Daily Indian Express Editorial - Why Digitisation is Not Enough to Reform Land Laws

भूमि कानूनों के सुधार के लिए डिजिटलीकरण पर्याप्त क्यों नहीं है?

यह लेख “Indian Express” में प्रकाशित “Why digitisation is not enough to reform land laws” पर आधारित है, इस लेख में बताया गया है की भारत की भूमि शासन प्रणाली एक जटिल ढांचा है, जिसे सुधारने की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है। 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण में भूमि से संबंधित समस्याओं को उजागर किया गया है, जिनमें अस्पष्ट भूमि अधिकार, असुरक्षित स्वामित्व, और आर्थिक दृष्टिकोण से उपयोगी भूमि की सीमित पहुंच प्रमुख बाधाएं हैं। ये समस्याएँ कई विकासात्मक लक्ष्यों में बाधक हैं, जिनमें ग्रामीण घरों की आय बढ़ाना, निजी और सार्वजनिक निवेश द्वारा रोजगार सृजन, जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढांचे का विकास, और भूमि स्वामित्व में लैंगिक असमानताओं को दूर करना शामिल है। इन मुद्दों को सुधारने के लिए 2024 के बजट में भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण और तकनीकी समाधानों का प्रस्ताव रखा गया है। हालांकि, यह केवल समस्या का एक हिस्सा हल करता है, जबकि मुख्य समस्या भूमि कानूनों की जटिलता और विवादास्पद प्रावधानों में निहित है।

भूमि स्वामित्व और विवाद

भारत में भूमि स्वामित्व के अधिकार और इसका उपयोग विवादास्पद बना हुआ है। असुरक्षित भूमि स्वामित्व और खराब गुणवत्ता वाले भूमि रिकॉर्ड भारत की भूमि समस्याओं की जड़ में हैं। भूमि रिकॉर्ड डिजिटलीकरण या अद्यतनीकरण के बावजूद, ये रिकॉर्ड तब तक सटीक और प्रभावी नहीं हो सकते जब तक कि भूमि कानूनों और विनियमों की जटिलता को हल नहीं किया जाता। वर्तमान भूमि कानूनों में कई प्रकार के भेदभाव और नियम होते हैं, जो भूमि स्वामित्व को अस्थिर बनाते हैं। इसके अलावा, संविधान में भूमि स्वामित्व को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं देने के कारण, भूमि कानून और प्रशासनिक प्रक्रियाएं मनमानी और राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए खुली रहती हैं। नतीजतन, भूमि के मूल्य और उपयोग में अनिश्चितता रहती है, और इसके कारण भूमि का सही उपयोग नहीं हो पाता है।

भूमि हस्तांतरण और उपयोग में चुनौतियाँ

भारत में कई कानून ऐसे हैं जो भूमि के हस्तांतरण और उपयोग को प्रतिबंधित करते हैं। कुछ राज्यों में कृषि भूमि को लीज पर देना प्रतिबंधित है, और जहां यह प्रतिबंधित नहीं है, वहां भी भूमि पर पूर्ण या आंशिक अधिग्रहण का जोखिम बना रहता है। इससे भूमि बाजार कमजोर हो गए हैं, और अनौपचारिक लेन-देन का चलन बढ़ गया है। इसके अलावा, भूमि का खंडन और छोटा-छोटा बंटवारा, जो भारत के कृषि उत्पादन और निवेश में एक बड़ी बाधा है, डिजिटलीकरण से हल नहीं हो सकता। इसके लिए कानूनी सुधारों की आवश्यकता है, ताकि भूमि का समेकन और बेहतर उपयोग संभव हो सके।

