संसदीय शब्दावली (Parliamentary Terms) | TheExamPillar
Parliamentary Terms

संसदीय शब्दावली (Parliamentary Terms)

संसदीय प्रक्रिया से सम्बन्धित विभिन्न शब्दों का सही अर्थ समझ लेना अत्यंत आवश्यक है। इनमें से कुछ के बारे में हम विस्तारपूर्वक जानकारी देंगे।

प्रश्नकाल (Question Hour)

संसद के दोनों सदनों की प्रत्येक बैठक का प्रथम घंटा प्रश्न पूछने तथा उनका उत्तर देने के लिए सुरक्षित है। इसे प्रचलित भाषा में ‘प्रश्नकाल’ का नाम दिया गया है। इस घंटे में सरकार से सम्बन्धित मामले तथा देश के सम्मुख समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान खींचा जाता है। ऐसा दो कारणों से किया जाता है–समस्या के समाधान तथा प्रशासन की त्रुटियों को उजागर करने के लिए। प्रायः मंत्रियों से तीन प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं–तारांकित, अतारांकित तथा अल्पकालिक प्रश्न।

तारांकित प्रश्नों का उत्तर सदन में मौखिक रूप से दिया जाता है। ऐसे प्रश्नों पर प्रायः एक सितारे का चिन्ह होता है। इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर में सदस्य पूरक प्रश्न भी पूछ सकते हैं।

अतारांकित के प्रश्नों पर सितारे का चिन्ह नहीं होता। इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर लिखित रूप में दिया जाता है। स्वाभाविक है कि इस प्रकार के प्रश्नों के पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं।

अल्पकालिक प्रश्न छोटी अवधि के प्रश्न प्रायः ऐसे विषयों पर पूछे जाते हैं जो सार्वजनिक महत्व के हैं। इस प्रकार के प्रश्नों के लिए अन्य प्रकार के प्रश्नों की भांति 10 दिन का नोटिस नहीं देना पड़ता।

शून्यकाल (Zero Hour)

संसदीय प्रक्रिया के नियमों में शून्यकाल का कोई उल्लेख नहीं। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1960 के दशक में प्रेस द्वारा किया गया। प्रायः संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल के पश्चात का एक घंटा शून्यकाल के नाम से प्रसिद्ध है। शून्यकाल में सदस्य ऐसे मामले उठाते हैं जिनमें देरी करना उचित नहीं। यह ध्यान देने योग्य है कि इस प्रकार के प्रश्न प्राय: बिना अनुमति व पूर्व नोटिस के पूछे जाते हैं। इसके फलस्वरूप सदन का बहुमूल्य समय बेकार जाता है और सदन का विधायी, वित्तीय तथा अन्य सामान्य कार्य पूरा नहीं हो पाता।

व्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न (Point of Order)

यदि सदन की कार्यवाही नियमानुसार संचालित न की जा रही हो तो कोई भी सदस्य व्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न उठा सकता है। परन्तु यह सदन के अध्यक्ष पर निर्भर करता है कि वह व्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न उठाने की अनुमति दे या न दे।

स्थगन प्रस्ताव (Adjournment Motion)

स्थगन प्रस्ताव का प्रयोग सदन का ध्यान किसी ऐसी महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक महत्व की घटना की ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से किया जाता है जिसके गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। स्थगन प्रस्ताव कोई भी सदस्य प्रस्तुत कर सकता है परन्तु यदि 50 सदस्य उसका समर्थन करते हैं तो स्पीकर प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है। स्थगन प्रस्ताव का नोटिस सदन की बैठक प्रारम्भ होने से पूर्व दिया जाना चाहिए। यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि स्पीकर स्थगन प्रस्ताव तभी स्वीकार करता है जब मामला किसी विशेष जनहित से सम्बन्धित हो तथा उसका तथ्यात्मक आधार हो । सामान्य मामलों, जैसे कि देश की राजनैतिक स्थिति, रेल दुर्घटना, मिल का बन्द होना, अंतर्राष्ट्रीय स्थिति इत्यादि, में स्थगन प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाता।

ध्यानाकर्षण नोटिस (Calling Attention Notice)

यह संसदीय प्रक्रिया को भारत की अनूठी भेंट है। इसके अनुसार कोई भी सदस्य स्पीकर की पूर्व अनुमति से, किसी भी मंत्री का ध्यान जन-हित के महत्त्वपूर्ण मामले की ओर आकर्षित कर सकता है तथा उसे उस विषय पर वक्तव्य देने के लिए कह सकता है। मंत्री या तो उस विषय पर संक्षिप्त वक्तव्य दे सकता है अथवा वक्तव्य देने के लिए समय मांग सकता है। सदस्यों को ध्यानाकर्षण नोटिस प्रातः 10 बजे से पूर्व लिखित रूप में देना पड़ता है। यदि स्पीकर चाहे तो उसी दिन ध्यानाकर्षण नोटिस को स्वीकार कर ले अथवा मंत्री को अगले दिन सदन की बैठक में वक्तव्य देने की अनुमति दे दे।

अल्पकालीन चर्चा (Short Duration Discussion)

गैर सरकारी सदस्यों को भी सार्वजनिक महत्त्व के मामलों को सदन में उठाने का अधिकार है। इस प्रकार के मामले को सदन में उठाने के लिए नोटिस कम से कम 3 संसद सदस्यों द्वारा दिया जाना आवश्यक है। यदि स्पीकर संतुष्ट हो कि मामला पर्याप्त मात्रा में महत्त्वपूर्ण है और इसे जल्द से जल्द सदन में उठाया जाना चाहिए तो वह इसकी अनुमति दे सकता है। बहस के लिए तिथि का निर्धारण कार्यमंत्रणा समिति (Business Advisory Committee) की सिफारिश पर किया जाता है। निर्धारित तिथि को प्रथम सदस्य, जिस के नाम में यह विषय लाया गया है, को स्पीकर आमंत्रित करता है एक संक्षिप्त वक्तव्य दे। इसके पश्चात मंत्री उसका संक्षेप में उत्तर देता है। इसके पश्चात अन्य सदस्य बहस में भाग लेते हैं। यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि वह सदस्य जिसने बहस प्रारम्भ की थी बहस का उत्तर नहीं दे सकता। इसके अतिरिक्त इस पर कोई मतदान नहीं होता।

