Indian History Notes in Hindi - Page 3

प्लासी का युद्ध (Battle of Plassey)

प्लासी का युद्ध (Battle of Plassey) 1757

प्लासी के युद्ध के कारण

  • 1717 ई० में अंग्रेजों ने मुगल फरमान की गलत व्याख्या की एवं दस्तक का गलत उपयोग किया गया। 
  • सिराजुद्दौला जो बंगाल का नया नवाब बना। वह अपने पूर्वजों के समान ही अंग्रेजों पर अधिकार रखना चाहता था। लेकिन दक्षिण भारत में अपनी सफलता के बाद अपने को शक्तिशाली समझने लगा, परंतु अपने अधिकारों का विरोध नहीं कर सका। नवाब के आदेश के विरुद्ध अंग्रेजों ने कलकत्ता में किलाबंदी की।

प्लासी के युद्ध का घटनाक्रम

प्लासी जो कि ‘प्लासी’ अपभ्रंश है, मुर्शिदाबाद से 20 मील दूर तक गांव और परगना का नाम है। 

  • 23 जून, 1757 ई० में नवाब सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजों के बीच लड़ाई हई। 
  • ब्रिटिश सेना का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव कर रहा था जिसमें 613 यूरोपियन पैदल सैनिक, 100 यूरोपियन सिपाही, 171 तोपखाने एवं 2100 भारतीय पैदल सैनिक थे। 
  • नवाब सिराजुद्दौला के पास 35000 पैदल सैनिक, 15000 घुडसवार, 53 तोपखाने थे जिसे चलाने के लिए 40 से 50 फ्रांसीसी थे। 
  • अंग्रेजों के कुल 52 सिपाही एवं 20 यूरोपयिन मारे गए जबकि नवाब की तरफ से 500 लोग मारे गए थे। 
  • अंग्रेजों की विजय का कारण उनकी चुस्ती एवं फुर्ती के साथ-साथ उनके द्वारा किए गए अनेक षड्यंत्र एवं धोखाधड़ी थी जिसके चलते उन्होंने शत्रु खेमे के अनेक लोगों को अपने साथ मिला लिया था। 
  • नवाब सिराजुद्दौला के सिर्फ दो सेनापति मीर-मदान तथा मोहनलाल ने ईमानदारी से युद्ध लड़ा जबकि तीन अन्य सेनापति मीर जाफर, यार-लुतुफ-खान तथा राय दुर्लभ जो कि अंग्रेजों के साथ षड्यंत्र में लिप्त थे

प्लासी के युद्ध का महत्त्व एवं परिणाम

  • अंग्रेजों का बंगाल एवं अंततः संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना आसान हो गया। 
  • अंग्रेजों की प्रतिष्ठा बढ़ी जिसके कारण वे भारतीय साम्राज्य के प्रबल प्रत्याशी बन गए। 
  • बंगाल के लोगों से कम्पनी एवं उसके सेवकों द्वारा अवैध धन वसूलने में मदद मिली। 
  • भारत में पूंजी का दोहन अर्थात अंग्रेजों द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण प्रारंभ हो गया।

 

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कर्नाटक का युद्ध (Carnatic Wars)

कर्नाटक का युद्ध (Carnatic Wars)

प्रथम कर्नाटक युद्ध (First Carnatic War) (1745 – 48) 

  • बरनेट की देख-रेख में 1745 ई० में अंग्रेजी नौसेना द्वारा फ्रांसीसी नौकाओं पर अधिकार कर लिया गया और बदले में 1746 ई० में डूप्ले द्वारा मद्रास पर कब्जा कर लिया गया। 
  • मद्रास पर अपने अधिकार के लिए एवं खुद अपने बचाव के लिए अंग्रजों द्वारा कर्नाटक के नवाब से अनुरोध करना पड़ा। 
  • फ्रांसीसियों द्वारा नवाब अनवरुद्दीन का आदेश अस्वीकृत करने के उपरांत दोनों सेनाओं के बीच सेंट थॉम में यद्ध हआ जिसमें नवाब की हार हुई। 
  • यूरोप में आस्ट्रीयन उत्तराधिकारियों के लिए युद्ध खत्म हो गए जिसके परिणामस्वरूप भारत में आंग्ल-फ्रांसीसी शत्रुता खत्म हो गई। 
  • 1748 ई० में फ्रांसीसियों द्वारा मद्रास अंग्रेजों को लौटा दिया गया।

