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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (कालचुरी या हयहयों राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

कालचुरी या हयहयों राजवंश (Kalchuri or Hayahayon Dynasty)

कालचुरी अथवा हयहयों (Kalchuri or Hayahayon) का उल्लेख महाकाव्यों तथा पुराणों में मिलता है। चेदी राज्य से संबंध स्थापित होने के बाद इन्हें चेदी नाम से भी जाना गया। 

छठी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कालचुरी राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे। उनके राज्य में गुजरात, उत्तरी महाराष्ट्र तथा माला का कुछ हिस्सा सम्मिलित था। 550 – 620 के बीच तीन कालचुरी राजाओं ने – कृष्णाराज, उनके पुत्र शंकरागन तथा उनके बुद्धराज ने शासन किया था। 

त्रिपुरी के कालचुरी (Kalchuri of Tripuri)

  • 8वीं शताब्दी में कालचुरियों की विभिन्न शाखाएं उत्तर भारत के विभिन्न भागों में स्थित थीं। उनमें से एक ने आधुनिक गोरखपुर जिले के सरयुपारा में अपने राज्य की स्थापना की। 
  • दूसरी सबसे शक्तिशाली शाखा बुंदेलखंड के चेदी प्रांत पर शासन कर रहा था। 
  • चेदी के कालचुरी जिन्हें ढाल-मंडल के राजा के नाम से भी जाना जाता था, ने अपनी राजधानी मध्य प्रदेश के जबलपुर के निकट त्रिपुरी में बनवाया था।

कोकल्ला I (Kokalla – I)

  • त्रिपुरी के कालचुरियों का इतिहास 845 में अथवा उसके आसपास कोकल्ला I के आने के साथ प्रारंभ होता है। 
  • उनका संघर्ष प्रतिहार राजा भोज-I के साथ हुआ जिसे उन्होंने बुरी तरह पराजित किया। 
  • उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पूर्वी बंगाल में वांग को लूटा, राष्ट्रकूट राजा कृष्णा II (जो कि उनके रिश्तदार थे) को हराया तथा उत्तरी कोंकण पर आक्रमण किया। 
  • उसके बाद कृष्ण III के समय तक कालचरियों के राष्ट्रकूटों के साथ अनेक वैवाहिक संबंध हुए तथा इन दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता बना रहा।

शंकरागन I (Shankragan – I)

  • रस शंकरागन ने अपने पिता सोमवंशी को पराजित
  • कोकल्ला I ने चंदेल राजकुमारी नट्ट देवी से विवाह किया तथा उनके 18 पुत्र हुए।
  • सबसे बड़े लड़के ने अपने पिता का स्थान लिया तथा कोशल राजा को पराजित किया। 
  • उनके बाद उनका पुत्र बालहर्ष आया परंत उसका शासनकाल बहुत छोटा था।

युवराज I (Yuvraj – I)

  • कालचुरी तथा राष्ट्रकूटों के बीच के मधुर संबंधों के बाद भी राष्ट्रकूट कृष्ण III ने युवराज I के राज्य पर हमला किया। 
  • बाद में युवराज राष्ट्रकूटों को अपने राज्य से भगा पाने सफल रहे। यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी तथा इसकी याद में कालचुरी दरबार में रह रहे प्रसिद्ध कवि राजशेखर ने विद्धासलाभिंजका नामक प्रसिद्ध नाटक युवराज के दरबार में किया ।

लक्ष्मणराज तथा शंकरागन II (Laxman Raj and Shankaragan – I)

  • युवराज I के बाद उनका पुत्र लक्ष्मणराज गद्दी पर आया तथा उसने चालुक्य अथवा सोलंकियों के संस्थापक मूलराज I को पराजित किया। 
  • अपने पिता की तरह नसणराज ने शैव धर्म को प्रश्रय दिया। 
  • उनके बाद गद्दी पर उनका भाई शंकरागन II आया जो एक वैष्णव था। 
  • उसके बाद गद्दी पर उनका भाई युवराज II आया। वे एक अच्छे योद्धा नहीं थे तथा उनके शासनकाल में राज्य को बहुत नुकसान हुआ। 
  • युवराज II के मामा चालक्य तैल II ने उनके राज्य पर हमला किया। 

कोकल्ला II (Kokalla – II)

  • परमारों के लौटने के बाद शंकरागन II के मंत्रियों ने उनके पुत्र कोकल्ला II को गद्दी पर बिठा दिया। 
  • उनके शासनकाल में कालचुरी पुनः शक्तिशाली हो गए। 
  • उनके बाद गद्दी पर उनका पुत्र गंगेयदेव आया।

गंगेयदेव (Gangeydev)

  • उनके शासनकाल में कालचुरी उत्तर भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गए। 
  • उनकी सफलता का प्रमुख कारण यह था कि कालचुरी सुल्तान महमूद के आक्रमणों से बचे रहे। 
  • वे उडीसा के समुद्र तट तक अपनी शक्ति ले गए। 
  • उन्होंने अपनी इस जीत के उपलक्ष्य में ‘त्रीकलिंगाधिपति’ अथवा ‘त्राकलिग के स्वामी’ की उपाधि को धारण किया। 
  • उन्होंने अपने पुत्र करण के नेतृत्व में अंग तथा मगध के विरुद्ध एक अभियान भजा जो उस समय पाल राजा नयापाल के अधीन था। 

करण (Karan)

  • गंगेयदेव के बाद गद्दी पर उनका पुत्र लक्ष्मीकरण आया जिसे करण के नाम से भी जाना जाता था। 
  • वह अपने समय के महानतम योद्धाओं में से था। 
  • उसने प्रतिहारों से इलाहाबाद छीन लिया था। 
  • उसने चंदेल राजा कीतिवर्मण को पराजित कर बुंदेलखंड पर अधिकार कर लिया परंतु चंदेलों के एक सामंत ने इसे कालचुरियों से वापस जीत लिया। 
  • करण ने गुजरात के चालुक्य राजा भीम I के साथ मिलकर मालवा के परमारों पर आक्रमण किया।
  • इस युद्ध के दौरान परमार राजा भोज की मृत्यु हो गई तथा दोनों ने मालवा पर अधिकार कर लिया। 
  • बाद में इसके बंटवारे के प्रश्न पर करण तथा भीम के बीच झगड़ा हो गया।
  • वह अपने पैतृक राज्य में मात्र इलाहाबाद जोड़ पाया। 
  • अपने शासन के अंतिम दिनों में करण का जिन पराजयों का सामना करना पड़ा उससे उसके सम्मान को काफी चोट पहुंची तथा उसके सामंतों के ऊपर उसकी पकड़ कमजोर हुई।

बाद के शासक

  • करण ने अपने पुत्र यशकरण के लिए गद्दी त्याग दी। उसके ऊपर अनेक आक्रमण हुए। 
  • चालुक्य राजा विक्रमादित्य VI ने उन पर आक्रमण किया; गहदवाल वंश के चंद्रदेव ने उनसे इलाहाबाद तथा बनारस छीन लिया; चंदेलों ने उन्हें पराजित किया तथा परमार राजा लक्ष्मणदेव ने उनकी राजधानी को लूटा। 
  • विजयसिंह अंतिम महत्त्वपूर्ण कालचुरी राजा थे। 
  • चंदेल राजा त्रैलोक्यवर्मण ने उन्हें पराजित कर पूरे दहाल मंडल पर अधिकार कर लिया।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (चंदेल राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

चंदेल राजवंश (Chandel Dynasty)

