Education System of Mahajanapad

महाजनपद की शिक्षा व्यवस्था (Education System of Mahajanapad)

अवन्ति जनपद प्राचीन काल से ही शिक्षा का केन्द्र रहा है। यहाँ के सान्दीपनि आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम शिक्षा ग्रहण करने आये थे। उल्लेखनीय है कि गुरू सान्दीपनि ने चौसठ दिन में चौसठ कलाओं की शिक्षा दी थी। इसकी विस्तृत जानकारी महाभारत, पुराण तथा अन्य काव्य ग्रन्थों से स्पष्ट होती है। अतएवं उन्होंने अल्प समय में ही सम्पूर्ण शिक्षा ग्रहण कर ली थी। यह युग एक धार्मिक क्रांति का युग था। धर्म और शिक्षा का घनिष्ठ सम्बन्ध माना गया है। इसलिए धार्मिक उपदेशों की व्याख्या से सम्बन्धित शिक्षा ही आचार्य अपने शिष्यों को देते थे।

शिक्षा व्यवस्था गुरूकुलों या ऋषियों के आश्रम में थी। चारों वेद, वेदांग, धर्मशास्त्र, न्याय, नीति, अर्थशास्त्र, ज्योतिष-नक्षत्र, कला आदि शिक्षा की विशेष व्यवस्था थी। उपयुक्त समस्त विषयों में निष्णात् व्यक्ति न्यायाधीश आदि उच्चकोटि के पदों पर प्रतिष्ठित किया जाता था। लेकिन यह शिक्षा व्यवस्था उच्चवर्गों के छात्रों के लिए ही सुलभ थी। महाकात्यायन सम्पूर्ण वेद-वेदांगों एवं शास्त्रों में निष्णात थे। ब्राह्मण महागोविन्द भी समस्त शास्त्रों में प्रवीण था। इसी कारण उसने मंत्रिपद प्राप्त किया था। प्रद्योत द्वारा यन्त्रमय गज का निर्माण तत्कालीन तकनीकी शिक्षा की ओर संकेत करता है। बौद्ध धर्म प्रसार के कारण अवन्ति में बौद्ध धर्म की शिक्षा के केन्द्र बौद्ध-विहार एवं मठ हो गये थे। उनमें धर्म के विशिष्ट अंगों का पृथक-पृथक अध्ययन-अध्यापन किया जाता था। पृथक अध्ययन करने वालों की श्रेणियाँ भी थी। शिक्षा मठों में दी जाती थी। शिष्यों को ब्रह्मचर्य का पालन कठोरता से करवाया जाता था। बौद्ध विहारों में प्रवेश के नियम कठोर थे। 

आचार्य और उपाध्याय ये दो श्रेणियाँ अध्यापक की होती थी। इनकी अनुमति के बिना भिक्षु, विहार, गाँव, देशाटन भ्रमण आदि के लिए नहीं जा सकता था। मौखिक शिक्षा दी जाती थी। भिक्षुओं की शिक्षा पूरी हो जाने पर परीक्षा होती थी। भिक्षु उदरपोषण के लिए भिक्षा मांगने गाँव जाते थे। शिक्षा शुल्क नहीं लिया जाता था। 

बौद्ध मठों एवं विहारों में सभी वर्गों के छात्रों को प्रवेश मिल जाता था। उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता था। इस कारण अवन्ति जनपद मौर्यकाल में बौद्ध शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया था।

जैनधर्म भी इस समय प्रभावशाली था। इससे सम्बन्धित शिक्षा जैन मुनि समय-समय पर आकर देते थे। जैनमुनि अकम्पन ने यहाँ के लोगों को जैन धर्म की शिक्षा दी थी। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के सिद्धान्त प्रायः मिलते हैं। जैनों की शिक्षा-स्थली उनके आराधना स्थल या प्रवचन स्थल थे। जैनसूत्रों में तीन प्रकार के आचार्यों का उल्लेख है – कलाचार्य, शिल्पाचार्य और धर्माचार्य ।

अवन्ति भाषा यहाँ की बोलचाल की भाषा थी। उज्जयिनी के वीरक और चन्दनक अवन्ति भाषा में ही बात करते थे। चित्त-सम्भूत चाण्डाल भाषा में बात करते हुए पकड़े गये थे। अत: स्पष्ट है कि छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में उज्जयिनी एक प्रसिद्ध शिक्षा का केन्द्र थी।

 

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