द्वितीय कर्नाटक युद्ध (Second Carnatic War) (1749 – 54) 

  • हैदराबाद एवं कर्नाटक में मुजफ्फर जंग का कब्जा एवं चंदा साहिब को फ्रांसीसियों द्वारा सहयोग दिया गया। 
  • अंग्रेजों द्वारा (हैदराबाद में नासिर जंग एवं कर्नाटक में अनवरुद्दीन अपने दोनों विरोधियों के विरुद्ध सहयोग), उसके पुत्र मुहम्मद अली को सहयोग दिया गया। 
  • फ्रांसीसियों द्वारा दोनों राज्यों में 1749 ई० में अपने विरोधियों की हत्या कर अपने सहयोगियों को गद्दी पर बैठाने में सफलता मिली। 
  • 1751 ई० में क्लाइव के अधीन अंग्रेजों द्वारा आरकोट पर कब्जा कर लिया एवं अंग्रेजों द्वारा फ्रांसीसियों को हराया गया। 
  • 1752 ई० में तंजौर के जनरल जो कि अंग्रेजों का सहयोगी था, उसने युद्ध में चंदा साहिब की हत्या करके उसकी जगह मुहम्मद अली को कर्नाटक की गद्दी पर बैठाया। 
  • 1753-54 ई० में डूप्ले द्वारा दिशा बदलने का अनर्थक तो प्रयास किया गया जिससे फ्रांस की सरकार ने 1754 ई० प में उसे वापस बुला लिया। 
  • हैदराबाद पर बुसी द्वारा फ्रांसीसी स्थिति को पुनः प्राप्त किया गया। 

तृतीय कर्नाटक युद्ध (Third Carnatic War) (1758-63) 

युद्ध की शुरुआत हुई, 1757 ई० में क्लाइव एवं वाटसन ने बंगाल के चंद्रनागोर पर कब्जा कर लिया एवं 1758 ई० में काउंट डी लैली का फ्रांस की स्थिति मजबूत करने के लिए भारत आगमन हुआ।

  • पीकॉक के नेतृत्व में तीन नौसैनिक, लड़ाइयां
  • अंग्रेजी नौसेना द्वारा फ्रांसीसी नौसेना की डी एक के नेतृत्व वाली सेना की हार हुई एवं 1759 ई० में डी एक की फ्रांस वापसी हुई। 
  • 22 जनवरी 1760 ई० में वांडीवाश की लड़ाई में काउंट लैली ने अंग्रेज जरनल आयर कोटे को हराया। 
  • मार्च 1760 ई० में अंग्रेजों द्वारा निज़ाम के सरंक्षण के लिए फ्रांसीसियों का स्थान ले लिया गया, 1761 ई० में फ्रांसीसियों द्वारा पांडिचेरी अंग्रेजों को दिया गया एवं भारत के अन्य स्थानों पर फ्रांसीसियों की हार हुई। 
  • 1763 ई० में फ्रांसीसियों के साथ शांति प्रस्तावना प्रस्ताव स्थापित हुए।

 

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भारत में फ्रांसीसियों का आगमन (Arrival of the French in India)

भारत में फ्रांसीसियों का आगमन (Arrival of the French in India)

फ्रांसीसियों ने भारत में अन्य यूरोपीय कम्पनियों की तुलना में सबसे बाद में प्रवेश किया। भारत में पुर्तगाली, डच, अंग्रेज़ तथा डेन लोगों ने इनसे पहले अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना कर दी थी। 