प्रतिहारों के राज्य के बिखरने के बाद बुंदेलखंड में चंदेल (Chandel) राज्य का उदय हुआ। अधिकांश मध्यकालीन राजवंशों की तरह चंदेल भी अपना उदय चंद्रवंशी चंद्रात्रेय से मानते थे। चंदेलों की पहली राजधानी शायद खजुराहो थी, जो 10वीं शताब्दी में अपने वैभव के शीर्ष पर पहुंच गई। 

प्रारम्भिक शासक

  • 9वीं शताब्दी के पहले भाग में कन्नौज ने इस देश की स्थापना बुंदेलखंड में खजुराहो के समीप की। 
  • नान्नुका के पुत्र तथा उत्तराधिकारी वाकपति ने, जो 9वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुए थे, अपने समकालीन पाल देवपाल तथा प्रतिहार भोज से युद्ध किया। 
  • वाकपति के दो पुत्र थे – जयशक्ति तथा विजयशक्ति। 
  • जयशक्ति जो अपने पिता के बाद गद्दी पर आया, एक प्रसिद्ध राजा था तथा चंदेल राज्य उसी के नाम से ‘जेजक भुक्ति’ के नाम से जाना जाता था। 
  • जयशक्ति के बाद उनके भाई विजयशक्ति आए तथा उनके बाद उनका पुत्र राहिल आया।

यशोवर्मण (Yashovarman)

  • राहिल के बाद उनका पुत्र यशोवर्मण आया जिसे लक्षवर्मण के नाम से भी जाना जाता था। 
  • प्रतिहारों की क्षीण होती शक्ति का फायदा उठाकर उन्होंने चंदेलों पर आक्रामक सैन्य की शुरुआत की। 
  • यशोवर्मण ने उत्तर भारत में व्यापक जीत हासिल की तथा चंदेल शक्ति को स्थापित किया। 
  • यशोवर्मण ने खजुराहो में विष्णु के एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जिसका नाम चतुर्भुज मंदिर है।

धांग (Dhang)

  • यशोवर्मण के बाद उनके पुत्र धांग गद्दी पर आए (954 – 1002) तथा वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक सिद्ध हुए। 
  • धांग ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की तथा चंदेल राज्य को उसके शीर्ष पर ले गए। 
  • अपनी शक्ति के बल पर उन्होंने चंदेल राज्य की सीमाओं को गंगा के तह तक पहुंचा दिया। 
  • खजुराहो के अनेक भवन धांग की कलात्मक गतिविधियों का प्रमाण हैं। 
  • धांग  के द्वारा निर्मित विश्वनाथ मंदिर खजुराहो का सबसे अलंकृत मंदिर है तथा सबसे अच्छी स्थिति में है। 
  • जिननाथ एवं वैद्यनाथ के मंदिर भी धांग के शासनकाल में बंटे थे।

धांग के उत्तराधिकारी (Successor of Dhang)

  • धांग के बाद उनके पुत्र गंद तथा उनके बाद उनके पुत्र विद्याधर आए। 
  • सुलतान महमूद ने, 1019 तथा 1022 में, दो बार उनके राज्य पर हमला किया। 
  • विद्याधर की मृत्यु के बाद चंदेल शक्ति कुछ दिनों के लिए काफी कमजोर पड़ गई तथा यह विजयपाल, कीर्तिवर्मण, सल्लाक्षावर्मण, जयवर्मण, पृथ्वीवर्मण तथा मदनवर्मण के हाथों में रही।
  • मदनवर्मण के बाद उनका पोता परमार्दी आया जिसका शासन काल 1165 – 1202 तक था। 
  • उसे पृथ्वीराज III के हाथों एक अपमानजनक हार झेलनी पड़ी परंतु पृथ्वीराज खुद 1192 में आक्रमणकारी शिहाबुद्दीन मुहम्मद के हाथों पराजित हुए। 
  • दस साल बाद मुहम्मद के छत्रप कुतुबुद्दीन ने (1202) चंदेल शक्ति के केन्द्र कालिंजर पर आक्रमण किया। 
  • कुतुबुद्दीन ने कालिंजर को लूटने के बाद महोबा पर कब्जा किया तथा जीते गए क्षेत्र के प्रशासन के लिए अपना वजीर नियुक्त किया।
  • परमार्दी के पुत्र त्रिलोकवर्मण ने मुसलमानों को काकड़वा में पराजित कर सारा क्षेत्र पुनः हासिल कर लिया। 
  • त्रिलोक ने लगभग 45 वर्षों तक शासन किया तथा उसके बाद पुत्र वीरवर्मण आया। 
  • परंतु 1309 में अलाउद्दीन खिलजी ने राज्य का एक बड़ा हिस्सा जीत लिया। 
  • बुंदेलखंड का अंतिम राजा वीरवर्मण II था।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (गहदवाल राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

गहदवाल राजवंश (Gahadavala Dynasty)

ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में गहदवालों (Gahadavala) का उदय इस शीघ्रता से हुआ कि उनके उदय के बारे में पता करना बहत कठिन है।

प्रारम्भिक शासक

  • इस वंश की स्थापना यशोनिग्रह के द्वारा किया गया था। 
  • यशोनिग्रह का पुत्र महिचद्र, जिसे महिन्द्र तथा महितल के नाम से भी जाना जाता था, एक महत्त्वपूर्ण शासक थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश के कुछ भाग पर शासन किया। 
  • उनके पत्र चंद्रदेव ने उत्तर भारत से महमूद की अनुपस्थिति का फयदा उठाते हुए राष्ट्रकूट राजा गोपाल को यमुना के तट पर बुरी तरह पराजित किया। 
  • उन्होंने इलाहाबाद से बनारस के बीच के पूरे क्षेत्र पर अधिकार कर लिया तथा बनारस को अपने राज्य की दूसरी राजधानी बनाया। 
  • उन्होंने तुरुक्षादंड नाम का एक नया कर लगाया, जो मुस्लिमों से होने वाले युद्ध पर आने वाले खर्च अथवा उन्हें वार्षिक भुगतान करने के लिए था। 
  • उनके बाद गद्दी पर उनका पुत्र मदनाचंद्र आया जिसे मदनपाल के नाम से भी जाना जाता था। 

गोविन्दचंद्र (Govind Chandra)

  • वे मदनचंद्र के बाद गद्दी पर आए तथा सम्भवतः पूरे वंश के सबसे महान शासक थे। 
  • उनके राज्य के वैभव को बताने वाले 40 से भी ज्यादा अभिलेख मिले हैं। 
  • पाल राजाओं की कमजोरी का फायदा उठाते हुए उन्होंने मगध के हिस्से पर कब्जा कर लिया। 
  • उन्होंने चेदी तथा चंदेलों को भी पराजित किया तथा चंदेलों से पूर्वी मालवा छीन लिया।
  • उनके शासनकाल में उनके मंत्री लक्ष्मीधर ने कानून और तरीकों (Procedure) पर अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें से कृत्य कल्पतरू अथवा कल्पद्रुम सबसे महत्त्वपूर्ण है।

विजयचंद्र (Vijaya Chandra)

  • गोविंद चंद्र के बाद उनके पुत्र विजयचंद्र आए। 
  • पृथ्वाराजरासो के अनुसार उन्होंने कई युद्ध जीते परंतु इस तरह का लोकोक्तियों को पूरी तरह सत्य नहीं माना जा सकता।

जयचंद्र (Jay Chandra)

