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Important Uttarakhand GK

उत्तराखंड का इतिहास – प्रागैतिहासिक काल (History of Uttarakhand – Prehistoric times)

उत्तराखंड की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं पौराणिक महत्ता की भांति यहां का इतिहास भी मानव सभ्यताओं के विकास का साक्षी है। प्रागैतिहासिक काल से ही इस भू-भाग में मानवीय क्रियाकलापों के प्रमाण मिलते हैं। विभिन्न कालों के अनुक्रम में उत्तराखंड के इतिहास का अध्ययन तीन भागों में किया जाता है –

1. प्रागैतिहासिक काल स्रोत :- पाषाणयुगीन उपकरण व गुहालेख चित्र
2. आद्यएतिहासिक काल स्रोत :- पुरातात्विक प्रमाण व साहित्यिक प्रमाण
3. ऐतिहासिक स्रोत :-  मुद्राए, ताम्रपत्र, अभिलेख, शिलालेख 

प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Times)

प्रागैतिहासिक काल वह काल है जिसकी जानकारी पुरातात्विक स्त्रोतों, पुरातात्विक स्थलों जैसे पाषाण युगीन उपकरण गुफा शैल चित्र आदि से प्राप्त होती है। इस समय के इतिहास की जानकारी लिखित रूप में प्राप्त नहीं हुई है। प्रागैतिहासिक काल को ‘प्रस्तर युग’ भी कहते हैं।

उत्तराखंड में प्रागेतिहासिक काल के साक्ष्य

पाषाणयुगीन उपकरण 

पाषाणयुगीन उपकरण वे उपकरण थे जिनका उपयोग मानव ने अपने विकास के विभिन्न चरणों में किया जैसे हस्त कुठार (Hand Axe), क्षुर (Choppers), खुरचनी (Scrapers), छेनी, आदि।
Stone Age Tools
उत्तराखंड में पाषाणयुगीन उपकरण अलकनन्दा नदी घाटी (डांग, स्वीत), कालसी नदी घाटी, रामगंगा घाटी आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि पाषाणयुगीन मानव उत्तराखंड में भी निवास करते थे।

लेख व गुहा चित्र

उत्तराखंड के प्रमुख जिलों अल्मोड़ा, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ आदि में लेख व गुहा चित्र मिले है। 

अल्मोड़ा (Almora)

अल्मोड़ा जनपद के निम्नलिखित स्थानों से हमें प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी मिलती हैं – 

लाखू उडुयार (लाखू गुफा)

  • स्थान – अल्मोड़ा (सुयाल नदी के तट पर बसे दलबैंड, बाड़ेछीना गाँव में।)
  • खोज – 1968 ई०
  • खोजकर्ता – श्री यशवंत सिंह कठौर और एम.पी. जोशी 
  • उत्तराखंड में प्रागैतिहासिक शैलाश्रय चित्रों की पहली खोज थी।
  • लखुउडियार का हिन्दी में अर्थ हैं ‘लाखों गुफायें’ अर्थात इस जगह के पास कई अन्य गुफायें भी हैं।
  • विशेषताएं –
    • मानव आकृतियों का अकेला व समूह में नृत्य करते हुए।
    • विभिन्न पशु पक्षियों का चित्रण किया गया है।
    • चित्रों को रंगों से सजाया गया है।
    • इन शैलचित्रों में भीमबेटका-शैलचित्र के समान समरूपता देखी गयी है।

ल्वेथाप गाँव 

  • स्थान – अल्मोड़ा जिले में
  • विशेषताएं
    • शैल-चित्रों में मानव को हाथो में हाथ डालकर नृत्य करते तथा शिकार करते दर्शाया गया हैं।
    • यहाँ से लाल रंग से निर्मित चित्र प्राप्त हुए है।

पेटशाला

  • स्थान – अल्मोड़ा जिले में (पेटशाला व पुनाकोट गाँव के बीच स्थित कफ्फरकोट में)
  • खोज – 1989 ई०
  • खोजकर्ता – श्री यशोधर मठपाल  
  • विशेषताएं –
    • शैल-चित्रों में नृत्य करते हुए मानवों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
    • मानव आकृतियां रंग से रंगे है।

फलसीमा

  • स्थान – अल्मोड़ा के फलसीमा में
  • विशेषताएं –
    • मानव आकृतियों में योग व नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।

कसार देवी मंदिर 

  • स्थान – अल्मोड़ा से 8 किलोमीटर दूर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर
  • विशेषताएं –
    • इस मंदिर से 14 मृतकों का सुंदर चित्रण प्राप्त हुआ है।

चमोली (Chamoli)

चमोली जनपद के निम्नलिखित स्थानों से हमें प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी मिलती हैं – 

गवारख्या गुफा

  • स्थान – चमोली जनपद में (अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव के पास स्थित।)
  • खोजकर्ता – श्री राकेश भट्ट, इसका अध्ययन डॉ. यशोधर मठपाल ने किया। 
  • विशेषताएं –
    • इस उड्यार में मानव, भेड़, बारहसिंगा आदि के रंगीन चित्र मिले हैं।
    • यहाँ प्राप्त शैल-चित्र लाखु गुफा के चित्रों (मानव, भेड़, बारहसिंगा, लोमड़ी) से अधिक चटकदार है।
    • डॉ. यशोधर मठपाल के अनुसार इन शिलाश्रयों में लगभग 41 आकृतियाँ है, जिनमें  30 मानवों की, 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों की है।
    • चित्रकला की दृष्टि से उत्तराखंड की सबसे सुंदर आकृतियां मानी जाती है।
    • चित्रों की मुख्य विशेषता मनुष्यों द्वारा पशुओं को हाँकते हुए और घेरते हुए दर्शाया गया है।

किमनी गाँव 

  • स्थान – चमोली जनपद के थराली विकासखंड में
  • विशेषताएं –
    • हथियार व पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए हैं ।
    • हल्के सफेद रंग का प्रयोग किया गया है।

मलारी गाँव

  • स्थान – तिब्बत से सटा मलारी गांव चमोली में। 
  • खोजकर्ता – 2002 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा अध्ययन।
  • विशेषताएं –
    • हजारों वर्ष पुराने नर कंकाल मिट्टी के बर्तन जानवरों के अंग प्राप्त हुए।
    • 2 किलोग्राम का एक सोने का मुखावरण (Gold Mask) प्राप्त हुआ।
    • नर कंकाल और मिट्टी के बर्तन लगभग 2000 ई०पू० से लेकर 6 वीं शताब्दी ई०पू० तक के हो सकते है।
    • डॉ. शिव प्रसाद डबराल द्वारा गढ़वाल हिमालय के इस क्षेत्र में शवाधान खोजे गए है।
    • यहाँ से प्राप्त बर्तन पाकिस्तान की स्वात घाटी के शिल्प के समान है।
मलारी गांव में गढ़वाल विश्विद्यालय के खोजकर्ताओं ने दो बार सर्वेक्षण किया – 

  • गढ़वाल विश्विद्यालय के खोजकर्ताओं को मानव अस्थियों के साथ लोहित, काले एवं धूसर रंग के चित्रित मृदभांड प्राप्त हुए।
  • प्रथम सर्वेक्षण 1983 में आखेट के लिए प्रयुक्त लोह उपकरणों के साथ एक पशु का संपूर्ण कंकाल मिला जिसकी पहचान हिमालय जुबू से की गई व साथ ही कुत्ते भेड़ व बकरी की अस्थियां प्राप्त हुई।
  • द्वितीय सर्वेक्षण (2001-02) में नर कंकाल के साथ 5.2 किलो का स्वर्ण मुखौटा (मुखावरण), कांस्य कटोरा व मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए।

