History of Panwar Dynasty in Uttarakhand

पंवार वंश की प्रमुख शब्दावलियाँ

पंवार वंश की प्रमुख शब्दावलियाँ 

इस से पहले हमें यहाँ पर पंवार वंश का इतिहास, पंवार वंश की वंशावली के बारे में देख चुकें है। इस लेख में हम उत्तराखंड के पंवार वंश में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख शब्दावलियाँ के बारे में जानेंगे ।

पंवार वंश में युवराज को कहा जाता था – टीका

पंवार वंश में राजा को कहा जाता था – रजबार 

पंवार वंश में राजा का सर्वोच्च अधिकारी होता था – नरेश 

पंवार वंश में राज्य का सर्वोच्च मंत्री को कहा जाता था – मुखतार 

पंवार वंश में परगना का प्रशासक को कहा जाता था – थोकदार 

पंवार वंश में परगना की सबसे छोटी इकाई होती थी – पट्टी 

पंवार वंश में बाँस और रिंगाल के बर्तन बनाने वाले को कहते थे – रुड़िया 

पंवार वंश में काष्ठ भाण्ड बनाने को कहा जाता था – चिन्याल 

पंवार वंश में वस्त्र सिलने वाले को कहा जाता था – औजी/औझी 

पंवार वंश में शराब बनाने वाले को कहा जाता था – कलाल 

पंवार वंश में भूमि मापने की सबसे छोटी इकाई थी – मुट्ठी 

पंवार वंश में भूमि माप की सबसे बड़ी इकाई – ज्यूला 

पंवार कालीन टकसाल स्थित है – श्रीनगर 

पंवार वंश में दस (10) टका होता था – एक तिमासी 

पंवार वंश में चालीस (40) टका होता था – एक गढ़वाली रुपया

पंवार वंश (Paurav Dynasty)

 

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उत्तराखंड में पंवार वंश का इतिहास

पंवार वंश (Panwar Dynasty)

कत्यूरी वंश के पतन के पश्चात् यदि पंवार (Panwar) कालीन गढ़वाल की बात की जाय तो सर्व प्रमुख यह उभरकर आता है कि वहाँ पंवार वंश (Panwar dynasty) का विस्तार किस प्रकार हुआ? क्योंकि पंवार वंश (Panwar dynasty) से पूर्व गढ़वाल सहित समूचे उत्तराखण्ड में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था। क्षेत्र छोटी-छोटी राजनीतिक इकाईयों में बंटा हुआ था। उस बिखराव के मध्य एक महत्वपूर्ण राजनीतिक इकाई चाँदपुर गढ़ी में पंवार शासकों की भी थी। जिसने आगे चलकर गढ़वाल में एक संगठित राज्य की स्थापना की थी।

चाँदपुर गढ़ी में पंवार वंश का संस्थापक शासक कनकपाल व उसके उत्तराधिकारियों ने अपने राज्य का सीमा विस्तार किया। एक ओर गढ़वाल में लगभग 52 गढ़ियों का बोलबाला था, दूसरी ओर बार-बार कुमाऊँ के शासकों द्वारा चाँदपुर गढ़ी पर आक्रमण किये जा रहे थे। इस अस्थिरता के मध्य पंवार शासकों ने दोनों संकट आन्तरिक व वाह्य का सामना करते हुए गढ़वाल की सभी छोटी-छोटी ठकुराईयों को पराजित कर गढ़वाल को एक सूत्र में बाँधा तथा राजधानी चाँदपुर गढ़ी से स्थानान्तरित कर गढ़वाल क्षेत्र के मध्य स्थान अलकनन्दा नदी के किनारे श्रीनगर में स्थापित की थी।

1804 तक पंवार शासकों (Panwar dynasty) ने अपनी सत्ता का संचालन किस प्रकार किया था तथा गढ़वाल में स्थिरता स्थापित कर एक स्थायी राजनीतिक, सामाजिक सांस्कृतिक, न्यायिक व आर्थिक ढाँचा भी स्थापित किया था, जो गोरखों के आगमन तक चलता रहा था।

गढ़वाल में पंवार वंश की स्थापना
(Establishment of Panwar Dynasty in Garhwal)