  • सन् 1664 ई. में फ्रांस के सम्राट लुई 14वें के समय उनके मंत्री कोल्बर्ट के प्रयासों से फ्रांसीसी व्यापारिक कंपनी ‘कंपनी द इण्ड ओरिएण्टल’ (कम्पनी देस इण्डस ओरियंटोल्स) की स्थापना हुई। 
  • इस कम्पनी का निर्माण फ्रांस की सरकार द्वारा किया गया था, तथा इसका सारा खर्च भी सरकार ही वहन करती थी। 
  • सूरत में 1668 ई. में फ्रांसीसियों को प्रथम कोठी की स्थापना फ्रैंक कैरो द्वारा की गई। 
  • फ्रांसीसियों द्वारा दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना गोलकुंडा रियासत के सुलतान से अधिकार-पत्र प्राप्त करने के पश्चात् सन् 1669 ई. में मसुलीपट्टनम में की गई। 
  • ‘पांडिचेरी’ की नींव फ्रेंडोइस मार्टिन द्वारा सन् 1673 ई. में डाली गई। 
  • बंगाल के नवाब शाइस्ता खाँ ने फ्रांसीसियों को एक जगह किराये पर दी जहाँ चंद्रनगर की सुप्रसिद्ध कोठी की स्थापना की गई। 
  • डचों ने 1693 ई. में पांडिचेरी को फ्रांसीसियों के नियंत्रण से छीन लिया, किंतु 1697 ई. के रिजविक समझौते के अनुसार उसे वापस कर दिया। 
  • फ्रांसीसियों द्वारा 1721 ई. में मॉरिशस, 1725 ई. में माहे (मालाबार तट) एवं 1739 ई. में कराइकल पर अधिकार कर लिया गया। 
  • 1742 ई. के पश्चात् व्यापारिक लाभ कमाने के साथ-साथ फ्रांसीसियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ भी जागृत हो गई। परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों के बीच युद्ध छिड़ गया। इन युद्धों को ‘कर्नाटक युद्ध’ के नाम से जाना जाता है।
  • भारत में उस समय कर्नाटक का यह क्षेत्र कोरोमण्डल तट पर अवस्थित था। लगभग 20 वर्षों तक दोनों कंपनियों के मध्य संघर्ष चला जिसका विवरण निम्नवत् है
  • अंग्रेज़ तथा फ्रांसीसी व्यापारिक कंपनियों के मध्य संघर्ष (Wars between the British and the French Trade Companies)

प्रथम कर्नाटक युद्ध, 1746-1748 (First Carnatic War, 1746-1748)

  • प्रथम कर्नाटक युद्ध प्रारंभ होने का तात्कालिक कारण एक अंग्रेज़ अधिकारी कैप्टन बर्नेट द्वारा कुछ फ्रांसीसी जहाजों पर कब्जा कर लेना था। 
  • डूप्ले ने मॉरिशस के फ्रांसीसी गवर्नर ला बूर्दने की सहायता से मद्रास को घेर लिया। यद्यपि अंग्रेजी गवर्नर मोर्श ने 21 सितम्बर, 1746 ई. को आत्मसमर्पण कर दिया किन्तु डूप्ले का रणनीतिक लक्ष्य ‘फोर्ट सैन डेविस’ को जीतना था। लेकिन वह इसे जीत पाने में असफल रहा। भारत में फ्रांसीसियों के समक्ष अंग्रेज़ इस समय बिल्कुल असहाय थे। इसी समय ‘सेन्ट टोमे’ नामक एक और युद्ध फ्रांसीसी सेना और कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में फ्रांसीसी विजयी रहे। 
  • प्रथम कर्नाटक युद्ध का अंत 1748 ई. में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध की समाप्ति के पश्चात् हुई ‘ऑक्सा-ला-शैपेल’ की संधि से हुआ। इस संधि की शर्तों के अनुसार मद्रास अंग्रेज़ों को वापस कर दिया गया।

 

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अंग्रेज़ों का भारत आगमन (Arrival of the British in India)

अंग्रेज़ों का भारत आगमन (Arrival of the British in India)

1599 ई. में कुछ अंग्रेज़ व्यापारियों द्वारा पूर्वी देशों से व्यापार करने के उद्देश्य से ‘गवर्नर ऑफ कंपनी एण्ड मर्चेन्ट ऑफ लंदन ट्रेडिंग टू द ईस्ट इंडीज’ (Governor of Company of Merchants of London Trading to the East Indies) नामक कंपनी की स्थापना की गई। 

  • इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 31 दिसम्बर, 1600 ई. को एक रॉयल चार्टर जारी कर इस कंपनी को 15 वर्ष के लिए पूर्वी देशों से व्यापार करने का एकाधिकार पत्र दे दिया। उस समय ईस्ट इंडिया कम्पनी में कुल 217 साझीदार थे।
  • 1608 ई. में ब्रिटेन के सम्राट जेम्स प्रथम ने भारत में व्यापारिक कोठियों को खोलने के उद्देश्य से कैप्टन हॉकिन्स को अपने राजदूत के रूप में मुगल सम्राट जहाँगीर के दरबार में भेजा। हॉकिन्स ने मुगल सम्राट जहाँगीर से फारसी में बात की।
  • हॉकिन्स वह प्रथम अंग्रेज़ था जिसने भारत की भूमि में प्रवेश समुद्र के रास्ते किया था।
  • हॉकिन्स ने सन् 1609 ई. में मुगल बादशाह जहाँगीर से अजमेर में मिलकर सूरत में बसने की आज्ञा माँगी
  • सूरत के स्थानीय व्यापारियों एवं पुर्तगालियों द्वारा इसका विरोध किया गया। परिणामस्वरूप उसे स्वीकृति नहीं मिली।
  • 1611 ई. में मुगल बादशाह जहाँगीर अंग्रेज़ कैप्टन मिडल्टन के द्वारा स्वाल्ली में पुर्तगालियों के जहाजी बेड़े को पराजित किए जाने से अत्यधिक प्रभावित हुआ।
  • जहाँगीर ने 1613 ई. में सूरत में अंग्रेजों को स्थाई कारखाना स्थापित करने की अनुमति प्रदान की।
  • जहाँगीर के दरबार में सन् 1615 ई. में सम्राट जेम्स प्रथम का दूत सर टॉमस रो पहुँचा जिसने मुगल साम्राज्य के सभी भागों में व्यापार करने एवं फैक्ट्रियाँ स्थापित करने का अधिकार पत्र (शाही फरमान) प्राप्त कर लिया। परिणामस्वरूप, अंग्रेजों ने आगरा, अहमदाबाद तथा भरुच में अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना की।
  • सन् 1611 ई. में अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक कोठी की स्थापना मसुलीपट्टनम में की गई।
  • 1639 ई. में मद्रास तथा 1651 ई. में हुगली में व्यापारिक कोठियाँ खोली गई।
  • पूर्वी भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित प्रथम कारखाना 1633 ई. में उड़ीसा के बालासोर में खोला गया। इसके पश्चात् अंग्रेजों ने बंगाल तथा बिहार में भी अपने कारखाने खोले।
  • 1661 ई. में इंग्लैण्ड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन से हुआ। इस विवाह में बंबई को दहेज के रूप में चार्ल्स को भेंट कर दिया गया, जिसे उन्होंने दस पाउंड के वार्षिक किराये पर कंपनी को दे दिया।
  • अंग्रेज़ों ने 1639 ई. में मद्रास में जमीन को पट्टे पर लेकर कारखाने की स्थापना की, इसके साथ ही कारखाने की किलेबंदी भी की गई। इसे ‘फोर्ट सेंट जॉर्ज’ का नाम दिया गया।
  • 1686 ई. में अंग्रेजों ने हुगली को लूट लिया, परिणामस्वरूप उनका मुगल सेनाओं से संघर्ष हुआ। इस युद्ध के बाद कंपनी को सूरत, मसुलीपट्टनम तथा विशाखापट्टनम इत्यादि कारखानों से अपने अधिकार खोने पड़े। किंतु, अंग्रेजों द्वारा माफी मांगने के पश्चात् औरंगजेब ने डेढ़ लाख रुपये का हर्जाना लेकर उन्हें पुन: व्यापार करने का अधिकार प्रदान कर दिया।
  • 1691 ई. में जारी एक शाही फरमान के द्वारा 3000 रुपये के निश्चित वार्षिक कर के बदले बंगाल में कंपनी को सीमा-शुल्क से छूट दे दी गई।
  • कंपनी ने 1698 ई. में 12000 रुपये का भगतान कर तीन गाँवों- सुतानती, कालीकाता एवं गोविन्दपुर को जमींदारी प्राप्त कर ली तथा फोर्ट विलियम नामक किले का निर्माण किया। कालांतर में जॉब चॉरनाक के प्रयासों से इसी स्थान पर कलकत्ता नगर की नींव पड़ी।