उत्तरकाशी (Uttarkashi)

हुडली

  • स्थान – उत्तरकाशी में
  • विशेषताएं –
    • यहां नीले रंग के शैल चित्र प्राप्त हुए।

पिथौरागढ़ (Pithoragarh)

बनकोट

  • स्थान – पिथौरागढ़ के बनकोट क्षेत्र से
  • विशेषताएं –
    • 8 ताम्र मानव आकृतियां मिली हैं।

चंपावत (Champawat) 

देवीधुरा की समाधियाँ 

  • स्थान – चंपावत जिले में
  • खोज – 1856 में हेनवुड द्वारा
  • विशेषता
    • बुर्जहोम कश्मीर के समान समाधियाँ।

 

 

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उत्तराखंड सरकार के वर्तमान कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister of Uttarakhand Government)

उत्तराखंड सरकार के वर्तमान कैबिनेट मंत्री 2022
(Present Cabinet Minister of Uttarakhand Government 2022)

नाम  कार्यभार (पोर्टफोलियो) विभाग/विषय
श्री पुष्कर सिंह धामी
(मुख्यमंत्री)
मंत्रिपरिषद, कार्मिक एवं सतर्कता, सचिवालय प्रशासन, सामान्य प्रशासन, नियोजन, राज्य सम्पत्ति, सूचना, गृह, राजस्व, औद्योगिक विकास (खनन), औद्योगिक विकास, श्रम, सूचना प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी, पेयजल, ऊर्जा, आयुष एवं आयुष शिक्षा, आबकारी, न्याय, पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन एवं पुर्नवास, नागरिक उड्डयन 1. मंत्रिपरिषद
2. कार्मिक एवं अखिल भारतीय सेवाओं का संस्थापना विषयक कार्य
3. सतर्कता, सुराज, भ्रष्टाचार उन्मूलन एवं जनसेवा
4. सचिवालय प्रशासन
5. सामान्य प्रशासन
6. नियोजन
7. राज्य सम्पत्ति
8. सूचना
9. गृह, कारागार, नागरिक सूरक्षा एवं होमगार्ड एवं अर्द्धसैनिक कल्याण
10. राजस्व
11. औद्योगिक विकास (खनन)
12. औद्योगिक विकास
13. श्रम
14. सूचना प्रौद्योगिकी
15. विज्ञान प्रौद्योगिकी
16. पेयजल
17. ऊर्जा एवं वैकल्पिक ऊर्जा
18. आयुष एवं आयुष शिक्षा
19. आबकारी
20. न्याय
21. पर्पयावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन
22. आपदा प्रवंधन एवं पुनर्वास
23. नागरिक उड्डयन
श्री सतपाल महाराज लोक निर्माण विभाग, पंचायतीराज, ग्रामीण निर्माण, संस्कृति, धर्मस्व, पर्यटन, जलागग प्रवंधन, सिंचाई एवं लघु सिंचाई 1. लोक निर्माण विभाग
2. पंचायतीराज
3. ग्रामीण निर्माण
4. संस्कृति
5. धर्मस्व
6. पर्यटन
7. जलागम प्रबंधन
8. भारत नेपाल उत्तराखण्ड नदी परियोजनाएं
9. सिंचाई
10. लघु सिंचाई
श्री प्रेम चन्द अग्रवाल वित्त, शहरी विकास एवं आवास, विधायी एवं संसदीय कार्य, पुनर्गठन एवं जनगणना 1. वित्त, वाणिज्यकर, स्टाम्प एवं निबंधन
2. शहरी विकास
3. आवास
4. विधायी एवं संसदीय कार्य
5. पुनर्गठन
6. जनगणना
श्री गणेश जोशी कृषि एवं कृषक कल्याण, सैनिक कल्याण, ग्राम्य विकास 1. कृषि
2. कृषि शिक्षा
3. कृषि विपणन
4. उद्यान एवं कृषि प्रसंस्करण
5. उद्यान एवं फलोद्योग
6. रेशम विकास
7. जैव प्रौद्योगिकी
8. सैनिक कल्याण
9. ग्राम्य विकास
डॉ. धन सिंह रावत विद्यायी शिक्षा (बैसिक), विद्यालयी शिक्षा (माध्यमिक), संरकृत शिक्षा, सहकारिता, उच्च शिक्षा, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा 1. विद्यालयी शिक्षा (बेसिक)
2. विद्यालयी शिक्षा (माध्यमिक)
3. संस्कृत शिक्षा
4. सहकारिता
5. उच्च शिक्षा
6. चिकित्सा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा
सुबोध उनियाल वन, भाषा, निर्वाचन, तकनीकी शिक्षा 1. वन
2. भाषा
3. निवचिन
4. तकनीकी शिक्षा
श्रीमती रेखा आर्या महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास, खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले, खेल एवं युवा कल्याण 1. महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास
2. खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले
3. खेल
4. युवा कल्याण
श्री चन्दन राम दास समाज कल्याण, अल्पसंख्यक कल्याण, परिवहन, लघु एवं सूक्ष्म मध्यम उद्यम 1. समाज कल्याण
2. अल्पसंख्यक कल्याण
3. छात्र कल्याण
4. परिवहन
5. लघु एवं सूक्ष्म मध्यम उद्यम
6. खादी एवं ग्रामोद्योग
सौरभ बहुगुणा पशुपालन, दुग्ध विकास एवं मत्स्य पालन, गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग, प्रोटोकॉल, कौशल विकास एवं सेवायोजन 1. पशुपालन
2. दुग्ध विकास
3. मत्स्य पालन
4. गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग
5. प्रोटोकॉल
6. कौशल विकास एवं सेवायोजन

Latest Update – 30 March 2022

 

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UKSSSC Vidhan Sabha Exam Paper 20 March 2022 (Official Answer Key)

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC – Uttarakhand Subordinate Service Selection Commission) द्वारा उत्तराखंड विधानसभा की भर्ती परीक्षा का आयोजन दिनांक 20 मार्च, 2022 को किया गया। इन परीक्षा का प्रश्नपत्र उत्तर कुंजी (Exam Paper With Official Answer Key) सहित यहाँ पर उपलब्ध है।

UKSSSC (Uttarakhand Subordinate Service Selection Commission) organized the Uttarakhand Vidhan Sabha Exam Paper held on 20th March 2022. This Exam Paper (Vidhan Sabha) 2022 Question Paper with Official Answer Key. 

