121. दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 437 संबंधित है
(1) जमानतीय अपराध के मामले में जमानत से
(2) अजमानतीय अपराध के मामले में जमानत से
(3) अग्रिम जमानत से
(4) शमनीय अपराध के मामले में जमानत से
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122. दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 के अधीन समन की तालीम कौन कर सकता है ?
(1) पुलिस अधिकारी
(2) न्यायालय का अधिकारी
(3) लोक सेवक
(4) इनमें से कोई भी
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123. सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 2(17) लोक अधिकारी को परिभाषित करती है जिसमें सम्मिलित है :
(1) सरकारी सेवक
(2) सेना का कमीशण्ड ऑफिसर
(3) प्रत्येक न्यायाधीश
(4) ये सभी
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124. लघुवाद न्यायालय किस न्यायालय के अधीनस्थ है ?
(1) केवल उच्च न्यायालय के
(2) केवल जिला न्यायालय के
(3) उच्च न्यायालय एवं जिला न्यायालय दोनों के
(4) राजस्व न्यायालय के
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125. अन्त:कालीन लाभ का दावा किया जा सकता है
(1) केवल चल सम्पत्ति के संबंध में
(2) केवल स्थावर सम्पत्ति के संबंध में
(3) चल एवं स्थावर दोनों सम्पत्ति के संबंध में
(4) बौद्धिक सम्पत्ति के संबंध में .
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126. सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 9 के अन्तर्गत निम्नलिखित में से कौन सा वाद पोषणीय नहीं है ?
(1) विनिर्दिष्ट अनुतोष के लिए वाद
(2) पूजा करने के अधिकार से संबंधित वाद
(3) धार्मिक जुलूस निकालने से संबंधित वाद
(4) पूर्णत: धार्मिक अधिकार पर आधारित वाद
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127. निम्नलिखित में से कौन सा आदेश डिक्री नहीं है ?
(1) प्रत्याक्षेप खारिज करने का आदेश
(2) वाद के उपशमन का आदेश
(3) वाद-पत्र नामंजूर करने का आदेश
(4) कमिश्नर नियुक्त करने का आदेश
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128. “हर वाद उस निम्नतम श्रेणी के न्यायालय में संस्थित किया जायेगा जो उसका विचारण करने के लिए सक्षम है।” उक्त प्रावधान संबंधित है
(1) प्रादेशिक क्षेत्राधिकार से
(2) धन संबंधी क्षेत्राधिकार से
(3) विषय-वस्तु संबंधित क्षेत्राधिकार से
(4) अपीलीय क्षेत्राधिकार से
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129. सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 24 के अन्तर्गत निम्न में से कौन सी शक्ति उच्च न्यायालय को निहित नहीं है ?
(1) किसी वाद को जो उसके सामने विचारण के लिए लंबित है, अपने अधीनस्थ किसी ऐसे न्यायालय को अन्तरित करने की शक्ति जो उसका विचारण करने के लिए सक्षम है।
(2) अधीनस्थ न्यायालय में लंबित किसी वाद को प्रत्याहरण करने एवं उसका विचारण करने की शक्ति
(3) किसी ऐसे वाद को जो उसके सामने विचारण के लिए लम्बित है, उसे किसी अन्य उच्च न्यायालय में अन्तरित करने की शक्ति
(4) किसी वाद को उस न्यायालय से अन्तरित करने की शक्ति, जिसे उसका विचारण करने की अधिकारिता नहीं है ।
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130. में किसी वाद का लम्बित होना, उसी वाद हेतुक पर आधारित किसी वाद का विचारण करने से भारत में/के न्यायालयों को प्रवरित नहीं करता।
(1) जिला न्यायालय
(2) उच्च न्यायालय
(3) विदेशी न्यायालय
(4) उच्चतम न्यायालय
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131. निम्नलिखित में से कौन सी डिक्री की अन्तर्वस्तु नहीं है ?
