21. कृदन्त प्रत्यय किन शब्दों के साथ जुड़ते हैं ?
A. संज्ञा
B. सर्वनाम
C. क्रिया
D. अव्यय
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22. वे अविकारी शब्द, जो दो शब्दों, वाक्यों अथवा वाक्य खण्डों को जोड़ते हैं, कहलाते हैं
A. सम्बन्धबोधक शब्द
B. विस्मयादिबोधक शब्द
C. क्रियाविशेषण शब्द
D. समुच्चयबोधक शब्द
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23. हिन्दी के जिन वर्णों का उच्चारण करते समय केवल श्वास का प्रयोग किया जाए उन वर्णों को कहते हैं
A. अघोष
B. सघोष
C. अल्पप्राण
D. महाप्राण
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24. “जानने की इच्छा रखने वाला” के लिये एक शब्द है
A. जिजीविषा
B. जिज्ञासु
C. जिज्ञासा
D. ज्ञातज्ञ
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प्रश्न संख्या 25 से 28 के लिये निर्देश : निम्नलिखित अवतरण को ध्यान से पढ़िये तथा प्रश्न सं. 25 से 28 के उत्तर अवतरण के आधार पर दीजिये।
ईर्ष्या में प्रयत्नोपादिनी शक्ति बहुत कम होती है। उसमें वह वेग नहीं होता जो क्रोध आदि है क्योंकि आलस्य और नैराश्य के आश्रय से तो उसकी उत्पत्ति ही होती है। जब आलस्य और नैराश्य के कारण अपनी उन्नति के प्रयत्न करना तो दूर रहा, हम अपनी उन्नति का ध्यान तक मन में नहीं ला सकते, तभी हारकर दूसरे की स्थिति की ओर बार-बार देखते हैं और सोचते हैं कि यदि उसकी स्थिति न होती तो हमारी स्थिति जैसी है वैसी रहने पर भी बुरी न दिखाई देती। अपनी स्थिति को ज्यों की त्यों रखकर सापेक्षिकता द्वारा सन्तोष-लाभ करने का ढीला यत्न आलस्य और नैराश्य नहीं है तो और क्या है? जो वस्तु उज्जवल नहीं है उसे मैली वस्तु के पास रखकर हम उसकी उज्ज्वलता से कब तक और कहाँ तक सन्तोष कर सकते हैं? जो अपनी उन्नति के प्रयत्न में बराबर लगा रहता है उसे न तो नैराश्य और न ही हर घडी दूसरे की स्थिति से अपनी स्थिति के मिलान करते रहने की फुरसत। ईर्ष्या की सबसे अच्छी दवा है उद्योग और आशा। जिस वास्तु के लिये उद्योग और आशा निष्फल हो उस पर से अपना ध्यान हटाकर दृष्टि की अनन्तता से लाभ उठाना चाहिये।
जिससे ईर्ष्या की जाती है उस पर ईर्ष्या का प्रभाव क्या पड़ता है यह भी लेख देना चाहिये। ईर्ष्या अप्रेष्य मनोविकार है। किसी मनुष्य को अपने से ईर्ष्या अप्रेष्य मनोविकार है। किसी मनुष्यों को अपने से ईर्ष्या करते देख हम भी बदले में उससे ईर्ष्या नहीं करने लगते। दूसरों को ईर्ष्या करते देखकर हम उससे घृणा करते हैं दूसरे की ईर्ष्या का फल भोग कर हम उस पर क्रोध करते हैं जिसमें अधिक अनष्टिकारिणी शक्ति होती है। अतः ईर्ष्या ऐसी बुराई है जिसका बदला यदि मिलता है तो कुछ अधिक ही मिलता है। इससे इस बात का आभास होता है कि प्रकृति के कानून में ईर्ष्या एक पाप या जुर्म है। अपराधी ने अपने अपराध से जितना कष्ट दूसरे को पहुँचाया, अपराधी को भी केवल उतना ही कष्ट पहुँचाना सामाजिक न्याय नहीं है, अधिक कष्ट पहुँचाना न्याय है, क्योंकि निरपराध व्यक्ति की स्थिति को अपराधी की स्थिति से अच्छा दिखलाना न्याय का काम है।
25. उपर्युक्त अवतरण के अनुसार
A. ईर्ष्या में क्रोध की तुलना में अधिक वेग होता है।
B. ईर्ष्या में क्रोध की तुलना में कम वेग होता है।
C. जो वेग क्रोध में होता है वह ईर्ष्या में नहीं होता है।
D. क्रोध और ईर्ष्या में बराबर वेग होता है।
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26. जो अपनी उन्नति के प्रयास में लगा रहता है, उसे
