Supreme court of India

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court)

भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी, 1950 को किया गया। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत लागू संघीय न्यायालय का उत्तराधिकारी था। हालांकि उच्चतम न्यायालय का न्यायक्षेत्र, पूर्ववर्ती न्यायालय से ज्यादा व्यापक है। उच्चतम न्यायालय ने ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल’ का स्थान ग्रहण किया था, जो अब तक अपील का सर्वोच्च न्यायालय था। भारतीय संविधान के भाग V में अनुच्छेद 124 से 147 तक, उच्चतम न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, न्यायक्षेत्र, शक्तियां, प्रक्रिया आदि का उल्लेख है। संसद भी उनके विनियमन के लिए अधिकृत है।

उच्चतम न्यायालय का गठन इस समय उच्चतम न्यायालय में 31 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश एवं 30 अन्य न्यायाधीश) हैं। फरवरी, 2009 में केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के कुल न्यायाधीशों की संख्या 26 से बढ़ाकर 31 कर दी है, जिसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं। यह वृद्धि उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन अधिनियम, 2008 के अंतर्गत की गयी है। मूलत: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 8 (एक मुख्य न्यायाधीश और 7 अन्य न्यायाधीश) निश्चित थी। 1956 में संसद ने अन्य न्यायाधीशों की संख्या 10 निश्चित की। 1960 में 13, फिर 1977 में 17 और फिर 1986 में 25।

न्यायाधीश (Judge)

न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment of Judges)

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है जबकि अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यों के उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीशों से, जिनसे परामर्श करना आवश्यक समझे, से परामर्श के पश्चात राष्ट्रपति करते हैं।

अनुच्छेद 124 खंड (2) के अनुसार उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किये जाने के लिये आवश्यक है कि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक हो और वह कम से कम पांच वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो या दस वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा हो या पारंगत विधिवेत्ता हो।

परामर्श पर विवाद (Controversy over Consultation)

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के संबंध में विवाद यह है कि प्राथमिकता वरिष्ठता या योग्यता को दी जाये। अन्य न्यायधीशों के नियुक्ति से संबंधित वाद यह है कि क्या राष्ट्रपति मुख्य न्यायधीशों के परामर्श को मानने के लिए बाध्य है या नहीं?

1973 तक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता का पालन होता रहा है। वस्तुतः यह परंपरा बन गयी थी। किंतु पहली बार 1973 में तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों श्री जे. एम. शेलत, श्री के एस हेगड़े और श्री ग्रोवर की वरिष्ठता का उल्लंघन करते हुए न्यायमूर्ति अजीज नाथ रे को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। इसके विरोध में तीनों वरिष्ठ न्यायाधीशों ने त्यागपत्र दे दिया और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इसका विरोध किया। सरकार ने इस नियुक्ति का समर्थन 1956 के विधि आयोग के उस रिपोर्ट के आधार पर किया जिसमें कहा गया था कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का आधार न केवल उनकी योग्यता एवं अनुभव बल्कि उनकी प्रशासनिक दक्षता, जटिल मद्दों को सुलझाने की सहज शैली, निष्पक्षता एवं ठोस व्यक्तित्व को भी मापदंड बनाया जाना चाहिए। हालांकि सरकार द्वारा साबित करना मुश्किल था कि इस्तीफा देने वाले तीनों न्यायाधीशों में विधि आयोग द्वारा प्रतिपादित उक्त गुणों का अभाव था।

बाद में विधि आयोग ने अपनी 80वीं रिपोर्ट में सिफारिश की कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति के समय वरिष्ठता पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। 6 अक्टूबर, 1993 को उच्चतम न्यायालय ने ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकार्ड बनाम भारत संघ’ मुकदमें में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता के मापदंड को उचित माना। यह भी कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में उच्च संवैधानिक पद पर कार्य करने वाले व्यक्ति का निजी प्रयास कम कर दिया जाये। यद्यपि न्यायिक नियुक्तियों में प्रधान न्यायमूर्ति को वरीयता देते हुए उनके द्वारा दो सहयोगी न्यायाधीशों द्वारा सुझाव प्राप्त करने की स्थिति को व्यावहारिक माना गया।

