Uttarakhand GK in Hindi

उत्तराखंड वन रिपोर्ट 2023 (Uttarakhand Forest Report 2023)

उत्तराखंड वन रिपोर्ट 2023
(Uttarakhand Forest Report 2023)

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने 21 दिसम्बर 2024 को रिपोर्ट जारी की। वर्ष 1987 में पहला सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ था वर्ष 2023 में भारत वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report – ISFR) का यह 18वाँ प्रकाशन है। इस रिपोर्ट को द्विवार्षिक रूप से ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ द्वारा प्रकाशित किया जाता है।

वनों की तीन श्रेणियों का सर्वेक्षण किया गया है जिनमें शामिल हैं

  • अत्यधिक सघन वन (Very Dense Forest) (70% से अधिक चंदवा घनत्व),
  • मध्यम सघन वन (Moderately Dense Forest) (40 – 70%) और
  • खुले वन (Open Forest) (10 – 40%)।
  • स्क्रबस (Scrub) (चंदवा घनत्व 10% से कम) का भी सर्वेक्षण किया गया लेकिन उन्हें वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया।

भारत में वन आवरण

श्रेणी क्षेत्रफल (Km2) भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत
वन आवरण (Forest Cover) 7,15,342.61 21.76%
वृक्ष आवरण (Tree Cover) 1,12,014.34 3.41%
कुल वन आवरण (Total Forest and Tree Cover ) 8,27,356.95 25.17%
झाड़ी (Scrub) 43,622.64 1.33%
गैर वन (Non Forest) 24,16,489.29 73.50%
कुल भौगोलिक क्षेत्र 32,87,468.88 100%

 

उत्तराखंड वन रिपोर्ट 2023 (Uttarakhand Forest Report 2023)

17वीं वन रिपोर्ट (2021) की तुलना में उत्तराखंड के कुल वनों में 22.98 वर्ग किमी. की कमी आयी हैं जिसमे से सात जनपदों में वनों के क्षेत्रफलों में कमी दर्ज की गई हैं 

उत्तराखंड का वन आवरण 

श्रेणी क्षेत्रफल (Km2) प्रतिशत
अत्यधिक सघन वन (VDF) 5,266.58 9.85%
मध्यम सघन वन (MDF) 12,517.63 23.40%
खुले वन (OF) 6,519.62 12.19%
Total 24,303.83 45.44%
स्क्रबस (Scrub) 412.88  0.77%

उत्तराखंड के जिलेवार वन क्षेत्र

जनपद क्षेत्रफल VDF MDF OF Total प्रतिशत Scrub परिवर्तन
2021 के तुलना में 
अल्मोड़ा 3,144.05 222.24 817.89 682.83 1,722.96 54.80% 5.82 4.09
बागेश्वर 2,241.00 222.24 741.21 354.43 1,263.37 56.38% 1.43 -2.36
चमोली 8,030.21 442.65 1,522.23 676.42 2,641.30 32.89% 3.78 -9.36
चम्पावत 1,765.78 382.01 571.36 266.02 1,219.39 69.06% 9.06 -3.28
देहरादून 3,088.00 680.99 588.99 370.32 1,640.30 53.12% 80.47 4.67
पौड़ी गढ़वाल 5,328.55 588.44 1,847.84 924.27 3,360.55 63.07% 99.06 0.58
हरिद्वार 2,360.20 76.86 274.35 213.55 564.76 23.93% 11.25 -2.47
नैनीताल 4,251.35 780.03 1,583.17 503.35 2,866.55 67.43% 15.88 0.77
पिथोरागढ़ 7,090.05 518.02 978.53 640.78 2,137.33 30.15% 44.89 0.68
रुद्रप्रयाग 1,984.14 272.76 582.17 291.68 1,146.61 57.79% 9.23 -3.23
टिहरी गढ़वाल 3,642.17 305.87 1,149.08 767.73 2,222.68 61.03% 103.25 8.87
ऊधम सिंह नगर 2,542.25 157.69 216.42 120.06 494.17 19.44% 4.53 -11.29
उत्तरकाशी  8,015.81 671.29 1,644.39 708.18 3,023.86 37.72% 24.23 -10.65
Grand Total 53,483.36 5,266.58 12,517.63 6,519.62 24,305.13 45.44% 412.88 -22.98

 

  • उत्तराखंड के 6 सबसे ज्याद वन आवरण वाले जनपद क्षेत्रफल की दृष्टि से – पौड़ी गढ़वाल (3,360.55 वर्ग किमी.), उत्तरकाशी (3,023.86 वर्ग किमी.), नैनीताल (2,866.55 वर्ग किमी.), चमोली (2,641.3 वर्ग किमी.), टिहरी गढ़वाल (2,222.68 वर्ग किमी.) व  पिथोरागढ़ (2,137.33 वर्ग किमी.)
  • उत्तराखंड के 6 सबसे कम वन आवरण वाले जनपद क्षेत्रफल की दृष्टि से – ऊधम सिंह नगर (494.17 वर्ग किमी.), हरिद्वार (564.76 वर्ग किमी.), रुद्रप्रयाग (1,146.61 वर्ग किमी.), चंपावत (1,219.39 वर्ग किमी.), बागेश्वर (1,263.37 वर्ग किमी.) व देहरादून (1,640.30 वर्ग किमी.)

 

  • उत्तराखंड के 6 सबसे ज्याद वन आवरण वाले जनपद प्रतिशत की दृष्टि से –  चंपावत (69.06%), नैनीताल (67.43%), पौड़ी गढ़वाल (63.07%), टिहरी गढ़वाल (61.03%), रुद्रप्रयाग (57.79%) व  बागेश्वर (56.38%)
  • उत्तराखंड के 6 सबसे कम वन आवरण वाले जनपद प्रतिशत की दृष्टि से – ऊधम सिंह नगर (19.44%), हरिद्वार (23.93%), पिथौरागढ़ (30.15%), चमोली (32.89%), उत्तरकाशी (37.72%) व देहरादून (53.12%)

 

  • उत्तराखंड के 6 सबसे ज्याद वन आवरण में कमी वाले जनपद क्षेत्रफल की दृष्टि से – ऊधम सिंह नगर (-11.29 वर्ग किमी.), उत्तरकाशी (-10.65 वर्ग किमी.), चमोली (-9.36 वर्ग किमी.), चम्पावत (-3.28 वर्ग किमी.), रुद्रप्रयाग (-3.23 वर्ग किमी.) व हरिद्वार (-2.47 वर्ग किमी.) 
  • उत्तराखंड के 6 सबसे ज्याद वन आवरण में वृद्धि वाले जनपद क्षेत्रफल की दृष्टि से – टिहरी गढ़वाल (8.87 वर्ग किमी.), देहरादून (4.67 वर्ग किमी.), अल्मोड़ा (4.09 वर्ग किमी.), नैनीताल (0.77 वर्ग किमी.), पिथोरागढ़ (0.68 वर्ग किमी.) व पौड़ी गढ़वाल (0.58 वर्ग किमी.) 

 

  • उत्तराखंड के 6 सबसे ज्याद क्षेत्रफल वाले जनपद – चमोली (8,030 वर्ग किमी.), उत्तरकाशी (8,016 वर्ग किमी.), पिथौरागढ़ (7,090 वर्ग किमी.), पौड़ी गढ़वाल (5,329 वर्ग किमी.), नैनीताल (4,251 वर्ग किमी.) व टिहरी गढ़वाल (3,642 वर्ग किमी.)
  • उत्तराखंड के 6 सबसे कम क्षेत्रफल वाले जनपद – चंपावत (1,766 वर्ग किमी.), रुद्रप्रयाग (1,984 वर्ग किमी.), बागेश्वर (2,241 वर्ग किमी.), हरिद्वार (2,360 वर्ग किमी.), ऊधम सिंह नगर (2,542 वर्ग किमी.) व देहरादून (3,088 वर्ग किमी.) 

 

उत्तराखंड का ऊंचाईवार वन आवरण

ऊंचाई क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्रफल VDF MDF OF Total Scrub
0 – 500 7,937.03 713.24 1,501.40 613.09 2,827.73 35.56
500 – 1000 5,703.01 1,193.46 1,830.75 913.20 3,937.41 106.47
1000 – 2000 17,560.08 1,546.53 5,084.29 3,396.26 10,027.08 230.03
2000 – 3000 7,248.04 1,684.12 3,003.48 1,050.44 5,738.04 22.55
3000 – 4000 4,193.08 129.22 1,094.83 536.58 5,738.04 17.11
> 4000 10,842.12 0.01 2.88 10.05 12.94 1.16
Total 53,483.36 5,266.58 12,517.63 6,519.62 24,303.83 412.88

 

विभिन्न ढलान वर्ग उत्तराखंड का वन आवरण

तापमान भौगोलिक क्षेत्रफल VDF MDF OF Total Scrub
0 – 5 9,446.02 919.17 1,371.22 646.14 2,936.53 44.52
5 – 10 4,069.01 505.08 948.89 353.65 1,807.62 19.02
10 – 15 5,688.06 638.36 1,474.60 652.83 2,765.79 38.82
15 – 20 7,028.03 759.54 1,893.38 935.23 3,588.15 60.58
20 – 25 7,313.11 756.44 2,014.82 1,058.30 3,829.56 70.73
25 – 30 6,683.05 667.25 1,849.74 1,029.67 3,546.66 68.32
> 30 13,256.08 1,020.74 2,964.98 1,843.80 5,829.52 110.89
Total 53,483.36 5,266.58 12,517.63 6,519.62 24,303.83 412.88