(1) मामले का विस्तृत कथन
(2) दावे की विशिष्टियाँ
(3) पक्षकारों को अनुदत अनुतोष
(4) वाद में उपगत खर्चों की रकम
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132. सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का भाग IV संबंधित है
(1) निष्पादन से
(2) आनुषंगिक कार्यवाहियों से
(3) विशिष्ट मामलों में वाद से
(4) विशेष कार्यवाहियों से
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133. केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध वाद की दशा में, जहाँ वह रेल से संबंधित हो, पूर्व लिखित सूचना परिदत्त करने की आवश्यकता होती है
(1) केन्द्रीय सरकार के सचिव को
(2) रेल के प्रधान प्रबन्धक को
(3) रेल मंत्री को
(4) गृह मंत्री को
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134. ऐसे कार्य की बाबत जो कि लोक अधिकारी द्वारा अपनी पदीय हैसियत में किया गया है, लोक अधिकारी के विरुद्ध कोई वाद तब तक संस्थित नहीं किया जाएगा जब तक कि लिखित सूचना परिदत्त किये जाने के पश्चात् अवसान न हो गया हो।
(1) दो सप्ताह
(2) दो माह
(3) छः सप्ताह
(4) छ: माह
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135. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 25 के अन्तर्गत निम्न में से किस न्यायालय को अपील के अन्तरण की शक्ति निहित है ?
(1) उच्चतम न्यायालय को
(2) उच्च न्यायालय को
(3) जिला न्यायालय को
(4) लघुवाद न्यायालय को
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136. लोक अधिकारी के विरुद्ध ऐसे कार्य के बाबत जो कि उसकी पदीय हैसियत में किया गया है, के वाद में लोक अधिकारी को कौन सा विशेषाधिकार नहीं दिया गया है ?
(1) उस पर गिरफ्तार होने का दायित्व नहीं होगा।
(2) उसे स्वीय उपसंजाति से छूट दी जा सकती है।
(3) सरकार को पक्षकार के रूप में संयोजित किया जायेगा।
(4) डिक्री के निष्पादन में उसकी संपत्ति पर कुर्क किये जाने का दायित्व नहीं होगा।
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137. लोक अधिकारी के विरुद्ध ऐसे कार्य के बाबत जो कि उसकी पदीय हैसियत में किया गया है, के वाद में पारित डिक्री की तारीख से संगणित ______ की अवधि तक उस डिक्री के तुष्ट न होने पर ही डिक्री के निष्पादन का आदेश निकाला जाएगा।
(1) तीन दिवस
(2) तीन सप्ताह
(3) तीन मास
(4) तीन वर्ष
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138. अत्यावश्यक या तुरन्त अनुतोष अभिप्राप्त करने के लिए सरकार के विरुद्ध या लोक अधिकारी के विरुद्ध ऐसे कार्य के बाबत जो कि उसकी पदीय हैसियत में किया गया है, के वाद में यदि न्यायालय पक्षकारों की सुनवाई के बाद संतुष्ट हो जाए कि अत्यावश्यक या तुरन्त अनुतोष देने की आवश्यकता नहीं है, तो न्यायालय
(1) वाद-पत्र नामंजूर कर देगा।
(2) उस सरकार या लोक अधिकारी के पक्ष में डिक्री पारित कर देगा।
(3) वाद-पत्र वापस कर देगा कि अपेक्षाओं का पालन करने के पश्चात् प्रस्तुत किया जाए ।
(4) वादी पर शास्ति अधिरोपित कर देगा।।
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139. सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश XXVII संबंधित है
(1) सरकार द्वारा या उसके विरुद्ध या अपनी पदीय हैसियत में लोक अधिकारियों द्वारा या उनके विरुद्ध वाद से
(2) संक्षिप्त प्रक्रिया से
(3) स्थगन से
(4) पक्षकारों की मृत्यु, उनका विवाह और दिवाला से
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140. निम्नलिखित में से किस आधार पर न्यायालय वाद-पत्र को लौटा देगा ?
(1) वाद-पत्र वाद हेतुक प्रकट नहीं करता है।
(2) वाद-पत्र दो प्रतियों में प्रस्तुत नहीं किया जाता है।
(3) वाद-पत्र के कथन से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है।
(4) वाद-पत्र उस न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिसमें वाद संस्थित किया जाना चाहिए था।
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