  • विजयचंद्र के पुत्र एवं उत्तराधिकारी, 1170 में गद्दी पर आए। 
  • उनके जीवन के बारे में पृथ्वीराजरासो अथवा ताम्र प्रशस्तियों के स्थान पर मुस्लिम एवं स्वतंत्र स्रोतों से ज्यादा पता चलता है। 
  • जयचंद्र कन्नौज के अंतिम महान शासक थे तथा उनकी शक्ति तथा समृद्धि ने मुस्लिम इतिहासकारों को अवश्य प्रभावित किया होगा।
  • जयचंद्र के शांतिपूर्ण शासन को मोईजुद्दीन मुम्मद गोरी ने पूरी तरह से तोड़ डाला। 
  • वह दिल्ली तथा अजमेर पर कब्जा करने के बाद एक बड़ी सेना के साथ 1193 में कन्नौज की तरफ बढ़ा। 
  • जयचंद्र ने चंद्रवार तथा इटावा के बीच के मैदानों में उसका सामना किया तथा पराजित हुआ।
  • जयचंद्र का नाम संस्कृत साहित्य के इतिहास के साथ भी जुड़ा है। 
  • उन्होंने श्रीहर्ष को काफी प्रश्रय दिया, जिन्होंने नैसादचरित्र, खानदान-खानदा-खाद्य जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की जिसमें से उनकी दूसरी रचना महत्त्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध वेदांत प्रबन्ध है जो व्यवस्था के ऋणात्मक पहलुओं पर है।

अंतिम शासक

  • जयचंद्र की मृत्यु तथा पराजय से मुस्लिम कन्नौज पर अधिकार नहीं कर पाए। 
  • जयचंद्र के पुत्र हरिश्चंद्र शिहामुद्दीन के सामंत के रूप में शासन करते रहे। 
  • हरिश्चंद्र के उत्तराधिकारी अदाक्कमल का इल्तुतमिश ने अपने पैतृक राज्य से अलग कर दिया। 
  • इस तरह 6 शताब्दियों तक उत्तर भारत की राजनीति पर छाए रहने के बाद कन्नौज के साम्राज्य का अंत हो गया।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (चाहमन राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

चाहमन राजवंश (Chahamana Dynasty)

चाहमन राजवंश (Chahman Dynasty) वंश की कई शाखाएं थीं। मुख्य शाखा, शाकंभरी (आधुनिक सांभर) जयपूर तथा अन्य जगहों पर शासन करने वाले संगोत्री थे। इनमें से कुछ प्रतिहारों के सामंत थे।

वासुदेव (Vasudev)

  • वासुदेव ने छठी शताब्दी के मध्य में मुख्य शाखा की स्थापना की। 
  • इनकी राजधानी अहिक्षेत्र थी। 
  • राष्ट्रकूटों से संघर्ष के कारण प्रतिहारों की क्षीण होती शक्ति का फायदा उठाते हुए अगले महत्त्वपूर्ण राजा वाकतिराज ने प्रतिहारों का विरोध करना प्रारंभ कर दिया। 
  • उनके शासन काल में चाहमनों की प्रतिष्ठा में काफी वृद्धि हुई। 
  • इसका प्रमाण उनके द्वारा महाराजा की पदवी धारण करने से मिलता है। 
  • उन्होंने पुष्कर में एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया। 
  • उनके तीन पुत्र थे – सिम्हराज, वत्सराज तथा लक्ष्मण।

सिम्हरान तथा विग्रहराज II (Simharan and Vigraharaj II)

  • सिम्हराज इस वंश के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। 
  • इससे लगता है कि उन्होंने कन्नौज के प्रतिहारों से स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी। 
  • सिम्हराज का पुत्र तथा उत्तराधिकारी विग्रहराज II अपने वंश की महानता का वास्तविक संस्थापक था। 
  • उसने गुजरात पर आक्रमण किया तथा चालुक्य मूलराज को कच्छ में (कंठकोट) शरण लेने के लिए बाध्य कर दिया। 
  • उसने दक्षिण में नर्मदा तक विजय प्राप्त की।

पृथ्वीराज I तथा अजयराज II (Prithviraj – I and Ajayraj – II)

  • पृथ्वीराज I के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने पुष्कर में ब्राह्मणों को लूटने आए 700 चालुक्यों को मारा था। 
  • उनके पुत्र एवं उत्तराधिकारी अजयराज II के समय से चाहमनों ने आक्रामक साम्राज्यवादी नीति अपनाई उसने अजयमेरू अथवा अजमेर नगर की स्थापना की और इसका विस्तार किया। 
  • अजयराज के बाद उसका पुत्र अरनोराज आया। उसे चालुक्यों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा तथा सिद्धराज जयसिम्ह ने अपनी पुत्री का विवाह उससे करवाया। 
  • इस वैवाहिक रिश्ते से कुछ दिनों के लिए शांति स्थापित हो गई परंतु चालुक्य गद्दी पर कुमारपाल के आते ही पुनः युद्ध छिड़ गया।

विग्रहराज III (Vigraharaj – III)

  • यह एक महान विजेता था तथा उसने अपने राज्य की सीमाओं को विभिन्न दिशाओं में फैलाया। 
  • उन्होंने तोमरों से दिल्ली जीती तथा पंजाब के हिसार जिले के हांसी पर कर लिया। 
  • दक्षिण में उसने कुमारपाल के राज्य चालक्यों के हाथों अपने पिता के अपमान का बदला लिया । 
  • उसके राज्य में सतलुज तथा यमुना के बीच पंजाब का का बहुत बड़ा हिस्सा था। 
  • विग्रहराज एक प्रख्यात लेखक भी था। उसने हरीकेली नाटक जैसे नाटकों की रचना की। 
  • अजमेर में उनके द्वार बनाए गए अनेक मंदिरों में सरस्वती मंदिर सर्वश्रेष्ठ है।

पृथ्वीराज II तथा सोमेश्वर(Prithviraj – II and Someswar)

  • अरनोराज के पोते पृथ्वीराज II के समय मुसलमाना के साथ पुराना झगड़ा पुनः प्रारंभ हो गया। 
  • पृथ्वीराज के बाद उनका चाचा तथा अरनोराज का पुत्र सोमेश्वरआया। 
  • कुमारपाल के दरबार में रहते हुए उसने एक कालचुरी राजकुमारी कपूरदेवा से विवाह किया जिनसे पृथ्वीराज III तथा हरीराज नाम के दो पुत्र हुए।

पृथ्वीराज III (Prithviraj – III)

  • पृथ्वीराज III के प्रारम्भिक दिनों की एक महत्त्वपूर्ण घटना अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह को हवा थी। 
  • उसने गुजरात के चालव्य राज्य पर हमला किया तथा वहां के राजा भीम II को संधि के लिए बाध्य किया। 
  • पृथ्वीराज शत्रुओं से तराई में 1190-91 में भिड़ा। यह पहली लड़ाई सुल्तान के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई, परंतु इस विजय के बाद भी पृथ्वीराज III ने अपने राज्य के उत्तर-पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया तथा अपना ध्यान गहदवला राजा जयपद से संघर्ष में लगाया।
  • शिहाबद्दीन 1192 में मुल्तान तथा लाहौर कर बिना किसी प्रतिरोध का सामना किए फिर तराई में आया। 
  • दिल्ली के प्रमुख गोविन्दराज सहित एक लाख लोगों की मौत हुए। पृथ्वीराज खुद बंदी बना लिए तथा उन्हें मार दिया गया। 
  • देश के अनेक भाग से विभिन्न कवि तथा विद्वान पृथ्वीराज दरबार में जमा हुए, जो स्वयं पृथ्वीराज विजय तथा पृथ्वीराज रासो जैसे महान कविताओं के विषय बने तथा इन्हें बने वाले क्रमशः जयनक तथा चांद (चंदबरदाई) थे जो उनके दरबारी कवि थे।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (सोलंकी राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