जंगल की आग

अग्नि सीजन 2022-23 और 2023-24 के दौरान SNPP-VIIRS सेंसर का उपयोग करके FSI द्वारा पता लगाई गई जंगल की आग की जिलेवार संख्या।

जनपद SNPP-VIIRS के दौरान पता लगाना (2022-23)  SNPP-VIIRS के दौरान पता लगाना (2023-24)
अल्मोड़ा 786 2,810
बागेश्वर 321 805
चमोली 330 1,331
चम्पावत 470 1,782
देहरादून 230 705
पौड़ी गढ़वाल 928 3,193
हरिद्वार 99 59
नैनीताल 570 3,320
पिथोरागढ़ 785 1,204
रुद्रप्रयाग 70 489
टिहरी गढ़वाल 310 2,589
ऊधम सिंह नगर 128 289
उत्तरकाशी  324 2,457
Grand total 5,351 21,033

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Agriculture)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
कृषि (Agriculture) 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (कृषि)

1. सस्य और कृषि मौसम विज्ञान

कृषि और इसके क्षेत्र, बीज और बुवाई, जुताई और जोती हुई जमीन, फसल घनत्व और ज्यामिति, फसल पोषण, खाद और उर्वरक, पौष्टिक तत्व उपयोग दक्षता, जल संसाधन, मृदा – पौध-जल सम्बन्ध, फसल जल आवश्यकता, जल उपयोग दक्षता, सिंचाई निर्धारण मानदंड और विधियाँ, सिंचाई के पानी की गुणवत्ता, जल भराव । खरपतवार – महत्व, वर्गीकरण, फसल – खरपतवार प्रतिस्पर्धा, खरपतवार प्रबन्धन की संकल्पना – सिद्धान्त एवं विधियाँ, खरपतवार नाशक का वर्गीकरण, चयनात्मकता और प्रतिरोध ।

खरपतवार, उसके लक्षण, प्रसार एवं वर्गीकरण, विभिन्न फसलों के साथ सम्बन्ध; एवं उनके गुणन; खरपतवार का सांस्कृतिक, जैविक तथा रासायनिक नियंत्रण ।

फसल की वृद्धि एंव विकास; वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक, फसल चक्र एवं उसके सिद्धान्त, फसलों का अनुकूलन एवं वितरण, फसलों की कटाई एवं मड़ाई ।

पारिस्थितिकी, प्राकृतिक संसाधनों एवं उनके प्रबन्धन तथा संरक्षण में मानव के लिए प्रासंगिकता । फसल के वितरण एवं उत्पादन के पर्यावरणीय कारक । फसल वृद्धि के लिए जलवायवीय तत्व, बदलते हुए पर्यावरण का फसलों के स्वरूप में प्रभाव । पर्यावरण प्रदूषण तथा फसल, पशुओं एवं मानव से सम्बन्धित जोखिम ।

पृथ्वी का वायुमण्डल–इसकी रचना, सीमा तथा संरचना, वायुमण्डल में मौसम परिवर्तनियता; वायुमण्डलीय दबाव तथा उँचाई के साथ इसमें भिन्नता; हवा, हवा के प्रकार, चक्रवात, प्रतिचक्रवात, स्थल एवं समुद्र समीर सौर विकिरण की प्रकृति एंव गुण; वायुमण्डलीय तापमान, तापमान का व्युत्क्रमण, ह्रास दर, तापमान का उर्ध्वाधर स्वरूप; वायुमण्डलीय आर्द्रता, वाष्प दबाव, संघनन प्रक्रिया, ओस, कोहरा, पाला, बादल का बनना; वर्षण एवं इसकी प्रक्रिया, वर्षण एवं इनके प्रकार जैसे वर्षा, फुहार, हिम, सहिम वृष्टि एवं ओले; बादल का बनना एवं वर्गीकरण; कृत्रिम वर्षा, मानसून तथा कृ षि में उसका महत्व, ओजोन अल्पीकरण, मौसम सम्बन्धी खतरे – सूखा, बाढ़, पाला और अति- मौसम जैसे गरम एवं ठंडी लहरे, बादल फटना । मौसम पूर्वानुमान – मौसम पूर्वानुमान के प्रकार एवं उपयोग । जलवायु परिवर्तन एवं परिवर्तिता, भूमण्डलीय उष्णता, जलवायु परिवर्तन के कारण एवं क्षेत्रीय व राष्ट्रीय कृषि पर इसका प्रभाव ।

राज्य के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र में फसल पद्धतियाँ। अधिक उत्पाद एवं अल्पकालिक प्रजातियों का फसल पद्धतियों पर प्रभाव । बहुफसलीय, बहुमंजली, रीले एवं अन्तरफसल की संकल्पना एवं सतत फसल उत्पादन में उसका महत्व । राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में खरीफ एवं रवी मौसम के दौरान पैदा होने वाले महत्वपूर्ण अनाज, दलहनी, तिलहन, फाइबर, चीनी तथा नगदी फसलों के उत्पादन के लिए पद्धतियों का संकुल । कृषि एवं सामाजिक वानिकी के संदर्भ में विभिन्न प्रकार के वानिकी पौधों के प्रमुख लक्षण, महत्व एवं प्रसारण।

2. मृदा विज्ञान और कृषि रसायन

मृदा उत्पत्ति : मिट्टी बनाने वाली चट्टानें और खनिज अपक्षय, प्रक्रिया और मिट्टी के गठन के कारक; मृदा स्वरूप, मृदा घटक, मृदा के भौतिक गुण, समस्याग्रस्त मृदायें, भारत में उनका विस्तार, वितरण और सुधार। मृदा और पौधों में आवश्यक पौध पोषक तत्व एवं अन्य लाभकारी तत्व। सहजीवी और गैर-सहजीवी नाइट्रोजन यौगिकीकरण ।

मिट्टी की उर्वरता के सिद्धान्त और उसका सही उर्वरक उपयोग हेतु मूल्यांकन । जैविक खाद, भारी एवं केन्द्रित खाद तैयार करने की विधियाँ और गुण । हरी खाद । खाद संस्तुति की पद्धतियाँ । एकीकृ त पोषक तत्व प्रबन्धन पौधों में पोषक प्रवाह तंत्र, पौधों में पोषक तत्व उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कारक |

मृदा के नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्सियम, मैग्निशियम, सल्फर और सूक्ष्म पोषक तत्वों के रासायनिक गुणधर्म। मृदा के विभिन्न पोषक तत्वों के महत्वपूर्ण स्तर । जल विभाजन आधार पर मृदा संरक्षण योजना। पर्वतीय क्षेत्रों, तलहटी और घाटियों में अपरक्षण और अपवाह प्रबन्धन; प्रक्रिया एवं उनको प्रभावित करने वाले कारक ।

शुष्क कृषि और उनकी समस्याए। वर्षा आधारित कृषि में कृषि उत्पादन के स्थायीकरण की तकनीक। फसल उत्पादन के लिए जल उपयोग दक्षता, सिंचाई निर्धारण के मानदंड, सिंचाई योग्य जल के अपवाह हानि को कम करने वाले तरीके एवं साधन । मिट्टी में जलभराव की निकासी।

कृषि भूमि प्रबन्धन, क्षेत्र, महत्व एवं विशेषताएं, कृषि योजना और बजट । विभिन्न प्रकार की कृषि प्रणालियों का अर्थशास्त्र । कृषि निवेश व उत्पाद का विपणन एवं मूल्य निर्धारण, मूल्य में उतार चढ़ाव व उनकी लागत, कृषि अर्थव्यवस्था में सहकारिता की भूमिका, कृषि के प्रकार एवं प्रणाली और उनको प्रभावित करने वाले कारक । आर्थिक विश्लेषण का दृष्टिकोण, बुनियादी अवधारणाएं: वस्तु एवं सेवा, अभीष्ट, माँग, खपत, उपयोगिता, लागत और मूल्य, धन, पूंजी, आय और कल्याण ।

कृषि प्रसार, इसका महत्व एवं भूमिका, प्रसार कार्यक्रमों के मूल्यांकन की विधियाँ, विसरण, संचार और नवप्रवर्तन को अपनाने में लोगों की भागीदारी एवं प्रेरणा । कृषि यंत्रीकरण और कृषि उत्पादन व ग्रामीण रोजगार में इसकी भूमिका ।

III. कृषि सांख्यिकी

कृषि में सांख्यिकीय अनुप्रयोग, केन्द्रीय प्रवृत्ति और विक्षेपण की माप, प्रायिकता, जोड़ और गुणा प्रमेय (बिना प्रमाण) की परिभाषा । प्रायिकता पर आधारित सरल समस्याएँ । द्विपदीय और पॉयसन वितरण, सह-संबंध की परिभाषा, स्कैटर आरेख । कार्ल पियरसन का सह-संबंध गुणांक । रेखीय प्रतिगमन समीकरण । सार्थकता परीक्षण का परिचय, माध्य के लिए एक नमूना व दो – नमूना t-परीक्षण, 2×2 आकस्मिकता तालिका में गुणों की स्वतंत्रता का काई – स्क्वायर परीक्षण । विचरण, एकपक्षीय वर्गीकरण के विश्लेषण का परिचय । नमूनाकरण पद्धतियों का परिचय, नमूनाकरण बनाम पूर्ण गणना, प्रतिस्थापन के साथ एवं प्रतिस्थापन के बिना सरल याहच्छिक नमूनाकरण, सरल याहच्छिक नमूने के चयन के लिए याहच्छिक संख्या टेबल्स का उपयोग ।

2. आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन

मेण्डल के वंशानुक्रम का नियम, वंशानुक्रम के गुणसूत्र का सिद्धान्त, सेक्स से जुड़े, सेक्स प्रभावित और सेक्स उत्परिवर्तन । महत्त्वपूर्ण क्षेत्र फसलों की किस्मों व सम्बन्धित प्रजातियों के बदलाव का आकारिकी स्वरूप। फसल सुधार में भिन्नता के कारण और उपयोग । प्रमुख कृषि फसलों के सुधार के लिए पौध प्रजनन के सिद्धान्तों का उपयोग, स्वतः व पर परागण फसलों के प्रजनन की विधियाँ । सूत्रपात, चयन, संकरण । पुरूष बाँझपन और आत्मविहीनता, प्रजनन में बहुगुणित के उत्परिवर्तन का उपयोग ।

आनुवंशिक विकार। आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति, संरचना और पुनरावृत्ति । प्रोटीन संश्लेषण, जीन अवधारणाः जीन संरचना, कार्य और विनियमन ।

बीज प्रौद्योगिकी और उसके महत्व, उत्पादन, प्रसंस्करण, भण्डारण और बीज परीक्षण । उन्नत बीजों के उत्पादन, प्रसंस्करण एवं विपणन में राष्ट्रीय और राज्य बीज संगठनों की भूमिका । फसल कार्यिकी और कृषि में इसका महत्व; प्रोटोप्लाजम का भौतिक गुण व रसायनिक संघटन, अवरोध, पृष्ठ तनाव, विस्तार, परासरण, पानी का अवशोषण और स्थानान्तरण, पादप कोशिका में वाष्पोत्सर्जन ।

3. पादप कार्यिकी विज्ञान

पादप वृद्धि नियंत्रकः कार्यिकी भूमिका और कृषिक उपयोग, प्रमुख फसलों के वृद्धि और विकास के कार्यिकी पक्षः वृद्धि विश्लेषण, फसल उत्पादकता में कार्यिकी विकास मानकों की भूमिका।

किण्वक और पौध रंजक, प्रकाश संश्लेषण – आधुनिक अवधारणाए और प्रभावित करने वाले कारक, प्रकाश व अंधकारकृत प्रतिक्रियाए, सी3, सी4 और कैम पौधे; वायुजीवी व अवायवीय श्वसन, वृद्धि और विकास, दीप्तिकालिता और बसंतीकरण |

प्रमुख फल और सब्जी फसलों की खेती एवं जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताएँ: अभ्यास का संकुल और उसका वैज्ञानिक आधार । फलों और सब्जियों के कटाई के पूर्व व बाद की कार्यिकी । प्रसंस्करण तकनीक और उपकरण । भूदृश्य और पुष्पोत्पादन सहित सजावटी पौधों की खेती । लान और बगीचों की रूपरेखा व खाका ।

राज्य की सब्जियों, फलों और रोपण फसलों के रोग और कीट और पौध बीमारियों के नियंत्रण के उपाय। कीटनाशक और उनका निरूपण व उनका प्रयोग, पौध संरक्षण उपकरण, उनकी देखभाल और रखरखाव ।

4. कृषि कीट विज्ञान

फाइलम आर्थ्रोपोडा का कक्षाओं तक वर्गीकरण । आकारिकी विज्ञानः कीट छल्ली तथा निर्मोचन की संरचना और कार्य । सिर, वक्ष और पेट की संरचना । कीट में एंटीना की संरचना व संशोधन, मुखभाग, पैर, पंखों का शिराविन्यास, संशोधन और पंखों का युग्मन तंत्र । नर व मादा कीट जननांग की संरचना। कीटों में उपरति व कायान्तरण । लार्वा व प्यूपा के प्रकार । कीटों के पाचन, संचलन, उत्सर्गी, श्वसन, तंत्रिका, कार्यदर्शि (अंतः स्त्रावी) और प्रजनन प्रणाली की संरचना व कार्य । सरल और यौगिक आँखे ।

कीट पारिस्थितिकी : वृद्धि एवं विकास पर जैविक व अजैविक कारकों का प्रभाव । कीटनाशकों का वर्गीकरण, उनका नियमन और प्रयोग तकनीक, आई०पी०एम० की अवधारणा, प्रमुख फसलों, सब्जियों, फलों और भण्डारित अनाज के रोग एवं कीट तथा उनका प्रबन्धन ।

लाभकारी कीटों का प्रबन्धः मधुमक्खी पालन, पालने की विधियाँ, मधमक्खी के शत्रु और रोग । रेशम कीट के प्रकार और उनकी जैविकी । शहतूत की खेती, कोकूनो का पालन, बढ़त और कटाई । रेशम कीट के रोग व कीट । लाख कीट, जैविकी, मेजबान पौधा, लाख उत्पादन- बीजू लाख, बटन लाख, चपड़ा, लाख उत्पाद । सामान्य तौर पर जैविक नियंत्रण में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख परजीवियों और परभक्षियों की पहचान ।

VII. पादप रोग विज्ञान और प्रबन्धन

पौधों की बीमारियां, क्षेत्र और पादप रोग विज्ञान के उद्देश्यों का महत्व । पादप रोग विज्ञान की शर्ते और अवधारणाएं। रोगजनन । रोग के विकास को प्रभावित करने वाले कारण / कारक: रोग त्रिकोण और चतुष्फलक एवं पौध रोगों का वर्गीकरण।

महत्वपूर्ण पौध रोगजनक जीव, विभिन्न समूहः कवक, जीवाणु, दुराराध्य वायुकोशीय जीवाणु, फाइटोप्लास्मास, स्पिरोप्लास्मास, विषाणु, वाइरोइड्स, शैवाल, प्रोटोजोवा, फोनरोगैमिक परजीवी और सूत्रकृमि, उनके द्वारा होने वाले रोगों के उदाहरणो के साथ । कवकः सामान्य लक्षण और कवक का कक्षाओं तक वर्गीकरण । जीवाणु और श्लेष्मः सामान्य आकारिकी लक्षण । वर्गीकरण की मौलिक विधियाँ। विषाणुः प्रकृति, संरचना, पुनरावृत्ति और संचरण । फोनरोगैमिक पौध परजीवी का अध्ययन । सूत्रकृमिः सामान्य आकारिकी और प्रजनन, वर्गीकरण, लक्षण और पौध सूत्रकृमि की वजह से हुई क्षति की प्रकृति। पौध रोग प्रबन्धन का सिद्धान्त तथा विधियाँ ।

महामारी विज्ञानः रोग के विकास को प्रभावित करने वाले कारक । कवकनाशियों और प्रतिजैविकों की प्रकृति, रसायनिक संयोजन, वर्गीकरण, कार्यविधि और नियमन । क्षेत्र और बागवानी फसलो के महत्वपूर्ण रोग और उनका प्रबन्धन । एकीकृत कीट और रोग प्रबन्धन के सिद्धान्त ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Commerce)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
वाणिज्य (Commerce) 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (वाणिज्य)

भाग – अ (व्यावसायिक अध्ययन)

भाग प्रथमः – व्यवसाय परिचय

प्रकृति एवं उद्देश्य, व्यवसाय बनाम पेशा, व्यावसायिक संगठन के स्वरूपः प्रकृति एवं सीमाएं। निजी एवं सार्वजनिक उद्यमों का अर्थ एवं भूमिका, लघु एवं मध्यम उपक्रम, व्यवसाय की उभरती पद्धतियां, व्यवसाय की नैतिकता । तकनीकी नवप्रवर्तन, कौशल विकास एवं मेक इन इण्डिया।

भाग द्वितीयः निगमीय संगठन एवं व्यवसाय के वैधानिक पहलू

(a) कम्पनी अधिनियम 2013 : प्रशासन ( NCLT एवं NCLAT सहित), संयुक्त स्कन्ध कम्पनी की स्थापना, सार्वजनिक और निजी कम्पनी, सरकारी कम्पनी, एक व्यक्ति कम्पनी, रचनात्मक सूचना का सिद्धान्त एवं आन्तरिक प्रबन्ध का सिद्धान्त, निगमीय आवरण को उठाना । प्रपत्रीकरण : रेड हेरिंग प्रविवरण एवं शेल्फ प्रविवरण, पार्षद सीमानियम एवं पार्षद अन्तनिर्यम | प्रबन्ध : संचालक, सभाएं एवं प्रस्ताव। कम्पनी का समापन । निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व एवं इसका क्रियान्वयन ।

(b) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम : आवश्यकता, महत्व, उपभोक्ता जागरूकता, उपभोक्ता अधिकार, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत वैधानिक प्रावधान।

(c) वस्तु एवं सेवाकर (GST) : व्यवसाय में इसके उद्देश्य एवं प्रभावशीलता ।

भाग तृतीयः व्यावसायिक पर्यावरण

व्यावसायिक पर्यावरण का अर्थ, प्रकृति एवं मूलतत्व। अर्थिक पर्यावरण : उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण, द्वितीय पीढ़ी सुधार, वर्तमान सरकार द्वारा किए गए नवीन परिवर्तनों सहित नवीन औद्योगिक नीति ।

भाग चतुर्थः व्यवसाय, वित्त एवं विपणन प्रबन्ध

(a) व्यावसायिक

प्रबन्ध : प्रकृति, महत्व एवं प्रबन्ध के सिद्धान्त ।

नियोजन : उद्देश्य, रणनीति, नियोजन प्रक्रिया, निर्णयन ।

संगठन : संगठनात्मक ढाँचा, औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन, शाक्ति एवं अधिकार ।

