कीर्तिशाह (1892 – 1913 ई0) (Kirtishah) अपने पिता की मृत्यु के अवसर पर कीर्तिशाह अल्पायु थे। अतः उनके व्यस्क होने तक रानी गुलेरी के संरक्षण में मंत्रियों की एक समिति का गठन शासन चलाने के लिए किया गया। कीर्तिशाह ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा बरेली में एवं उसके उपरान्त मेयो कॉलेज जयपुर से ग्रहण की। 1892…
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टिहरी रियासत के राजा Part – 1
सुदर्शनशाह (1815 – 1859 ई0) (Sudarshan Shah) प्रद्युम्नशाह गढ़वाल राज्य के अन्तिम पंवार शासक थे। खुड़बुड़ा के युद्ध में उनकी मृत्यु हुई । सुदर्शनशाह ने भागीरथी एवं भिलंगना नदी के संगम स्थल पर गणेश प्रयाग (त्रिहरि) नामक स्थल पर अपनी राजधानी की स्थापना करवाई। इससे पूर्व इस स्थल पर मछुआरों की कुछ झोपड़ी पड़ी थी…
टिहरी रियासत (Tehri Principality)
गढ़वाल नरेश प्रद्युम्नशाह खुड़बुड़ा के युद्ध में गोरखों से अन्तिम रूप से पराजित हुए और वीरगति को प्राप्त हुए। राजकुमार प्रीतमशाह बन्दी बनाकर नेपाल भेज दिए गए। कुवंर पराकमशाह ने कांगड़ा राज्य में शरण ली। युवराज सुदर्शनशाह एवं कुवंर देवीसिंह को ज्वालापुर के ब्रिटिश क्षेत्र में पहुँचाया गया। सुदर्शनशाह ने अपने राज्य को पुनः प्राप्त…
उत्तराखंड में परिवहन व्यवस्था
उत्तराखंड सड़क तंत्र (Uttarakhand Road Network) उत्तराखंड की जटिल भौगोलिक संरचना (Complex Geological Structure) के कारण लगभग 40% भू-भाग पर अभी भी सड़कों का विकास न होने के बावजूद राज्य के कुल यातायात में सड़क यातायात का 85% से अधिक है। राज्य के कुमाऊ मंडल (Kumaon) की अपेक्षा गढ़वाल मंडल (Garhwal) में सड़कों की संख्या एवं लंबाई…
उत्तराखंड में आधुनिक शिक्षा का विकास
ट्रेल लिखते है कि ”कुमाऊँ में आम स्कूल नहीं हैं। और निजी स्कूलों में केवल उच्च वर्ण के लोगों को ही शिक्षा मिलती है। पढ़ाने का कार्य ब्रह्मण करते है। उच्च शिक्षा के लिए काशी भेजे जाते है। हिन्दु शिक्षा पद्धति के अनुसार ही शिक्षा दी जाती है।” गोरखा काल में शिक्षा का ह्मस हुआ…
उत्तराखंड में ब्रिटिशकालीन न्याय एवं पुलिस व्यवस्था
चंद राजाओं के समय में पुलिस प्रबन्ध थोकदारों व प्रधानों के हाथों में होता था। तराई क्षेत्र में मेवाती व हेड़ी मुस्लमान पुलिस का कार्य सम्पन्न करते थे। गोरखों का शासन फौजी था। अतः सैन्य अधिकारी ही यह कार्य भी देखता था। अंग्रेजी शासन काल की स्थापना के साथ ही इस क्षेत्र में पुलिस व्यवस्था…
उत्तराखंड में हेनरी रामजे के सुधार
हेनरी रामजे हेनरी रामजे ने लगभग 44 वर्षों तक विभिन्न पदों पर ब्रिटिश कुमाऊँ में कार्य किया। इसमें से 28 वर्ष वे कुमाऊँ के छठे कमिश्नर रहे। इसके अतिरिक्त वे वरिष्ठ सहायक कमिश्नर गढ़वाल और कुमाऊँ के पद पर भी कार्यरत रहे। 1857 के विद्रोह से 15 माह पूर्व उन्हें कुमाऊँ के कमिश्नर पद पर…
उत्तराखंड में लुशिंगटन व बैटन के शुधार
कर्नल जार्ज गोबान कुमाऊँ के तृतीय कमिश्नर के रूप में कर्नल जार्ज गोबान की अप्रैल 1836 में नियुक्ति हुई। शीतकालीन भ्रमण पर आए बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य राबर्ट मार्टिन्स बर्ड ने अपनी रिपोर्ट में गोबान की आलोचना की। साथ ही बर्ड ने कुमाऊँ को उत्तरी पश्चिमी प्रान्त की भांति मुख्य धारा में लाने के लिए…
ब्रिटिश काल में उत्तराखण्ड का प्रशासनिक विकास
उत्तराखण्ड राज्य को गोरखों से हस्तगत करने के पश्चात् अंग्रेजों ने अपनी पूर्व नियोजित योजना के तहत इस विजित क्षेत्र का विभाजन दो भागों में कर दिया। अलकनन्दा नदी से पश्चिम के भाग पर गढ़ नरेश के वंशज सुदर्शनशाह को पुनः स्थापित किया जिसे ‘टिहरी रियासत’ के नाम से जाना जाता है। जबकि अलकनन्दा के…
उत्तराखंड के प्रमुख गिरिद्वार (दर्रे)
उत्तराखण्ड हिमालय के उत्तर में ट्रान्स हिमालयी जैक्सर श्रेणियाँ, भारत तथा तिब्बत की जल – विभाजक रेखा बनाती हैं। इन श्रेणियों के मध्य आर-पार जाने के अनेक मार्ग हैं। इन मार्गों को गिरिद्वार (दर्रा) कहा जाता है। इन्हीं मार्गों से अतीत में भारत के उत्तरी सीमान्त की आदिम जातियों के, तिब्बती समाज से साँस्कृतिक सम्बन्ध…