Post Name – Uttarakhand Vidhan Sabha Exam
Exam Date – 20 March, 2022 (1st Shift – 9:00 AM – 11:00 AM)

Total Number of Questions – 100
Paper Set – A

Click Here To Download the Official Answer Key (1st Shift)
Click Here To Download the Official Answer Key (2nd Shift) 
Click Here To Download the Official Answer Key (3rd Shift) 

Uttarakhand Vidhan Sabha Exam Paper 20 March 2022
(Official Answer Key)
(Morning Shift)

1. निम्न में से विलोम शब्दों का गलत युग्म है :
(A) दक्षिण – वाम
(B) उद्यम – निरुद्यम
(C) विधि – निषेध
(D) बर्बर – सभ्य

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Answer – (B)

2. महोदवी वर्मा कृत ‘मेरा परिवार’ रेखाचित्र का प्रकाशन वर्ष है:
(A) 1971 ई०
(B) 1972 ई०
(C) 1977 ई०
(D) 1941 ई०

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Answer – (B)

3. निम्नलिखित में से मछली का पर्यायवाची नहीं है :
(A) मीन
(B) शफरी
(C) हाला
(D) झस

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Answer – (C)

4. निम्नलिखित में से शुद्ध वर्तनी वाला शब्द है :
(A) सूश्रुषा
(B) सुश्रूषा
(C) शुश्रूषा
(D) श्रुशूषा

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Answer – (C)

5. उपमान और उपमेय का अभेद कहलाता है:
(A) उपमा
(B) रूपक
(C) उत्प्रेक्षा
(D) उपुर्यक्त में से कोई नहीं

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Answer – (B)

6. ‘निशीथ’ शब्द के लिए एक वाक्य है :
(A) रंग मंच पर पर्दे के पीछे का स्थान
(B) अर्द्ध रात्रि का समय
(C) जिसको कोई इच्छा न हो
(D) जहाँ एक भी मनुष्य न हो

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Answer – (B)

7. निम्नलिखित में से ‘अखरोट’ का तत्सम शब्द है :
(A) अक्षवाट
(B) अक्षोर
(C) अग्रहायन
(D) अगम्य

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Answer – (B) अक्षोट

8. निम्नलिखित में से किस वाक्य में प्रविशेषण नहीं है?
(A) बच्चे समझदार हो गए है।
(B) अरे! बहुत ही सुंदर फूल हैं।
(C) आजकल संतरे कुछ ज्यादा खट्टे हैं।
(D) मुझे तो थोड़ी ही भूख है।

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Answer – (A)

9. बैठक में उपस्थित व्यक्तियों के पदानुसार नाम, उनकी राय का पूरा विवरण सहित, कार्यसूची में रेखांकित कार्यों पर हुए विचार-विमर्श का संक्षिप्त विवरण कहलाता है:
(A) कार्यवृत्त
(B) प्रेस विज्ञप्ति
(C) परिपत्र
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

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Answer – (A)

10. ‘एंकर बाइट’ कहते हैं:
(A) एंकर द्वारा विस्तृत समाचार बताने को
(B) एंकर द्वारा मुख्य समाचार पढ़ने को
(C) एंकर द्वारा किसी समाचार की पुष्टि हेतु वीडियो या कथन दिखाने को
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

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Answer – (C)

11. निम्न में से सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता कौन-सी है?
(A) रश्मि
(B) तुलसीदास
(C) आंसू
(D) उच्छवास

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Answer – (B)

12. ‘उसे मृत्यु-दंड की सजा मिली’ इस वाक्य में अशुद्धि है।
(A) संस्कृत के शब्दों का प्रयोग हुआ है
(B) विदेशी शब्द ‘सजा’ का प्रयोग हुआ है
(C) दण्ड और सजा समानार्थी शब्दों का प्रयोग हुआ है
(D) कोई अशुद्धि नहीं है

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Answer – (C)

13. ‘र’ का विवरण है:
(A) वर्त्य, लुटित, सघोष, अल्पप्राण व्यंजन
(B) वर्त्स्य, पार्श्विक, सघोष, महाप्राण व्यंजन
(C) वर्त्य, संघर्षी, अघोष, अल्पप्राण व्यंजन
(D) वय, स्पर्श, सघोष, महाप्राण व्यंजन

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Answer – (A)

14. ‘खेत रहना’ मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है:
(A) सम्पत्ति का बचा रह जाना
(B) इज्जत बच जाना
(C) वीरगति को प्राप्त हो जाना
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

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Answer – (C)

15. निम्नलिखित में से प्रत्यय युक्त शब्द नहीं है :
(A) बोली
(B) भाषा
(C) पिपासा
(D) अंकुर

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Answer – (D)

16. ‘अध्यक्ष’ व ‘अधिष्ठाता’ में उपसर्ग है:
(A) अधि
(B) अति
(C) अध
(D) अध्य

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Answer – (A)

17. ‘रिपोर्ताज’ किस भाषा का शब्द है?
(A) फ्रांसीसी
(B) अंग्रेजी
(C) पुर्तगाली
(D) जापानी

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Answer – (A)

18. ‘राम आम खाता है।’ में वाच्य का कौन-सा रूप है?
(A) कर्तृवाच्य
(B) कर्मवाच्य
(C) भाववाच्य
(D) उभयवाच्य

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Answer – (A)

19. हिन्दी स्वरों का वर्गीकरण जब जीभ के भाग के आधार पर किया जाता है, तो निम्नलिखित में से कौन-सा भेद इसके अतर्गत नहीं आएगा?
(A) अग्र स्वर
(B) मध्य स्वर
(C) पश्च स्वर
(D) विवृत स्वर

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Answer – (D)

20. ‘ठठेरा’ शब्द का स्त्रीलिंग शब्द होगा:
(A) ठठेरी
(B) ठठारी
(C) ठठेरिन
(D) ठठेरिनी

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Answer – (C)

उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन

उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन
(Major Forest Movements of Uttarakhand)

रंवाई आन्दोलन (Ranwai Movement)

  • स्वतंत्रता से पूर्व टिहरी राज्य में राजा नरेन्द्रशाह के समय एक नया वन कानून लागू किया गया, जिसके तहत किसानो की भूमि को भी वन भूमि में शामिल किया जा सकता था। इस व्यवस्था के खिलाफ रंवाई की जनता ने आजाद पंचायत की घोषणा कर रियासत के खिलाफ विद्रोह शुरू किया। इस आन्दोलन के दौरान 30 मई, 1930 को दीवान चक्रधर जुयाल के आज्ञा से सेना ने आन्दोलनकारियों पर गोलियां चला दी जिससे सैकड़ों किसान शहीद हो गये। आज भी इस क्षेत्र में 30 मई को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

चिपको आन्दोलन (Chipko Movement)

  • 70 के दशक में बांज के पेड़ों कि अंधाधुंध कटाई के कारण हिमपुत्रियों (वहां कि महिलाओं) ने यह नारा दिया कि ‘हीम पुत्रियों की ललकार, वन नीति बदले सरकार’, वन जागे वनवासी जागे’
  • रेणी गाँव के जंगलों में गूंजे ये नारे आज भी सुनाई दे रहें हैं। इस आन्दोलन की शुरुआत 1972 से वनों की अंधाधुंध एवं अवैध कटाई को रोकने के उद्देश्य से शुरू हुई।
  • चिपको आंदोलन कि शुरुआत 1974 में चमोली ज़िले के गोपेश्वर में 23 वर्षीय विधवा गौरी देवी द्वारा की गई, चिपको आन्दोलनकरी महिलाओं द्वारा 1977 में एक नारा (“क्या हैं इस जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार”) दिया गया था, जो काफी प्रसिद्ध हुआ।
  • चिपको आंदोलन को अपने शिखर पर पहुंचाने में पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसाद भट्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बहुगुणा जी ने “हिमालय बचाओ देश बचाओ” का नारा दिया।
  • इस आंदोलन के लिए चमोली के चंडीप्रसाद भट्ट को 1982 में रेमन मेगसेस पुरस्कार (Ramon Magsaysay Award) से सम्मानित किया गया था।

वन आंदोलन 1977 (Forest Movement of 1977)

  • 1977 में नैनीताल जिले में शुरु हुआ यह एक राज्य स्तरीय आंदोलन था। व्यापक विरोध के बावजूद केवल नीलामी की तिथि संशोधित कर 27 नवंबर को तय हुई। जिसके विरोध में नैनीताल का शैले हॉल आंदोलनकारियों द्वारा फूक दिया गया। जिसके फलस्वरुप छात्रों की गिरफ्तारी हुई, फरवरी 1978 में संभवतया पहली बार उत्तराखंड बंद हुआ।
  • द्वाराहाट के चोंचरी व पालड़ी (बागेश्वर) में जनता ने ढोल नगाड़ों के साथ वनो का कटान बंद कराया।