स्टाफिंग : प्रक्रिया, प्रशिक्षण एवं विकास, निष्पादन मूल्यांकन ।

निर्देशन : अभिप्रेरणा, नेतृत्व एवं संवहन।

नियंत्रण: आवश्यकता प्रक्रिया एवं तकनीक ।

(b) वित्तीय प्रबन्धः आशय एवं उद्देश्य, वित्तीय निर्णयों को प्रभावित करने वाले घटक, पूंजीगत ढ़ांचा, पूंजी लागत एवं पूंजी बजट।

(c) विपणन प्रबन्ध : विपणन का प्रादुभार्व (उत्पत्ति), विपणन बनाम विक्रय, विपणन मिश्रण, CRM, आधुनिक विपणन, बाजार विभक्तिकरण, उपभोक्ता व्यवहार । उत्पाद, मूल्य, संवर्धन एवं वितरण संबंधी विपणन निर्णय

भाग पांचः- बैकिंग संस्थाएं एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

(a) व्यवसाय में बैकिंग का महत्व, बैंकों के विभिन्न प्रकार और इनके कार्य, आर0बी0आई0, नाबार्ड एवं आर0 आर0बी0 (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक)। बैकिंग क्षेत्र में सुधार – एन०पी०ए० (गैर निष्पादित सम्पत्तियां) एवं बैकिंग उद्योग में आधुनिक प्रवृतियां । विमुद्रीकरण एवं इसका बैकिंग उद्योग पर प्रभाव ।

(b) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारः अर्थ, एवं प्रकृति, व्यापार सन्तुलन ।

अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थान : IMF, IBRD, IFC, ADB

विश्व व्यापार संगठन : इसके कार्य एवं नीतियां, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियां ।

भाग – ब (लेखाशास्त्र)

इकाई – 01  

लेखांकन एक परिचय:- लेखांकन का अर्थ, उदेश्य एवं भूमिका, लाभ एवं सीमायें, लेखांकन एक सूचना प्रणाली के रूप में, लेखांकन की मूल – अवधारणाऐं एवं रीतियां/परम्पराएं सर्वमान्य स्वीकृत सिद्धान्त (गैप), अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानक (आई.एफ.आर.एस.) ।

इकाई – 02

लेखांकन प्रक्रिया – लेखांकन समीकरण, लेखांकन के सुनहरे नियम, मुख्य लेखांकन शब्दावली, लेखांकन प्रणालियां, रोजनामचा, खाताबही प्रारम्भिक लेखे की सहायक पुस्तकें, रोकड़ बही, क्रय बही, विक्रय बही, कय वापसी बही एवं विक्रय वापसी बही, तलपट बनाने की विधियां तथा अशुद्धियों का संशोधन ।

इकाई – 03

अंतिम खाते – गैर निगमीय व्यावसायिक संस्थाओं के अंतिम खाते समायोजन सहित ।

इकाई – 04

बैंक समाधान विवरण तथा विनिमय विपत्र – बैंक समाधान विवरण की आवश्यकता तथा बैंक समाधान विवरण का निर्माण, विनिमय विपत्र का अर्थ, लाभ, बिल की कटौती, बिल का अनादरण एवं नवीनीकरण, अनुग्रह बिल, व्यापारिक बिल एवं अनुग्रह बिल में अन्तर ।

इकाई – 05

ह्रास, आयोजन तथा संचय – ह्रास का अर्थ एवं आवश्यकता, हास की गणना की विधियां, आयोजन तथा संचय । पूंजीगत एवं आयगत व्यय एवं प्राप्तियां ।

इकाई – 06

गैर-व्यावसायिक संगठनों के खाते अर्थ, विशेषताऐं तथा लाभ अर्जित न करने वाले गैर व्यावसायिक संगठनों के लेखे, प्राप्ति तथा भुगतान खाता एवं आय-व्यय खाता ।

इकाई – 07

साझेदारी खाते – मुख्य अवधारणाऐं, प्रकृति एवं साझेदारी संलेख । सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम 2008, नये साझेदार का प्रवेश, अवकाश ग्रहण एवं साझेदार की मृत्यु तथा साझेदारी का समापन ।

इकाई – 08

कंपनी खाते – अर्थ, अंश पूंजी के प्रकार, समता एवं पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन, अंशों का हरण तथा हरित अंशों का पुनःनिर्गमन, स्वेट – समता अंश तथा कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (ई0एस0ओ0पी0)। पूर्वाधिकार अंशो का शोधन । ऋणपत्रों का निर्गमन एवं शोधन ।

इकाई – 09

(अ) वित्तीय विवरणों का विश्लेषण – कंपनी के वित्तीय विवरण, कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार कंपनी के आर्थिक चिट्ठे का निर्माण ।

(ब) वित्तीय विवरण विश्लेषण के औजार (टूल्स) – अर्थ, महत्व एवं सीमायें, तुलनात्मक वित्तीय विवरण तथा समरूप (कॉमन ) वित्तीय विवरण, लेखांकन अनुपात – लाभदायकता, तरलता, शोधन-क्षमता और क्रियाशीलता अनुपात ।

इकाई – 10

(अ) लेखांकन की किराया क्रय पद्धति एवं किस्त भुगतान पद्धति ।

(ब) लेखांकन में कम्प्यूटर का अनुप्रयोग – कम्प्यूटरीकृत लेखांकन- कम्प्यूटरीकृत लेखांकन की अवधारणाएं एवं भेद, विशेषताऐं, स्वरूप तथा लेखांकन में कम्प्यूटर की भूमिका । लेखांकन में टेली एवं इलैक्ट्रानिक स्प्रैड – शीट का उपयोग ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Art)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
कला (Art) 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (कला)

कला के मूलाधार : कला के तत्व • रेखा, रूप, रंग, तान, पोत, स्थान, आदि ।

संयोजन के सिद्धांत – एकरूपता, अनुरूपता, सन्तुलन प्रभाविता, लय, अनुपात ।

द्विआयामी एवं त्रिआयामी चित्रण, परिप्रेक्ष्य चित्रण

कलात्मक प्रक्रिया- अभिव्यक्ति, कल्पना, संवेदना, विषयवस्तु आदि ।

माध्यम और तकनीक पेन्सिल, चारकोल, पेन, इंक, जल रंग, तैल रंग, ग्वाश, पेस्टल, म्यूरल, फेस्कों, टेम्परा, मोजाइक वाश तकनीकियां, और मिक्स मीडिया

प्राविधिक कला – अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें । द्विआयामी एवं त्रिआयामी ठोस एवं सामान्य ज्यामितीय आकार, चित्रण औजार- पेन्सिल, स्केल्स, डिवाइडर, प्रोटेक्टर, कम्पास, टी-सक्वायर सेट- सक्वायर, अनियमित वक्र । त्रिभुज की परिभाषा और प्रकार समकोण, समबाहु, समद्विबाहु विषमबाहु त्रिभुज बनाने की विधियां । ज्यामितीय आकारों के गुण और पहचान।

भवन अनुरेखन, आकार, प्रकार, कलात्मक वास्तुकला अनुरेखन, आधार रूप । भवन और उसके घटकों के द्विआयामी एवं त्रिआयामी रूप का निर्माण करना। भवन के नींव (आधार) एवं मंजिल योजना के स्वरूप का कलात्मक निर्माण करना ।

कला का इतिहास : (चित्रकला एवं मूर्तिकला) भारतीय कला – प्रागैतिहासिक काल सिन्धु घाटी सभ्यता, मौर्य काल, गुप्त काल, अजन्ता, ऐलोरा एवं बाघ गुफाओं की कला, मुगल शैली, राजस्थानी शैली, उत्तराखण्ड शैली, पटना शैली, राजा रवि वर्मा, बंगाल शैली, काली घाट पेंटिग, पट्चित्रकला, प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप, कलकत्ता ग्रुप, मद्रास स्कुल, शिल्पी चक्र आदि, एवं स्वतंत्रता पश्चात् की समकालीन कला । इन्डो इस्लामिक स्थापत्य, मन्दिरों का स्थापत्य एवं मूर्तिकला |

लोक कला – उत्पत्ति, अर्थ, विकास। मधुबनी कला, रंगोली, थापा, मांडना, अल्पना, सांझी, गोदना ऐपण, कलमकारी,एवं उत्तराखंड की लोक संस्कृति और कला ।

पाश्चात्य कला – प्रागैतिहासिक कला मिस्र और मेसोपोटामिया की कला, कीट और इट्रस्कन कला, ग्रीक कला . रोमन कला, ईसाई कला, बाइजेन्टाइन कला, रोमनस्क कला, गोथिक कला, रीतिवाद, बारोक कला, रोकोको कला, स्वच्छन्दता वाद यथार्थ वाद, प्रभाववाद, अभिव्यक्तिवाद, घनवाद, फाववाद, अतियथार्थवाद, अमूर्तवाद, भविष्यवाद ।

सौन्दर्यशास्त्र : कला और सौन्दर्य – उत्पत्ति, अर्थ, परिभाषा, विशेषता, वर्गीकरण । षंडग, अलंकार, रस, ध्वनि, औचित्य आदि। कला और समाज, कला और परम्परा, कला और धर्म, कला और कल्पना, कला और अनुकृति, कला और सम्प्रेषण, कला और प्रतीक, कला और कलात्मकता, कला और मनोविज्ञान, सहजानुभूति, तदात्म्य, स्वप्न एवं अवास्तविक कल्पना, रूपवाद का सिद्धान्त । भारतीय और पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार कला और सौन्दर्य ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Sociology)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
समाजशास्त्र (Sociology) 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (समाजशास्त्र)

