भारत के संविधान के भाग-8 के अनुच्छेद 239 से 242 संघ राज्य क्षेत्रों (Union Territory) के प्रशासन से संबंधित प्रावधानों की व्याख्या करते हैं।
संघ राज्य क्षेत्र के लिए प्रशासक की नियुक्ति
- संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासन को संचालित करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा प्रशासक की नियुक्ति की जाती है।
- राष्ट्रपति किसी निकटवर्तीय या संलग्न राज्य के राज्यपाल को संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक का दायित्व भी सौंप सकता है।
- प्रशासकों का अधिकार तथा कर्तव्यों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद
- मूल संविधान में संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा तथा विधानपरिषद की व्यवस्था नहीं की गयी थी, लेकिन 1962 में 14वें संविधान संशोधन द्वारा संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह विधि बनाकर हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन तथा दीव, पाण्डिचेरी, मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा तथा मंत्रिपरिषद का गठन कर सकती है।
- इस अधिकार का प्रयोग करते हुए संसद ने गोवा, दमन तथा दीव, पाण्डिचेरी, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा का गठन किया है, लेकिन हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम (53वां संविधान संशोधन), अरुणाचल प्रदेश, (55वां संविधान संशोधन) तथा गोवा (57वां संविधान संशोधन) को राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया गया है।
- 69वें संविधान संशोधन द्वारा संसद को दिल्ली के लिए विधानसभा तथा मंत्रिपरिषद का गठन करने की शक्ति दी गयी।
- वर्तमान समय में पाण्डिचेरी तथा दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र में विधानसभा तथा मंत्रिपरिषद का गठन किया गया है।
विधायी शक्ति
- संसद को संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में विधि बनाने की विशिष्ट शक्ति है।
- संसद जब किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा या मंत्रिपरिषद के संबंध में विधि बनाती है, तब उस विधि में इस बात का भी उल्लेख रहता है कि विधानसभा राज्यसूची के किन विषयों पर विधि बना सकती है।
- संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं को राज्य सूची में वर्णित सभी विषयों पर विधि बनाने की शक्ति नहीं होती।
- संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक को वही अधिकार हैं जो राज्य के राज्यपाल को, लेकिन अंतर यह है कि संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक अध्यादेश जारी करने के पहले राष्ट्रपति का पूर्व अनुदेश प्राप्त करता है, जबकि राज्यपाल नहीं।
- केन्द्र शासित प्रदेशों में शांति, प्रगति और प्रशासन के लिए राष्ट्रपति ही उत्तरदायी है।
- राष्ट्रपति को अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव की शांति, प्रगति और सुशासन के लिए विनियम बनाने की शक्ति है।
संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय
- संसद को यह अधिकार है कि वह किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है या किसी संघ राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के उच्च न्यायालय अधिकारिता के अधीन रख सकती है।
- इस अधिकार का प्रयोग करते हुए संसद ने 1966 में दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक उच्च न्यायालय की स्थापना की है।
अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन
- संसद द्वारा राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र या जनजातीय क्षेत्र घोषित कर सकता है।
- ऐसे क्षेत्रों की घोषणा पिछड़ेपन के आधार पर की जाती है।
- ऐसे क्षेत्रों की घोषणा में उस क्षेत्र की सांस्कृतिक विशेषताओं को भी ध्यान में रखा जाता है।
- संसद द्वारा प्रदत्त इस अधिकार के अनुसरण में राष्ट्रपति ने कुछ क्षेत्रों को अनुसूचित तथा जनजाति क्षेत्र घोषित किया है। ये क्षेत्र असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम के अलावा अन्य राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों में स्थित हैं।
- संविधान की छठीं अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्य के अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के प्रशासन के बारे में प्रावधान किया गया है।
- इन चारों राज्यों के अतिरिक्त अन्य राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों के अधीन आने वाले अनुसूचित तथा जनजाति क्षेत्र के प्रशासन का प्रावधान संविधान की पांचवीं अनुसूची में किया गया है।
संविधान की पांचवीं अनुसूची के अन्तर्गत प्रशासन
- संविधान की पांचवी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम के अतिरिक्त राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण की व्यवस्था है।
- इन क्षेत्रों के प्रशासन की मुख्य विशेषताएं निम्न हैं –
- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार इन क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में निर्देश देने तक होगा।
- ऐसे राज्य का राज्यपाल, जिसमें अनुसूचित क्षेत्र है, प्रतिवर्ष या जब भी राष्ट्रपति इस प्रकार अपेक्षा करे, उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा।
- क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित ऐसे विषयों पर सलाह देने के लिए, जिसके लिए राज्यपाल उसे निर्देश दे, जनजाति सलाहकार परिषदों का गठन किया जायेगा।
- राज्यपाल को यह प्राधिकार दिया गया है कि वह निर्देश दे सकेगा कि संसद का या उस राज्य के विधानमंडल को कोई विशिष्ट अधिनियम उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र को लागू नहीं होगा या अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा।
- राज्यपाल को यह प्राधिकार भी दिया गया है कि वह अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा या उनमें भूमि के अंतरण का प्रतिषेध कर सकेगा।
- राज्यपाल भूमि के आवंटन का और साहूकार के रूप में कारोबार का विनियमन कर सकेगा।
अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियों के प्रशासन से संबंधित प्रावधानों को संसद द्वारा सामान्य विधान द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है। इसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
संविधान की छठीं अनुसूची के अन्तर्गत प्रशासनः
- छठीं अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान किया गया है।
- राष्ट्रपति की घोषणा द्वारा इन राज्यों में 9 क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। छठी अनुसूची के अन्तर्गत प्रशासन की निम्न विशेषताएं हैं –
- ये जनजाति क्षेत्र स्वशासी जिले के रूप में प्रशासित किये जायेंगे।
- इन क्षेत्रों में जिला परिषद तथा प्रादेशिक परिषदों का गठन किया जायेगा।
- इन परिषदों को भू-राजस्व के निर्धारण तथा संग्रह करने की और कुछ विशेष करों को अधिरोपित करने की शक्ति होगी।
- इन परिषदों द्वारा बनाये गये कनूनन तब तक लागू होंगे, जब तक राज्यपाल चाहे।
- इन परिषदों को न्यायिक सिविल मामलों में कुछ शक्तियां प्राप्त होती हैं और वे उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में होते हैं, जिसकी सीमा तथा अधिकार क्षेत्र राज्यपाल तय करता है।
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