Anglo-Sikh War

आंग्ल-सिख युद्ध (Anglo-Sikh War)

आंग्ल-सिख युद्ध (Anglo-Sikh War)

प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (First Anglo-Sikh War) (1845-1846)

प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध के युद्ध के कारण

  • रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब में अव्यवस्था; खरक सिंह, नवनिहाल सिंह एवं शेरसिंह इन तीन शासकों की (1839-45) छह साल के अंदर हत्या, रंजीत सिंह के पुत्र दलीप सिंह का (1845 ई.) गद्दी पर बैठना, सेना (खालसों) पर नियंत्रण का अभाव। 
  • 1833 ई० में अंग्रेजों की पंजाब में घेराबंदी की नीति अपनाना, (फिरोजपुर एवं सिखरपुर में क्रमश: 1835 एवं 36 कब्जा, लुधियाना एवं सिंध में 1838 ई० में ब्रिटिश रेसीडेंट्स की नियक्ति) और उनकी सैनिक तैयारियां जिसमें 1836 ई० में सैनिकों की संख्या 2500 से बढ़कर 1843 ई० में 14000 हो गई थी।
  • 1843 ई० में अंग्रेजों द्वारा सिंध पर किए गए कब्जे से सिख सेना की संदेह-पुष्टि।

प्रथम आंग्ल-सिख के युद्ध का घटनाक्रम

  • प्रधानमंत्री लाल सिंह के नेतृत्व की सिख सेना को 1845 ई० में मुंडकी में सर हग गफ द्वारा हराया जाना। 
  • 1845 ई० में सेनापति तेजसिंह की नेतृत्व वाली सिख सेना को अंग्रेजों द्वारा हराया जाना। 
  • रंजुर सिंह मझीधिया के नेतृत्व की सिख सेना को हैरी स्मिथ द्वारा संचालित ब्रिटिश सेना द्वारा 1846 ई० में हराया जाना। 
  • 1846 ई० में स्मिथ द्वारा अलीवाल एवं सोबरांव में सिखों की हार और अंग्रेजों द्वारा सतलुज पार करके लाहौर पर कब्जा करना। इसमें सोबरांव की लड़ाई भारतीय इतिहास की भीषण लड़ाइयों में से एक मानी जाती है।

प्रथम आंग्ल-सिख के युद्ध का महत्त्व एवं परिणाम

मार्च 1846 ई० में लाहौर की संधि के साथ इस युद्ध का अंत हुआ, जिसके परिणामस्वरूप – 

  • जालंधर दोआब और 1 ½ करोड़ रुपए अंग्रेजों को हर्जाने के रूप में दिए गए। इस राशि का आधा भाग ही सिखों द्वारा भुगतान किया गया और शेष अंग्रेजों द्वारा काश्मीर पर अधिकार कर प्राप्त किया गया जिसे बाद में कंपनी द्वारा गुलाब सिंह को बेच दिया गया। 
  • सर हेनरी लॉरेंस का ब्रिटिश रेसीडेंट के रूप में लाहौर में नियुक्त होना, दलीप सिंह को पंजाब का शासक और रानी जिंदन को रीजेन्ट के रूप में प्रमाणित किया गया। सिख सेना में कमी करना एवं इसके शासकों द्वारा अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी भी यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं रखना। 
  • ब्रिटिश सेना को जब भी जरूरत हो तब सिखों के अधिकार क्षेत्र से आने-जाने की अनुमति प्राप्त थी। 

इसके कुछ दिनों बाद ही दिसंबर 1846 ई० में भैरोंवाल की संधि हुई जिसमें – 

  • रानी जिंदन को रीजेन्ट पद से हटाया जाना तय हुआ एवं रीजेंसी काउंसिल की स्थापना की गई जिसमें आठ सिख सरदार थे और इसका प्रेसीडेंट हेनरी लौरेंस था। 
  • एक ब्रिटिश सेना लाहौर में स्थापित की गई जिसके लिए सिखों को 22 लाख रुपए देने का वादा किया गया। 
  • भारत के गवर्नर जनरल को पंजाब के किसी भी क्षेत्र को अपने अधिकार में करने का अधिकार था

द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (Second Anglo-Sikh War) (1848 – 49)

द्वितीय आंग्ल-सिख के युद्ध के कारण

  • सिख सेना द्वारा अपने पहले युद्ध के दमन का बदला लेने की इच्छा ।
  • पंजाब पर ब्रिटिश नियंत्रण से सिख सरदारों में असंतुष्ट। 
  • रानी जिंदन के साथ अंग्रेजों का बुरा व्यवहार सबसे पहले उसे शेखपुर एवं बाद में बनारस भेजा जाना और उसकी पेंशन में कमी करना। 
  • मुलतान के गवर्नर मूलराज का विद्रोह और वहां भेजे गरा दो प्रशासनिक अंग्रेज अधिकारी बैंस एगन्यू लेफ्टीनेंट एंडरसन की हत्या हो जाना। 
  • मूलराज के दमन के लिए मुलतान भेजे गए शेरसिंह द्वारा विद्रोह में शामिल हो जाने से सभी सिख सरदारों एवं सिख सेना द्वारा आम विद्रोह की घोषणा करना।

द्वितीय आंग्ल-सिख के युद्ध का घटनाक्रम

  • 1848 ई० में शेर सिंह एवं ब्रिटिश सेनानायक लॉर्ड गफ के बीच रामनगर की लड़ाई एवं 1849 ई० में चिलीयांवाला युद्ध। ये दोनों लड़ाईयां बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गईं। 
  • लॉर्ड गफ द्वारा मुल्तान पर अधिकार और मूलराज द्वारा आत्मसमर्पण जिसे बाद में देश निकाला दिया गया। 
  • 1849 ई० में गुजरात लड़ाई में चेनाब शहर के निकट गुघ द्वारा सिखों की पूरी तरह से पराजय। शेरसिंह एवं अन्य सिख सरदारों द्वारा आत्मसमर्पण किया गया।

द्वितीय आंग्ल-सिख के युद्ध का महत्त्व एवं परिणाम

  • पंजाब पर लॉर्ड डलहौजी का अधिकार, दलीपसिंह को पेंशन देकर हटाया जाना तथा रानी जिंदन के साथ उसे वापस इंग्लैंड भेज देना। 
  • 1849 ई० में पंजाब के प्रशासन के लिए तीन कमिश्नरों की परिषद (लॉरेंस का भाई जॉन हेनरी तथा चार्ल्स. जी. मेंसल) की नियुक्ति। 
  • परिषद को हटाया जाना एवं सर जॉन लौरेंस की 1853 ई० में पंजाब के प्रथम मुख्य कमिश्नर के रूप में नियुक्ति
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