सोलंकी राजवंश (Solanki Dynasty)

मूलराज I (Mulraaj – I)

  • चालक्य अथवा सोलंकियों ने गुजरात तथा काठियावाड में लगभग साढ़े तीन सौ वर्षों तक (950-1300 ई०प०) शासन किया। 
  • मूलराज ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की जिसकी राजधानी अनहिलपटक थी। 
  • परमार राजा मुंज के हाथों पराजित होने के बाद मूलराज ने स्वयं को मारवाड में सीमित कर लिया। 
  • उनका राज्य उत्तर में जोधपर तक तथा दक्षिण में नर्मदा तक फैला हुआ था। 
  • वे एक कटटर शैव थे तथा उन्होंने अनहिलपटक में दो मंदिरों का निर्माण करवाया। 
  • मूलराज की मृत्यु तथा भीम I के बीच के 25 वर्ष अकीर्तिकर थे।

भीम I (Bheem – I)

  • उनके राज्य को गजनी के महमूद के आक्रमण ने हिला दिया जिसने सोमनाथ के मंदिर से अथाह सम्पत्ति लूटी। 
  • महमूद के आक्रमण के साथ भीम कच्छ भाग गए तथा हमलावरों के लौटने के बाद ही अपनी राजधानी वापस आए। 
  • भीम I का शासनकाल भारत की वास्तुकला के इतिहास में महत्त्वपूर्ण है। 
  • आबू के प्रसिद्ध दिलवारा मंदिरों का निर्माण उसके शासनकाल में हुआ। 
  • उन्होंने अपने पुत्र कर्ण के लिए गद्दी को छोड़ दिया।

कर्ण (Karna)

  • अपने तीस साल के लंबे शासन काल के बाद भी कर्ण कुछ खास नहीं कर पाए। 
  • उन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया तथा अपने नाम पर एक शहर बनवाया जिसे अब अहमदाबाद के नाम से जाना जाता है।

जयसिम्ह सिद्धराजा (Jaysimh Sidharaja)

  • जयसिम्हा अपने पिता कर्ण के बाद गद्दी पर आए तथा उन्होंने सिद्धराजा की पदवी धारण की। 
  • उन्होंने लगभग पचास वर्षों तक शासन किया। 
  • उन्होंने अपने राज्य के विस्तार के लिए विजय यात्राएं कीं। 
  • उत्तर में, परमारों को पराजित कर उन्होंने भीनमल पर कब्जा कर लिया। उसके बाद उन्होंने शाकंभरी के चाहमनों को पराजित किया। 
  • उन्होंने चंदेल राज्य पर भी आक्रमण किया तथा कालिंजर और महोबा तक पहुंच गए। 
  • दक्षिण में उन्होंने कल्याण के चालुक्य राजा विक्रमादित्य VI को पराजित किया। 
  • जयसिम्ह की साहित्य में भी रुचि थी। 
  • उनके समय गुजरात अध्ययन तथा साहित्य का केन्द्र बन गया। 
  • उन्होंने आसपास अनेक कवियों एवं विद्वानों को जमा किया जिनमें हेमचंद्र भी थे जो व्याकरण की प्रसिद्ध पुस्तक सिद्ध हेमचंद्र के रचयिता थे। 
  • वे एक शैव थे तथा उन्होंने अनके मंदिरों का निर्माण करवाया जिसमें सद्धपुर का प्रसिद्ध रुद्र महाकाल मंदिर सबसे भव्य है। 
  • उनकी मृत्यु के बाद गद्दी पर उनके एक दूर के रिश्तेदार कुमारपाल ने कब्जा कर लिया।

कुमारपाल (Kumarpal)

  • हेमचंद्र के प्रभाव में आकर कुमारपाल जैन बन गए तथा पशुबलि पर रोक लगा दी। 
  • जैन धर्म के प्रति अपनी आस्था के बाद भी अपने पारिवारिक देव शिव के प्रति भी उन्होंने श्रद्धा का प्रदर्शन किया तथा जैन एवं ब्राह्मण, दोनों धर्मों के मंदिर बनवाए।

मूलराज II (Mulraaj II)

  • 1178 ई०पू० में मोइजुद्दीन मुहम्मद गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया परंतु मूलराज की माता के नेतृत्व में सोलंकियों ने मुसलमानों का विरोध किया तथा माउंट आबू के निकट उन्हें पराजित कर दिया। 
  • भारत पर तुर्की विजय के बाद कुतुबुद्दीन ने 1197 में गुजरात पर आक्रमण किया तथा अनहिलपटक को लूटा।

भीम II (Bheem – II)

  • भीम के समय गुजरात को पड़ोसियों से बचाने के लिए लवणप्रसंद तथा उनके योग्य पुत्र वीरधवल द्वारा इंतजाम किया गया।

बाद के शासक

  • भीम II के बाद त्रिभुन पाल आए तथा उनके बाद वीरमा जो वीरधवल के पुत्र थे। 
  • सांगदेव तथा उनका भतीजा कर्ण अगले दो शासक थे। 
  • कर्ण गुजरात का अंतिम हिंदू राजा था। 
  • शीघ्र ही अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर अधिकार कर लिया। कर्ण देवगिरी भाग गया परंतु उसकी रानी कमला देवी तथा पुत्री देवला देवी अलाउद्दीन के हाथ लग गईं।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (परमार राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

परमार राजवंश (Parmar Dynasty)

छठी शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में हूणों के साथ खाजर जनजाति भारत आई। ये खाजर गुर्जर के नाम से जाने जाते थे। भार कथाओं  के अनुसार प्रतिहार (परिहार), चालुक्य (सोलंकी), परमार (पवार) तथा चाहमन (चौहान) अग्नि से जन्मे हैं (अग्निकुल) तथा दक्षिणी राजस्थान के माउन्ट आबू में बलि के लिए बनी अग्निशाला में हुआ ।    

उपेन्द्र (Upendra)

  • परमार राज्य कालचुरियों से पश्चिम में स्थित था। 
  • उपेन्द्र, जिसे कृष्णराजा के नाम से भी जाना जाता था, परमार परिवार के संस्थापकों में से एक था। 
  • इनकी राजधानी धारा (आधुनिक धार) थी।

सियाक II (Siyak – II)

  • परमारों का इतिहास वास्तव में सियाक के गद्दी पर आने के साथ प्रारंभ होता है। 
  • कृष्ण III की मृत्यु से उत्पन्न हुई स्थिति में उसने अपनी स्वाधीनता की घोषणा कर दी। 
  • सियाक ने प्रतिहार तथा राष्ट्रकूट राज्य के एक बड़े हिस्से पर अधिकार कर लिया। 
  • उनके दो पुत्रों में से मुंज तथा सिंधुराज थे। 
  • मुंज उनके बाद गद्दी पर आए।

मुंज (Manju)