डुंग्री पैंतोली आंदोलन (Dungri-Pantoli Movement)

  • चमोली जनपद के डुंग्री-पैंतोली में बाज का जंगल काटे जाने के विरोध में जनता द्वारा आंदोलन किया गया था।
  • यहां बाज के जंगल को सरकार ने उद्यान विभाग को हस्तान्तरित कर दिया। महिलाओं के विरोध के बाद सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। इसी आंदोलन को डुंग्री-पैंतोली आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

पाणी राखो आंदोलन (Pani Rakho Movement)

  • 80 के दशक के मध्य से उफरैखाल गाँव (पौढी गढ़वाल) के युवाओं द्वारा पानी की कमी को दूर करने के लिए चलाया गया यह आंदोलन काफी सफल रहा।
  • इस आंदोलन के सुत्रधार उफरैखाल के शिक्षक सच्चिदानंद भारती थे। उन्होंने ‘दूधातोली लोक विकास संस्थान’ का गठन किया। जिसने क्षेत्र में जन जागरण कर सरकारी अधिकारियों पर दबाव बनाकर वनों की अंधाधुंध कटान को रुकवाया।

रक्षासूत्र आंदोलन (Rakshasutra Movement)

  • 1994 में शुरू रक्षासूत्र आंदोलन में टिहरी के भिलंगना घाटी के लोगों ने वृक्षों पर रक्षासूत्र बांधकर वृक्षों को बचाने का संकल्प लिया था।
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने 2500 पेड़ों को काटने हेतु चिन्हित किया था। सरकार इससे पहले कि पेड़ों का कटान शुरू करती स्थानीय माहिलाओं ने आंदोलन शुरू कर दिया।
  • इस आंदोलन का नारा था- “ऊंचाई पर पेड़ रहेंगे, नदी ग्लेशियर टिके रहेंगे, पेड़ कटेंगे पहाड़ टूटेंगे, बिना मौत के लोग मरेंगे, जंगल बचेगा देश बचेगा, गांव-गांव खुशहाल रहेगा।”

झपटो छीनो आंदोलन (Jhapto Chhino Movement)

  • रैणी, लाता, तोलमा आदि गांव की जनता ने वनो पर परंपरागत हक बहाल करने तथा नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क (Nanda Devi National Park) का प्रबंधन ग्रामीणों को सौंपने की मांग को लेकर 21 जून, 1998 को लाता गांव में धरना प्रारंभ किया और 15 जुलाई को समीपवर्ती गांव के लोग अपने पालतू जानवरों के साथ नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क में घुस गए और इस आंदोलन को झपटो छीनो नाम दिया गया।

मैती आंदोलन (Maiti Movement)

  • मैती शब्द का अर्थ मायका होता है, इस अनोखे आंदोलन के जनक कल्याण सिंह रावत थे। जिनके मन में 1996 में आंदोलन का विचार आया
  • ग्वालदम इंटर कॉलेज की छात्राओं को शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम के दौरान बेदनी बुग्याल में वनों की देखभाल करते देख, श्री रावत ने यह महसूस किया कि पर्यावरण के संरक्षण में युवतियां ज्यादा बेहतर ढंग से कार्य कर सकती हैं, उसके बाद ही मैती आंदोलन संगठन और तमाम सारी बातों ने आकार लेना शुरू किया।
  • इस आंदोलन के कारण आज भी विवाह समारोह के दौरान वर-वधू द्वारा पौधा रोपने कि परंपरा तथा इसके बाद मायके पक्ष के लोगों के द्वारा पौधों की देखभाल की परंपरा विकसित हो चुकी है, विवाह के निमंत्रण पत्र पर बकायदा मैती कार्यक्रम छपता है और इसमें लोग पूरी दिलचस्पी लेते हैं।

 

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उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
(Important Question & Answer Related to Tribes of Uttarakhand)

उत्तराखंड की प्रमुख जनजाति कौन-सी हैं ?
थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, राज़ी (वनरावत)

उत्तराखंड में सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति कौन-सी है?
थारू

उत्तराखंड में सबसे कम जनसंख्या वाली जनजाति कौन-सी है?
राज़ी (वनरावत) (2.5%)

उत्तराखंड विधानसभा में अनुसूचित जनजाति हेतु कुल सुरक्षित सीटें कितनी हैं ?
2 (नानकमत्ता और चकराता)

उत्तराखंड राज्य में सर्वाधिक अनुसूचित जनजाति वाला जिला हैं ?
ऊधमसिंह नगर (7.46%)

उत्तराखंड राज्य में सबसे कम अनुसूचित जनजाति वाला जिला है?
रुद्रप्रयाग (0.14%)

भोटिया जनजाति

भोटिया जनजाति मुख्यतः निवास करती है?
उत्तरकाशी, चमोली, एवं पिथोरागढ़

भोटिया जनजाति किस जाति से सम्बन्ध रखते है?
मंगोलियन

भोटिया जनजाति के पुरुष की वेशभूषा है ?
रंगा, खगचसी, बाँखे आदि

भोटिया जनजाति की महिला की वेशभूषा है ?
च्न्यूमाला, च्यूकला, च्युब्ती, च्युज्य

पिथोरागढ़ की भोटिया जनजाति के लोग कहलाते है ?
जौहारी व शौका

चमोली की भोटिया जनजाति के लोग कहलाते है ?
मारछा एवं तोरछा

उत्तरकाशी की भोटिया जनजाति के लोग कहलाते है?
जाड़

जाड़ भोटिया स्वयं को मानते है?
जनक के वंश

जाड़ भोटियाओ की भाषा है?
रोम्बा

जाड़ भोटियाओ के मुख्य त्यौहार है?
लौहसर व शूरगैन

सर्वाधिक भोटिया जनजाति वाल जिला कौन-सा है?
पिथौरागढ़

भोटिया जनजाति के लोगों के ग्रीष्मकालीन आवास कहलाते है ?
मैत

भोटिया जनजाति के लोगों के शीतकालीन आवास कहलाते है ?
गुण्डा या मुनसा

भोटिया जनजाति के लोगो का मुख्य भोजन है ?
छाकू, छामा, कूटो

भोटिया जनजाति के लोगो का प्रिय पेय पदार्थ है ?
ज्या(चाय), छंग(मदिरा)

भोटिया जनजाति के लोगो का मुख्य व्यवसाय है?
कृषि पशुपालन एवं व्यापार

भोटिया जनजाति के लोगो का मुख्य वाधयंत्र है?
छुडके

भोटिया जनजाति के लोगो में विवाह की कितनी पद्धतियाँ प्रचलित है
2 (तत्सम, दामोला)

जौनसारी जनजाति

उत्तराखंड में कहाँ सर्वाधिक जौनसारी जनजाति पायी जाती है ?
जौनसार – बावर

जौनसारी किस जाति से सम्बन्ध रखते है ?
मंगोल व डोमो का मिश्रित रूप

जौनसारी स्वयं को मानते है?
पांडवो का वंशज

जौनसारियों का मुख्य व्यवसाय क्या हैं ?
कृषि एवं पशुपालन

जौनसारी पुरुषो की वेशभूषा क्या है ?
कोट, सूती टोपी, कुर्ता आदि

जौनसारी महिलाओ की वेशभूषा क्या है ?
घाघरा, चोली, अंगोली आदि

जौनसारी व भोटिया के लोग किस धर्म को मानते है ?
हिन्दू धर्म को

जौनसार के लोगो के मुख्य देवता है ?
महासू(शिव)

