिद्ध हुए। 
  • धांग ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की तथा चंदेल राज्य को उसके शीर्ष पर ले गए। 
  • अपनी शक्ति के बल पर उन्होंने चंदेल राज्य की सीमाओं को गंगा के तह तक पहुंचा दिया। 
  • खजुराहो के अनेक भवन धांग की कलात्मक गतिविधियों का प्रमाण हैं। 
  • धांग  के द्वारा निर्मित विश्वनाथ मंदिर खजुराहो का सबसे अलंकृत मंदिर है तथा सबसे अच्छी स्थिति में है। 
  • जिननाथ एवं वैद्यनाथ के मंदिर भी धांग के शासनकाल में बंटे थे।

धांग के उत्तराधिकारी (Successor of Dhang)

  • धांग के बाद उनके पुत्र गंद तथा उनके बाद उनके पुत्र विद्याधर आए। 
  • सुलतान महमूद ने, 1019 तथा 1022 में, दो बार उनके राज्य पर हमला किया। 
  • विद्याधर की मृत्यु के बाद चंदेल शक्ति कुछ दिनों के लिए काफी कमजोर पड़ गई तथा यह विजयपाल, कीर्तिवर्मण, सल्लाक्षावर्मण, जयवर्मण, पृथ्वीवर्मण तथा मदनवर्मण के हाथों में रही।
  • मदनवर्मण के बाद उनका पोता परमार्दी आया जिसका शासन काल 1165 – 1202 तक था। 
  • उसे पृथ्वीराज III के हाथों एक अपमानजनक हार झेलनी पड़ी परंतु पृथ्वीराज खुद 1192 में आक्रमणकारी शिहाबुद्दीन मुहम्मद के हाथों पराजित हुए। 
  • दस साल बाद मुहम्मद के छत्रप कुतुबुद्दीन ने (1202) चंदेल शक्ति के केन्द्र कालिंजर पर आक्रमण किया। 
  • कुतुबुद्दीन ने कालिंजर को लूटने के बाद महोबा पर कब्जा किया तथा जीते गए क्षेत्र के प्रशासन के लिए अपना वजीर नियुक्त किया।
  • परमार्दी के पुत्र त्रिलोकवर्मण ने मुसलमानों को काकड़वा में पराजित कर सारा क्षेत्र पुनः हासिल कर लिया। 
  • त्रिलोक ने लगभग 45 वर्षों तक शासन किया तथा उसके बाद पुत्र वीरवर्मण आया। 
  • परंतु 1309 में अलाउद्दीन खिलजी ने राज्य का एक बड़ा हिस्सा जीत लिया। 
  • बुंदेलखंड का अंतिम राजा वीरवर्मण II था।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (गहदवाल राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

गहदवाल राजवंश (Gahadavala Dynasty)

ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में गहदवालों (Gahadavala) का उदय इस शीघ्रता से हुआ कि उनके उदय के बारे में पता करना बहत कठिन है।

प्रारम्भिक शासक

  • इस वंश की स्थापना यशोनिग्रह के द्वारा किया गया था। 
  • यशोनिग्रह का पुत्र महिचद्र, जिसे महिन्द्र तथा महितल के नाम से भी जाना जाता था, एक महत्त्वपूर्ण शासक थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश के कुछ भाग पर शासन किया। 
  • उनके पत्र चंद्रदेव ने उत्तर भारत से महमूद की अनुपस्थिति का फयदा उठाते हुए राष्ट्रकूट राजा गोपाल को यमुना के तट पर बुरी तरह पराजित किया। 
  • उन्होंने इलाहाबाद से बनारस के बीच के पूरे क्षेत्र पर अधिकार कर लिया तथा बनारस को अपने राज्य की दूसरी राजधानी बनाया। 
  • उन्होंने तुरुक्षादंड नाम का एक नया कर लगाया, जो मुस्लिमों से होने वाले युद्ध पर आने वाले खर्च अथवा उन्हें वार्षिक भुगतान करने के लिए था। 
  • उनके बाद गद्दी पर उनका पुत्र मदनाचंद्र आया जिसे मदनपाल के नाम से भी जाना जाता था। 

गोविन्दचंद्र (Govind Chandra)

  • वे मदनचंद्र के बाद गद्दी पर आए तथा सम्भवतः पूरे वंश के सबसे महान शासक थे। 
  • उनके राज्य के वैभव को बताने वाले 40 से भी ज्यादा अभिलेख मिले हैं। 
  • पाल राजाओं की कमजोरी का फायदा उठाते हुए उन्होंने मगध के हिस्से पर कब्जा कर लिया। 
  • उन्होंने चेदी तथा चंदेलों को भी पराजित किया तथा चंदेलों से पूर्वी मालवा छीन लिया।
  • उनके शासनकाल में उनके मंत्री लक्ष्मीधर ने कानून और तरीकों (Procedure) पर अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें से कृत्य कल्पतरू अथवा कल्पद्रुम सबसे महत्त्वपूर्ण है।