  • मुंज परमार वंश के सबसे मनमोहक व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। 
  • वे एक महान योद्धा थे तथा उनकी वीरता के कई गीत गाथागीतों में गाए जाते हैं। 
  • मुंज ने कालचुरी राजा युवराज II को पराजित किया। 
  • उनका मुख्य प्रयास था राजपूताना के क्षेत्र में अपने राज्य का विस्तार। 
  • मुंज ने उसके बाद अनहिलपाटक के चालुक्य राजा मूलराज को पराजित किया।
  • मुंज के प्रमुख शत्रु थे चालुक्य राजा तैल II, जिन्होंने दक्षिण में राष्ट्रकूटों को हटाकर अपनी सत्ता स्थापित कर ली। 
  • तैल ने 6 बार मालवा पर आक्रमण किया परंतु प्रत्येक बार उन्हें मुंज ने नाकाम कर दिया। 
  • इस समस्या को समाप्त करने के लिए मुंज ने तैल के विरुद्ध अभियान छेड़ा परंतु इसमे उसकी मृत्यु हो गई।

सिंधुराजा (Sindhuraaja)

  • मुंज के बाद उनके छोटे भाई सिंधुराज आए जिन तैल II से हारे हुए प्रदेश को पुन: छीन लिया। 
  • उन्होंने लता (दक्षिणी गुजरात) पर भी विजय प्राप्त की, परंतु उत्तरी के ऊपर अधिकार के उनके प्रयासों को मूलराज के पत्रकार राजा चामुंडराय ने विफल कर दिया।

भोज (Bhoj)

  • सिंधुराजा के बाद उनके छोटे पुत्र भोज आए जो परमार के सबसे महान राजा हुए। 
  • भोज ने अपने पचास वर्षों के शासन काल में अनेक राजाओं के खिलाफ अभियान चलाया, परंतु इसके बाद भी कोंकण को छोड़कर वह कोई भी नया क्षेत्र नहीं जीत की पाए।
  • उन्होंने विभिन्न विषयों पर 23 से भी ज्यादा पुस्तकें लिखीं। 
  • पातंजलि के योगसूत्र पर उनकी टिप्पणी उनके ज्ञान का एक प्रमुख उदाहरण है। 
  • उनकी समरांगनासूत्रधार कला एवं वास्तुकला पर एक श्रेष्ठ पुस्तक है। 
  • धनपाल, उवत जैसे अनेक विद्वान उनके दरबार में थे। 
  • उन्होंने भोजपुर शहर की स्थापना की तथा अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।

बाद के शासक 

  • भोज की मृत्यु के बाद परमार प्रभुत्व समाप्त हो गया। 
  • भोज की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के लिए विवाद हो गया। 
  • जयसिम्हा, जो गद्दी के लिए दावेदार था तथा सम्भवतः भोज का पुत्र था, ने अपने शत्रु चालुक्य विक्रमादित्य IV, जो दक्षिण के थे, की मदद से गद्दी पर अधिकार किया। 
  • इसके उपरांत जयसिम्हा विक्रमादित्य के मित्र बन गए तथा वेंगी के पूर्वी चालुक्यों के विरुद्ध असफल अभियान में उनकी मदद भी की। 
  • जयसिम्हा के बाद भोज के एक भाई उदयादित्य आए। 
  • जयसिम्हा ने मिलसा में उदयपुर का प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर मंदिर बनवाया। 
  • उदयादित्य के अनेक पुत्र थे तथा उनमें से दो-लक्षमादेव तथा नरवर्मन ने एक के बाद शासन किया।
  • माल्हक देव परमारों के अंतिम राजा हुए जिनके बारे में सूचना उपलब्ध है। 
  • अलाउद्दीन खिलजी ने माल्हक को पराजित कर उनकी हत्या कर दी तथा उसके बाद मालवा सल्तनत का ही एक प्रात बन गया।
  • परमारों की कई छोटी शाखाएं राजपताना के विभिन्न हिस्सा में शासन कर रही थीं – माउंट आबू, वगाड़ा (आधुनिक बांसवाड़ा तथा डूंगरपुर) जवाली (जालौर) तथा भीनमल (दक्षिण मारवाड़)। 
  • भोज के समय धार ‘साहित्य का मक्का’ हुआ करता था। 
  • धार के सरस्वती मंदिर में सरस्वती की मूर्ति परमार वास्तुकला की शीर्षता को दर्शाता है।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (राष्ट्रकूट राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

राष्ट्रकूट राजवंश (Rashtrakuta Dynasty)

राष्ट्रकूट (Rashtrakuta) शब्द का अर्थ है – राष्ट्र नामक क्षेत्रीय इकाई के अधिकार वाला अधिकारी। राष्ट्रकूट (Rashtrakuta) मूलतः महाराष्ट्र के लात्रालुर, आधुनिक लातूर के थे। वे कन्नड़ मूल के थे तथा कन्नड़ उनकी मातृभाषा थी।

दांतिदुर्ग (Dantidurg)

  • दांतिदुर्ग ने अपना जीवन चालुक्यों के सामंत के रूप में प्रारम्भ किया था। उसके एक दीर्घकालीन राज्य की नींव रखी। 
  • दांतिदुर्ग के विजय अभियानों के बारे में हमें दो स्रोतों से पता चलता है – प्रथम, समागद पत्र तथा द्वितीय, एलोरा का दशावतार गुफा अभिलेख। 

कृष्णा – I (Krishna – I)

  • दांतिदुर्ग के कोई संतान नहीं थी। उसके बाद गद्दी पर उसके चाचा कृष्णा-I आए। 
  • महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद कृष्णा-I दक्षिण की तरफ बढ़े। 
  • कृष्णा-I ने गंगावड़ी (आधुनिक मैसूर) पर आक्रमण किया जो उस समय गंगा राजा श्रीपुरुष के अधीन था। 
  • श्रीपुरुष को अपने अधीनस्थ के रूप में शासन की अनुमति देकर वे वापस लौट गए। 
  • एक महान विजेता के साथ-साथ कृष्णा-I एक महान निर्माता भी था। उन्होंने एलोरा में एक भव्य विशाल एकल शिलाखंडीय पत्थरों को काटकर बनाए गए मंदिर का निर्माण करवाया जिसे अब कैलाश के नाम से जाना जाता है।

गोविंद II (Govinda – II) 

  • कृष्णा-I के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र गोविंद-II गद्दी पर बैठा। 
  • उसने वस्तुतः सारा प्रशासन अपने छोटे भाई ध्रुव के भरोसे छोड़ दिया। ध्रुव महत्वाकांक्षी था, उसने स्वयं गद्दी पर कब्जा कर लिया।

ध्रुव (Dhruv)

  • गद्दी पर आने के तुरंत बाद ध्रुव ने उन राजाओं को दंडित करना प्रारंभ किया जिन्होंने उसके भाई का साथ दिया था। 
  • ध्रुव ने उत्तर भारत की राजनीति पर नियंत्रण स्थापित करने का साहसिक प्रयास किया जिसे सातवाहनों के बाद कोई भी दक्षिण भारतीय शक्ति नहीं कर पाई थी। 
  • जब वत्सराज दोआब में धर्मपाल के साथ युद्धरत था, ध्रुव ने नर्मदा पार कर मालवा पर बिना ज्यादा प्रतिरोध का सामना किए, अधिकार कर लिया। 
  • उसके बाद वह कन्नौज की तरफ बढ़ा तथा वत्सराज को इतनी बुरी तरह पराजित किया कि उसे राजस्थान के रेगिस्तान में शरण लेनी पड़ी। 
  • उत्तर की ओर बढ़ते हुए ध्रुव ने गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में धर्मपाल को पराजित किया। 
  • उनके चार पुत्र थे कारक, स्तंभ, गोविंद तथा इंद्र। कारक की मृत्यु पिता से पहले ही हो गई थी। बाकी बचे तीनों बेटों में से राजा ने सबसे योग्य गोविंद को अपना उत्तराधिकारी चुना तथा युवराज बना दिया।