इकाई – 01

समाजशास्त्रः – अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, विषय क्षेत्र और इसका महत्व । यूरोप और भारत में समाजशास्त्र का ऐतिहासिक विकास । समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य ।

इकाई – 02

मौलिक अवधारणायेंः – समाज, समुदाय, समूह, समिति, सामाजिक संरचना, सामाजिक व्यवस्था, संस्कृति, सामाजीकरण, प्रस्थिति और भूमिका, सामाजिक नियंत्रण और सामाजिक परिवर्तन ।

इकाई – 03

सामाजिक प्रक्रियायें: सहयोगात्मक प्रक्रियायें: सहयोग, समायोजन, आत्मसात्करण

असहयोगात्मक प्रक्रियायें : प्रतियोगिता और संघर्ष ।

सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक गतिशीलता ।

इकाई – 04

सामाजिक संस्थायें : विवाह, परिवार, नातेदारी, आर्थिक संस्थायें, राजनीतिक संस्थायें, शैक्षणिक एवं धार्मिक संस्थाये।

इकाई – 05

सामाजशास्त्रीय विचारकः (I)

  • कार्लमार्क्स – ऐतिहासिक भौतिकवाद, उत्पादन के ढंग, अलगाव, वर्ग संघर्ष ।
  • इमाइल दुर्खीम – श्रम विभाजन, सामाजिक तथ्य, आत्महत्या, धर्म और समाज ।
  • मैक्स वेबर – सामाजिक क्रिया, आदर्श प्रारूप, सत्ता, नौकरशाही, प्रोटस्टैन्ट आचार संहिता और पूंजीवाद की भावना।
  • टॉल्कट पारसन्स – सामाजिक व्यवस्था, प्रतिमानित चर ।
  • रॉबर्ट के. मर्टन – प्रकट और प्रछन्न प्रकार्य, अनुरूपता और विचलन, संदर्भ-समूह |

इकाई – 06

सामाजशास्त्रीय विचारक – (II)

  • अल्फ्रेड शूट्ज और पीटर बर्जर : प्रघटनाशास्त्र
  • गारफिन्कल : लोकविधि विज्ञान
  • गॉफमैन : प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद
  • जे० अलैक्जेन्डर : नव-प्रकार्यवाद
  • हेबरमास और एल्थ्यूजर : नव-मार्क्सवाद
  • एन्थनी गिडन्स : संरचनाकरण
  • डेरिडा और फूको : उत्तर आधुनिकता

इकाई – 07

अनुसंधान पद्धतिः (I)

  • सामाजिक अनुसंधानः अर्थ, प्रकार और महत्व, वैज्ञानिक पद्धतिः तथ्य और मूल्य, कारक, सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता की समस्या, सर्वेक्षण, शोध प्रारूप और इसके प्रकार, उपकल्पना, निदर्शन ।
  • तथ्य संकलन की प्राविधियां: अवलोकन, प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार ।

इकाई – 08

सामाजिक अनुसंधान (II)

  • गुणात्मक पद्धतियांः सहभागी अवलोकन, वैयक्तिक अध्ययन, अर्न्तवस्तु विश्लेषण ।
  • सामाजिक अनुसंधान में सांख्यिकीः केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप – माध्य, मध्यांक, बहुलक विचलन माप के तरीके तथा सामाजिक अनुसंधान में कम्प्यूटर की उपयोगिता ।

इकाई – 09

भारतीय समाज का परिचयः

  • जी०एस० घुरिये और लुई ड्यूमोंः भारत विद्याशास्त्रीय/वाङ्मयी परिप्रेक्ष्य, एम0एन0श्रीनिवास और एस०सी० दुबेः संरचनात्मक प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य डी०पी० मुकर्जी और ए०आर०देसाई: मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य बी0आर0 अम्बेडकर और डेविड हार्डिमेन : दलितवादी परिप्रेक्ष्य
  • भारतीय समाज की सामाजिक पृष्ठभूमिः इस्लाम, ईसाई, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों और समाज सुधार आन्दोलनों का भारतीय समाज पर प्रभाव ।

इकाई – 10

भारतीय सामाजिक संरचना, परिवर्तन और चुनौतियांः

  • भारत में सामाजिक वर्गः कृषक वर्ग संरचना, औद्योगिक वर्ग संरचना, भारत में मध्यम वर्ग ।
  • भारत में जनजातीय समुदायः भौगोलिक विस्तार, जनजातियों संबंधी विभिन्न कल्याणकारी नीतियां ।
  • भारत में नातेदारी व्यवस्थाः नातेदारी व्यवस्था के प्रकार, भारत में परिवार और विवाह ।
  • भारत में सामाजिक परिवर्तन और चुनौतियां विकास के नियोजन का विचार और मिश्रित आर्थिकी।

परिवर्तन की प्रक्रियांएः संस्कृतिकरण, आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण।

(a) भारत में ग्रामीण रूपान्तरणः ग्रामीण विकास के कार्यक्रम, सामुदायिक विकास कार्यक्रम, गरीबी उन्मूलन योजनायें, ग्रामीण मजदूरों की समस्यायें।

(b) भारत में औद्योगिकरण और नगरीकरणः भारत में आधुनिक उद्योगों का उद्विकास, भारत में नगरीय बसावट में वृद्धि और गंदी बस्तियां, कामागार वर्गः संरचना, वृद्धि

(c) आधुनिक भारत में सामाजिक आन्दोलन : कृषक और किसान आन्दोलन, महिला आन्दोलन, पिछड़ी जाति और दलित आन्दोलन, पर्यावरण संरक्षण आन्दोलन ।

(d) जनसंख्या गतिशीलता: जनसंख्या का आकार, वृद्धि, संरचना, वितरण । जनसंख्या वृद्धि के घटक: जन्म, मृत्यु, प्रव्रजन । जनसंख्या नीति और परिवार नियोजन ।

समकालीन मुद्दे–वृद्धावस्था, लिंगानुपात, बाल और शिशु मृत्यु दर, प्रजनन स्वास्थ्य ।

(e) सामाजिक रूपान्तरण की चुनौतियां : विकास के संकट-विस्थापन, पर्यावरणीय समस्यायें और सत्तता; श्वेतवसन अपराध और भ्रष्टाचार, महिलाओं के विरूद्ध हिंसा, वर्णीय संघर्ष, जातीय संघर्ष, साम्प्रदायिकता, बेरोजगारी एवं आतंकवाद ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Geography)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
भूगोल (Geography) 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (भूगोल)

1. भूगोल, एक विषय के रूप में

  • परिभाषा, वितरणों के विज्ञान के रूप में, स्थानिक भिन्नताओं के विज्ञान समाग्रही एवं समाकलन अनुशासन के रूप में भूगोल ।
  • भूगोल की विषय-वस्तु
  • भूगोल की प्राथमिक शाखाएँ: भौतिक एवं मानव
  • भूगोल में प्रमुख दृष्टिकोणः निश्चयवाद, संभववाद, नव- निश्चयवाद एवं संभाव्यवाद
  • विषय की अनुपयोगिता

2. भौतिक भूगोल

भू-आकृति विज्ञान

  • पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास, पृथ्वी का अभ्यन्तरः महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त तथा प्लेट विवर्तनिकी की संकल्पना
  • भूकम्प तथा ज्वालामुखी के कारण एवं परिणाम
  • प्रमुख चट्टानों के प्रकार एवं खनिज – उनकी विशेषताऐं एवं वितरण
  • भू-दृश्यों के प्रकारः अभिकर्त्ता, प्रकियाऐं तथा संबंधित आकृतियां
  • भ्वाकृतिक प्रकम – अनाच्छादन, अपक्षय, वृहद क्षरण, अपरदन; निक्षेपण
  • मृदा-निर्माण की प्रक्रिया

जलवायु विज्ञान

  • वायुमण्डल का संघटन एवं संरचना
  • सूर्यतापः आपतन का कोण तथा वितरण, पृथ्वी का ताप – बजट, पृथ्वी के तापन व शीतलता को प्रभावित करने वाले कारक, जैसे- संचलन, संवहन, पार्थिव विकिरण तथा अभिवहन ।
  • जलवायु एवं मौसम के तत्व
  • तापमान – नियंत्रक कारक क्षैतिज एवं लम्बवत् वितरण, तापमान का व्युत्क्रम
  • वायुमण्डलीय दाब, दाब-पेटियां, पवनों का सामान्य संचरण – स्थानीय व मौसमी पवनें; वायु-राशियां एवं वाताग्र, मानसून की किया विधि, चक्रवातों के प्रकार, एल-निनो एवं ला-नीना का प्रभाव
  • वर्षण की प्रकृति एवं प्रकार, वाष्पीकरण तथा संघनन – मेघ, ओस, पाला, कोहरा व धुन्ध, वर्षा का विश्व – वितरण
  • विश्व जलवायु का वर्गीकरण (कोपेन तथा थार्नवेट)
  • वैश्विक तापन एवं जलवायु परिवर्तन – कारण तथा परिणाम, जलवायु परिवर्तन से संबंधित उपचारात्मक उपाय