जौनसार-बावत क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला कौन-सा है ?
विस्सू मेला (देहरादून)

जौनसारियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है ?
हनोल

जौनसारियों का परिवार है ?
संयुक्त एवं पित्रसत्तात्मक

फादर ऑफ़ जौनसारी नाम से सम्मानित है?
भाव सिंह चौहान

जौनसारियों में विवाह के लिए प्रचलित पद्धतियाँ है ?
3

जौनसारी संगीत के जनक माना जाता है ?
नन्दलाल भारती (जौनसार रत्न)

जौनसार के प्रथम कवि ?
पंडित शिवराम

जौनसार के लोगो के मुख्य हथियार
तलवार, फरसा, कटार

जौनसारी के लोगो का मुख्य भोजन है?
चावल, दाले, मांस, शराब आदि

वीर केसरी मेला कब लगता है ?
3 मई को (शहीद केशरी चन्द की स्मृति में)

जौनसारियों का त्यौहार जागड़ा मनाया जाता है?
भाद्रपद में (जौनसारी)

नुणाई त्यौहार मनाया जाता है ?
भटाड़ मानथात (लाखामंडल, देहरादून)

वीर केसरी मेला कहा लगता है?
चैलीथाप (चकराता)

बोक्सा जनजाति

बोक्सा जनजाति के लोगो का निवास स्थान है ?
रामनगर, उधमसिंह नगर के बाजपुर पौड़ी के दुगड्डा एवं डोईवाला (देहरादून)

बोक्सा जनजाति के लोग स्वयं को मानते है ?
पवांर वंशीय राजपूत

बोक्सा जनजाति के लोगो का समाज है ?
संयुक्त व पितृसत्तात्मक

सर्वाधिक बोक्सा जनसंख्या निवास करती है
उधमसिंह जनपद

बोक्सा जनजाति की प्रमुख 5 उपजातियां है
जादुवंशी, पंवार, परतज़ा, राजवंशी, तनुवार

बोक्सा लोगो की सबसे पूजनीय देवी है?
बाला सुंदरी (काशीपुर)

बोक्सा के प्रमुख देवी देवता है ?
शिव, दुर्गा, हुल्का देवी, साकरिया देवता, ज्वालादेवी

बोक्सा लोगो के प्रमुख पर्व है ?
चैती, नौबी, रामलीला, दीपावली, तेरस, होली आदि

बोक्सा लोगो के प्रमुख मेला है ?
चैती मेला

बोक्सा समुदाय का मुख्य भोजन है?
माँस, मछली, चावल

बोक्सा समुदाय का मुख्य व्यवसाय है ?
कृषि आखेट, दस्तकारी

देहरादून में निवास करने वाली बोक्सा जनजाति कहलाती है ?
महर बोक्सा

नैनीताल एवं उधमसिंह नगर में बोक्सा जनजाति बाहुल्य क्षेत्र कहलाता है ? 
बुकसाड

बोक्सा जनजाति की मुख्य भाषाएँ है ?
भांवरी, कुमैय्या, रचभैंसी

बोक्सा जनजाति के पुरुषों की वेशभूषा है?
धोती, कुर्ता, पगड़ी आदि

बोक्सा जनजाति की स्त्रियों की वेशभूषा है?
लहंगा, चोली, साड़ी, ब्लाउज

बोक्सा जनजाति में जादू-टोना तंत्र-मन्त्र विद्या के जानकार व्यक्ति को कहा जाता था ?
भरारे

थारू जनजाति

थारू जनजाति के लोगो का निवास स्थान है ?
खटीमा, सितारगंज, किच्छा, नानकमत्ता, बनबसा आदि

थारू जनजाति के लोग स्वयं को मानते है?
राणा प्रताप के वंशज

थारुओ के शारीरिक लक्षण किस प्रजाति से मिलते है ?
मंगोल प्रजाति से

इतिहासकारों के अनुसार थारुओ का वंशज माना जाता है ?
किरात वंश

थारू जनजाति के लोगो का मुख्य व्यवसाय है ?
कृषि, आखेट, पशुपालन

थारू जनजाति के लोगो का मुख्य भोजन है ?
चावल, मछली

थारू जनजाति के लोगो का प्रिय पेय पदार्थ है ?
जाड़ (चावल की शराब)

थारू समाज है
मातृसत्तात्मक

थारू जनजाति के पुरूषों की वेशभूषा है ?
लंगोटी, कुर्ता, टोपी, साफा एवं सफ़ेद धोती

थारू जनजाति स्त्रियों की वेशभूषा है?
लहंगा, चोली, आभूषण

थारू समाज के प्रमुख देवी देवता है ?
पछावन, खड्गाभूत काली, भूमिया, कलुवा, आदि

थारू लोग दीपावली को किस पर्व के रूप में मानते है ?
शोक के पर्व के रूप में

थारु जनजाति के लोगो में विवाह की कितनी पद्धतियाँ प्रचलित है?
4

थारु जनजाति में विधवा विवाह के बाद दिए जाने वाला भोजन कहलाता है ?
लठभरता भोजन

थारु जनजाति में सगाई की रस्म कहलाती है ?
अपना-पराया

थारु जनजाति के मुख्य त्यौहार है ?
दशहरा, होली, दीपावली, बज़हर, माघ की खिचड़ी आदि

थारु जनजाति की प्रमुख कुरियां (गोत्र) है ?
बाडवायक, बट्ठा रावत वृत्तियाँ, महतो व डहैत

थारु जनजाति में विवाह की पद्धतियाँ है?
अपना-पराया, बात-कट्ठी, विवाह, चाला

राजी जनजाति (वनरावत)

उत्तराखंड की सबसे कम जनसंख्या वाली जनजाति है ?
राजी (वनरावत)

राजी जनजाति मुख्यतः निवास करती है ?
कनालीछीना, डीडीहाट, धारचूला, नैनीताल, चम्पावत

राजी जनजाति स्वय को मानते है ? 
रजवार (राजपूत)

राज्य में सर्वाधिक राजी जनजाति कहाँ निवास करती है ?
पिथौरागढ़

राजी जनजाति के लोगो का मुख्य भोजन है?
मांस, कन्दमूल फल, मंडुवा, मक्का, भट्ट तथा तरुड़

राजी जनजाति के लोगो का मुख्य व्यवसाय है ?
आखेट, पशुपालन एवं कृषि

राजी जनजाति की मातृभाषा है ?
मुण्डा

राजी जनजाति द्वारा सामान्यतः प्रयुक्त होने वाली भाषा है ?
कुमाऊनी

राजी जनजाति के लोगो अधिकाशतः कैसे आवासों में निवास करते है ?
झोपड़ियो में

राजी जनजाति के आवास कहलाते है ?
रौत्युड़ा या रौत्यांश

राजी जनजाति के प्रमुख देवी-देवता है ?
नंदादेवी, बाघनाथ, मलैनाथ, गणेनाथ, सैम, छुरमुल आदि

राजी जनजाति के मुख्य त्यौहार है ?
कर्क एवं मकर संक्रांति, गोरा अट्ठावली

राजी जनजाति के लोगो का विशेष नृत्य कहलाता है ?
रिघडांस

राजी जनजाति के लोगो में विवाह में से पूर्व प्रचलित पद्धतियाँ है ?
2 (सांगजांली तथा पिंठा)

राजी किस शिल्प कला में निपुण होते है ?
काष्ठ शिल्पकला

प्रारंभ में राजियों में विनिमय की कौन सी प्रथा प्रचलित थी ?
मूक विनिमय प्रथा

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गढ़वाल पेंटिंग स्कूल (Garhwal Painting School)