गोविंद III (Govinda – III)

  • यद्यपि गोविंद शांति के साथ पद पर आया परंतु शीघ्र ही उसे अपने बड़े भाई स्तंभ के विरोध का सामना करना पड़ा जिसके गद्दी के दावे को निरस्त कर उसे राजा बनाया गया था। 
  • स्तंभ को पराजित करने तथा दक्षिण में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद गोविंद ने भी अपना ध्यान उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति की तरफ मोड़ा। 
  • गोविंद ने उत्तर भारत की तरफ रुख किया तथा नागभट्ट II को पराजित किया। 
  • शक्तिशाली गुर्जर प्रतिहार तथा पाल राजाओं के अलावा उत्तर भारत के दूसरे राजाओं को भी गोविंद III ने पराजित किया।

अमोघवर्ष – I (Amoghvarsh – I)

  • गोविंद III के बाद गद्दी पर उसका पुत्र सार्व आया जिसे अमोघवर्ष के नाम से जाना जाता है। 
  • उसे अपने 64 वर्ष के लम्बे शासन काल में शांति नसीब नहीं हुई। 
  • मालवा तथा गंगावड़ी उसके राज्य से छीन लिए गए।
  • युद्ध के स्थान पर उन्हें शांति, धर्म तथा साहित्य में ज्यादा रुचि थी। 
  • अपने जीवन के पूर्वार्द्ध में उनका झुकाव जैन धर्म की ओर हो गया तथा आदिपुराण के लेखक जिनसेन उनके मुख्य शिक्षक हुए। 
  • अमोघवर्ष खुद भी एक लेखक थे तथा उन्होंने साहित्यकारों को काफी प्रोत्साहन दिया। कन्नड़ भाषा में कविता पर पहली पुस्तक कविराजमार्ग के लेखक वे खुद थे। 
  • उन्होंने भवन निर्माण के क्षेत्र में भी काफी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मान्यखेत नगर का निर्माण करवाया तथा वहां एक वैभवशाली महल भी बनवाया। 
  • उनके बाद उनका पुत्र कृष्ण-II गद्दी पर आया।

कृष्णा – II (Krishna – II)

  • वह न तो एक अच्छा शासक था, न कुशल सेना अध्यक्ष। 
  • उनकी एकमात्र उपलब्धि गुजरात शाखा की समाप्ति थी। 
  • अपने पिता अमोघवर्ष की तरह कृष्ण भी जैन था।

इंद्र-III (Indra – III)

  • कृष्णा-II के बाद उनका पोता इन्द्र III आया। 
  • अपने महान पूर्वजों का गौरव बढ़ाते हुए इन्द्र ने गुर्जर प्रतिहार राजा महिपाल के साथ युद्ध छेड़ दिया। उसने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। 

अमोघवर्ष – II (Amoghvarsh – II)

  • इंद्र III के बाद उनके पुत्र अमोघवर्ष II आया परंतु गद्दी पर आने के एक वर्ष के अंदर उसकी मृत्यु हो गई तथा उसकी जगह उसके छोटे भाई गोविंद ने ली।

गोविंद – IV (Govinda – IV)

  • गोविंद एक क्रूर शासक था जिसके विरुद्ध व्यापक असंतोष था। 
  • उसके एक सरदार ने गोविंद IV के शासन को समाप्त करने में व्यापक सहयोग दिया तथा सत्ता अमोघवर्ष III के पास स्थानांतरित हो गई।

अमोघवर्ष III (Amoghvarsh – III

  • प्रशासन के बदले धर्म में इनकी ज्यादा रुचि थी। शासन का कार्य युवराज कृष्ण III के हाथों में था।

कृष्ण III (Krishna – III)

  • गद्दी पर आने के बाद कृष्ण ने कुछ वर्ष प्रशासन को सुधारने में बिताया। 
  • कृष्ण ने चोल राज्य पर अचानक हमला कर कांची तथा तंजौर पर अधिकार कर लिया। 
  • चोलों को उबरने में कुछ वर्ष लग गए तथा 949 ई०पू० में उत्तरी आरकोट में ताक्कोलम का निर्णायक युद्ध लड़ा गया। 
  • कृष्ण ने दक्षिण की ओर बढ़ते हुए केरल तथा पांड्य शासकों को भी पराजित किया तथा कुछ समय तक रामेश्वरम् पर उसका अधिकार रहा। 
  • उनसे जीते हुए प्रदेश में अनेक मंदिरों का निर्माण करवा जिसमें रामेश्वरम के कृष्णवेश्वर तथा गंदमातंड्य मंदिर प्रमुख हैं। 
  • अपने शासन के अंतिम दिनों में कृष्ण ने मालवा के परमार शासक हर्ष सियाक पर आक्रमण किया तथा उज्जैन पर अधिकर कर लिया।
  • कृष्ण की मृत्यु के कुछ वर्षों में ही तैलाप इतना शक्तिशाली हो गया कि उसने राष्ट्रकूटों को उखाड़ फेंका तथा कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य वंश की स्थापना की। 

खोट्टिगा (Khottiga)

  • कृष्ण III के बाद उसका भाई खोट्टिगा आया। 
  • सियाक ने राष्ट्रकूट राजधानी मालखेद पर आक्रमण किया तथा खोट्टिगा इस अपमान के साथ ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह पाया। 
  • उसके बाद उसका भतीजा करक II आया।

करक II (Karaka – II)

  • जब करक गद्दी पर आया उस समय तक राज्य की प्रतिष्ठा को काफी नुकसान हो चुका था। 
  • नए राजा के कुशासन के कारण स्थिति और भी खराब हो गई। 
  • चालक्य वंश का तेल II (तैलाप) ने करक को गद्दी पर आने के 18 महीनों के अंदर उसका दक्षिण का राज्य छीन लिया। 

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (सेन राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

सेन राजवंश (Sen Dynasty)

पाल शासन के बाद सेन (Sen) परिवार ने बंगाल पर शासन किया। उसका संस्थापक सामंतसेन था जिसे ‘ब्रह्मक्षत्रिय’ कहा जाता था। ब्रह्मक्षत्रिय की उपाधि से लगता है कि सामंतसेन ब्राह्मण था, लेकिन उसके उत्तराधिकारियों ने स्वयं को सिर्फ क्षत्रिय कहा। सामंतसेन के पुत्र हेमंतसेन ने बंगाल की अस्थिर राजनीतिक स्थिति का फायदा उठाते हुए एक स्वतंत्र राज्य बनाया।

 

विजय सेन (Vijay Sen)

  • हेमंतसेन के पुत्र विजयसेन ने 60 वर्ष के भी अपने लंबे शासनकाल में सेन परिवार को लोक प्रसिद्धी प्रदान की जीवन की ।
  • अपने शुरुआत एक साधारण सरदार के रूप में कर विजय ने लगभग समस्त बंगाल को जीता तथा इस परिवार की महानता की नींव डाली।
  • विजयसेन ने परमेश्वर, परमभट्टक, महाराजाधिराजा जैसी कई अन्य शाही उपाधियां धारण कीं। 
  • उसकी दो राजधानियां थीं – एक पश्चिम बंगाल में विजयपुरी तथा दूसरी, बांगलादेश विक्रमपुरा । 
  • प्रसिद्ध कवि श्री हर्ष ने उसकी स्मृति में विजय पशानि की रचना की।