जल-मण्डल

  • समुद्र
  • विज्ञान के आधारभूत पक्ष
  • जलीय चक्र
  • समुद्रों में तापमान व लवणता का वितरण
  • समुद्री नितलों का उच्चावच
  • समुद्रीजल की गतियां – धाराऐं, तरंगे तथा ज्वार-भाटे
  • समुद्री संसाधन तथा समुद्री प्रदूषण की समस्याऐं

जैवमण्डल

  • वृहत जैवमण्डल के रूप में पृथ्वी
  • पर्यावरण तथा परिस्थितिकी की अवधारणा, पर्यावरण के घटक
  • जैव विविधता: प्रकार, महत्व एवं संरक्षण, परिस्थितिक तंत्र की परिभाषा तथा प्रकार
  • पर्यावरण पर मानवीय प्रभाव, प्रदूषण, पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण एवं प्रबंधन, पारिस्थितिक सन्तुलन

3. भारत का भूगोल

भौतिक विशेषताऐं (अभिलक्षणायें)

  • अवस्थिति, स्थानिक संबंध, संरचना, उच्चावच तथा भारत के भौतिक विभाग
  • भारत का अपवाह तंत्र, नदी बेसिनों एवं जलगमों की संकल्पना, उत्तराखण्ड की नदियां
  • जलवायु विशेषताएं तापमान का वितरण (स्थानिक व कालिक), दाब तंत्र, पवनें, वर्षा में प्रतिरूप तथा मौसमी विशेषताऐं, भारतीय मानसून की विशेषताऐं एवं क्रिया – विधि, जलवायु के प्रकार (कोपेन)
  • प्राकृतिक वनस्पतिवनस्पति- प्रदेश, वनावरण, वन्य-जीव, वनस्पति एवं वन्य जीवों का संरक्षण – जैव – संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्यजीव अभयारण्य
  • मुख्य मृदा प्रकार तथा उनका वितरण (भारतीय कृषि अनुसंस्थान परिषद के अनुसार), मृदा अपरदन तथा अवनयन की समस्या, मृदा संरक्षण
  • प्राकृतिक आपदाओं व प्रकोप के कारण, परिणाम, न्यूनीकरण तथा प्रबन्धन – बाढ़, सूखा, भूकम्प, चक्रवात, सुनामी तथा भू-स्खलन, उत्तराखण्ड की प्राकृतिक आपदाऐं

मानवीय विशेषताऐं –

  • जनसंख्या – वितरण, घनत्व व वृद्धि, जनसंख्या की विभिन्न विशेषताओं को प्रभावित करने वाले कारक, जनसंख्या का संघटन लिंग अनुपात ग्रामीण-नगरीय, धार्मिक भाषाई, अनुसूचित जाति व जनजातिय जनसंख्या जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना, जनसंख्या के क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा अर्न्तराष्ट्रीय प्रवास प्रतिरूप, भारत की जनसंख्या के प्रवास के प्रतिरूप के कारण और प्रभाव, उत्तराखण्ड में जनसंख्या प्रवास के प्रतिरूप, कारण तथा प्रभाव।
  • ग्रामीण तथा नगरीय, अधिवासों के प्रकार एवं वितरण, नगरीय बस्तियों का कार्यात्मक वर्गीकरण; नगरीकरण की समस्याऐं

संसाधन-

  • प्राकृतिक संसाधनों की संकल्पना, प्रकार तथा वितरण। भूमि संसाधन-भूमि उपयोग प्रतिरूप तथा इसको प्रभावित करने वाले कारक
  • जल संसाधन – संभाव्यता, उपलब्धता तथा उपयोग, जल का प्रयोग – सिंचाई, घरेलू, औद्योगिक तथा अन्य, जल-अल्पता की समस्या, जल-संसाधनों का प्रबन्धन और संरक्षण- सुसंगत तकनीकें जलागम प्रबन्धन व वर्षा जल का संचयन, पर्वतीय क्षेत्रों में जल प्रबन्धन
  • खनिज संसाधन, धात्विक तथा अधात्विक खनिजों का वितरण, लौह अयस्क, तांबा, बॉक्साइड, मैंगनीज, अभ्रक तथा लवण आदि का अध्ययन
  • ऊर्जा संसाधन – वर्गीकरण, पारम्परिक (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा जल विद्युत) तथा गैर – पारम्परिक (सौर पवन, बायोगैस) ऊर्जा-संसाधनों का महत्व व विवरण, ऊर्जा-संसाधनों का प्रबन्धन एवं संरक्षण

आर्थिक क्रियायें –

  • कृषि भूमि – उपयोग, प्रतिरूप, भौगोलिक परिस्थितियां एवं भारत की प्रमुख फसलें (गेहूं, धान, कपास, जूट, गन्ना, चाय, कहवा तथा रबर), कृषि विकास व इसका प्रादेशिक प्रतिरूप, कृषि की समस्याऐं व समाधान
  • उद्योगउद्योगों का महत्व तथा प्रकार, औद्योगिक अवस्थापन को प्रभावित करने वाले कारक, प्रमुख उद्योगों का वितरण तथा बदलता प्रतिरूप-लौहा एवं इस्पात, सूती वस्त्र, चीनी, पेट्रो रसायन, सूचना तकनीकी पर आधारित उद्योग, औद्योगिक प्रदेश एवं औद्योगिक समूह; उद्योगों पर निजीकरण तथा वैश्वीकरण का प्रभाव
  • परिवहन तथा संचार-तंत्र : सड़कें, रेलमार्ग, आन्तरिक जलमार्ग तथा वायुमार्ग, तेल एवं गैस पाइप लाइनें, संचार तंत्र
  • भारतीय विदेशी व्यापार की प्रकृति तथा इसका बदलता प्रतिरूप, समुद्री पत्तनों की भूमिका तथा प्रभाव – क्षेत्र, विदेशी व्यापार में हवाई अड्डों का महत्व तथा भूमिका
  • भारत में नियोजन – भारत में नियोजन का इतिहास, 12वीं पंचवर्षीय योजना की मुख्य विशेषताऐं । नियोजन के प्रकार- क्षेत्रीय तथा खण्डीय, सतत विकास संकल्पना तथा सूचक
  • भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित समस्याऐं – पर्यावरण अवनयन, जल प्रदूषण, निर्वनीकरण, स्रोतों का सूखना, नगरीय अपशिष्ट प्रबन्धन, ग्रामीण – नगरीय प्रवास, मलिन बस्तियों की समस्याऐं ।

4. मानव भूगोल

  • मानव भूगोल की परिभाषा, प्रकृति तथा कार्य-क्षेत्र ।
  • जनसंख्याः वितरण, घनत्व तथा वृद्धि, आयु तथा लिंगानुपात, ग्रामीण-नगरीय संयोजन, जनसंख्या की बदलती संरचना तथा स्थानिक प्रतिरूप, जनसंख्या परिवर्तन के निर्धारक मानव विकास की संकल्पना एवं सूचक, अन्तर्राष्ट्रीय तुलनाएं

आर्थिक कियाऐं –

  • वर्गीकरण
  • प्राथमिक कियाऐं : संकल्पना एवं परिवर्तनशील प्रवृत्तियां (संग्रहण, लकड़ी काटना, पशुचारण, पशुपालन, खनन, मछली पकड़ना, निर्वाहमूलक तथा गहन कृषि, विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में कृषि तथा संबंधित क्रियाओं की भूमिका)
  • द्वितीयक क्रियाऐं : संकल्पना एवं परिवर्तनशील प्रवृत्तियां, उद्योगों के प्रकार – कुटीर, लघु व वृहद उद्योग, कृषि व खनिजों पर आधारित उद्योग, द्वितायक क्रियाओं में संलग्न जनसंख्या – चयनित देशों से उदाहरण
  • तृतीयक क्रियाऐं : संकल्पना तथा परिवर्तनशील प्रवृत्तियां, व्यापार, परिवहन, पर्यटन, सेवाऐं, तृतीय क्रियाओं में संलग्न जनसंख्या – चयनित देशों से उदाहरण
  • चतुर्थक क्रियाऐं : संकल्पना, सूचना प्रौद्यौगिकी आधारित क्रियाऐं चतुर्थक क्रियाओं में संलग्न जनसंख्या-चयनित देशों से उदाहरण
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार प्रकृति व परिवर्तनशील प्रतिरूप, पत्तनों की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भूमिका, विश्व व्यापार संगठन भूमिका
  • समुद्रमहत्व राष्ट्रीय अधिकार, अन्तर्राष्ट्रीय समझौते
  • परिवहन तथा संचार सड़के, रेल, हवाई तथा जल परिवहन ट्रॉस-महाद्वीपीय रेल, वृहत समुद्री मार्ग, अन्देशीय जलमार्ग, अन्तर्राष्ट्रीय वायु मार्ग, तेल एवं गैस पाइपलाइन
  • संचार के साधन – परम्परागत, मोबाइल टेलीफोन, इन्टरनेट, उपगृह संचार और साइबर स्पेस, भौगोलिक सूचना का महत्व और उपयोग। जी.पी.एस. का उपयोग
  • मानव अधिवासग्रामीण एवं नगरीय अधिवास के प्रकार एवं प्रारूप, शहरों, वृहत शहरों की आकृतिकी, विकसित देशों में अधिवास की समस्या ।