गढ़वाल क्षेत्र शुरू से ही पर्यटकों, साहसिक व्यक्तियों, दर्शनशास्त्रियों एवं प्रकृति प्रेमियों के लिए एक सुरक्षित स्वर्ग के रूप में जाना जाता रहा है। 17वीं सदी के मध्य में एक मुगल राजकुमार सुलेमान शिकोह ने गढ़वाल में शरण ली थी। राजकुमार अपने साथ एक कलाकार एवं उसके पुत्र को लाया जो कि उसके दरबारी पेन्टर थे एवं मुगल शैली की पेंटिंग में कुशल थे।

उन्नीस माह बाद राजकुमार ने गढ़वाल को छोड दिया परन्तु उसके दरबारी पेन्टर जो यहाँ के मनोहर वातावरण से मन्त्रमुग्ध हो गये थे वे यहीं पर रुक गये। ये पेन्टर श्रीनगर (गढ़वाल) में स्थापित हो गया जो पंवार राज्य की तत्कालीन राजधानी थी एवं गढ़वाल में मुगल शैली की पेन्टिंग को प्रस्तुत किया। धीरे-धीरे समय के साथ इन मूल पेन्टरों के उत्तराधिकारी विशिष्ट पेन्टर बन गये तथा उन्होने अपने प्रकार की नवीन मुल पद्धति को विकसित किया।

यह शैली बाद में गढ़वाल पेन्टिंग स्कूल के रुप में प्रसिद्ध हुआ। लगभग एक शताब्दी बाद एक प्रसिद्ध चित्रकार मोला राम ने पेन्टिंग की कुछ अन्य पद्धतिय को विकसित किया। वे गढ़वाल स्कूल के एक महान चित्रकार होने के साथ-साथ अपने समय के एक महानतम कवि भी थे। मोला राम की चित्रों में हमे कुछ सुन्दर कविताएं प्राप्त होती हैं।

यद्यपि इन चित्रों में अन्य पहाडी स्कूलों का प्रभाव निश्चित रुप में दिखाई पडता है तथापि इन चित्रों में गढ़वाल स्कूल की सम्पूर्ण मूलता को बनाए रखा गया है। गढ़वाल स्कूल की प्रमुख विशिष्टताओं में पूर्ण विकसित वक्षस्थलों, बारीक कटि-विस्तार, अण्डाकार मासूम चेहरा, संवेदनशील भी है एवं पतली सुन्दर नासिका से परिपूर्ण एक सौन्दर्यपूर्ण महिला की पेन्टिंग सम्मिलित है।

राजा प्रद्युम्न शाह (1797 – 1804) द्वारा कांगडा की एक गुलर राजकुमारी के साथ किये गये विवाह ने अनेकों गुलर कलाकारों को गढ़वाल में आकर बसने पर प्रेरित किया। इस तकनीक ने गढ़वाल की पेन्टिंग शैली को अत्यधिक प्रभावित किया।

आदर्श सौन्दर्य की वैचारिकता, धर्म एवं प्रेम लीला में विलयकरण, कला एवं मनोभाव के सम्मिश्रण सहित गढ़वाल की चित्र प्रेम के प्रति भारतीय मनोवृत्ति के साकार स्वरुप को दर्शाती है। विशिष्ट शोधकर्ताओं एवं एतिहासिक कलाकारों द्वारा किये गये कुछ कठिन शोध कार्यों के कारण इस अवधि के कुछ चित्रकार के नाम प्रसिद्ध हैं।

चित्रकार के पारिवारिक वृक्ष में श्याम दास, हर दास के नाम सर्वप्रथम लिये जाते हैं जो राजकुमार सुलेमान के साथ गढ़वाल आने वाले प्रथम व्यक्ति थे। इस कला विद्यालय के कुछ महान शिक्षकों में हीरालाल, मंगतराम, भोलाराम, ज्वालाराम, तेजराम, ब्रजनाथ प्रमुख हैं।

रामायण (1780) का चित्रण, ब्रहमा जी के जन्म दिवस (1780) का आयोजन, शिव एवं पार्वती रागिनी, उत्कट नायिका, अभिसारिका नायिका, कृष्ण पेन्टिंग, राधा के चरण, दर्पण देखती हुई राधा, कालिया दमन, गीता गोविन्दा चित्रण पुरातत्वीय अन्वेषणों से प्राप्त अनेकों प्रतिमाओं सहित वृहत्त मात्रा में इन पेन्टिंगों को श्रीनगर (गढ़वाल) में विश्वविद्यालय संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।

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फूलडोल मेला, चम्पावत (Phooldol Mela, Champawat)

चंद वंशीय राजाओं की राजधानी रही चम्पावत को मंदिरों का शहर के नाम से भी जाना जाता है। भाद्र कृष्ण पक्ष की दशमी को होने वाला फूलडोल मेला(Phooldol Mela) कई वर्षो से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। 

मेले की शुरुआत वर्ष 1944 में तत्कालीन तहसीलदार B.D.भंडारी के प्रयासों से हुई। मेला समिति का गठन कर इसका आयोजन कराया गया और नागनाथ मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से तीन दिवसीय अखंड कीर्तन के बाद दशमी को बालेश्वर मंदिर तक श्रीकृष्ण डोले की भव्य शोभायात्रा निकाली गई।

तब से यह मेला हर वर्ष आस्था के सैलाब के साथ बढ़ता चला जा रहा है। पूर्व कमेटी के सदस्य बताते हैं कि शुरुआती दौर में इस मेले को संचालित करने के लिए जो सामूहिकता की भावना पैदा हुई थी, वह आज भी जिंदा है। मेले का नाम फूलडोल क्यों पड़ा? इस पर पुजारी बताते हैं कि श्रीकृष्ण डोले को फूलों से आकर्षक रूप से सजाने पर ही इस को फूलडोल नाम दिया गया

शुरुआती दौर में इसे डोल मेला ही कहा जाता था। मेले में रूहेलखंड, बुंदेलखंड व कुमाऊं के साथ ही उत्तरप्रदेश के अन्य कस्बों से आने वाले व्यापारियों के कारण यह व्यावसायिक मेले के रूप में पहचान बनाने लगा है। वहीं डोल यात्रा में हिस्सा लेने के लिए जनपद के ओर छोर से भारी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

हालांकि बदलते परिवेश के चलते अब तीन दिवसीय होने वाले अखंड कीर्तन के स्वर धीमे पड़े हैं, लेकिन भक्ति संगीत की स्वर लहरियां अब भी गुंजायमान रहती है। कई सालों तक हरे रामा हरे कृष्णा के अखंड कीर्तन की एक टोली होती थी। बकायदा उसे पारिश्रमिक मिलता था।

 

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उत्तराखंड वन रिपोर्ट 2021 (Uttarakhand Forest Report 2021)

उत्तराखंड वन रिपोर्ट 2021
(Uttarakhand Forest Report 2021)

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने 13 जनवरी 2021 को रिपोर्ट जारी की। वर्ष 1987 में पहला सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ था वर्ष 2021 में भारत वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report-ISFR) का यह 17वाँ प्रकाशन है। इस रिपोर्ट को द्विवार्षिक रूप से ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ द्वारा प्रकाशित किया जाता है।

वनों की तीन श्रेणियों का सर्वेक्षण किया गया है जिनमें शामिल हैं

  • अत्यधिक सघन वन (Very Dense Forest) (70% से अधिक चंदवा घनत्व),
  • मध्यम सघन वन (Moderately Dense Forest) (40 – 70%) और
  • खुले वन (Open Forest) (10 – 40%)।
  • स्क्रबस (Scrub) (चंदवा घनत्व 10% से कम) का भी सर्वेक्षण किया गया लेकिन उन्हें वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया।

