141. सिविल प्रक्रिया संहिता के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य नहीं है ?
(1) सन् 1859 से पहले कोई समान सिविल प्रक्रिया संहिता नहीं थी।
(2) सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 दिनांक 01 जनवरी, 1909 को लागू हुई ।
(3) सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का पूर्वव्यापी प्रभाव है।
(4) सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की पहली अनुसूची में 51 आदेश हैं।
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142. निम्नलिखित में से कौन भारतीय न्यायालय में वाद संस्थित नहीं कर सकता ?
(1) भारतीय नागरिक
(2) अन्य देशीय मित्र
(3) अन्य देशीय शत्रु जो केन्द्रीय सरकार की बिना अनुज्ञा भारत में निवास कर रहा हो ।
(4) विदेशी राज्य
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143. जहाँ कोई वाद सम्यक् रूप से संस्थित किया जा चुका है, वहाँ उपसंजात होने और दावे का उत्तर देने के लिए समन प्रतिवादी के नाम निकाला जा सकेगा और उसकी तामील, ऐसे दिन को जो वाद के संस्थापन की तारीख से ______ से बाद का ना हो, की जा सकेगी।
(1) तीस दिन
(2) साठ दिन
(3) दस दिन
(4) बीस दिन
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144. न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके नाम सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 30 के अधीन समन निकाला गया है, को हाजिर होने के लिए विवश करने बाबत निम्न में से कौन सी शास्ति अधिरोपित नहीं कर सकता ?
(1) उसकी गिरफ्तारी के लिए वारण्ट निकालना ।
(2) उसकी सम्पत्ति को कर्क एवं विक्रय करना ।
(3) उसके ऊपर पाँच हजार रुपये से अधिक जुर्माना अधिरोपित करना ।
(4) उसकी उपसंजाति के लिए प्रतिभूति का आदेश देना।
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145. निम्नलिखित में से किस आधार पर वाद विफल हो सकता है ?
(1) आवश्यक पक्षकारों के कुसंयोजन पर
(2) उचित पक्षकारों के कुसंयोजन पर
(3) उचित पक्षकारों के असंयोजन पर
(4) आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन पर
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146. कथन : एक अवयस्क किसी मृत व्यक्ति का विधिक प्रतिनिधि हो सकता है।
व्याख्या : लेकिन किसी विधिक प्रक्रिया में अवयस्क का प्रतिनिधित्व वाद-मित्र या संरक्षक द्वारा किया जाना चाहिए ।
(1) कथन सत्य है, लेकिन व्याख्या असत्य है ।
(2) कथन असत्य है, लेकिन व्याख्या सत्य है ।
(3) कथन एवं व्याख्या दोनों असत्य हैं ।
(4) कथन एवं व्याख्या दोनों सत्य हैं ।
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147. प्रतिवादी द्वारा किये जाने वाले मुजरा के संबंध में निम्न में से कौन सा कथन सत्य नहीं है ?
(1) वाद धन की वसूली के लिए होना चाहिए ।
(2) धन की राशि अभिनिश्चित होनी चाहिए ।
(3) धनराशि न्यायालय की अधिकारिता की धन संबंधी सीमाओं से अनधिक होनी चाहिए ।
(4) अगर एक से ज्यादा प्रतिवादी हों, तो धनराशि किसी भी प्रतिवादी द्वारा वसूल करने योग्य होनी चाहिए।
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148. जहाँ वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर दोनों में से कोई भी पक्षकार उपसंजात नहीं होता है, तो वहाँ न्यायालय यह आदेश दे सकेगा कि
(1) वादी के पक्ष में डिक्री पारित की जाए ।
(2) वाद खारिज कर दिया जाए ।
(3) वाद-पत्र नामंजूर कर दिया जाए।
(4) वाद-पत्र लौटा दिया जाए।
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149. जहाँ वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर वादी उपसंजात हो जाता है और प्रतिवादी उपसंजात नहीं होता है और यह साबित नहीं होता है कि समन की तामील सम्यक् रूप से की गई थी, तब न्यायालय
(1) वाद की एक पक्षीय सुनवाई करेगा।
(2) वाद खारिज कर देगा।
(3) आदेश देगा कि दूसरा समन निकाला जाए और उसकी तामील प्रतिवादी पर की जाए।
(4) प्रतिवादी की गिरफ्तारी के लिए वारण्ट निकालेगा।
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150. जब लागू होने योग्य हो तब _______ के प्ररूप और जहाँ वे लागू होने योग्य न हो, वहाँ जहाँ तक हो सके, लगभग वैसे ही प्ररूप सभी अभिवचनों ‘ के लिए प्रयुक्त किये जाएँगे।
(1) परिशिष्ट ‘क’
(2) परिशिष्ट ‘ख’
(3) परिशिष्ट ‘ग’
(4) परिशिष्ट ‘घ’
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