बल्लाल सेन (Ballal Sen)

  • विजयसेन का उत्तराधिकारी उसका पुत्र बल्लालसेन था। 
  • बल्लालसेन का शासनकाल सामान्य तथा शांतिपूर्ण रहा तथा उसने अपने पिता से प्राप्त राज्य क्षेत्र को ज्यों का त्यों बचाए रखा। 
  • बल्लालसेन महान विद्वान था। 
  • बल्लालसेन ने चार पुस्तकें लिखीं जिनमें से दो ही अभी प्राप्त हैं। (दानसागर और अद्भुत सागर) । 
  • पहली पुस्तक शकुन – अपशकुन पर है जबकि दूसरी का विषय खगोल विषय है।

लक्ष्मण सेन (Laxman Sen)

  • वह 60 वर्ष की उम्र में 1179 ई० में अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। 
  • अपने शासन काल के अंत में उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। आंतरिक विद्रोहों से कमजोर हुई सेन शक्ति को बख्तियार खिलजी के आक्रमण ने ध्वस्त कर दिया। 
  • तबाकत-इ-नासिटी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण का विस्तृत विवरण मिलता है।
  • लक्ष्मण सेन का शासनकाल साहित्यिक गतिविधियों के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। 
  • वह धर्मपरायण वैष्णव था। 
  • गीत गोविंद के लेखक तथा बंगाल के प्रसिद्ध वैष्णव कवि जयदेव उसके दरबार में रहते थे। 
  • पवनदूत के लेखक धोयी तथा आयशप्त के लेखक गोवर्धन अन्य प्रसिद्ध कवि थे, जो उसके दरबारी थे। 
  • स्वयं लक्ष्मण सेन ने अपने पिता द्वारा शुरू किए गए अद्भुत सागर नामक पुस्तक को पूर्ण किया। 
  • तबाकत-ई-नासिटी के अनुसार लक्ष्मण सेन के वंशज बंगाल के कुछ हिस्सों पर कुछ दिन तक शासन करते रहे।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (पाल वंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

पाल वंश (Pal Dynasty)

गोपाल (Gopal)

  • सम्भवतः बंगाल के मुख्य लोगों ने गोपाल को समूचे राज्य का शासक चुना। 
  • गोपाल ने पाल वंश (Pal Dynasty) की स्थापना की, जिसने बंगाल में लगभग चार शताब्दी तक शासन किया। 
  • उसका जन्म सम्भवतः पुंडरवर्धन (बोगरा जिला) में हुआ था। 
  • गोपाल की वास्तविक शासन सीमा को तय करना कठिन है लेकिन सम्भवतः उसने सम्पूर्ण बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। 
  • गोपाल बौद्ध धर्म का प्रबल अनुयायी था और ओदंतपुरी (आधुनिक बिहार शरीफ) का बौद्ध बिहार सम्भवतः उसी ने बनवाया था।

धर्मपाल (Dharmpal)

  • गोपाल का उत्तराधिकारी उसका पुत्र धर्मपाल था जिसने पाल राज्य को महानता प्रदान की। 
  • प्रतिहार शासक वत्सराज ने धर्मपाल को एक युद्ध में हरा दिया, जो गंगा के दोआब क्षेत्र में कहीं लड़ा गया था।
  • धर्मपाल के अधीन पाल साम्राज्य काफी विस्तृत था। बिहार और बंगाल सीधे उसके शासन के अधीन आते थे। 
  • कन्नौज का राज्य धर्मपाल पर आश्रित था तथा वहां के शासक को धर्मपाल ने नामजद किया था। 
  • कन्नौज से आगे पंजाब, राजपूताना, मालवा तथा बेरार के कई छोटे-छोटे राज्यों ने भी धर्मपाल की अधीनता स्वीकार की। 
  • धर्मपाल के विजय अभियान को उसके प्रतिहार प्रतिद्वन्द्वी नागभट्ट द्वितीय ने चुनौती दी तथा कन्नौज से उसके आश्रित चक्रयुद्ध को खदेड़ दिया। 
  • लगभग 32 वर्षों के शासन काल के बाद धर्मपाल की मृत्यु हो गई तथा उसके विशाल राज्य का स्वामी उसका बेटा देवपाल बना। 
  • धर्मपाल बौद्ध था तथा उसने भागलपुर के निकट विक्रमशील के प्रसिद्ध महाविहार का निर्माण कराया। 
  • सोमपुर (पहाड़पुर) के विहार के निर्माण का श्रेय भी उसी को दिया जाता है। 
  • तारानाथ के अनुसार धर्मपाल ने 50 धार्मिक संस्थानों की स्थापना की तथा वह महान बौद्ध लेखक हरिभद्र का संरक्षक भी था।

देवपाल (Devpal)

  • धर्मपाल का उत्तराधिकारी देवपाल बना जिसे सर्वाधिक शक्तिशाली पाल शासक माना जाता है। 
  • शिलालेखों से प्राप्त जानकारी के अनसार उसे हिमालय से विंध्य तक तथा पूर्वी से पश्चिमी समुद्र तक के क्षेत्रों को जीतने का श्रेय दिया जाता है। 
  • कहा जाता है कि उसने गुर्जरों तथा हूणों को पराजित किया और उत्कल तथा कामरूप पर अधिकार कर लिया। 
  • अपने पिता की तरह देवपाल भी बौद्ध था तथा इस रूप में उसकी ख्याति भारत के बाहर कई बौद्ध देशों में फैली। 
  • जावा के शैलेन्द्र शासक बल पुत्र देव ने देवपाल के पास अपना राजदूत भेजकर उससे नालंदा के एक बौद्ध विहार को पांच गांव दान में देने का आग्रह किया। देवपाल ने आग्रह स्वीकार कर लिया। 
  • बौद्ध कवि वज्रदत्त देवपाल के दरबार में रहता था जिसने लोकेश्वर शतक की रचना की। 
  • एक अरब व्यापारी सुलेमान, जो भारत आया था और जिसके अपनी यात्रा का विवरण 85 ई० में लिखा, पाल राज का नाम रूमी बताता है। 

परवर्ती पाल (Parvarti Pal)

  • देवपाल की मृत्यु के साथ ही पाल साम्राज्य का गौरव समाप्त हो गया तथा वह फिर से प्राप्त नहीं किया जा सका। 
  • उसके उत्तराधिकारियों के काल में राज्य का विघटन धीरे-धीर होता रहा। 
  • देवपाल का उत्तराधिकारी विग्रहपाल था। 
  • तीन या चार साल के छोटे शासन काल के बाद विग्रहपाल ने गद्दी त्याग दी।

 

विग्रहपाल के पुत्र और उत्तराधिकारी नारायण पाल का शासन काल बड़ा था।  राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष ने पाल शासक को पराजित किया। नारायणपाल को न सिर्फ मगध से हाथ धोना पड़ा अपितु पाल राज्य का मुख्य भाग उत्तरी बंगाल भी उसके हाथ से निकल गया। यद्यपि अपने शासन के अंतिम चरणों में उसके प्रतिहारों से उत्तरी बंगाल और दक्षिणी बिहार को छीन लिया क्योंकि प्रतिहार राष्ट्रकूटों के आक्रमण के कारण कमजोर हो गए थे।

नारायणपाल का उत्तराधिकारी उसका पुत्र राज्यपाल बना तथा राज्यपाल का उत्तराधिकारी उसका पुत्र गोपाल द्वितीय था।  इन दो शासकों का शासन पाल शक्ति के लिए अनर्थकारी सिद्ध हुआ। चंदेल तथा कालचुरी आक्रमणों के कारण पाल साम्राज्य चरमरा गया।