1717 ई. में मुगल सम्राट फर्रुखसियर का सफल इलाज कंपनी के एक डॉक्टर विलियम हेमिल्टन द्वारा किये जाने से फर्रुखसियर ने कंपनी को व्यापारिक सुविधाओं वाला एक फरमान जारी किया। इस फरमान के अंतर्गत कंपनी को बंगाल में 3000 रुपये वार्षिक के बदले व्यापार करने, आसपास की भूमि किराए पर लेने, सूरत में 10000 रुपये वार्षिक के बदले निःशुल्क व्यापार करने तथा बंबई की टकसाल से जारी सिक्कों को मुगल साम्राज्य में मान्यता दिलाने संबंधी अधिकार प्राप्त हो गए। इतिहासकार ओर्स ने इस फरमान को कंपनी का ‘महाधिकार पत्र’ (मैग्नाकार्टा) कहा है।

 

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भारत में डचों का आगमन (Arrival of the Dutch in India)

भारत में डचों का आगमन (Arrival of the Dutch in India)

पुर्तगालियों के पश्चात् डच (Dutch) भारत आये। ये नीदरलैण्ड या हॉलैण्ड के निवासी थे। डचों की नीयत दक्षिण-पूर्व एशिया के मसाला बाज़ारों में सीधा प्रवेश कर नियंत्रण स्थापित करने की थी। 

  • 1596 ई. में कारनेलिस डि हाउटमैन (Cornelis de Houtman) भारत आने वाला प्रथम डच नागरिक था। 
  • डचों ने सन् 1602 ई. में एक विशाल व्यापारिक कम्पनी की स्थापना ‘यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैण्ड’ के नाम से की। 
  • इसका गठन विभिन्न व्यापारिक कम्पनियों को मिलाकर किया गया था। इसका वास्तविक नाम ‘वेरिंगदे ओस्टइण्डिशे कंपनी’ (Verenigde Oostindische Compagnie – VOC) था।
  • डचों ने गुजरात, बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में अपनी व्यापारिक कोठियों को स्थापना की। 
  • भारत में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना मसुलीपट्टनम् में सन् 1605 ई. में हुई। 
  • डचों द्वारा स्थापित अन्य महत्वपूर्ण फैक्ट्रियाँ पुलिकट (1610), सूरत (1616), चिन्सुरा, विमलीपट्टनम्, कासिम बाजार, पटना, बालासोर, नागपट्टनम तथा कोचीन में अवस्थित थीं। 
  • बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना पीपली में सन् 1627 ई. में की गई। 
  • भारत से डच व्यापारियों ने मुख्यतः मसालों, नील, कच्चे रेशम, शीशा, चावल व अफीम का व्यापार किया। 
  • डचों द्वारा मसालों के निर्यात के स्थान पर कपड़ों को प्राथमिकता दी गई। ये कपड़े कोरोमंडल तट (बंगाल) एवं गुजरात से निर्यात किए जाते थे। 
  • भारत को भारतीय वस्त्रों के निर्यात का केन्द्र बनाने का श्रेय डचों को जाता है।
  • 1759 ई. में ‘बेदरा के युद्ध’ (बंगाल) में अंग्रेजों द्वारा हुई पराजय के उपरांत भारत में अंतिम रूप से डचों का पतन हो गया। 
  • ‘बेदरा के युद्ध’ में अंग्रेज़ी सेना का नेतृत्व क्लाइव द्वारा किया गया। 
  • डचों की व्यापारिक व्यवस्था का उल्लेख 1722 ई. के दस्तावेजों में मिलता है। यह कार्टेल (Cartel) अर्थात् सहकारिता पर आधारित व्यवस्था थी।

डच कम्पनी ने लगभग 200 वर्षों तक अपने साझेदारों को जितना लाभांश दिया (18%), वह वाणिज्य के इतिहास में एक रिकॉर्ड माना जाता है।

 

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पुर्तगालियों का भारत आगमन (Arrival of Portuguese in India)

पुर्तगालियों का भारत आगमन (Arrival of Portuguese in India)

  • युरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली (Portuguese) कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया। भारत के लिए नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँचकर की। 
  • वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन (यह कालीकट के शासक की उपाधि थी) द्वारा किया गया। 
  • पुर्तगालियों के भारत आगमन से भारत एवं यूरोप के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। 
  • भारत आने और जाने में हुए यात्रा-व्यय के बदले में वास्कोडिगामा ने करीब 60 गुना अधिक धन कमाया। 
  • भारत में कालीकट, गोवा, दमन, दीव एवं हुगली के बंदरगाहों में पुर्तगालियों ने अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना की। 
  • भारत में द्वितीय पुर्तगाली अभियान पेड्रो अल्वरेज कैब्राल के नेतृत्व में सन् 1500 ई. में छेड़ा गया। 
  • कैब्राल ने कालीकट बंदरगाह में एक अरबो जहाज को पकड़कर जमोरिन को उपहारस्वरूप भेंट किया। 
  • 1502 ई. में वास्कोडिगामा का पुनः भारत आगमन हुआ। 
  • भारत में प्रथम पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना 1503 ई. में कोचीन में की गई तथा द्वितीय फैक्ट्री की स्थापना 1505 ई. में कन्नूर में की गई।
  • पुर्तगाल से प्रथम वायसराय के रूप में फ्रांसिस्को द अल्मेडा का भारत आगमन सन् 1505 ई. में हुआ। 
  • फ्रांसिस्को द अल्मेडा 1509 ई. तक भारत में रहा। उसे पुर्तगाली सरकार की ओर से यह निर्देश दिया गया था कि वह भारत में ऐसे दुर्गों का निर्माण करे जिनका उद्देश्य सिर्फ सुरक्षा न होकर हिंद महासागर के व्यापार पर पुर्तगाली नियंत्रण स्थापित करना भी हो। 
  • उसके द्वारा अपनाई गई यह नीति ‘नोले या शांत जल की नीति’ कहलाई। 
  • 1508 ई. में अल्मेडा संयुक्त मुस्लिम नौसैनिक बेड़े (मिश्र + तुर्की + गुजरात) के साथ चौल के युद्ध (War of Chaul, 1508) में पराजित हुआ। 
  • सन् 1509 ई. में भारत में अगले पुर्तगाली वायसराय के रूप में अल्फांसो द अल्बुकर्क का आगमन हुआ। 
  • अल्फांसो द अल्बुकर्क को भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसने कोचीन को अपना मुख्यालय बनाया। 
  • अल्बुकर्क ने 1510 ई. में गोवा को बीजापुर के शासक युसुफ आदिलशाह से छीनकर अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया। 
  • अल्बुकर्क ने 1511 ई. में दक्षिण-पूर्व एशिया की महत्वपूर्ण मंडी मलक्का तथा 1515 ई. में फारस की खाड़ी में अवस्थित होरमुज पर अधिकार कर लिया। 
  • अल्बुकर्क ने पुर्तगाली पुरुषों को पुर्तगालियों की आबादी बढ़ाने के उद्देश्य से भारतीय स्त्रियों से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया तथा पुर्तगाली सत्ता एवं संस्कृति के महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में गोवा को स्थापित किया। 
  • नीनो-डी-कुन्हा अगला प्रमुख पुर्तगाली गवर्नर था। इसका प्रमुख कार्य गोवा को पुर्तगालियों की औपचारिक राजधानी (1530 ई.) के रूप में परिवर्तित करना था। 
  • 1530 ई. में कुन्हा ने सरकारी कार्यालय कोचीन से गोवा स्थानान्तरित कर दिया। 
  • कुन्हा ने हुगली (बंगाल) और सेन्थोमा (मद्रास के निकट) में पुर्तगाली बस्तियों को स्थापित किया एवं 1534 ई. में बेसीन तथा 1535 ई. में दीव पर अधिकार कर लिया। 
  • पश्चिम भारत के बंबई, चौल, दीव, सालसेट एवं बेसीन नामक क्षेत्र पर पुर्तगाली वायसराय जोवा-डी-कैस्ट्रो द्वारा नियंत्रण स्थापित किया गया। 
  • भारत में प्रथम पादरी फ्रांसिस्को जेवियर का आगमन अन्य पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसुजा (1542-1545 ई.) के समय हुआ।
  • पुर्तगाली एशियाई देशों से व्यापार के लिए भारत में अवस्थित नागपट्टनम बंदरगाह का प्रयोग करते थे। 
  • पुर्तगाली कोरोमण्डल तट के मसूलीपट्टनम और पुलिकट शहरों से वस्त्रों को एकत्रित कर उनका निर्यात करते थे। 
  • पुर्तगाली चटगाँव (बंगाल) के बंदरगाह को ‘महान बंदरगाह’ की संज्ञा देते थे।
  • पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर से होने वाले आयात-निर्यात पर एकाधिकार स्थापित कर लिया था। उन्होंने यहाँ कॉर्ज-आर्मेडा काफिला पद्धति (Cortes-Armada Caravan System) का प्रयोग किया जिसके अंतर्गत हिन्द महासागर का प्रयोग करने वाले प्रत्येक जहाज को शुल्क अदा करना होता था। 
  • पुर्तगालियों ने बिना परमिट (या कॉर्ट्ज) के भारतीय एवं अरबी जहाजों को अरब सागर में प्रवेश करने से वर्जित कर दिया। 
  • पुर्तगालियों ने शुल्क लेकर छोटे स्थानीय व्यापारियों के जहाजों को संरक्षण प्रदान किया। 
  • जिन जहाजों को परमिट प्राप्त होता था उन्हें गोला बारूद और काली मिर्च का व्यापार करने की अनुमति नहीं थी। 
  • मुगल सम्राट अकबर को भी पुर्तगालियों से कॉर्ट्ज (परमिट) लेना पड़ा। 
  • मुगल शासक अकबर के दरबार में दो पुर्तगाली ईसाई पादरियों मॉन्सरेट तथा फादर एकाबिवा का आगमन हुआ। 
  • शाहजहाँ ने 1632 ई. में हुगली को पुर्तगालियों के अधिकार क्षेत्र से छीन लिया। 
  • औरंगजेब ने सन् 1686 ई. में चटगाँव से समुद्री लुटेरों का सफाया कर दिया।
  • भारत में तंबाकू की खेती, जहाज निर्माण (कालीकट एवं गुजरात) तथा प्रिटिंग प्रेस की शुरुआत पुर्तगालियों के आगमन के पश्चात हई। 
  • पुर्तगालियों ने ही सन् 1556 ई. में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की। 
  • भारत में गोथिक स्थापत्य कला (Gothic Architecture) पुर्तगालियों की ही देन है।

