सकलाना विद्रोह एवं कीर्तिनगर आन्दोलन | TheExamPillar
Saklana Rebellion and Kirtinagar Movement

सकलाना विद्रोह एवं कीर्तिनगर आन्दोलन

टिहरी रियासत के साथ में अंग्रेजो ने एक छोटी सी जागीर को भी जोड़ा। 700 वर्ग किमी में टिहरी के पश्चिम और देहरादून के उत्तरपूर्व स्थित यह क्षेत्र सकलियाना जागीर के नाम से जानी जाती थी। इस क्षेत्र के मुऑफीदार शिवराम एवं काशीराम ने गोरखों के विरूद्ध अंग्रेजों को सहायता दी थी। अतः अंग्रेजो ने उनकी परम्परागत स्थिति बनाए रखी और उन्हें कुमाऊँ कमिश्नर के अधीन दीवानी एवं राजस्व मामलों में द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेटी अधिकार भी दिए। अतः वे स्वयं को टिहरी के महाराज से ऊपर समझने लगे। उन्होंने जनता का शोषण आरम्भ किया, फलतः जन आन्दोलन की एक श्रृंखला प्रारम्भ हुई। प्रारम्भ में इस क्षेत्र के मुऑफीदार अपने को कम्पनी के निकट जान स्वतंत्र रियासत का स्वप्न देख रहे थे। किन्तु जनता के मनोबल को देखते हुए उन्होंने 15 दिसम्बर,1947 ई0 को पंचायत को समस्त अधिकार सौंप दिये। सकलाना विद्रोह की सफलता ने राज्य के भावी जन आन्दोलनों के लिए प्रेरणा का कार्य किया। शीघ्र ही बढियारगढ़, देवप्रयाग, कीर्तिनगर इत्यादि क्षेत्रों में आजाद पंचायत का गठन हुआ।

29 अगस्त,1946 ई0 को राजदरबार और प्रजामण्डल के मध्य “अगस्त” समझौता हुआ था कि प्रजामण्डल राज्य के कार्यों में बाधा नहीं डालेगा एवं दरबार राजबन्दियों को बिना शर्त रिहा कर देगा। किन्तु कीर्तिनगर, डांगीचौरा क्षेत्र से कृषक आन्दोलन के नेता नागेन्द्र सकलानी, दौलतराम एवं परिपूर्णानन्द को मुक्त करने की बजाय कारावास की सजा दी गई। राज्य कर्मचारियों ने अगस्त समझौता भंग कर दिया एवं दमनचक चालू रखा। फलतः टिहरी जेल में ही दौलत राम, नागेद्र सकलानी, भूदेव लखेड़ा, इन्द्र सिंह एवं परिपूर्णानन्द ने भूख हड़ताल आरम्भ कर दिया। उनकी मांग थी कि रजिस्ट्रेशन एक्ट समाप्त हो एवं अत्याचारों की निष्यक्ष जाँच कराई जाये। जयनारायण व्यास एवं राजदरबार के आश्वासन पर 22 सितम्बर 1946 को इन्होंने अपनी हड़ताल वापस ले ली।

5 अक्टूबर, 1946 को नरेन्द्रशाह ने स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण अपने पुत्र के पक्ष में सिहांसन त्याग दिया। जनता को आशा थी कि युवराज मानवेन्द्र के राज्यभिषेक पर राजनैतिक बन्दियों को छोड़ा जायेगा किन्तु इसके विपरीत नवम्बर, 1946 ई में बिना सुनवाई के बन्दियों को कठोर सजा दे दी गई। जनवरी 1947 ई0 को कोटद्वार में प्रजामण्डल, आजाद हिंद फौज एवं कांग्रेस के सदस्यों का एक संयुक्त अधिवेशन हुआ। कर्नल पित्तशरण रतूड़ी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक के बाद टिहरी के सैशन जज के सम्मुख राजनैतिक बन्दियों की अपीलें प्रस्तुत की गई।