पालों की गिरती हुई साख को कुछ हद तक महिपाल प्रथम ने 98 ई०पू० में अपने राज्यारोहण के बाद संभाला। महिपाल के शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बंगाल पर राजेन्द्र चोल का आक्रमण है। राजेन्द्र चोल के उत्तरी अभियान का विवरण उसके तिरुमलाई शिलालेख में मिलता है। यद्यपि चोल आक्रमण द्वारा बंगाल में उसकी संप्रभुता स्थापित नहीं हो सकी। उत्तरी और पूर्वी बंगाल के अलावा महिपाल बर्दवान प्रभाग के उत्तरी भाग को भी वापस पाल राज्य में मिलाने में सफल रहा। महिपाल की सफलता उत्तरी तथा दक्षिणी बिहार में ज्यादा प्रभावशाली रही। वह बंगाल के एक बड़े भाग पर दोबारा अपना अधिकार जमाने में सफल रहा। पाल वंश का अंतिम शासक मदनपाल था।

 

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मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश – (प्रतिहार राजवंश)

मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश

प्रतिहार राजवंश (Pratihar Dynasty)

उत्पत्ति 

  • प्रतिहार प्रसिद्ध गुर्जरों की एक शाखा थे। 
  • गुर्जर उन मध्य एशियाई कबीलों में से एक थे, जो गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद हूणों के साथ आए थे। 
  • अबु जैद एवं अल-मसूदी जैसे अरब लेखकों ने उत्तर के गुर्जरों से उनके संघर्ष का उल्लेख किया है। 
  • सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण कन्नड़ के कवि पंपा का है जिसने महीपाल को ‘गुर्जरराज’ कहा है। 
  • यह नाम राष्ट्रकूट दरबार के ‘प्रतिहार’ (उच्च अधिकारी) पद धारण करने वाले राजा से व्युत्पन्न है।

नागभट्ट प्रथम (Nagabhatta I)

  • प्रतिहार राजवंश आठवीं शताब्दी के मध्य में लोकप्रिय हुए, जब उनके शासक नागभट्ट प्रथम ने अरबों के आक्रमण से पश्चिम भारत की रक्षा की तथा भड़ौच तक अपना प्रभुत्व स्थापित किया। 
  • उसने अपने उत्तराधिकारियों को मालवा, गुजरात तथा राजस्थान के कुछ हिस्सों समेत एक शक्तिशाली राज्य सौंपा। 
  • नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी उसके भाई के पुत्र ककुष्ठ तथा देवराज थे, तथा दोनों ही महत्त्वपूर्ण नहीं थे।

वत्सराज (Vatsaraj)

  • वत्सराज एक शक्तिशाली शासक था तथा उसने उत्तर भारत में एक साम्राज्य की स्थापना की। 
  • उसने प्रसिद्ध भांडी वंश को पराजित किया जिनकी राजधानी सम्भवतः कन्नौज थी। 
  • उसने बंगाल के शासक धर्मपाल को पराजित किया । 
  • वत्सराज को राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने बुरी तरह पराजित किया।

 

नागभट्ट द्वितीय (Nagabhatta II)

  • वत्सराज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय था जिसने अपने परिवार की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। 
  • उसे राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय से पराजित होना पड़ा। 
  • नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज पर आक्रमण कर धर्मपाल के नामजद शासक चक्रयुद्ध को पदच्युत किया तथा कन्नौज को प्रतिहार राज्य की राजधानी बनाया। 
  • प्रतिहार शासन ने धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर तक अधिकार कर लिया।
  • उसके पोते के ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने अनर्त्त (उत्तरी कठियावाड़), मालवा या मध्य भारत, मत्स्य या पूर्वी राजपूताना, कीरात (हिमालय का क्षेत्र), तुरूष्क (पश्चिम भारत के अरब निवासी) तथा कौशांबी (कोसम) क्षेत्र में वत्सों को पराजित किया। 
  • नागभट्ट द्वितीय के अधीन प्रतिहार साम्राज्य की सीमा में राजपूताना के भाग, आधुनिक उत्तर प्रदेश का एक बड़ा भाग, मध्य भारत, उत्तरी कठियावाड़ तथा आस-पास के क्षेत्र थे।
  • नागभट्ट द्वितीय का उत्तराधिकारी उसका पुत्र रामभद्र था जिसके तीन वर्षों के छोटे शासन काल में पाल शासक देवपाल की आक्रामक नीतियों के कारण प्रतिहारों की शक्ति पर ग्रहण लग गया।

मिहिर भोज (Mihir Bhoj)

  • रामभद्र के पुत्र मिहिरभोज के राज्यारोहण के साथ ही प्रतिहारों की शक्ति दैदीप्यमान हो गई। 
  • उसने अपने वंश का वर्चस्व बुंदेलखंड में पुनः स्थापित किया तथा जोधपुर के प्रतिहारों (परिहार) का दमन किया। 
  • भोज के दौलतपुर ताम्रपत्र अभिलेख से ज्ञात होता है कि प्रतिहार शासक मध्य तथा पूर्वी राजपूताना में अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल रहा था। 
  • उत्तर में उसका वर्चस्व हिमालय की पहाड़ियों तक स्थापित हो चुका था।
  • मिहिरभोज, पाल शासक देवपाल से पराजित हुआ। 
  • पाल शासक देवपाल की मृत्यु के बाद मिहिरभोज ने कमजोर नारायण पाल को पराजित कर उसके पश्चिमी क्षेत्रों के बड़े भाग पर अधिकार कर लिया। 
  • मिहिरभोज का शासन काल काफी लम्बा 46 वर्षों तक का था। 
  • अरब यात्री सुलेमान ने उसकी उपलब्धियों का उल्लेख किया है।

महेंद्रपाल प्रथम (Mahendrapal I)

  • मिहिरभोज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र महेंद्र पाल प्रथम था। 
  • उसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मगध तथा उत्तरी बंगाल की विजय थी। 
  • महेंद्र पाल के दरबार का सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति राजशेखर है जिसकी अनेक रचनाएं हैं- कर्पूरमंजरी, बाल रामायण, बाल तथा भारत, काव्य मीमांसा।

महिपाल (Mahipal)

  • महेंद्रपाल की मृत्यु के बाद गद्दी पर अधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया। 
  • पहले उसके पुत्र भोज द्वितीय ने राजगद्दी पर अधिकार कर लिया। 
  • एक बार फिर इंद्र तृतीय के अधीन राष्ट्रकूटों ने प्रतिहारों पर प्रहार किया तथा कन्नौज नगर को नष्ट कर दिया।
  • इंद्र तृतीय के दक्कन वापस लौट जाने के बाद महिपाल को अपनी स्थिति सुधारने का मौका मिला। 
  • अरब यात्री अलमसूदी, जो 915-16 में भारत आया था, ने कन्नौज के राजा की शक्ति तथा उसके संसाधनों का उल्लेख किया है जिसका राज्य पश्चिम में सिंध तक तथा दक्षिण में राष्ट्रकूट सीमा तक था। 
  • अरब यात्री ने राष्ट्रकूटों तथा प्रतिहारों के संघर्ष की पुष्टि की है तथा प्रतिहारों की महत्त्वपूर्ण सेना का उल्लेख किया है।

सन् 1036 ई के एक अभिलेख में उल्लिखित यशपाल सम्भवतः इस वंश का अंतिम शासक था।

 

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