विजयचंद्र (Vijaya Chandra)

  • गोविंद चंद्र के बाद उनके पुत्र विजयचंद्र आए। 
  • पृथ्वाराजरासो के अनुसार उन्होंने कई युद्ध जीते परंतु इस तरह का लोकोक्तियों को पूरी तरह सत्य नहीं माना जा सकता।

जयचंद्र (Jay Chandra)

  • विजयचंद्र के पुत्र एवं उत्तराधिकारी, 1170 में गद्दी पर आए। 
  • उनके जीवन के बारे में पृथ्वीराजरासो अथवा ताम्र प्रशस्तियों के स्थान पर मुस्लिम एवं स्वतंत्र स्रोतों से ज्यादा पता चलता है। 
  • जयचंद्र कन्नौज के अंतिम महान शासक थे तथा उनकी शक्ति तथा समृद्धि ने मुस्लिम इतिहासकारों को अवश्य प्रभावित किया होगा।
  • जयचंद्र के शांतिपूर्ण शासन को मोईजुद्दीन मुम्मद गोरी ने पूरी तरह से तोड़ डाला। 
  • वह दिल्ली तथा अजमेर पर कब्जा करने के बाद एक बड़ी सेना के साथ 1193 में कन्नौज की तरफ बढ़ा। 
  • जयचंद्र ने चंद्रवार तथा इटावा के बीच के मैदानों में उसका सामना किया तथा पराजित हुआ।
  • जयचंद्र का नाम संस्कृत साहित्य के इतिहास के साथ भी जुड़ा है। 
  • उन्होंने श्रीहर्ष को काफी प्रश्रय दिया, जिन्होंने नैसादचरित्र, खानदान-खानदा-खाद्य जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की जिसमें से उनकी दूसरी रचना महत्त्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध वेदांत प्रबन्ध है जो व्यवस्था के ऋणात्मक पहलुओं पर है।

अंतिम शासक

  • जयचंद्र की मृत्यु तथा पराजय से मुस्लिम कन्नौज पर अधिकार नहीं कर पाए। 
  • जयचंद्र के पुत्र हरिश्चंद्र शिहामुद्दीन के सामंत के रूप में शासन करते रहे। 
  • हरिश्चंद्र के उत्तराधिकारी अदाक्कमल का इल्तुतमिश ने अपने पैतृक राज्य से अलग कर दिया। 
  • इस तरह 6 शताब्दियों तक उत्तर भारत की राजनीति पर छाए रहने के बाद कन्नौज के साम्राज्य का अंत हो गया।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (चाहमन राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

चाहमन राजवंश (Chahamana Dynasty)

चाहमन राजवंश (Chahman Dynasty) वंश की कई शाखाएं थीं। मुख्य शाखा, शाकंभरी (आधुनिक सांभर) जयपूर तथा अन्य जगहों पर शासन करने वाले संगोत्री थे। इनमें से कुछ प्रतिहारों के सामंत थे।

वासुदेव (Vasudev)

  • वासुदेव ने छठी शताब्दी के मध्य में मुख्य शाखा की स्थापना की। 
  • इनकी राजधानी अहिक्षेत्र थी। 
  • राष्ट्रकूटों से संघर्ष के कारण प्रतिहारों की क्षीण होती शक्ति का फायदा उठाते हुए अगले महत्त्वपूर्ण राजा वाकतिराज ने प्रतिहारों का विरोध करना प्रारंभ कर दिया। 
  • उनके शासन काल में चाहमनों की प्रतिष्ठा में काफी वृद्धि हुई। 
  • इसका प्रमाण उनके द्वारा महाराजा की पदवी धारण करने से मिलता है। 
  • उन्होंने पुष्कर में एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया। 
  • उनके तीन पुत्र थे – सिम्हराज, वत्सराज तथा लक्ष्मण।

सिम्हरान तथा विग्रहराज II (Simharan and Vigraharaj II)

  • सिम्हराज इस वंश के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। 
  • इससे लगता है कि उन्होंने कन्नौज के प्रतिहारों से स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी। 
  • सिम्हराज का पुत्र तथा उत्तराधिकारी विग्रहराज II अपने वंश की महानता का वास्तविक संस्थापक था। 
  • उसने गुजरात पर आक्रमण किया तथा चालुक्य मूलराज को कच्छ में (कंठकोट) शरण लेने के लिए बाध्य कर दिया। 
  • उसने दक्षिण में नर्मदा तक विजय प्राप्त की।