A. इतनी फुरसत नहीं रहती कि हर दम वह दूसरे की स्थिति से अपनी स्थिति की तुलना करता रहे।
B. निराश होने का समय नहीं मिलता।
C. क्रोध करने से बचे रहने का अवसर मिलता है।
D. किसी से ईष्या करने की जरुरत नहीं होती।
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27. किसकी को अपने से ईर्ष्या करते देख बदले में हम
A. उससे ईर्ष्या करने लगते हैं।
B. उस पर क्रोध नहीं करते हैं।
C. उससे बदला लेने की भावना को जन्म देने लगते हैं।
D. उससे घृणा करने लगते हैं।
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28. ईर्ष्या का सबसे अच्छा उपचार है कि
A. ईर्ष्यालु व्यक्ति से ईर्ष्या की जाए।
B. ईर्ष्यालु को दण्डित किया जाए।
C. आशापूर्ण ढंग से अपना उद्योग किया जाए।
D. ईर्ष्यालु को उसके हाल पर छोड़ दिया जाए।
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प्रश्न 29 से 32 के लिये निर्देश: नीचे दिये हुए गद्यांश को ध्यान पूर्वक पढ़िये तथा प्रश्न सं. 29 से 32 के उत्तर गद्यांश में वर्णित तथ्यों के आधार पर दीजिये।
जैसे धृतराष्ट्र ने लौह निर्मित भीम को अपने अंक में भर कर चूर-चूर कर दिया था- वैसे ही प्रायः पार्थिव व्यक्तित्व कल्पना-निर्मित व्यक्तित्व को खण्ड-खण्ड कर देता है। पर इसे मैं अपना सौभाग्य समझती हूँ कि रवीन्द्र के प्रत्यक्ष दर्शन ने मेरी कल्पना-प्रतिमा को अधिक दीप्त सजीवता दी; उसे कहीं से खण्डित नहीं किया। पर उस समय मन में कुतूहल का भाव ही अधिक था जो जीवन के शैशव का प्रमाण है। दुसरी बार जब उन्हें ‘शान्ति निकेतन’ में देखने का सुयोग प्राप्त हुआ तब मैं अपना कर्म क्षेत्र चुन चुकी थी। वे अपनी मिटटी की कुटी ‘श्यामली’ में बैठे हुए ऐसे जान पड़े मानो कली मिट्टी में अपनी उज्जवल कल्पना उतारने में लगा हुआ कोई उद्भुत कर्मा शिल्पी हो। तीसरी बार उन्हें रंगमंच पर सूत्रधार की भूमिका में उपस्थित देखा। जीवन की सन्ध्या बेला में ‘शान्ति निकेतन’ के लिये उन्हें अर्थ संग्रह में यत्नशील देखकर न कुतूहल हुआ न प्रसन्नता; केवल एक गम्भीर विषाद की अनुभूति से हृदय भर आया। हिरण्यगर्भा धरती वाला हमारा देश भी कैसा विचित्र है। जहाँ जीवान शिल्प की वर्णमाला भी अज्ञात है वहाँ साधनों का हिमालय खड़ा कर देता है और जिसकी उँगलियों में सृजन स्वयं उतरकर पुकारता है उसे साधन-शून्य रेगिस्तान में निर्वासित कर जाता है। निर्माण की इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि शिल्पी और उपकरणों के बीच में आग्नेय रेखा खींचकर कहा कि कुछ नहीं बनता या सबकुछ बन चुका !
29. इस गद्यांश के आधार पर कौन सा कथन उपयुक्त है ?
A. धृतराष्ट्र को भ्रम हो गया था।
B. कल्पना वास्तविकता के प्रकट हो जाने पर खण्डित हो जाती है।
C. कल्पना-निर्मित शरीर असत्य है और पार्थिव शरीर सत्य है।
D. कवीन्द्र रवीन्द्र के दर्शन से लेखिका का भ्रम मिट गया।
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30. अन्तिम बार टैगोर का दर्शन करने पर लेखिका को विषाद क्यों हुआ ?
A. इसलिये कि टैगोर जैसे महान कलाकार को भी भौतिक साधन जुटाना पद रहा है।
B. इसलिये कि टैगोर भीख माँगने पर मजबूर हुए।
C. इसलिये कि अच्छे कार्य के लिये भी आर्थिक सहायता नहीं मिल रही है।
D. इसलिये कि लोग कला में विशेष रूचि नहीं रखते हैं।
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31. इस गद्यांश में लेखिका पाठकों को क्या बतलाना चाहती है ?