भारत में वन आवरण

श्रेणी क्षेत्रफल भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत
अत्यधिक सघन वन (VDF) 99,979 3.04%
मध्यम सघन वन (MDF) 3,06,890 9.33%
खुले वन (OF) 3,07,120 9.34%
कुल वन आवरण 7,13,789 21.71%
झाड़ी (Scrub) 46,539 1.42%
गैर वन 25,27,141 76.87%
कुल भौगोलिक क्षेत्र 32,87,469 100%

 

ISFR 2021 की विशेषताएँ

  • इसने पहली बार टाइगर रिज़र्व, टाइगर कॉरिडोर और गिर के जंगल जिसमें एशियाई शेर रहते हैं में वन आवरण का आकलन किया है।
  • इंडिया स्टेट आफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 की रिपोर्ट में राजाजी टाइगर रिजर्व में साल 2011 में 631.2 वर्ग किलोमीटर घना जंगल था। वहीं 2021 के सर्वेक्षण में यह घटकर 563.4 वर्ग किलोमीटर रह गया है। राजाजी टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट कवर में 2 वर्ग किलोमीटर की कमी दर्ज की गई है।
  • इंडिया स्टेट आफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 की रिपोर्ट में जिम कार्बेट में साल 2011 में 4 किलोमीटर घने जंगल में बाघों का आशियाना था। जो साल 2021 की गणना में 793.4 वर्ग किलोमीटर पाया गया है। साल 2011 के सर्वेक्षण में जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व में 91.6 वर्ग किलोमीटर खुला जंगल था जो 2021 तक पहुंचते-पहुंचते 79.8 वर्ग किलोमीटर हो गया है।

उत्तराखंड वन रिपोर्ट 2021

उत्तराखंड का वन आवरण

श्रेणी क्षेत्रफल प्रतिशत
VDF 5,055.01 9.45%
MDF 12,768.05 23.87%
OF 6,482.07 12.12%
Total 24,305.13 45.44
Scrub 392.37 0.73

 

उत्तराखंड के जिलेवार वन क्षेत्र

जनपद क्षेत्रफल VDF MDF OF Total प्रतिशत Scrub
अल्मोड़ा 3,144  199.09 838.28 682.43 1,719.80 54.7 6.00 
बागेश्वर 2,241 161.56  758.66  342.45 1,262.67 56.34 1.11
चमोली 8,030 443.08  1,573.55  693.48 2,710.11  33.75 1
चम्पावत 1,766 366.88  590.37  266.91  1,224.16 69.32 7.35 
देहरादून 3,088  663.25 596.85  351.48 1,611.58 52.19 86.33 
पौड़ी गढ़वाल 5,329  576.62 1,898.76 921.33 3,396.71 63.74 97.93
हरिद्वार 2,360  74.47 277.35 232.12  583.94  24.74 8.83 
नैनीताल 4,251  772.89 1,719.86 551.74 3,044.49 71.62 10.09 
पिथोरागढ़ 7,090 505.54 960.17  615.04 2,080.75 29.35 42.09 
रुद्रप्रयाग 1,984 251.94 578.90  311.46 1,142.30 57.58 9.12 
टिहरी गढ़वाल 3,642  272.89 1,084.17 70733 2,064.39 56.68  98.38 
ऊधम सिंह नगर 2,542 148.17 188.40  91.51 428.08  16.84 3.14 
उत्तरकाशी  8,016 618.63 1,702.73  714.79 3,036.15  37.88 21
Grand total 53,483 5,055.01 12,768.05 6,482.07 24,305.13 45.44 392.37

 

  • उत्तराखंड के 5 सबसे ज्याद वन आवरण वाले जनपद क्षेत्रफल की दृष्टि से – पौड़ी गढ़वाल (3,396.71 वर्ग किमी.), नैनीताल (3044.49 वर्ग किमी.), उत्तरकाशी (3,036.15 वर्ग किमी.), चमोली (2,710.11 वर्ग किमी.) व पिथौरागढ़ (2,080.75 वर्ग किमी.)
  • उत्तराखंड के 5 सबसे कम वन आवरण वाले जनपद क्षेत्रफल की दृष्टि से – ऊधम सिंह नगर (428.08), हरिद्वार (583.94), रुद्रप्रयाग (1,142.3), चंपावत (1,224.16) व बागेश्वर (1,262.67)
  • उत्तराखंड के 5 सबसे ज्याद वन आवरण वाले जनपद प्रतिशत की दृष्टि से – नैनीताल (71.62%), चंपावत (69.32%), पौड़ी गढ़वाल (63.74%), रुद्रप्रयाग (57.58%) व टिहरी गढ़वाल (56.68%)
  • उत्तराखंड के 5 सबसे कम वन आवरण वाले जनपद प्रतिशत की दृष्टि से – ऊधम सिंह नगर (16.84%), हरिद्वार (24.74%), पिथौरागढ़ (29.35%), चमोली (33.75%) व उत्तरकाशी (37.88%)
  • उत्तराखंड के 5 सबसे ज्याद क्षेत्रफल वाले जनपद – चमोली (8,030 वर्ग किमी.), उत्तरकाशी (8,016 वर्ग किमी.), पिथौरागढ़ (7,090 वर्ग किमी.), पौड़ी गढ़वाल (5,329 वर्ग किमी.) व नैनीताल (4,251 वर्ग किमी.)
  • उत्तराखंड के 5 सबसे कम क्षेत्रफल वाले जनपद – चंपावत (1,766 वर्ग किमी.), रुद्रप्रयाग (1,984 वर्ग किमी.), बागेश्वर (2,241 वर्ग किमी.), हरिद्वार (2,360 वर्ग किमी.) व ऊधम सिंह नगर (2,542 वर्ग किमी.)

 

उत्तराखंड का ऊंचाईवार वन आवरण

ऊंचाई क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्रफल VDF MDF OF Total Scrub
0 – 500 7,937 627 1,627 626 2,880 13
500 – 1000 5,703 1,198 1,858 902 3,958 103
1000 – 2000 17,560 1,573 5,157 3,319 10,049 241
2000 – 3000 7,248 1,552 3,092 1,134 5,778 21
3000 – 4000 4,193 105 1,033 496 1,634 13
> 4000 10,842 0 1 5 6 1
Total 53,483 5,055 12,768 6,482 24,305 392

 

विभिन्न ढलान वर्ग उत्तराखंड का वन आवरण

तापमान भौगोलिक क्षेत्रफल VDF MDF OF Total Scrub
0 – 5 9,446 842 1,460 646 2,948 29
5 – 10 4,069 487 973 348 1,808 18
10 – 15 5,688 615 1,503 644 2,762 38
15 – 20 7,028 730 1,931 925 3,586 59
20 – 25 7,313 730 2,046 1,053 3,586 70
25 – 30 6,683 650 1,870 1,026 3,546 68
> 30 13,256 1,001 2,985 1,840 5,826 110
Total 53,483 5,055 12,768 6,482 24,305 392

 

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मुनि की रेती का इतिहास (History of Muni ki Reti)

उत्तराखंड के इतिहास में मुनि की रेती (Muni ki Reti) की एक खास भूमिका है। यही वह स्थान है जहां से परम्परागत रुप से चार धाम यात्रा शुरु होती थी। यह सदियों से गढ़वाल हिमालय की ऊंची चढ़ाईयों तथा चार धामों का प्रवेश द्वार था।