1999 में उच्चतम न्यायालय की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह अभिनिर्धारित किया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामले में 1993 के निर्णय में प्रतिपादित परामर्श प्रक्रिया का पालन किए बिना मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गयी सिफारिशों को मानने के लिए कार्यपालिका बाध्य नहीं है। इस प्रकार संविधान पीठ ने यह अभिनिर्धारित किया कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के मामले में मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह से परामर्श करके ही राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजनी चाहिए।

न्यायाधीशों की अर्हताएं (Qualifications of Judges)

उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए किसी व्यक्ति में निम्नलिखित अर्हताएं होनी चाहिए।

1. उसे भारत का नागरिक होना चाहिए।
(i) उसे किसी उच्च न्यायालय का कम से कम पांच साल के लिए न्यायाधीश होना चाहिए, या
(ii) उसे उच्च न्यायालय या विभिन्न न्यायालयों में मिलाकर 10 वर्ष तक वकील होना चाहिए, या
(iii) राष्ट्रपति के मत में उसे सम्मानित न्यायवादी होना चाहिए।

उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु का उल्लेख नहीं है

शपथ (Oath)

उच्चतम न्यायालय के लिए नियुक्त न्यायाधीश को अपना कार्यकाल संभालने से पूर्व राष्ट्रपति या इस कार्य के लिए उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के सामने शपथ लेनी होगी

न्यायाधीशों का कार्यकाल (Tenure of Judges)

संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल तय नहीं किया गया हालांकि इस संबंध में निम्नलिखित तीन उपबंध बनाए गए हैं
1. वह 65 वर्ष की आयु तक पद पर बना रह सकता है। उसके मामले में किसी प्रश्न के उठने पर संसद द्वारा स्थापित संस्था इसका निर्धारण करेगी।
2. वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र दे सकता है।
3. संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है।

न्यायाधीशों को हटाना (Removing Judges)

राष्ट्रपति के आदेश द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति ऐसा तभी कर सकता है, जब इस प्रकार हटाए जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो। इस आदेश को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत (यानि सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा सदन के उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) का समर्थन प्राप्त होना चाहिए। उसे हटाने का आधार उसका दुर्व्यवहार या सिद्ध कदाचार होना चाहिए।

न्यायाधीश जांच अधिनियम (1968) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है –

  1. निष्कासन प्रस्ताव 100 सदस्यों (लोकसभा के मामले में) या 50 सदस्यों (राज्यसभा के मामले में) द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद अध्यक्ष/सभापति को दिया जाना चाहिए।
  2. अध्यक्ष/सभापति इस प्रस्ताव को शामिल भी कर सकते | हैं या इसे अस्वीकार भी कर सकते हैं।
  3. यदि इसे स्वीकार कर लिया जाए तो अध्यक्ष/सभापति को इसकी जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करनी होगी।
  4. समिति में शामिल होना चाहिए –
    1. मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश,
    2. किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, और
    3. प्रतिष्ठित न्यायवादी।
  5. यदि समिति न्यायाधीश को दुर्व्यवहार का दोषी या असक्षम पाती है तो सदन इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।
  6. विशेष बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर इसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
  7. अंत में राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी कर देते हैं।

यह रोचक है कि उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर अब तक महाभियोग नहीं लगाया गया है। पहला एवं एकमात्र महाभियोग का मामला उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामास्वामी (1991-1993) का है। यद्यपि जांच समिति ने उन्हें दुर्व्यवहार का दोषी पाया पर उन पर महाभियोग नहीं लगाया जा सका क्योंकि यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका। कांग्रेस पार्टी मतदान से अलग हो गई।

वेतन एवं भत्ते (Pay and Allowances)

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार, अवकाश एवं पेंशन का निर्धारण समय-समय पर संसद द्वारा किया जाता है। वित्तीय आपातकाल के दौरान इनको कम किया जा सकता है। 2009 में मुख्य न्यायाधीश का वेतन प्रतिमाह 33,000 रुपये से बढ़ाकर 1 लाख रूपये प्रतिमाह और अन्य न्यायाधीशों का वेतन 30,000 प्रतिमाह से बढ़ाकर 90 हजार रूपये प्रतिमाह कर दिया गया है। इसके अलावा उन्हें अन्य भत्ते भी दिए जाते हैं। उन्हें निशुल्क आवास और अन्य सुविधाएं जैसे। चिकित्सा, कार, टेलीफोन आदि भी मिलती हैं। 

सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की पेंशन उनके अंतिम माह के वेतन का पचास प्रतिशत निर्धारित है।

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