कटौती प्रस्ताव (Cut Motion)

कटौती प्रस्ताव एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा संसद के सदस्य विशेष शिकायत या समस्या की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करते हैं। इस प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार द्वारा प्रस्तुत मांग में कटौती करना है। कटौती प्रस्तावों को स्वीकार करना या न करना स्पीकर की इच्छा पर निर्भर करता है। कटौती प्रस्ताव तीन प्रकार के हो सकते हैं जिनके अलग अलग उद्देश्य हैं। प्रथम, कटौती प्रस्ताव किसी विशेष मांग के पीछे छिपी नीति को अस्वीकार करने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार के कटौती प्रस्ताव में मांग की जाती है कि अनुदान की राशि में एक रुपये की कटौती की जाए। दूसरा, कटौती प्रस्ताव खर्चे में कमी करने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रस्ताव में कटौती की एक निश्चित राशि सुझाई जाती है। तीसरा, संकेतिक कटौती प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य सरकार को उन शिकायतों से अवगत कराना है जो उसके क्षेत्र में आती हैं। प्रायः इस प्रकार की कटौती में मांग की जाती है कि मांग में 100 रु की कटौती की जाए।

गिलोटीन (Guilotine)

सभी अनुदानों पर विचार विमर्श निर्धारित समय में समाप्त हो जाना चाहिए। यदि स्पीकर यह महसूस करता है कि मांग तथा अनुदान सम्बन्धी सभी मामले निर्धारित समय में समाप्त नहीं हो पाएँगे तो अखिरी दिन वह सभी मामलों पर बहस समाप्त किए बिना मतदान करा सकता है। इस व्यवस्था को संसदीय भाषा में गिलोटीन कहा जाता है।

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion)

भारत की संसदीय शासन व्यवस्था में मंत्री परिषद् अपने पद पर तब तक बनी रहती है जब तक उसे लोक सभा का समर्थन प्राप्त होता है। जिस समय लोक सभा मंत्री परिषद् में अविश्वास व्यक्त करती है इसे त्यागपत्र देना पड़ता है। मंत्री परिषद् में सदन का विश्वास सिद्ध करने के लिए नियमों में ‘अविश्वास प्रस्ताव’ का प्रयोजन किया गया है। नियमानुसार, अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस सदन की दैनिक कार्यवाही प्रारम्भ होने से पूर्व दिया जाना चाहिए। इस प्रकार का प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए कोई विशेष कारण देने की आवश्यकता नहीं। यह निश्चित करना स्पीकर का अधिकार है कि कोई प्रस्ताव ठीक है अथवा नहीं। यदि स्पीकर महसूस करता है कि नियमानुसार प्रस्ताव ठीक है तो वह प्रस्ताव सदन में पढ़ देता है। यदि लोक सभा के कम से कम 50 सदस्य प्रस्ताव का समर्थन करते हैं तो अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है। प्रस्ताव को अनुमति मिलने के दस दिन के भीतर उस पर बहस हो जानी चाहिए। बहस का समय प्रायः कार्यमंत्रणा समिति के परामर्श से निश्चित किया जाता है। यदि सरकार चाहे तो बहस तुरन्त भी कराई जा सकती हैं। जब सदस्य प्रस्ताव पर बोल चुकते हैं तो प्रधानमंत्री उनके द्वारा सरकार के विरुद्ध लगाए गए आरोपों का उत्तर देता है। प्रस्ताव प्रस्तुत करने वाले सदस्य को उत्तर देने का अधिकार है। बहस समाप्त होने के पश्चात स्पीकर प्रस्ताव पर सदन में मतदान कराता है। यहां पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि राज्य सभा को अविश्वास प्रस्ताव पर विचार करने का अधिकार नहीं है क्योंकि सरकार सामूहिक रूप से केवल लोक सभा के प्रति उत्तरदायी है।

निन्दा प्रस्ताव (Censure Motion)

निन्दा प्रस्ताव सरकार की नीतियों तथा कार्यों की निन्दा करने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जाता है। यह अविश्वास प्रस्ताव से भिन्न है क्योंकि इसमें सरकार के विरुद्ध निश्चित आरोप लगाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त अविश्वास प्रस्ताव, जो कि केवल मंत्री परिषद् के विरुद्ध प्रस्तुत किया जा सकता है, निन्दा प्रस्ताव किसी एक मंत्री अथवा मंत्रियों के समूह के विरुद्ध उनकी असफलता अथवा नीति पर कार्य न कर पाने के लिए प्रस्तुत किया जाता है। प्रस्ताव में निन्दा के कारणों का स्पष्ट तथा संक्षिप्त रिकार्ड दिया जाना चाहिए। तथा इसका समर्थन कम से कम 50 सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिए। यह निर्णय करने का अधिकार कि प्रस्ताव ठीक है अथवा नहीं स्पीकर को दिया गया है। यदि अध्यक्ष निन्दा प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है, तो यह सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह इस पर विचार के लिए समय दे तथा तिथि निश्चित करे। यदि यह प्रस्ताव लोक सभा द्वारा पारित कर दिया जाता है तो मंत्रीपरिषद् को अपना त्यागपत्र देना पड़ता है।

 

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