18वीं सदी की शुरुआत तक भारतीय व्यापार के क्षेत्र में पुर्तगालियों का प्रभाव कम हो गया था। 

पुर्तगालियों से सम्बंधित प्रमुख व्यक्ति 

  • वास्कोडिगामा – भारत आने वाला प्रथम यूरोपीय (पुर्तगाली) यात्री
  • पेड्रो अल्वरेज कैब्राल – भारत आने वाला द्वितीय पुर्तगाली यात्री
  • फ्रांसिस्को डी अल्मेड़ा – भारत का प्रथम पुर्तगाली वायसराय
  • अल्फांसो द अल्बुकर्क – भारत का दूसरा पुर्तगाली वायसराय
    • भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक
  • नीनो-डी-कुन्हा – भारत का तीसरा पुर्तगाली वायसराय
  • फ्रांसिस्को जेवियर – भारत में प्रथम पादरी

पुर्तगालियों से सम्बंधित प्रमुख तिथियाँ

  • 17 मई, 1498 – पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा का भारत आगमन 
  • 1500 – भारत में द्वितीय पुर्तगाली अभियान
  • 1502 ई. में वास्कोडिगामा का पुनः भारत आगमन हुआ। 
  • 1503 – प्रथम पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना (कोचीन)
  • 1505 – द्वितीय फैक्ट्री की स्थापना (कन्नूर)
  • 1508 – चौल का युद्ध (War of Chaul, 1508)
  • 1510 – गोवा में पुर्तगालियों का अधिकार
  • 1511 –  मंडी मलक्का में पुर्तगालियों का अधिकार
  • 1515 – फारस की खाड़ी में पुर्तगालियों का अधिकार
  • 1530 – गोवा को पुर्तगालियों की औपचारिक राजधानी बनाया गया 
  • 1534 – हुगली (बंगाल) और सेन्थोमा (मद्रास के निकट) में पुर्तगाली बस्तियों स्थापित
  • 1535 – बेसीन तथा दीव पर पुर्तगालियों का अधिकार
  • 1632 – शाहजहाँ द्वारा हुगली को पुर्तगालियों के अधिकार क्षेत्र से छीन लिया। 
  • 1686 – औरंगजेब द्वारा चटगाँव से समुद्री लुटेरों का सफाया 
  • 1556 – पुर्तगालियों ने ही सन् ई. में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना
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