पृथ्वीराज I तथा अजयराज II (Prithviraj – I and Ajayraj – II)

  • पृथ्वीराज I के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने पुष्कर में ब्राह्मणों को लूटने आए 700 चालुक्यों को मारा था। 
  • उनके पुत्र एवं उत्तराधिकारी अजयराज II के समय से चाहमनों ने आक्रामक साम्राज्यवादी नीति अपनाई उसने अजयमेरू अथवा अजमेर नगर की स्थापना की और इसका विस्तार किया। 
  • अजयराज के बाद उसका पुत्र अरनोराज आया। उसे चालुक्यों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा तथा सिद्धराज जयसिम्ह ने अपनी पुत्री का विवाह उससे करवाया। 
  • इस वैवाहिक रिश्ते से कुछ दिनों के लिए शांति स्थापित हो गई परंतु चालुक्य गद्दी पर कुमारपाल के आते ही पुनः युद्ध छिड़ गया।

विग्रहराज III (Vigraharaj – III)

  • यह एक महान विजेता था तथा उसने अपने राज्य की सीमाओं को विभिन्न दिशाओं में फैलाया। 
  • उन्होंने तोमरों से दिल्ली जीती तथा पंजाब के हिसार जिले के हांसी पर कर लिया। 
  • दक्षिण में उसने कुमारपाल के राज्य चालक्यों के हाथों अपने पिता के अपमान का बदला लिया । 
  • उसके राज्य में सतलुज तथा यमुना के बीच पंजाब का का बहुत बड़ा हिस्सा था। 
  • विग्रहराज एक प्रख्यात लेखक भी था। उसने हरीकेली नाटक जैसे नाटकों की रचना की। 
  • अजमेर में उनके द्वार बनाए गए अनेक मंदिरों में सरस्वती मंदिर सर्वश्रेष्ठ है।

पृथ्वीराज II तथा सोमेश्वर(Prithviraj – II and Someswar)

  • अरनोराज के पोते पृथ्वीराज II के समय मुसलमाना के साथ पुराना झगड़ा पुनः प्रारंभ हो गया। 
  • पृथ्वीराज के बाद उनका चाचा तथा अरनोराज का पुत्र सोमेश्वरआया। 
  • कुमारपाल के दरबार में रहते हुए उसने एक कालचुरी राजकुमारी कपूरदेवा से विवाह किया जिनसे पृथ्वीराज III तथा हरीराज नाम के दो पुत्र हुए।

पृथ्वीराज III (Prithviraj – III)

  • पृथ्वीराज III के प्रारम्भिक दिनों की एक महत्त्वपूर्ण घटना अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह को हवा थी। 
  • उसने गुजरात के चालव्य राज्य पर हमला किया तथा वहां के राजा भीम II को संधि के लिए बाध्य किया। 
  • पृथ्वीराज शत्रुओं से तराई में 1190-91 में भिड़ा। यह पहली लड़ाई सुल्तान के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई, परंतु इस विजय के बाद भी पृथ्वीराज III ने अपने राज्य के उत्तर-पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया तथा अपना ध्यान गहदवला राजा जयपद से संघर्ष में लगाया।
  • शिहाबद्दीन 1192 में मुल्तान तथा लाहौर कर बिना किसी प्रतिरोध का सामना किए फिर तराई में आया। 
  • दिल्ली के प्रमुख गोविन्दराज सहित एक लाख लोगों की मौत हुए। पृथ्वीराज खुद बंदी बना लिए तथा उन्हें मार दिया गया। 
  • देश के अनेक भाग से विभिन्न कवि तथा विद्वान पृथ्वीराज दरबार में जमा हुए, जो स्वयं पृथ्वीराज विजय तथा पृथ्वीराज रासो जैसे महान कविताओं के विषय बने तथा इन्हें बने वाले क्रमशः जयनक तथा चांद (चंदबरदाई) थे जो उनके दरबारी कवि थे।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (सोलंकी राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

सोलंकी राजवंश (Solanki Dynasty)

मूलराज I (Mulraaj – I)

  • चालक्य अथवा सोलंकियों ने गुजरात तथा काठियावाड में लगभग साढ़े तीन सौ वर्षों तक (950-1300 ई०प०) शासन किया। 
  • मूलराज ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की जिसकी राजधानी अनहिलपटक थी। 
  • परमार राजा मुंज के हाथों पराजित होने के बाद मूलराज ने स्वयं को मारवाड में सीमित कर लिया। 
  • उनका राज्य उत्तर में जोधपर तक तथा दक्षिण में नर्मदा तक फैला हुआ था। 
  • वे एक कटटर शैव थे तथा उन्होंने अनहिलपटक में दो मंदिरों का निर्माण करवाया। 
  • मूलराज की मृत्यु तथा भीम I के बीच के 25 वर्ष अकीर्तिकर थे।

