चोल राजवंश (Chola Dynasty)
विजयलया (Vijayalaya)
- पांड्यों के सहयोगी गुत्तरयार से 850 ई०पू० के लगभग विजयलया द्वारा तंजौर छीनना तथा उसके द्वारा निशुंभसुदीनी (दुर्गा) के मंदिर की स्थापना-चोलों (Chola) के उदय से पहले चरण थे जो उस समय पल्लवों के सामंत थे।
आदित्य (Aditya)
- आदित्य ने अपने पल्लव अधिराज को युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी तथा पूरे तोंडाइमंडलम पर अधिकार कर लिया।
- आदित्य ने उसके बाद कोंगु राज्य पर भी अधिकार किया।
- आदित्य ने कावेरी नदी के दोनों तटों पर शिव के मंदिरों का निर्माण करवाया।
परान्तक I (Parantak I)
- परान्तक I ने शासन के प्रारंभिक दिनों में पांड्य राज्य पर आक्रमण किया तथा ‘मदुरै कोंडा’ (मदुरै को जीतने वाला) की उपाधि धारण की।
- 916 में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण II ने चोल राज्य पर आक्रमण किया, उन्हें वल्लाल में बुरी तरह पराजित होना पड़ा।
- राष्ट्रकूट राजा कृष्ण III ने परांतक को तावकोलम के युद्ध में 949 में पराजित कर उत्तरी चोल राज्य के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया।
- परांतक I के बाद अगले 30 वर्षों तक काफी अव्यवस्था रही।
- उनके उत्तराधिकारी गणरादित्य, अरिंजय, परांतक II तथा उत्तम चोल थे।
- इनमें से मात्र परांतक II का कुछ महत्त्व है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रकूटों से हारे गए क्षेत्र में से कुछ वापस जीता।
राजाराज I (Rajaraj I)
- ये मूलत: अरुमोलिवर्मण के नाम से जाने जाते थे तथा परांतक II के पुत्र थे।
- चोलों का वास्तविक महान युग उनके समय से प्रारंभ हुआ।
- उन्होंने पांड्य, केरल तथा सिलोन राज्य की एक सम्मिलित सेना को पराजित कर इनके राज्यों पर अधिकार कर लिया।
- महेंद्र V को पराजित कर सिलोन की राजधानी अनुराधापुरा को नष्ट कर उत्तरी सिलोन में चोल प्रान्त की स्थापना की गई जिसकी राजधानी पोलोन्नारुवा थी।
- उन्होंने तंजौर के भव्य शिव अथवा वृहदेश्वर (राजराजेश्वर) मंदिर का निर्माण करवाया था।
राजेन्द्र I (Rajendra I)
- उन्होंने चोल राज्य को विस्तारित कर उस समय का सबसे सम्माननीय राज्य बना दिया।
- उन्होंने महेन्द्र V को पराजित कर उसे बंदी बना लिया तथा सिलोन की विजय को पूरा किया।
- उन्होंने पांड्य तथा केरल राज्यों को पराजित कर अपने एक बेटे को इस क्षेत्र का वाइसराय बना दिया तथा मदुरै को इसकी राजधानी।
- उन्होंने कलिंग के पूर्वी गंगा राजा मधुकुमारनव को भी पराजित किया जिसने पश्चिमी चालुक्यों का साथ दिया था।
- राजेन्द्र I ने गंगा घाटी पर एक सफल सैनिक अभियान का नेतृत्व किया तथा इस अवसर पर एक नई राजधानी तथा मंदिर का निर्माण करवाया जिसका नाम था गंगाई कोंडाचोलापुरम।
राजाधिराज (Rajadiraj)
- उन्होंने पांड्य, केरल तथा सिलोन में विद्रोहों का दबाया था।
- उन्होंने वेंगी में चोल राज्य को पुनः स्थापित करन के लिए भी अभियान छेडा।
- येतागीरी (याडगीर) में उन्होंने शेर चिह्न वाला एक स्तम्भ बनवाया।
- कल्याणी पर अधिकार कर राजाधिराज ने वहां विराभिषेक (विजय उत्सव) या तथा ‘विजयराजेन्द्र’ की उपाधि धारण की।
- अपने शासन के अन्तिम दिनों में उन्होंने पश्चिमी चालुक्य शासन सोमेश्वर के खिलाफ अभियान छेड़ा परन्तु इसमें उनकी मृत्यु हो गई।
राजेन्द्र II (Rajendra II)
- विजय के बाद उसने एक जय स्तम्भ कोल्लापुरा में लगवाया तथा अपनी राजधानी वापस लौट गया।
- बाद में सोमेश्वर को कोप्पम की पराजय को बदलने का प्रयास किया किन्तु उसमें वह असफल रहा।
- इसके कुछ ही दिनों के बाद राजेन्द्र की मृत्यु हो गई।
वीर राजेन्द्र (Veer Rajendra)
- सोमेश्वर ने वीर राजेन्द्र को चुनौती दी जिसके परिणामत: कुदाल-संगमम का युद्ध हुआ परन्तु चालुक्य राजा अपनी बीमारी के कारण इस युद्ध में नहीं आए तथा कुछ समय बाद अपने को तुंगभद्रा में डुबोकर परमयोग प्राप्त किया।
- वीर राजेन्द्र ने सहायता तथा संरक्षण के लिए अपनी शरण में आए राजकुमार के पक्ष में कदारम (श्री विजय) एक नौसैनिक अभियान भेजा (1068)।
कुलुतुंगा I (Kulutunla I)
- वेंगी के राजराजा नरेन्द्र तथा चोल राजकुमारी अम्मंगादेवी के इस पुत्र का मूल नाम राजेन्द्र II था।
- इसने वीर राजेन्द्र की मृत्यु का फायदा उठाकर चोल गद्दी पर अधिकार कर लिया।
- इस तरह उसने वेंगी तथा चोल राज्यों को मिला दिया।
- कुलुतुगा ने पूरे राज्य पर पुनः एक मजबूत सैन्य अभियान छेड़ दिया।
- 1115 तक सिलोन को छोड़कर चोल राज्य का स्वरूप मारवतित रहा; परन्तु अपने शासन के अंतिम दिनों में यह वेंगी 9 मसूर चालुक्य राजा विक्रमादित्य को हार गए।
- कुलुतुगा I ने 72 व्यापारियों का एक दल चीन भेजा तथा श्री विजया से भी उनके अच्छे संबंध थे जहां से उसके लिए भी एक दूत भेजा गया था।
- पुरालेख तथा लोक अवधारण उन्हें ‘शुंगम तविर्त’ की उपाधि देता है।
बाद के शासक
- कुलुतुंगा I के बाद विक्रम चोल, कुलुतुंगा II, राजराजा II, राजाधिराज II, कुलुतुंगा III आए।
- राजाधिराज II के समय से सामंतों की बढ़ती स्वतंत्रता राजाधिराज II के समय पूरी तरह उभरने लगी।
- कुलुतुंगा III ने चोल राज्य के विघटन को कुछ समय तक रोके रखा।
- कुलुतुंगा III के बाद चोल स्थानीय प्रमुखों के रूप में बने रहे।
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