मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (कालचुरी या हयहयों राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

कालचुरी या हयहयों राजवंश (Kalchuri or Hayahayon Dynasty)

कालचुरी अथवा हयहयों (Kalchuri or Hayahayon) का उल्लेख महाकाव्यों तथा पुराणों में मिलता है। चेदी राज्य से संबंध स्थापित होने के बाद इन्हें चेदी नाम से भी जाना गया। 

छठी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कालचुरी राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे। उनके राज्य में गुजरात, उत्तरी महाराष्ट्र तथा माला का कुछ हिस्सा सम्मिलित था। 550 – 620 के बीच तीन कालचुरी राजाओं ने – कृष्णाराज, उनके पुत्र शंकरागन तथा उनके बुद्धराज ने शासन किया था। 

त्रिपुरी के कालचुरी (Kalchuri of Tripuri)

  • 8वीं शताब्दी में कालचुरियों की विभिन्न शाखाएं उत्तर भारत के विभिन्न भागों में स्थित थीं। उनमें से एक ने आधुनिक गोरखपुर जिले के सरयुपारा में अपने राज्य की स्थापना की। 
  • दूसरी सबसे शक्तिशाली शाखा बुंदेलखंड के चेदी प्रांत पर शासन कर रहा था। 
  • चेदी के कालचुरी जिन्हें ढाल-मंडल के राजा के नाम से भी जाना जाता था, ने अपनी राजधानी मध्य प्रदेश के जबलपुर के निकट त्रिपुरी में बनवाया था।

कोकल्ला I (Kokalla – I)

  • त्रिपुरी के कालचुरियों का इतिहास 845 में अथवा उसके आसपास कोकल्ला I के आने के साथ प्रारंभ होता है। 
  • उनका संघर्ष प्रतिहार राजा भोज-I के साथ हुआ जिसे उन्होंने बुरी तरह पराजित किया। 
  • उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पूर्वी बंगाल में वांग को लूटा, राष्ट्रकूट राजा कृष्णा II (जो कि उनके रिश्तदार थे) को हराया तथा उत्तरी कोंकण पर आक्रमण किया। 
  • उसके बाद कृष्ण III के समय तक कालचरियों के राष्ट्रकूटों के साथ अनेक वैवाहिक संबंध हुए तथा इन दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता बना रहा।
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शंकरागन I (Shankragan – I)

  • रस शंकरागन ने अपने पिता सोमवंशी को पराजित
  • कोकल्ला I ने चंदेल राजकुमारी नट्ट देवी से विवाह किया तथा उनके 18 पुत्र हुए।
  • सबसे बड़े लड़के ने अपने पिता का स्थान लिया तथा कोशल राजा को पराजित किया। 
  • उनके बाद उनका पुत्र बालहर्ष आया परंत उसका शासनकाल बहुत छोटा था।

युवराज I (Yuvraj – I)

  • कालचुरी तथा राष्ट्रकूटों के बीच के मधुर संबंधों के बाद भी राष्ट्रकूट कृष्ण III ने युवराज I के राज्य पर हमला किया। 
  • बाद में युवराज राष्ट्रकूटों को अपने राज्य से भगा पाने सफल रहे। यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी तथा इसकी याद में कालचुरी दरबार में रह रहे प्रसिद्ध कवि राजशेखर ने विद्धासलाभिंजका नामक प्रसिद्ध नाटक युवराज के दरबार में किया ।

लक्ष्मणराज तथा शंकरागन II (Laxman Raj and Shankaragan – I)

  • युवराज I के बाद उनका पुत्र लक्ष्मणराज गद्दी पर आया तथा उसने चालुक्य अथवा सोलंकियों के संस्थापक मूलराज I को पराजित किया। 
  • अपने पिता की तरह नसणराज ने शैव धर्म को प्रश्रय दिया। 
  • उनके बाद गद्दी पर उनका भाई शंकरागन II आया जो एक वैष्णव था। 
  • उसके बाद गद्दी पर उनका भाई युवराज II आया। वे एक अच्छे योद्धा नहीं थे तथा उनके शासनकाल में राज्य को बहुत नुकसान हुआ। 
  • युवराज II के मामा चालक्य तैल II ने उनके राज्य पर हमला किया। 

कोकल्ला II (Kokalla – II)

  • परमारों के लौटने के बाद शंकरागन II के मंत्रियों ने उनके पुत्र कोकल्ला II को गद्दी पर बिठा दिया। 
  • उनके शासनकाल में कालचुरी पुनः शक्तिशाली हो गए। 
  • उनके बाद गद्दी पर उनका पुत्र गंगेयदेव आया।

गंगेयदेव (Gangeydev)

  • उनके शासनकाल में कालचुरी उत्तर भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गए। 
  • उनकी सफलता का प्रमुख कारण यह था कि कालचुरी सुल्तान महमूद के आक्रमणों से बचे रहे। 
  • वे उडीसा के समुद्र तट तक अपनी शक्ति ले गए। 
  • उन्होंने अपनी इस जीत के उपलक्ष्य में ‘त्रीकलिंगाधिपति’ अथवा ‘त्राकलिग के स्वामी’ की उपाधि को धारण किया। 
  • उन्होंने अपने पुत्र करण के नेतृत्व में अंग तथा मगध के विरुद्ध एक अभियान भजा जो उस समय पाल राजा नयापाल के अधीन था। 
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करण (Karan)

  • गंगेयदेव के बाद गद्दी पर उनका पुत्र लक्ष्मीकरण आया जिसे करण के नाम से भी जाना जाता था। 
  • वह अपने समय के महानतम योद्धाओं में से था। 
  • उसने प्रतिहारों से इलाहाबाद छीन लिया था। 
  • उसने चंदेल राजा कीतिवर्मण को पराजित कर बुंदेलखंड पर अधिकार कर लिया परंतु चंदेलों के एक सामंत ने इसे कालचुरियों से वापस जीत लिया। 
  • करण ने गुजरात के चालुक्य राजा भीम I के साथ मिलकर मालवा के परमारों पर आक्रमण किया।
  • इस युद्ध के दौरान परमार राजा भोज की मृत्यु हो गई तथा दोनों ने मालवा पर अधिकार कर लिया। 
  • बाद में इसके बंटवारे के प्रश्न पर करण तथा भीम के बीच झगड़ा हो गया।
  • वह अपने पैतृक राज्य में मात्र इलाहाबाद जोड़ पाया। 
  • अपने शासन के अंतिम दिनों में करण का जिन पराजयों का सामना करना पड़ा उससे उसके सम्मान को काफी चोट पहुंची तथा उसके सामंतों के ऊपर उसकी पकड़ कमजोर हुई।

बाद के शासक

  • करण ने अपने पुत्र यशकरण के लिए गद्दी त्याग दी। उसके ऊपर अनेक आक्रमण हुए। 
  • चालुक्य राजा विक्रमादित्य VI ने उन पर आक्रमण किया; गहदवाल वंश के चंद्रदेव ने उनसे इलाहाबाद तथा बनारस छीन लिया; चंदेलों ने उन्हें पराजित किया तथा परमार राजा लक्ष्मणदेव ने उनकी राजधानी को लूटा। 
  • विजयसिंह अंतिम महत्त्वपूर्ण कालचुरी राजा थे। 
  • चंदेल राजा त्रैलोक्यवर्मण ने उन्हें पराजित कर पूरे दहाल मंडल पर अधिकार कर लिया।

 

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