Expansion of Mahajanapad

महाजनपद का विस्तार (Expansion of Mahajanapad)

अवन्ति जनपद

बुद्धकाल में अवन्ति जनपद शक्ति और विस्तार की दृष्टि से भारत का प्रबलतम् और विशालतम् जनपद था। सर्वप्रथम ऋग्वेद की एक ऋचा में अवन्ति शब्द का उल्लेख मिलता है जिसके आधार पर विद्वान इस नगर के नामकरण की संयोजना करते हैं। ब्राह्मण और आरण्यकों में भी यह नाम आता है। किन्तु राज्य अथवा स्थान के नाम की दृष्टि से अवन्ति का प्रथम उल्लेख पाणिनी की अष्टाध्यायी के सूत्र ‘स्त्रियामवन्ति-कुरूभ्यश्च’ में हुआ है। इसके पश्चात् अवन्ति और अवन्ती (हस्व और दीर्घ ईकारान्त) नामों का प्रचलन हो गया। 

भौगोलिक दृष्टि से अवन्ति राज्य का विस्तार नर्मदा नदी की घाटी में मान्धाता नगर से लेकर महेश्वर (इंदौर) तक फैला हुआ था। 

हरिहरनिवास द्विवेदी और विजय गोविन्द द्विवेदी ने मध्यभारत के अवन्ति जनपद की सीमाओं का उल्लेख किया है कि उत्तर मध्यभारत में उस समय वन्य प्रदेश था और ग्वालियर, नरवर तथा भेलसा के मध्य चम्बल, सिन्ध और बेतवा के बीच जो विन्ध्य श्रृंखलाएँ हैं वे विन्ध्याटवी कही जाती थीं। आगे दशार्ण प्रदेश आता था, जो दशार्ण नदी (वर्तमान धसान) से सिंचित था। 

दीपवंश के अनुसार राजा अच्चुतगामी ने उज्जयिनी नगरी की स्थापना की थी। चीनी यात्री हेनसांग सातवीं शताब्दी में अपनी यात्रा विवरण में उज्जयिनी (उ-शे-ये-ना) के नगर विस्तार का उल्लेख किया है। उसने इस नगर का विस्तार तीस ली (करीब 5 मील) बताया है और कहा है कि उस समय यह एक घनी बस्ती वाली नगरी थी। सम्पूर्ण उज्जयिनी प्रदेश का विस्तार चीनी युआन ने 6000 ली या करीब एक हजार मील बताया है। 

चेदि जनपद (चेति, चैद्य) 

भगवान बुद्ध के समय (ई.पूर्व छठी शताब्दी) में उत्तरी भारत का अधिकांश भाग जिन सोलह महाजनपदों में विभक्त था, चेदि उनमें से एक था। इसकी राजधानी सोत्थिवती (शुक्तिमती) थी, जो शुक्तिमती (केन) नदी के तट पर थी। यह महाभारत की शुक्तिमती से निश्चय ही अभिन्न है। इस शुक्तिमती को मध्यप्रदेश में स्थित माना जाता है। सुत्तनिपात की अट्ठकथा (परमत्थजोतिका) में कहा गया है कि चेति जनपद में ‘चेति’ या ‘चेतिय’ नाम धारण करने वाले राजाओं ने शासन किया था, इसलिये उसका नाम चेति पड़ा। कालान्तर में यह चेदि जनपद, चैद्य, डाहल ( डभाला, डाहाल, डाहल, डहाला, डहला) और त्रिपुरी आदि पर्यावाची नामों से विख्यात हुआ।

साहित्यिक साक्ष्य में चेदि देश का प्रारम्भिक इतिहास ऋग्वैदिक काल से प्राप्त होता है जिसके एक दानस्तुति सूत्त में चैद्य (चेदि का राजा) कशु द्वारा ब्रह्मातिथि नामक ऋषि को सौ ऊँट और एक हजार गायें दान देने का उल्लेख मिलता हैं। वाल्मीकि रामायण में चेदि देश का उल्लेख नहीं मिलता। महाभारत में चेदि की गणना भारत के प्रमुख जनपदों में की गई है। उपरिचर वसु ने चेदि पर विजय प्राप्त की और पृथ्वी पर इन्द्रमह का प्रवर्तन किया। शिशुपाल चेदि का राजा था जिसका वध श्रीकृष्ण द्वारा किया गया। तत्पश्चात् उसका पुत्र धृष्टकेतु चेदि देश का राजा बना। इस देश का राजा सुबाहु, राजा नल का समसामयिक था और दमयन्ती ने यहाँ सुखपूर्वक निवास किया था। पाण्डव नकुल की पत्नी करेणुमती चेदि देश की राजकुमारी थी। महाभारत युद्ध में चेदि नरेश धृष्टकेतु ने पाण्डवों का साथ दिया था। धृष्टकेतु की मृत्यु पश्चात् उसका अनुज शरभ राजा हुआ। शरभ के पश्चात् चेदि देश के राजाओं की वंशावली ज्ञात नहीं है। पुराणों से भी स्पष्ट होता है कि विदर्भ के पौत्र और केशिक के पुत्र चिदि ने यमुना के दक्षिण में चैद्य वंश की स्थापना की। 