मानचित्र कला एवं मानचित्र कार्य

  • मापकमापकों का महत्व एवं प्रकार, सरल, तुलनात्मक और कर्णवत मापकों की रचना
  • मानचित्रों का महत्व, उपयोग तथा प्रकार, परम्परागत चिन्ह और उनका उपयोग दूरी की माप स्थिति निर्धारण तथा दूरी।
  • भू स्थानिक आंकड़ा – संकल्पना और प्रकार ( बिन्दु, रेखा और क्षेत्र आंकड़ा)
  • मानचित्र प्रक्षेप : अक्षांश, देशान्तर, प्रक्षेपों के प्रकार शंक्वाकार तथा मरकेटर प्रक्षेप की रचना विधि और विशेषतायें । स्थलाकृतिक मानचित्र-पहचान, मापक, क्षेत्र, सम्मोच्च रेखायें और उनके अनुभाग, भू-दृश्य की पहचान, भूमि उपयोग की व्याख्या, विषय सम्बन्धि मानचित्र
  • वायु फोटो चित्र – प्रकार ज्यामितीय विशेषतायें, मापक, मानचित्र और वायु फोटोचित्रों में अन्तर, भौतिक व सांस्कृतिक तत्वों की पहचान।
  • सुदूर संवेदन महत्व और उत्पाद (वायु फोटोचित्र, उपग्रह चित्र ) सुदूर संवेदन में आंकड़ा निवेश एवं प्रक्रम की अवस्थायें, उपग्रह सेंसर्स तथा आंकड़ा उत्पाद
  • मौसम उपकरणों का उपयोग तापमापी (नम एवं शुष्म बल्ब) वायुदाब मापी वायुवेग मापी और वर्षामापी, मौसम मानचित्रों की व्याख्या ।
  • क्षेत्रीय अध्ययन का महत्व
  • पाठ्यक्रम के भौतिक / मानव / भारतीय भूगोल के खण्डों में दिये गये विभिन्न तत्वों तथा क्रियाओं का मानचित्रण एवं पहचान ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (History)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
इतिहास (History) 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (इतिहास)

प्राचीन भारतः

  • प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोतः पुरातात्विक स्रोत, पुरालेख शास्त्र, मुद्राशास्त्र, साहित्यिक स्रोत यात्रा-वृतान्त । मानव का उद्विकासः पुरापाषाण, मध्यपाषाण एवं नवपाषाण युग ।
  • सिन्धु घाटी की सभ्यताः उद्गम तिथि, विस्तार, विशेषताएं और पतन ।
  • वैदिक युगः समाज का उद्विकास, अर्थव्यवस्था, धर्म एवं राजव्यवस्था; वैदिक साहित्य ।
  • सोलह महाजनपद और मगध साम्राज्य का अभ्युदय
  • नवीन धर्मों का युगः जैन एवं बौद्ध मत- उनकी मुख्य शिक्षाएं, विस्तार एवं पतन ।
  • विदेशी आक्रमणः ईरान तथा मकदूनिया के प्रभाव।
  • मौर्य साम्राज्यः मौर्य साम्राज्य की नींव – चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, अशोक तथा उसका धम्म, मौर्य प्रशासन, समाज एवं अर्थव्यवस्था, कला, और मौर्यो साम्राज्य का पतन ।
  • मौर्योत्तर भारतः हिन्द-यवन, शक, कुषाण, पह्नव तथा पश्चिमी क्षत्रपः समाज, कला एवं स्थापत्य, सातवाहन; संगम युग संगम साहित्य सम्राट खारवेल अर्थव्यवस्था ।
  • गुप्त साम्राज्यः स्थापना – श्रीगुप्त, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्र गुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य), स्कन्दगुप्त और उत्तरवर्ती गुप्त सम्राट; विस्तार तथा पतन, प्रशासन, समाज एवं संस्कृति, कला एवं स्थापत्य, व्यापार, जाति व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था – नालन्दा, विक्रमशिला तथा वल्लभी विश्वविद्यालय विदेशों से सम्बन्ध ।
  • वाकाटक: मौखरी हर्ष-युगः उसकी राजनैतिक तथा धार्मिक उपलब्धियां ।
  • नवीन शक्तियों का अभ्युदय – बादामी के चालुक्य, कदम्ब प्रशासन, वैष्णव एवं शैव मत – शंकराचार्य ।
  • कल्याणी के चालुक्य, चोल होयसल पाड्य एवं पल्लव – प्रशासन तथा स्थानीय शासन; कला एवं स्थापत्य; अर्थव्यवस्था एवं व्यापार, श्री लंका तथा दक्षिण पूर्व एशिया से सम्बन्ध ।
  • कामरूप के वर्मन और पाल, प्रतिहार, राष्ट्रकूट, परमार, चंदेल, कल्चुरी, चेदि, सेन, गुजरात के चालुक्य, इस्लान का आक्रमण- मुहम्मद- – बिन – कासिम, महमूद गजनी, अल्बेरुनी ।

मध्यकालीन भारत :

  • स्रोतः पुरातात्विक स्रोत, पुरालेख एवं मुद्राशास्त्र, स्मारक, साहित्यिक स्रोत- फारसी, संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाएं, विदेशी यात्रीयों के अभिलेख ।
  • सल्तनत काल – गौरी, तुर्क, खिलजी, तुगलक, सैय्याद और लोदी। प्रशासन, अर्थव्यवस्था और समाज- स्त्रियों की दशा, संस्कृति, कला और स्थापत्य, धार्मिक आन्दोलन – सूफी और भक्ति आन्दोलन, शिक्षा एवं साहित्य, दिल्ली सल्तनत का पतन एवं क्षेत्रीय शक्तियों का अभ्युदय ।
  • विजयनगर और बहमनी राज्य – उनका विस्तार, प्रशासन, समाज और संस्कृति, अर्थव्यवस्था और स्थापत्य, साहित्य, पतन के कारण।
  • मुगलों का आरोहण – बाबर से औरंगजेब तक और उत्तरवर्ती मुगल, अफगान – अन्तराल – शेरशाह सूरी और उसके सुधार।
  • मुगल प्रशासन – भू-सुधार, मनसबदारी और जागीरदारी व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, व्यापार एवं वाणिज्य- आन्तरिक तथा बाह्य, समाज तथा संस्कृति, कला एवं स्थापत्य – हिंद – मुगल स्थापत्य; चित्रकला, संगीत, साहित्य – फारसी, संस्कृत तथा क्षेत्रीय भाषाएं ।
  • मुगल साम्राज्य का विघटन – कारण।
  • शिवाजी और मराठा शक्ति का अभ्युदय – मराठा संघ – विस्तार, प्रशासन, समाज एवं संस्कृति, मराठा शक्ति का पतन।

आधुनिक भारत-

  • स्रोत – पुरातात्विक और अभिलेखीय सामग्री – सिक्के एवं इमारतें, साहित्य – यूरोपीय एवं भारतीय जीवनवृत्त तथा संस्मरण, यात्रावृत्तान्त, समाचारपत्र, मिशनरी सहित्य ।
  • औपनिवेशिक शक्तियों का आगमन तथा ब्रिटिश साम्राज्य का अभ्युदय एवं सृदृढीकरण, यूरोपीय व्यापारी तथा अन्तर – औपनेवेशिक प्रतिस्पर्धा – पुर्तगाली, डच, अंग्रेज तथा फ्रांसीसी ।
  • ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रमुख भारतीय राज्यों के साथ सम्बन्ध – बंगाल, अवध, हैदराबाद, मैसूर, मराठा तथा सिक्ख।
  • ईस्ट इंडिया कम्पनी तथा ताज के आधीन प्रशासन – कम्पनी के अधीन केन्द्रीय तथा प्रान्तीय प्रशासन का विकास (1773-1853 ); परमोच्च शक्ति, सिविल सेवा, न्याय-व्यवस्था, पुलिस तथा सेना ।
  • ब्रिटिश शासन में अर्थव्यवस्था – अर्थव्यवस्था का बदलता परिदृश्य, ‘दि ट्रिब्यूट कृषि का विस्तार एवं वाणिज्यीकरण, अकाल एवं महामारी, भू-अधिकार, भू-व्यवस्था, ग्रामीण ऋणग्रस्तता, हस्तशिल्प का अधःपतन, ब्रिटिश औद्योगिक नीति; प्रमुख उद्योग; फैक्ट्री अधिनियम, श्रमिक एवं मजदूर संघ के आन्दोलन ।
  • मौद्रिक नीतिः बैंक व्यवस्था, रेल तथा भूतल परिवहन ।
  • संक्रमणाधीन भारतीय समाजः ईसाई धर्म – आगमन, मिशनरी गतिविधियाँ तथा जनसामान्य को तत्तसम्बन्धी लाभः शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक स्वास्थविज्ञान ।
  • ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत शैक्षणिक व्यवस्था ।
  • भारतीय पुनर्जागरण – सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन और इसके मुख्य प्रवर्तक।
  • प्रिंटिंग प्रेस का अभ्युदय – पत्रकारिता सम्बन्धी गतिविधियाँ, तथा जनमत निर्माण में इसकी सहभागिता ।
  • स्वाधीनता संघर्षः भारतीय राष्ट्रवाद का उद्भवः राष्ट्रीय आन्दोलन का सामाजिक एवं आर्थिक आधार ।
  • 1857 का विद्रोहः कारण एवं परिणामः – विभिन्न आन्दोलन – जनजातीय एवं कृषक आन्दोलन को समाहित करते हुए ।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म तथा विकास- प्रारम्भिक वर्ष – 1885-1920 ।
  • वामपंथी दल तथा भारत में वामपंथी राजनीति ।
  • स्वदेशी आन्दोलन – बंग-भंग, देश तथा विदेश में भारतीय क्रान्तिकारियों की गतिविधियां ।
  • गाँधी तथा गाँधीवादी आन्दोलन
  • दलित समाज से सम्बन्धित आन्दोलन, जस्टिस पार्टी, अम्बेडकर पेरियार । साम्प्रदायिक राजनीति का अभ्युदय तथा जिन्ना का उद्भव ।
  • आजाद हिन्द फौज तथा सुभाष चन्द्र बोस ।
  • स्वतन्त्रता प्राप्ति की ओर एवं भारत का विभाजन । भारतीय संविधान का निर्माण, राष्ट्रीय आन्दोलन में उत्तराखण्ड का योगदान ।

