मध्य प्रदेश का वैदिक व पुराण साहित्य | TheExamPillar
Vedic and Puran Literature of Madhya Pradesh

मध्य प्रदेश का वैदिक व पुराण साहित्य (Vedic and Puran Literature of Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश का वैदिक साहित्य (Vedic Literature of Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में वैदिक संस्कृति (Vedic Literature) के प्रसार के विषय में विद्वानों में मत-वैभिन्य है –
मैक्समूलर के मत में वैदिक काल का आरंभ 1200 ई. पू. हुआ तथा मध्यप्रदेश में आर्यों की बसाहट लगभग 1000 ई. पू. में हुयी।
विन्टर्निज इस बसाहट को तृतीय सहत्राब्दी ई. पू. की घटना स्वीकार करते हैं।
पी. एल. भार्गव के अनुसार आरंभिक आर्यों की बस्तियाँ 3000 ई.पू. में सप्तसैंधव प्रदेश में बसीं तथा पश्चिमी मध्यप्रदेश में उनका प्रव्रजन और निवसन लगभग 2000 ई.पू. में हुआ।
ए. एस. अल्तेकर महोदय आर्यों के मध्यप्रदेश से संपर्क को 1800 ई.पू. में रखते हैं।

ऋग्वेद में आर्यों के विभिन्न युद्धों का वर्णन है। आर्यों के पारस्परिक युद्धों में सर्वप्रमुख है दशराज्ञ युद्ध। इस युद्ध में आर्यों का राजा सुदास था जो भरत-वर्ग का प्रमुख था। सुदास का युद्ध दस राजाओं के एक संघ से हुआ था, जिसमें अनु, यदु, पुरु, तुर्वश तथा द्रुह्य के साथ पाँच अन्य राजा शामिल थे। इस युद्ध में सुदास विजयी हुआ और परिणामस्वरूप आर्यों का विभिन्न दिशाओं में प्रसार हुआ। त्रित्सु, भरत तथा पुरु आपस में मिल गये और वे सम्मिलित रूप से कुरु (Kuru) कहलाने लगे। उनका शासन हस्तिनापुर में स्थापित हो गया। तुर्वशु एवं क्रिवी मिलकर पंचाल कहलाए। काशी, अयोध्या, मथुरा और सौराष्ट्र तक आर्यों की शाखाएँ फैल गयीं। अगस्त्य के नेतृत्व में यादव नर्मदा की घाटी में बस गये।

उक्त समूहों के अतिरिक्त चेदि (Chedi) नामक शाखा यमुना तथा विंध्य क्षेत्र में बस गयी। इस शाखा का एक बहुत शक्तिशाली राजा कशु ज्ञात होता है जिसके बारे में दान-स्तुति प्रकरण (VIII 5.37-39) में उल्लेख है कि उसने अपने पुरोहित को दस राजा दास के रूप में भेंट किये थे। पुराणों से चेदि यादवों की एक शाखा ज्ञात होते हैं। इस प्रकार वैदिक साहित्य से मध्यप्रदेश के विषय में बहुत सूचनाएँ नहीं मिलती हैं तथापि आर्यों के प्रसार के सम्बन्ध में कुछ संकेत अवश्य मिल जाते हैं। 

मध्य प्रदेश का पुराण साहित्य (Puran Literature of Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश के परम्परागत इतिहास की जानकारी पौराणिक विवरण से मुख्य रूप से प्राप्त होती है। पुराणों में भारत युद्ध को आधार मानकर प्राचीन घटनाक्रमों का विवरण दिया गया है। पौराणिक कालक्रम के निर्माण में भारत युद्ध की तिथि महत्त्वपूर्ण सीमाचिह्न है जिसकी तिथि के विषय में विभिन्न मान्यताएँ हैं।
पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख के अनुसार भारत युद्ध की तिथि 3102 ई. पू. ठहरती है जबकि खगोलीय – गणना पद्धति से इसकी तिथि को 2249 ई. पू. निशचित की जाती है।
एफ. ई. पार्जिटर ने पुराणों के अन्त: साक्ष्यों को आधार बनाकर भारत युद्ध को 950 ई. पू. में घटित माना है।
पार्जिटर के अनुसार अधिसीमकृष्ण (जन्मेजय के प्रपौत्र) तथा महापद्मनन्द के सिंहासनारोहण के मध्य छह राजा हुए।
ए. डी. पुसालकर ने लिखा है कि पार्जिटर की काल गणना में महाभारत और पुराणों के उल्लेखों से विरोधाभास उत्पन्न हो जाता है क्योंकि परीक्षित और महापद्मनन्द के मध्य 1015 वर्षों का अंतर महाभारत और पुराणों से ज्ञात होता है।
पौराणिक परम्परानुसार भारत युद्ध के 95 पीढ़ी पूर्व मनु वैवस्वत हुए। 

मनु वैवस्वत के काल में ही प्रलयंकारी बाढ़ ने संपूर्ण पृथ्वी को जल-आप्लावित कर लिया था। प्रलय के समय जब पृथ्वी समुद्र में डूबने लगी तब मनु ने स्वनिर्मित विशाल नौका में आश्रय लेकर अपनी प्राण रक्षा की और एक मछली, जिसकी रक्षा मनु ने पूर्व में की थी, ने मनु की नौका को उत्तर के एक उन्नत पर्वत पर पहुँचा दिया। पानी उतर जाने पर मनु पृथ्वी पर उतरे और उन्होंने पृथ्वी पर मनुष्य जाति का आरम्भ किया। 

पौराणिक परम्परा के अनुसार मनु प्रथम आर्य राजा हुए और पुराणों में वर्णित समस्त परवर्ती राजवंश उन्हीं से नि:सृत माने जाते हैं। पुराण कोशल के प्राचीन नगर अयोध्या को मनु की राजधानी बताते हैं। वैवस्वत मनु के दस पुत्र और एक पुत्री हुई। मनु के दस पुत्रों के नाम इल, इक्षवाकु, नाभाग, धृष्ट, शर्याती, नरिष्यन्त, प्रांशु, नाभागोदिष्ट, करूष तथा पृषघ्न ज्ञात होते हैं। इनमें से करूष के नाम से कारूष नामक वंश चला और कारूष देश की स्थापना हुई। कारूष देश सोन नदी के पूर्व की ओर रीवा के आसपास के क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है। वर्तमान बघेलखण्ड कारूष देश का ही अंग था।

पुराणों के अनुसार परम्परागत राजवंशों का कालानुक्रम

ए. डी. पुसालकर ने पुराणों में वर्णित राजवंशों के कालानुक्रम का निर्माण विभिन्न अंत: साक्ष्यों की तुलना करके किया है ।

क्र. म. प्रमुख व्यक्तित्व अनुमानित काल
1. ययाति (मनु की 5 वीं पीढ़ी)  3010 ई. पू. 
2.  मान्धात्रि (मनु की 20 वीं पीढ़ी)  2740 ई. पू. 
3.  अर्जुन कार्तवीर्य, विश्वामित्र, जमदग्नि, परशुराम एवं हरिश्चन्द्र (मनु की 31 वीं से लेकर 33 वीं पीढ़ी) 2506 ई. पू.
4. अयोध्या के सगर एवं हस्तिनापुर के दुष्यन्त तथा भरत (मनु की 41 वीं से लेकर 44 वीं पीढ़ी) (लगभग 2350 से 2300 ई. पू.) 
5.  राम (मनु की 65 वीं पीढ़ी) 1930 ई. पू. (लगभग 1950 ई. पू.) 

 

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