कत्यूरी अवसान के पश्चात् जब गढ़वाल में बहुराजकता का काल आरम्भ हुआ तो गढ़वाल क्षेत्र छोटी-छोटी इकाईयों में बंट गया था कहा जाता है तब गढ़वाल में 52 गढ़िया या किले स्थापित थे उनका संचालन छोटे-छोटे राजा कर रहे थे, उन्हीं इकाईयों में से चाँदपुर गढ़ी का पंवार राजवंश भी एक था। इस वंश के शासकों ने धीरे-धीरे गढ़वाल के छोटे-छोटे सामंतों व राजाओं को पराजित कर गढ़वाल को एक सूत्र में बाँधकर गढ़ राज्य की स्थापना की थी। अर्थात सभी गढ़नरेशों को अपने अधीन कर लिया। अतः यहीं से पवांर वंश (Panwar dynasty) का विस्तार हुआ था। जिसने फिर गढ़वाल में 1804 ई. तक शासन किया था इस प्रकार चाँदपुर गढ़ी में पंवार वंश की स्थापना हुई थी।

कनकपाल (Kanakpal)

चाँदपुर गढ़ी में पंवार राजवंश (Panwar dynasty) के संस्थापक के सम्बन्ध में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं जैसे- हार्डविक, विलियम्स, मौलाराम, हरिकृष्ण रतूड़ी, अटकिन्सन, डबराल, वैकेट, अल्मोड़ा सूची व विभिन्न शिलालेख आदि। इन सभी मतों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्वी गढ़वाल में स्थित चाँदपुर गढ़ी का शासक भानुप्रताप की दो पुत्रिया थी उसने ज्येष्ठ पुत्री का विवाह कुमाऊँ के राजकुमार राजपाल के साथ किया व छोटी पुत्री का विवाह धारानगरी का राजकुमार कनकपाल जो तब हरिद्वार यात्रा पर आया था उसके साथ किया था तथा चाँदपुर गढ़ी कनकपाल को ही सौंपकर अपना बद्रिकाश्रम चले गया था। यहीं से कनकपाल ने पंवार वंश को आगे बढ़ाया।

दूसरा मत यह भी है कि भिलंगना उपत्यको का राजा सोनपाल की पुत्री का विवाह कांदिल पाल से हुआ और दहेज में चाँदपुर गढ़ी मिलने के साथ ही इस वंश का उत्थान हुआ था। इन दोनों मतो में आधार स्वरुप साम्यता को देखते हुए ऐसा लगता है कि कनकपाल ही गढ़वाल के पंवार वंश (Panwar dynasty) का संस्थापक था क्योंकि गढ़वाल की जनश्रुतियों में भी अधिकांश कनकपाल का उल्लेख होता है। परन्तु कनकपाल से जगतपाल तक के शासकों के सम्बन्ध में किसी प्रकार के प्रमाण या विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है अधिकांश श्रोतों के अनुसार गढ़वाल के पंवार राजवंश (Panwar dynasty) का इतिहास विस्तार के साथ अजयपाल के राज्यकाल से ही आरम्भ होता है।

पंवार वंश की वंशावली के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें

Source –

  • पाण्डे, बदरी दत्त : कुमाऊँ का इतिहास, अल्मोड़ा बुक डिपो अल्मोड़ा, 1990–1997
  • डबराल, शिवप्रसादः उत्तराखण्ड का इतिहास, भाग- 1-4, वीरगाथा प्रकाशन, दोगड्डा, 1967-71
  • डबराल, शिवप्रसाद : उत्तराखण्ड का इतिहास (गढ़वाल नवीन इतिहास), 1000-1804 ई., भाग- 12, वीरगाथा प्रकाशन, दोगड्डा , श्री कृर्म द्वादशी, 2044
  • कठोच, यशवन्त सिंह : उत्तराखण्ड का नवीन इतिहास, बिनसर पब्लिशिंग कम्पनी- देहरादून, 2010
  • जोशी, एम.पी. : उत्तराचंल, कुमाऊँ-गढ़वाल, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा, 1990
  • नेगी, एस.एस. : मध्य हिमालय का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 1988

 

पंवार वंश (Paurav Dynasty)

 

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