महाजनपद का प्रशासन (Administration of Mahajanapadas) | TheExamPillar
Administration of Mahajanapad

महाजनपद का प्रशासन (Administration of Mahajanapad)

महाजनपद-कालीन प्रशासन में राजतन्त्रात्मक (नृपतंत्र) और गणतन्त्रात्मक दोनों शासन व्यवस्था का प्रचलन था। मध्यप्रदेश में अवन्ति और चेदि दोनों महाजनपद राजतन्त्रात्मक ही थे। राजतंत्र राज्य में मंत्रिपरिषद् (परिषा) का विवरण मिलता हैं। राजतंत्र राज्य में केवल आमात्य ही परिषद् में कार्य करते थे अर्थात परिषद् का गठन अमात्यों के द्वारा होता था। जिसका आकार छोटा होता था। राजा की सहायतार्थ मंत्रिमंडल होता था। छठी शताब्दी ई. पूर्व में मंत्री की भूमिका में लगभग पाँच – छः विभागाध्यक्षों का कार्य महत्वपूर्ण था। विभागों एवं मंत्रियों की संख्या राज्य के क्षेत्रफल एवं उसकी आवश्यकता के अनुरूप राजा द्वारा निर्धारित की जाती थी। चूँकि प्रारम्भिक काल में राज्यों को भौगोलिक आकार छोटा होता था, अतः विभागों की संख्या भी बहुत अधिक नहीं थी। 

  • विभागीय मंत्रियों को महामत्त (महामात्र) कहा जाता था।
  • पुरोहित, सर्वार्थक महामत्त (प्रशासन मंत्री), सेनापति महामत्त (सेनाप्रमुख), भाण्डागारिक महामत्त (कोषाध्यक्ष), विनश्यामात्य (न्यायाधीश) और रज्जुगाहक महामत्त या रज्जुक (राजस्व प्रमुख) प्रमुख थे।
  • अनेक जातक कथाओं में अमात्यों और पुरोहितों का उल्लेख मिलता है। वस्तुत: सबसे महत्वपूर्ण महामत्त पुरोहित होता था।
  • पुरोहित राजा के धर्म और अर्थ दोनों का अनुशासक होता था।
  • पुरोहित पद प्रायः वंशानुगत था। ग्राम शासन में ग्राम भोजक का महत्वपूर्ण स्थान था। 

महाजनपद की न्याय व्यवस्था

न्याय व्यवस्था कठोर थी। न्याय के मामलों में राजा ही सर्वोच्च होता था। न्यायशाला का न्यायाधीश सर्वगुणसम्पन्न, धर्मशास्त्रज्ञ, नीतिशास्त्रज्ञ, कपटव्यवहारक, सुस्पष्ट वक्ता तथा क्रोध रहित रहता था। न्यायाधीश शासन के नियमानुसार न्याय करता था फिर भी राजाज्ञा सर्वोपरि थी। उसकी सहायता के लिए वैश्य, कायस्थ, दूत, गुप्तचर, आदि अन्य कार्य करते थे। कायस्थ वादी और प्रतिवादी के अभियोग लिखता था। दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क से न्यायालय में अपनी बात रखते थे। न्याय के पूर्ण सूक्ष्मता से प्रमाणों की जाँच की जाती थी। परिस्थितिनुसार हत्या, चोरी पर घटित स्थल का निरीक्षण भी किया जाता था। अपराध सिद्ध हो जाने पर उसे अपराध के नियमों से दण्ड दिया जाता था। अभियोगियों का स्थान न्याय मण्डप बाहर होता था। क्रम के अनुसार कार्यवाही होती थी। सभी को अपनी बात रखने का अधिकार था। बड़े अपराधों पर मृत्युदण्ड दिये जाते थे। इस प्रकार न्याय व्यवस्था कठोर थी। 

महाजनपद की मुद्रा  

महाजनपद युगीन मुद्राओं से भी प्रशासन की जानकारी प्राप्त होती है। इस काल की प्राप्त मुद्राएँ आकार में बड़ी और मोटाई में बहुत पतली हैं जिन पर वृषभ, हस्ति, मत्स्य, कूर्म तथा चक्र आदि विभिन्न प्रकार के चिन्ह अंकित हैं। क्षेत्र की प्राचीन मुद्राओं की विशेषता “उज्जयिनी” चिन्ह है। यह संभव है कि किसी भी चिन्ह के प्रकार जिस स्थल पर सर्वाधिक संख्या में उपलब्ध है वह स्थान उस चिन्ह का उद्गम या मूल स्थान होता है। उज्जयिनी के अतिरिक्त “उज्जयिनी चिन्ह” विदिशा, त्रिपुरी, एरण से प्राप्त मुद्राओं पर भी अंकित है। 

 

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