A. कल्पना जगत् और वास्तविक जगत् का भेद
B. रवीन्द्रनाथ ठाकुर की संक्षिप्त परिचय
C. भारत वर्ष के लिये शान्ति निकेतन का अवदान
D. टैगोर जैसे कलाकार की वृद्धावस्था में साधनहीनता पर दुःख
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32. गद्यांश का केन्द्रीय भाव निम्नलिखित में से किस कथन में है ?
A. महान लोगों को भी सत्कार्य हेतु धन एकत्र करने के लिये भीख माँगना पड़ जाता है।
B. भारत जैसे विशाल देश में शिल्प कार्य के लिये धन की कमी है।
C. धन के बिना किसी संस्था का संचालन नहीं हो सकता है।
D. बड़े लोगों को किसी संस्था के लिये धन एकत्र करने में कठिनाई नहीं होती।
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33 से 36 के लिये निर्देश : निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा प्रश्न 33 से 36 तक के उत्तर गद्यांश में वर्णित तथ्यों के आधार पर दीजिये।
भारतवर्ष पर प्रकृति की विशेष कृपा रही है। यहाँ सभी ऋतुएँ अपने समय पर आती हैं और पर्याप्त काल तक ठहरती हैं। ऋतुएँ अपने अनुकूल फल-फूलों का सृजन करती हैं। धूप और वर्षा के समान अधिकार के कारण यह धरती शस्य श्यामला हो जाती है। यहाँ का नगाधिराज हिमालय कवियों को सदा से प्रेरणा देता आ रहा है और यहाँ की नदियाँ मोक्षदामिनी समझी जाती हैं। यहाँ कृत्रिम धूप और रोशनी की आवश्यकता नहीं पड़ती। भारतीय मुनीषी जंगल में रहना पसंद करते थे। प्रकृति प्रेम के कारण ही यहाँ के लोग पत्तों में खाना पसन्द करते हैं। वृक्षों में पानी देना धार्मिक कार्य समझते हैं। सूर्य और चन्द्र दर्शन नित्य और नैमित्तिक कार्यों में शुभ माना जाता है यहाँ पशु-पक्षी, लता, गुल्म और वृक्षों तपोवनों के जीवन का एक अंग बन गए थे।
33. इस गद्यांश में ‘शस्य श्यामला’ से क्या तात्पर्य है ?
A. हरी भरी घासों वाली
B. हरी भरी फसलों वाली
C. श्यामल वृक्षों वाली
D. हरे भरे वन प्रदेश वाली
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34. भारतीय मनीषी जंगल में रहना क्यों पसन्द करते थे ?
A. इसलिये कि वे संन्यास ले लेते थे।
B. इसलिये कि जंगल में फल-फूल, कन्द-मूल अधिक मिलते थे।
C. इसलिये कि जंगल में वे निर्द्वन्द्व रहते थे।
D. इसलिये कि वे प्रकृति प्रेमी थे।
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35. ‘गुल्म’ का क्या तातपर्य है ?
A. फूल
B. झाड़
C. फल
D. गुच्छा
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36. उपर्युक्त गद्यांश निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है ?
A. हिमालय के महत्त्व से
B. प्रकृति प्रेम से
C. ऋतु-वर्णन से
D. वृक्षारोपण से
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37. A, B और C ने मिलकर एक चरागाह ₹888 में किराये पर लिया। चरागाह में A की 20 भेड़ें 2 ½ माह चरीं; B की 30 भेड़ें 4 माह चरीं और C की 36 भेड़ें 36 ½ माह चरीं। अपने हिस्से का C को कितना देना चाहिये।
नीचे दिये कूट से सही उत्तर चुनिये।
A. ₹358
B. ₹360
C. ₹378
D. ₹396
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38. एक व्यक्ति ₹10,000; 10% वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज की दर से 4 वर्ष के लिये कर्ज लेता है। उसे कितना ब्याज देना होगा ?
A. ₹4,371
B. ₹4,581
C. ₹14,641
D. ₹4,641
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39. एक विद्यार्थी को परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिये कम-से-कम 50% अंक चाहिये। विद्यार्थी ने 50 अंक प्राप्त किये जो पास होने के लिये अनिवार्य न्यूनतम अंकों से 50 कम थे। प्रश्न-पत्र में पूर्णांक होंगे।
A. 200
B. 250
C. 275
D. 300
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40. एक परीक्षा में 40% विद्यार्थी हिन्दी में फेल हुए, 50% अंग्रेजी में फेल हुए। यदि 21% विद्यार्थी दोनों विषयों में फेल हुए,तो ज्ञात कीजिये कि हिन्दी में कितने प्रतिशत विद्यार्थी पास हुए ?
A. 31%
B. 40%
C. 55%
D. 60%
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