भारत में डचों का आगमन (Arrival of the Dutch in India)
पुर्तगालियों के पश्चात् डच (Dutch) भारत आये। ये नीदरलैण्ड या हॉलैण्ड के निवासी थे। डचों की नीयत दक्षिण-पूर्व एशिया के मसाला बाज़ारों में सीधा प्रवेश कर नियंत्रण स्थापित करने की थी।
- 1596 ई. में कारनेलिस डि हाउटमैन (Cornelis de Houtman) भारत आने वाला प्रथम डच नागरिक था।
- डचों ने सन् 1602 ई. में एक विशाल व्यापारिक कम्पनी की स्थापना ‘यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैण्ड’ के नाम से की।
- इसका गठन विभिन्न व्यापारिक कम्पनियों को मिलाकर किया गया था। इसका वास्तविक नाम ‘वेरिंगदे ओस्टइण्डिशे कंपनी’ (Verenigde Oostindische Compagnie – VOC) था।
- डचों ने गुजरात, बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में अपनी व्यापारिक कोठियों को स्थापना की।
- भारत में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना मसुलीपट्टनम् में सन् 1605 ई. में हुई।
- डचों द्वारा स्थापित अन्य महत्वपूर्ण फैक्ट्रियाँ पुलिकट (1610), सूरत (1616), चिन्सुरा, विमलीपट्टनम्, कासिम बाजार, पटना, बालासोर, नागपट्टनम तथा कोचीन में अवस्थित थीं।
- बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना पीपली में सन् 1627 ई. में की गई।
- भारत से डच व्यापारियों ने मुख्यतः मसालों, नील, कच्चे रेशम, शीशा, चावल व अफीम का व्यापार किया।
- डचों द्वारा मसालों के निर्यात के स्थान पर कपड़ों को प्राथमिकता दी गई। ये कपड़े कोरोमंडल तट (बंगाल) एवं गुजरात से निर्यात किए जाते थे।
- भारत को भारतीय वस्त्रों के निर्यात का केन्द्र बनाने का श्रेय डचों को जाता है।
- 1759 ई. में ‘बेदरा के युद्ध’ (बंगाल) में अंग्रेजों द्वारा हुई पराजय के उपरांत भारत में अंतिम रूप से डचों का पतन हो गया।
- ‘बेदरा के युद्ध’ में अंग्रेज़ी सेना का नेतृत्व क्लाइव द्वारा किया गया।
- डचों की व्यापारिक व्यवस्था का उल्लेख 1722 ई. के दस्तावेजों में मिलता है। यह कार्टेल (Cartel) अर्थात् सहकारिता पर आधारित व्यवस्था थी।
डच कम्पनी ने लगभग 200 वर्षों तक अपने साझेदारों को जितना लाभांश दिया (18%), वह वाणिज्य के इतिहास में एक रिकॉर्ड माना जाता है।
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