कानूनी जटिलताएँ और प्रशासनिक चुनौतियाँ

भारत में भूमि संबंधी कानून इतने जटिल और विविध हैं कि इनका पालन और कार्यान्वयन करना बहुत कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, गुजरात राज्य के भूमि सीलिंग कानूनों में 40 से अधिक प्रकार की भूमि की गुणवत्ता और घरेलू विशेषताओं का उल्लेख है, जो विभिन्न स्तरों पर सीलिंग के लिए अलग-अलग नियमों का पालन करते हैं। इस तरह की जटिलताएँ भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हैं और कानूनों के सही कार्यान्वयन में बाधा डालती हैं। आधुनिक तकनीकी समाधान जैसे कि भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण और अद्यतन, जब तक इन्हें सरल और पारदर्शी कानूनी ढांचे के साथ नहीं जोड़ा जाता, तब तक ये प्रभावी साबित नहीं हो सकते।

डिजिटलीकरण के सीमित लाभ

हालांकि भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह भारत के भूमि संबंधी गहरे कानूनी और संस्थागत मुद्दों को हल करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कृषि स्टैक जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों के साथ भूमि रिकॉर्ड का एकीकरण महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह उन समस्याओं का समाधान नहीं करता है, जिनका सामना भूमि अधिकार और उपयोग कानूनों के तहत किया जाता है। उदाहरण के लिए, उर्वरक सब्सिडी के लिए पॉइंट ऑफ सेल (POS) डिवाइसों को भूमि रिकॉर्ड डेटा के साथ एकीकृत नहीं किया गया है, जिससे सही लक्ष्यीकरण नहीं हो पाता है।

भूमि बैंक और परियोजनाएँ

नवीकरणीय ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, और औद्योगिक परियोजनाओं के लिए भूमि बैंकों की स्थापना का उद्देश्य भूमि उपलब्धता की समस्याओं को हल करना है। हालांकि, कानूनी बाधाएँ इन परियोजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध कराने में मुश्किलें पैदा करती हैं। केवल भूमि बैंकों को बढ़ावा देना तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि इनसे जुड़े कानूनी और नियामक मुद्दों को हल नहीं किया जाता। अर्थात, भूमि कानूनों में सुधार के बिना, न केवल नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए, बल्कि किसी भी बड़े भूमि-आधारित परियोजना के लिए भी, भूमि उपलब्ध कराना संभव नहीं होगा।

समग्र कानूनी सुधारों की आवश्यकता

डिजिटलीकरण का उद्देश्य प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाना है, लेकिन यह समस्या की जड़ तक नहीं पहुँचता। भारत की भूमि संबंधित समस्याओं के लिए गहरे कानूनी और संस्थागत सुधारों की आवश्यकता है। भूमि का खंडन, अस्थिर किरायेदारी, लैंगिक असमानता, और भूमि का अक्षम उपयोग ये सभी गहन सुधारों की मांग करते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि कानूनी सुधारों के साथ-साथ भूमि का समेकन, रिकॉर्डों की अद्यतनीकरण, और महिलाओं के भूमि अधिकारों को भी मजबूत किया जाए। भारत के भूमि संसाधनों की क्षमता को सुलभ और टिकाऊ विकास के लिए अनलॉक करने हेतु, भूमि कानूनों का एक व्यापक सुधार आवश्यक है।

निष्कर्ष

भारत के भूमि संबंधी कानूनों में सुधार करना न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दीर्घकालिक विकास और सामाजिक समानता के लिए भी आवश्यक है। डिजिटलीकरण, हालांकि महत्वपूर्ण है, लेकिन यह समस्या का सिर्फ एक हिस्सा हल करता है। भारत को अपने भूमि कानूनों को सरल, पारदर्शी, और न्यायसंगत बनाने के लिए कानूनी और प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है।

केवल भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल रूप में बदलने से भूमि की समस्याएँ हल नहीं होंगी। इसके लिए कानूनी सुधारों, भूमि बाजारों के अनुकूलन, और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता है, ताकि सभी नागरिकों के लिए भूमि संसाधनों का सही उपयोग हो सके और समृद्धि के रास्ते खुलें।

 

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