ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रारंभिक आंदोलन भाग – 1

कट्टाबोम्मन का विद्रोह (Rebellion of Kattabomman)

कट्टाबोम्मन का विद्रोह तमिलनाडु में तीरूनेलवेली में वर्ष 1792 – 99 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व वीरपांड्य कट्टाबोम्मन (पंचालावुरिचि) के शासक ने किया था ।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों द्वारा कट्टाबोम्मन को अधिराज्य मानने के लिए दबाव

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • कट्टाबोम्मन द्वारा 7 वर्षों तक अंग्रेजों की अवज्ञा; तथा अंग्रेजों द्वारा उस पर निर्णायक कब्जा तथा वीरपांड्य कट्टाबोम्मन को फांसी पर लटका देना (16 अक्टूबर 1799), 
  • वीरपांड्य कट्टाबोम्मन के क्षेत्रों पर अंग्रेजों द्वारा अधिकार कर लेना (1799)। 

पायक विद्रोह (Rebellion of Payak )

पायक विद्रोह उड़ीसा में वर्ष 1804 – 06 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व पहली बार खुरदा के राजा एवं बाद में जगबन्धु ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • उड़ीसा पर अंग्रेजों का कब्जा (1803)

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • खुरदा के राजा द्वारा पायको के सहयोग से एक विद्रोही संगठन बनाने की कोशिश। 
  • अंग्रेजों द्वारा उसके क्षेत्रों को अपने अधिकार में लेना नेतृत्व में 1804 और 1806 ई० के बाद में बीच पायकों के बीच अशांति, 
  • जंगबंधु के नेतृत्व में पायकों का उदय एवं अंग्रेजों द्वारा दमन।
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वेलु थांबी का विद्रोह (Rebellion of Velu Thambi)

वेलु थांबी का विद्रोह त्रावणकोर में वर्ष 1808 – 09 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व वेल थांबी (त्रावणकोर का दीवान) ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • सहायक व्यवस्था के अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा आर्थिक बोझ देना; वहां के ब्रिटिश रेजिडेंस की निरंकुशता; 

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • अंग्रेजों और वेल थांबी के बीच दिसंबर 1808 ई० में लड़ाई की शुरुआत हुई, 
  • त्रिवेंद्रम (त्रावणकोर की राजधानी) पर अंग्रेजों द्वारा फरवरी 1809 ई० में अधिकार कर लिया गया, 
  • वेल थांबी घायल होने के कारण जंगल में मृत्यु। 

राव भारमल का विद्रोह (Rebellion of Rao Bharmal)

राव भारमल का विद्रोह कच्छ और का विद्रोह काठियावाड़ में वर्ष 1816-19 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व राव भारमल (कच्छ का शासक) ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों की राज्य विस्तारण नीतिः एवं कच्छ के आंतरिक मामलों में दखल-अंदाजी के कारण अंग्रेज विरोधी भावना 

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • राव भारमल की हार 
  • कच्छ पर सहायक संधि लागू होना। 

 

रामोसी का विद्रोह (Rebellion of Ramosi)

रामोसी का विद्रोह पूना में वर्ष 1822 – 29 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व चित्तूर सिंह एवं उमा जी ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों द्वारा 1818 ई० में पेशवा के क्षेत्रों पर अधिकार कर लेने के परिणामस्वरूप रामोसियों (जो पेशवा के अधीन पुलिस का कार्य करते थे) की एक बड़ी संस्था का बेकार हो जाना। 

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • चित्तर सिंह के नेतृत्व में रामोसी विद्रोह (1822-24); एवं उमा जी के नेतृत्व में उनका विद्रोह (1822 – 24); अंग्रेजों द्वारा रामोसियों की गलतियों को माफ कर, उन्हें पहाड़ी क्षेत्रों में पुलिस की नौकरी, भूमि वितरण कर शांति व्यवस्था करना। 
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Uttarakhand Current Affairs Jan - Feb 2023 (Hindi Language)
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