जब तीर्थ यात्रियों का दल मुनि की रेती से चलकर अगले ठहराव गरुड़ चट्टी (परम्परागत रुप से तीर्थ यात्रियों के ठहरने के स्थान को चट्टी कहा जाता था) पर पहुंचाते थे तभी यात्रा से वापस आने वाले लोगों को मुनि की रेती वापस आने की अनुमति दी जाती थी। बाद में सड़कों एवं पूलों के निर्माण के कारण मुनि की रेती से ध्यान हट गया।

प्राचीन शत्रुघ्न मंदिर, मुनि की रेती का एक पवित्र स्थान था, जहां से यात्रा वास्तव में शुरु होती थी। सम्पूर्ण भारत से आये भक्तगण इस मंदिर में सुरक्षित यात्रा के लिए प्रार्थना करते थे, गंगा में स्नान करने के बाद आध्यात्मिक शांति के लिए पैदल यात्रा शुरु करते थे। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना नौंवी शताब्दी में आदि शंकराचार्य के द्वारा की गई।

मुनि की रेती टिहरी रियासत का एक हिस्सा था तथा शत्रुघ्न मंदिर की देखभाल टिहरी के राजा करते थे। वास्तव में, वहां जहां आज लोक निर्माण विभाग का आवासीय क्वार्टर है पहले रानी का घाट था यहां पहले टिहरी की रानी तथा उनकी दासिया स्नान करने आती थीं। इससे थोड़ी दूर राजघराने के मृतकों के दाह-संस्कार का स्थान तथा फुलवाडी थे। दुर्भाग्य से उस स्थान पर अब कुछ भी पुराना मौजूद नहीं है।

इस शहर के एक बुजुर्ग लोगों के अनुसार “टिहरी के राजा लालची नहीं थे, उन्होंने बहुत सारी जमीन जैसे देहरादून तथा मसुरी अंग्रेजों को दे दी। उन्होंने ऋषिकेश में रेलवे निर्माण के लिए जमीन दी तथा ऋषिकेश के रावत ने ऋषिकेश तक रेल स्टेशन बनाने का खर्च दिया। राजा ने अगर थोड़ा और भी सोचा होता तो आसानी से रेल मार्ग मुनि की रेती तक पहूंच जाता।”

उन दिनों रेलवे स्टेशन से मुनि की रेती तक बैलगाड़ी से पहूंचा जाता था और जब तक कि चन्द्रभाग पुल का निर्माण रियासत सरकार द्वारा न कराया गया तब तक हाथी के पीठ पर बैठकर नदी पार किया जाता था। इसी मकसद के लिए राजा मुनि की रेती में एक हाथी रखते थे।

कैलाश आश्रम की स्थापना वर्ष 1880 में हुई और इस आश्रम के आस-पास धीरे-धीरे शहर का विकास हुआ जहां चाय की कुछ दूकानें थी, जो आध्यात्मिक ज्ञान सीखने आये लोगों के लिए बनी थी।

वर्ष 1932 में शिवानन्द आश्रम की स्थापना हुई जिनका इस शहर को योग एवं वेदान्त केन्द्र के रुप में विकास के लिए एक बड़ा योगदान है। इसका श्रेय इसके संस्थापक स्वामी शिवानन्द को जाता है जिन्होंने योग एवं वेदान्त को आसानी से समझने लायक बनाकर पश्चिम के देशों में प्रसिद्ध किया।

वर्ष 1986 में महर्षि महेश योगी ट्रांसेन्डेन्टल आश्रम (जो अभी मरम्मत के अभाव में गिर चुका है, तथा नोएडा में स्थानांतरित हो चुका है) में बीटल्स के आगमन ने भी मुनि की रेती को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाई

 

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उत्तराखण्ड की भाषा व बोलियाँ

उत्तराखण्ड की भाषा व बोलियाँ कुमाऊँ व गढ़वाल बोलियों का वर्णन ग्रीयर्सन ने ‘भारत का भाषा सर्वेक्षण’ नामक पुस्तक में दोनों गढ़वाल मण्डल व कुमाऊँ मण्डल की इक्कीस उप-बोलियों का उल्लेख किया है। जो इस प्रकार हैं – 

कुमाऊँ की बोलियाँ 

  1. अस्कोटी  पिथौरागढ़ जनपद में सीरा क्षेत्र के उत्तर पूर्व में अस्कोट के अंतर्गत बोली जाने वाली बोलियों को अस्कोटी कहा जाता है। इस बोली में मिश्रित बोली सीराली, नेपाली और जोहारी का अत्यधिक प्रभाव है।
  2. सीराली सीराली क्षेत्र में सीरा बोली सीराली कहलाती है। अस्कोट के पश्चिम और गंगोली के पूर्व क्षेत्र सीरा कहलाती है।
  3. सौर्याली पिथौरागढ़ जनपद के सोर परगने की बोली सोर्याली है। 
  4. कुमय्याँ काली कुमाऊँ क्षेत्र के अंतर्गत बोली जाने वाली बोली को उत्तर में पनार और सरयू, पूर्व में काली, पश्चिम में देविधुरा तथा दक्षिण में टनकपुर तक इस बोली का प्रभाव है।
  5. गंगोली गंगोलीहाट के अंतर्गत बोली जाने वाली इस बोली को पश्चिम में दानपुर, दक्षिण में सरयू, उत्तर में रामगंगापूर्व में सोर तक इस बोली का प्रभाव है।
  6. दनपुरिया अल्मोड़ा जनपद के दानपुर परगने की यह बोली दनपुरिया कहलाती है।
  7. चौगर्ख्रिया  काली कुमाऊँ के पश्चिम के उत्तर पश्चिम से लेकर पश्चिम के बारमंडल परगने तक इस बोली को बोला जाता है।
  8. खासपार्जिया अल्मोड़ा के बारमंडल परगने के अंतर्गत बोली जाती है।
  9. पछाई अल्मोड़ा जनपद के पालि क्षेत्र के अंतर्गत यह बोली फल्द्कोट, रानीखेत, द्वारहाट, मासी तथा चौखुटिया तक प्रभावित है।
  10. रौ-चौभेंसी उत्तर पूर्वी नैनीताल जनपद के रौ और चौभेंसी क्षेत्र में इस बोली को बोला जाता है।

गढ़वाल की बोलियाँ 

  1. बधानी पिंडार और अलकनंदा नदी के मध्य क्षेत्रांतर्गत बोली जाती है।
  2. माँझ कुमइयाँ इस बोली में अनेक शब्दों के मिश्रित कुमाऊँ भी शब्द भी है।
  3. श्रीनगरी इस प्रकार की बोली गढ़वाली के प्राचीन राजधानी श्रीनगर के अंतर्गत पौड़ी देवल के निकतम क्षेत्रों में बोली जाती है।
  4. सलाणी सलान क्षेत्र के अंतर्गत यह बोली सलाणी कहलाती है।
  5. नागपुरिया चमोली जनपद के नागपुर पट्टी के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में इस बोली को नागपुरिया कहा जाता है।
  6. गंगपरिया टिहरी क्षेत्र के अंतर्गत इस बोली को बोला जाता है।
  7. लोहब्या  राठ से सटे क्षेत्र लोहाब पट्टी खंसर व गैरसैण के क्षेत्रों में इस बोली का प्रभाव है।
  8. राठी कुमाऊँ सीमा से सटे दूधातोली, विनसर और थालीसैण आदि क्षेत्रों को राठ कहते हैं। इन क्षेत्रों के अंतर्गत यह बोली राठी कहलाती है।
  9. दसौल्य नागपुर पट्टी के अंतर्गत दसोली क्षेत्र में यह बोली दसौल्य कहलाती है।

 

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