भीम I (Bheem – I)

  • उनके राज्य को गजनी के महमूद के आक्रमण ने हिला दिया जिसने सोमनाथ के मंदिर से अथाह सम्पत्ति लूटी। 
  • महमूद के आक्रमण के साथ भीम कच्छ भाग गए तथा हमलावरों के लौटने के बाद ही अपनी राजधानी वापस आए। 
  • भीम I का शासनकाल भारत की वास्तुकला के इतिहास में महत्त्वपूर्ण है। 
  • आबू के प्रसिद्ध दिलवारा मंदिरों का निर्माण उसके शासनकाल में हुआ। 
  • उन्होंने अपने पुत्र कर्ण के लिए गद्दी को छोड़ दिया।

कर्ण (Karna)

  • अपने तीस साल के लंबे शासन काल के बाद भी कर्ण कुछ खास नहीं कर पाए। 
  • उन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया तथा अपने नाम पर एक शहर बनवाया जिसे अब अहमदाबाद के नाम से जाना जाता है।

जयसिम्ह सिद्धराजा (Jaysimh Sidharaja)

  • जयसिम्हा अपने पिता कर्ण के बाद गद्दी पर आए तथा उन्होंने सिद्धराजा की पदवी धारण की। 
  • उन्होंने लगभग पचास वर्षों तक शासन किया। 
  • उन्होंने अपने राज्य के विस्तार के लिए विजय यात्राएं कीं। 
  • उत्तर में, परमारों को पराजित कर उन्होंने भीनमल पर कब्जा कर लिया। उसके बाद उन्होंने शाकंभरी के चाहमनों को पराजित किया। 
  • उन्होंने चंदेल राज्य पर भी आक्रमण किया तथा कालिंजर और महोबा तक पहुंच गए। 
  • दक्षिण में उन्होंने कल्याण के चालुक्य राजा विक्रमादित्य VI को पराजित किया। 
  • जयसिम्ह की साहित्य में भी रुचि थी। 
  • उनके समय गुजरात अध्ययन तथा साहित्य का केन्द्र बन गया। 
  • उन्होंने आसपास अनेक कवियों एवं विद्वानों को जमा किया जिनमें हेमचंद्र भी थे जो व्याकरण की प्रसिद्ध पुस्तक सिद्ध हेमचंद्र के रचयिता थे। 
  • वे एक शैव थे तथा उन्होंने अनके मंदिरों का निर्माण करवाया जिसमें सद्धपुर का प्रसिद्ध रुद्र महाकाल मंदिर सबसे भव्य है। 
  • उनकी मृत्यु के बाद गद्दी पर उनके एक दूर के रिश्तेदार कुमारपाल ने कब्जा कर लिया।

कुमारपाल (Kumarpal)

  • हेमचंद्र के प्रभाव में आकर कुमारपाल जैन बन गए तथा पशुबलि पर रोक लगा दी। 
  • जैन धर्म के प्रति अपनी आस्था के बाद भी अपने पारिवारिक देव शिव के प्रति भी उन्होंने श्रद्धा का प्रदर्शन किया तथा जैन एवं ब्राह्मण, दोनों धर्मों के मंदिर बनवाए।

मूलराज II (Mulraaj II)

  • 1178 ई०पू० में मोइजुद्दीन मुहम्मद गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया परंतु मूलराज की माता के नेतृत्व में सोलंकियों ने मुसलमानों का विरोध किया तथा माउंट आबू के निकट उन्हें पराजित कर दिया। 
  • भारत पर तुर्की विजय के बाद कुतुबुद्दीन ने 1197 में गुजरात पर आक्रमण किया तथा अनहिलपटक को लूटा।

भीम II (Bheem – II)

  • भीम के समय गुजरात को पड़ोसियों से बचाने के लिए लवणप्रसंद तथा उनके योग्य पुत्र वीरधवल द्वारा इंतजाम किया गया।

बाद के शासक

  • भीम II के बाद त्रिभुन पाल आए तथा उनके बाद वीरमा जो वीरधवल के पुत्र थे। 
  • सांगदेव तथा उनका भतीजा कर्ण अगले दो शासक थे। 
  • कर्ण गुजरात का अंतिम हिंदू राजा था। 
  • शीघ्र ही अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर अधिकार कर लिया। कर्ण देवगिरी भाग गया परंतु उसकी रानी कमला देवी तथा पुत्री देवला देवी अलाउद्दीन के हाथ लग गईं।

 

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