भौगोलिक दृष्टि से चेदि जनपद की सीमाएँ कालानुसर बदलती रही हैं। फिर भी ज्ञात साक्ष्यों के आधार पर स्पष्ट होता है कि चेदि जनपद वत्स जनपद के दक्षिण में, यमुना नदी के पास, उसकी दक्षिण दिशा में स्थित प्रदेश था । इसके पूर्व में काशी जनपद, दक्षिण में विंध्य पर्वत, पश्चिम में अवन्ति और उत्तर-पश्चिम में मच्छ (मत्स्य) और सूरसेन जनपद थे। चेदि जनपद का सबसे समीपी पड़ोसी वंस (वत्स) जनपद ही था। इसीलिए दीघनिकाय के जमवसभसुत्त में चेदि और वंस जनपद का साथ-साथ वर्णन किया गया है “चेतिवंसेसु”। 

चेदि जनपद का विस्तार साधारणतः आधुनिक बुन्देलखण्ड और उसके आस-पास के प्रदेश के बराबर माना जा सकता है। चेतिय जातक में चेदि देश के राजाओं की वंशावली दी गई है, जिसमें महासम्मत और मन्धाता (मान्धाता) राजाओं को उनके आदिपूर्वज बताया गया है। इसी जातक में अन्तिम चेदि-नरेश उपचर (अपचर) के पाँच पुत्रों ने हत्थिपुर (हस्तिनापुर), अस्सपुर (अंग), सीहपुर (उत्तरी पँजाब), उत्तरपाँचाल (अहिच्छत्र- उत्तरपांचाल की राजधानी) और दद्दरपुर (हिमवन्त प्रदेश में संभवतः दर्दिस्तान) नगरों के बसाए जाने का उल्लेख है। 

प्राचीन चेदि देश की दक्षिणी सीमा के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। पार्जिटर के मतानुसार चेदि देश उत्तर में यमुना के दक्षिणी तट से दक्षिण में मालवा के पठार और बुन्देलखण्ड की पहाड़ियों तक तथा दक्षिण-पूर्व में चित्रकूट के उत्तर-पूर्व में बहने वाली कार्वी नदी से उत्तर-पश्चिम में चम्बल नदी तक फैले हुए विस्तृत प्रदेश का नाम था। 

चेदि जनपद के अन्तर्गत अनेक प्रसिद्ध नगरों का उल्लेख हुआ है, जहाँ भगवान बुद्ध स्वयं विहार करते हुए गये थे। इतना ही नहीं, कुछ प्रसिद्ध नगरों में वर्षावास भी किया था। इसकी सीमाएँ नेपाल के समीपवर्ती क्षेत्र तक थी। चेदि जनपद के अन्तर्गत ऐसे अनेक नगर थे जिनका सम्बन्ध बुद्ध या उनके शिष्यों से रहा है।
जैसे – सहजाति (सहजातिय), सहचनिका (सहंचनिका), बालकलोणकार, पाचीन वंस (मिग), पारिलेय्यक, भद्दवती (भद्दवतिका), चालिका, जन्तुगाम इत्यादि महत्वपूर्ण व्यापारिक नगर थे। 

  • इसमें से सहजातिया व सहजाति नगर (इलाहाबाद के पास भीटा) में भगवान बुद्ध ने चेतिय लोगों को उपदेश दिया था। 
  • बालकलोणकर ग्राम में बुद्ध के रूकने का उल्लेख मिलता है। 
  • पारिलेय्यक नगर (कौशाम्बी के पास) के रक्षित वनखण्ड में बुद्ध ने दसवाँ वर्षावास किया था। 
  • चालिका ग्राम के समीप चालिक या चालिय पर्वत पर बुद्ध ने तेरहवाँ, आठरहवाँ, और उन्नीसवाँ वर्षावास किया था। 

अतः चेदि जनपद बौद्ध धर्म का एक बड़ा केन्द्र था जहाँ भगवान बुद्ध ने उपदेश दिए। 

 

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