अप्रैल, 1947 ई0 में दरबार ने शान्ति रक्षा अधिनियम लागू किया। इसके द्वारा प्रजामण्डल के कार्यकलाप, सभा, जूलूस एवं सब प्रकार की अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 26-27मई, 1947 के प्रजामण्डल के वार्षिक अधिवेशन को रियासत के अधिकारी नहीं होने देना चाहते थे। अतः धारा 144 लगा दी गई, फिर भी जयनारायण व्यास, मोहन लाल एवं कुशलानन्द ने इसे सफलता पूर्वक करवाया। राज्य का दमनचक इस हद तक बढ़ा कि अगस्त 1947 ई0 को अन्य लोगों के साथ ही अव्यस्क छात्रों को भी जेल में डाल दिया गया। काश्तकारों की फसलों को नष्ट करवा, निर्दयतापूर्वक वसूली, नीलामी इत्यादि के द्वारा जनता को आतंकित करने का प्रयास किया गया।

इस बीच सकलाना के मुऑफीदारों द्वारा पंचायत को समस्त अधिकार सौंप दिए जाने के बाद बलपूर्वक शासन को अपने हाथ में लेने का निर्णय लिया। अब रियासत की सेना व जनता के मध्य तीव्र संघर्ष प्रारम्भ हुआ। डिप्टी कलक्टर के नेतृत्व में अश्रु गैस छोड़ी गई किन्तु स्थिति बेकाबू होते देख कर्मचारी भागने लगे। इस घटनाक्रम में डीसी की गोली से नागेन्द्र सकलानी एवं मोलूराम की मृत्यु हो गई। आन्दोलनकारियों ने दोनों अधिकारियों को पकड़कर कैद कर लिया एवं शहीदों के शव के साथ टिहरी प्रस्थान का निश्चय किया। देवप्रयाग एवं खास पट्टी होता यह जन सैलाब 15 जनवरी 1948 ई0 को टिहरी पहुँचा। प्रताप इण्टर कॉलेज के मैदान में वीरेन्द्रदत्त सकलानी की अध्यक्षता में आजाद पंचायत का गठन हुआ। टिहरी के पूर्व नरेश नरेन्द्रशाह को आजाद पंचायत के स्वयं सेवकों ने भागीरथी पुल से आगे नहीं बढ़ने दिया। दूसरी तरफ भारत सरकार की ओर से सेना व पुलिस ने आकर नगर का प्रशासन अपने हाथों में ले लिया। आजाद पंचायत ने सभा की जिसमें दो विचारधाराएं उभर कर सामने आई, एक पक्ष राजशाही के अधीन उत्तरदायी शासन एवं दूसरा पक्ष स्वतंत्र भारत में विलय का पक्षधर था। 15 जनवरी को राजा ने भी प्रजामण्डल की मांग स्वीकार करते हुए उत्तरदायी शासन की स्थापना का वचन दिया। 16 फरवरी,1948 को दौलतराम की अध्यक्षता में सभा की गई और आन्तरिक सरकार का गठन हुआ जिसमें चार सदस्य प्रजामण्डल एवं एक सदस्य सरकार द्वारा मनोनीत किया गया। 12 अगस्त, 1948 को व्यस्क मताधिकार के आधार पर टिहरी विधानसभा का पृथक चुनाव हुआ जिसमें 24 स्थान प्रजामण्डल 5 प्रजा हितैषणी सभा और 2 स्वतंत्र प्रत्याशियों को प्राप्त हुए। मार्च, 1949 को राजा मानवेन्द्र ने विलय की सभी औपचारिकताएं पूर्ण कर ली थी।

इस प्रकार 1 अगस्त, 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ और उसको संयुक्त प्रांत के 50वें जनपद के रूप में शामिल कर लिया गया। गढ़वाल राज्य के 60वें एवं अन्तिम पवांर राजा मानवेन्द्र की मृत्यु वर्ष 2007 ई0 में हुई। वे राजमाता कमलेन्दुमति के बाद (1957 ई0 से) निरन्तर आठ बार टिहरी संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे। इस प्रकार उत्तराखण्ड से अन्तिम राजशाही का अन्त हुआ।

 

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