Administrative development of Uttarakhand

ब्रिटिश काल में उत्तराखण्ड का प्रशासनिक विकास

उत्तराखण्ड राज्य को गोरखों से हस्तगत करने के पश्चात् अंग्रेजों ने अपनी पूर्व नियोजित योजना के तहत इस विजित क्षेत्र का विभाजन दो भागों में कर दिया।

  • अलकनन्दा नदी से पश्चिम के भाग पर गढ़ नरेश के वंशज सुदर्शनशाह को पुनः स्थापित किया जिसे ‘टिहरी रियासत’ के नाम से जाना जाता है।
  • जबकि अलकनन्दा के पूर्व का गढ़वाल क्षेत्र एवं सम्पूर्ण कुमाऊँ क्षेत्र को सीधे ब्रिटिश नियंत्रण में लाया गया।

1839 में विभाजित होने से पूर्व इस सम्पूर्ण क्षेत्र को ब्रिटिश कुमाऊँ गढ़वाल के नाम से जाना जाता था। उत्तराखण्ड राज्य की वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्थाएँ कहीं न कहीं इस काल में हुए प्रशासनिक प्रयोगों एवं परिवर्तनों का ही प्रतिफल है। सामान्यतः इस राज्य का प्रशासनिक विकास दो चरणों में हुआ। प्रथमतः गैर विनियमित क्षेत्र के रूप में एवं 1816 ई. के उपरान्त विनियमित क्षेत्र के रूप में इसके प्रशासनिक ढाँचे का संगठन किया गया। 1815 से 1861 ई0 के मध्य इस क्षेत्र को क्रमशः कुमाऊँ कमिश्नर तथा उत्तर पश्चिमी प्रान्त के लै0 गर्वनर के आदेशों से प्रशासित किया गया।

वर्तमान उत्तराखण्ड की प्रशासनिक व्यवस्थाएँ इस युग की ही देन है। पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण गैर विनियमित क्षेत्र के रूप में प्रयोग का यहाँ स्थायी प्रभाव पड़ा। उत्तराखण्ड राज्य की राजस्व पुलिस व्यवस्था इस युग की विशिष्ट देन है। वर्तमान में भी उत्तराखण्ड भारत वर्ष का एकमात्र राज्य जो पटवारी व्यवस्था द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों को संचालित करता है। मुख्यतः इस प्रदेश के प्रशासनिक ढांचे का विकास प्रारम्भिक कमिश्नरों के निजी प्रयासों का प्रतिफल अधिक लगता है। इस कारण हमने उत्तराखण्ड के प्रशासनिक विकास का वर्णन निम्नॉकित तीन शीर्षकों के अधीन किया है –

  1. गार्डनर एवं ट्रेल के सुधार
  2. लुशिगटन व बैटन के सुधार
  3. रामजे के सुधार

 

ब्रिटिश कालीन उत्तराखंड

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