विश्व का इतिहासः

  • विश्व इतिहास का परिचय
  • प्रारम्भिक समाज – आरंभिक समय से भूमिका; अफ्रीका, यूरोप 15000 ई०पू० तक, प्रारम्भिक शहरः ईराक, तीसरी सहस्राब्दि ई०पू०
  • साम्राज्यः भूमिका, तीन महाद्वीपों में फैला रोमन साम्राज्य 27 ई०पू० से 600 ई०पू० ।
  • मध्य इस्लामिक भूमिः 7वीं से 12वीं ई0 तक
  • आदिवासी साम्राज्यः मंगोल 13वीं से 14वीं ई० तक ।
  • परिवर्तित परम्पराएं: भूमिका, तीन आदेश पश्चिमी यूरोप, 13वीं से 16वीं ई0 तक 14वी. से 17वीं सदी तक यूरोप में परिवर्तनशील सांस्कृतिक परम्पराएं ।
  • यूरोप में क्रांतियां – फ्रांसिसी कांति, रूसी क्रांति ।
  • सांस्कृतिक संघर्ष: 15वीं से 18वीं सदी तक अमेरिका ।
  • आधुनिकीकरण की ओर: भूमिका, औद्योगिक क्रान्ति और कृषि क्रांति ।
  • मूल निवासियों का विस्थापनः उत्तरी अमेरिका और आस्ट्रेलिया 18वीं से 20वीं सदी तक ।
  • आधुनिकीकरण की ओरः पूर्वी एशिया 19 वीं सदी के पश्चात् से 20 वीं सदी।
  • प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के मध्य यूरोप ।
  • महामंदी तथा न्यू डील ।
  • नाजीवाद तथा फासीवाद
  • चीन में साम्यवाद का प्रभाव – कुओमिन्टांग तथा माओ की लम्बी पदयात्रा सयुंक्त राष्ट्र संघ शीत युद्ध तथा शक्ति संतुलन, गुटनिरपेक्ष आन्दोलनः स्वातंत्र्योत्तर भारत की वैदेशिक नीति ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Economics)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
अर्थशास्त्र (Economics) 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (अर्थशास्त्र)

1. सूक्ष्म अर्थशास्त्रः – अर्थ, अर्थशास्त्र की केंन्द्रीय समस्यायें, उत्पादन सम्भावना वक्र एवं अवसर लागत ।

उपभोक्ता संतुलन एवं माँगः उपयोगिता का अर्थ, सीमान्त उपयोगिता, सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम, सीमान्त उपयोगिता विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता का संतुलन, माँग एवं इसके निर्धारक तत्व, मांग में संकुचन व विस्तार तथा माँग वक्र में वृद्धि व कमी, माँग की कीमत लोच एवं इसके निर्धारण तथा मापन की विधियाँ; तटस्थता वक्र विश्लेषण एवं उपभोक्ता संतुलन ।

उत्पादक व्यवहार एवं पूर्तिः उत्पादन फलन; कुल उत्पाद, औसत उत्पाद एवं सीमान्त उत्पाद; प्रतिफल के नियम; लागत एवं आगम की अवधारणायें एवं उनका सम्बन्ध;  उत्पादक का संतुलन – अर्थ एंव संतुलन की दशायें; पूर्ति एवं इसके निर्धारक तत्व; पूर्ति वक्र में संकुचन व विस्तार एवं पूर्ति में कमी एवं वृद्धि, पूर्ति की कीमत लोच एवं इसके मापन की विधियाँ।

बाजार के स्वरूप एवं कीमत निर्धारणः पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकार, एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता एवं अल्पाधिकार बाजार का अर्थ एवं इसकी विशेषताऐं, बाजार संतुलन दशायें एवं पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत निर्धारण, उच्चतम् (ceiling) कीमत एवं निम्नतम् (floor) कीमत। भूमि, श्रम, पूँजी एवं लाभ की अवधारणायें एवं सिद्धान्त ।

2. व्यापक अर्थशास्त्रः – अर्थ; राष्ट्रीय आय अंकेक्षण; आय का चक्रीय प्रवाह; राष्ट्रीय आय की माप-उत्पाद अथवा मूल्यवर्धित विधि, व्यय विधि और आय विधि; राष्ट्रीय आय समग्र-सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP), शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद ( NNP), सकल एवं शुद्ध घरेलू उत्पाद ( GDP एवं NDP) साधन लागत एवं बाजार कीमतों पर व्यय योग्य आय, निजी आय तथा वैयक्तिक आय; वास्तविक एवं मौद्रिक सकल घरेलू उत्पाद; सकल घरेलू उत्पाद एवं आर्थिक कल्याण ।

मुद्रा एवं बैंकिंगः मुद्रा का अर्थ एवं कार्य, मुद्रा की पूर्ति एवं इसके विभिन्न माप, वाणिज्यिक बैंकों के द्वारा साख सृजन, केन्द्रीय बैंक एवं इसके कार्य, साख नियंत्रण, मुद्रा स्फीति एवं व्यापार चक्र की अवधारणा ।

रोजगार एवं आय का निर्धारण – समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति फलन, रोजगार एवं आय का निर्धारण; उपभोग एवं बचत प्रवृत्ति; विनियोग गुणक एवं इसका कार्यकरण; पूर्ण रोजगार एवं अनैच्छिक बेरोजगारी का अर्थ तथा इसे दूर करने के उपाय।

सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था – अर्थ, उद्देश्य एवं घटक, प्राप्तियों एवं व्यय का वर्गीकरण, सरकारी घाटे के मापक – राजस्व घाटा, राजकोषीय घाटा एवं प्राथमिक घाटा; राजकोषीय नीति ।

भुगतान संतुलन – अर्थ एवं घटक, भुगतान संतुलन घाटा, विनिमय दर – अर्थ एवं प्रकार मुक्त बाजार के अन्तर्गत विनियमय दर निर्धारण ।

3. भारतीय अर्थ व्यवस्था :-

विकास नीतियाँ एवं अनुभव ( 1947 से 1990) – भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताऐं, पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य; वृद्धि एवं क्षेत्रक विकास; भारतीय कृषि की मुख्य विशेषतायें, समस्यायें व नीतियाँ; जैविक खेती, औद्योगिक विकास एवं औद्योगिक नीति; भारत का विदेशी व्यापार । 1991 के पश्चात आर्थिक सुधार; भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ – जनसंख्या; मानव पूँजी निर्माण एवं इसकी भूमिका; संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में रोजगार, गरीबी एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम; ग्रामीण विकास; साख एवं विपणन समस्यायें, सहकारिता की भूमिका; स्वास्थ्य एवं ऊर्जा की समस्यायें, मुद्रास्फीति; संधारणीय विकास और पर्यावरण; वैश्विक उष्णता; भारत के पाकिस्तान एवं चीन के साथ तुलनात्मक विकास के अनुभव; नीति आयोग ।

4. सांख्यिकी :– अर्थ, क्षेत्र एवं महत्व; आकड़ों का संकलन – स्रोत, विधियाँ एवं आँकड़ों का संगठन, बारम्बारता वितरण; आकड़ों का प्रस्तुतीकरण, केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप – माध्य, माध्यिका एवं बहुलक; अपकिरण – विस्तार, चतुर्थक विचलन, माध्य विचलन और मानक विचलन तथा इनके सापेक्ष अपकिरण माप; लॉरेन्ज वक्र एवं इसके अनुप्रयोग; सहसंबंध – कार्ल पियर्सन एवं स्पियरमैन विधि। सूचकांक – थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, औद्योगिक उत्पाद सूचकांक एवं इनके उपयोग, मुद्रास्फीति एवं सूचकांक ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Civics)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
नागरिक शास्त्र (Civics) 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (नागरिक शास्त्र)

1. राजनीतिक सिद्धान्त और विचार

  • राजनीतिक सिद्धान्त की प्रकृति, इसकी मुख्य चिंताएं, पतन और पुनरोत्थान, प्रजातंत्र, स्वतंत्रता, समानता, न्याय, सम्प्रभुता, उदारवाद एवं मार्क्सवाद ।
  • शक्ति सत्ता एवं वैधता ।
  • भारतीय राजनीतिक विचारक : मनु, कौटिल्य, विनायक दामोदर सावरकर, गाँधी तथा अम्बेडकर।
  • पाश्चात्य राजनीतिक विचारक : प्लेटो, अरस्तु, बेंथम, जे०एस० मिल, हीगेल और मार्क्स।
  • आधुनिक राजनीतिक विचारक : लेनिन, माओ, ग्राम्शी तथा जॉन रॉल्स ।

2. तुलनात्मक राजनीति एवं राजनीतिक विश्लेषण

  • तुलनात्मक राजनीति का एक अनुशासन के रूप में उद्भव प्रकृति और विषय क्षेत्र ।
  • तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन के उपागमः पारम्परिक एवं आधुनिक ।
  • शासन के प्रकार : एकात्मक तथा संघात्मक, संसदात्मक तथा अध्यक्षात्मक ।
  • शासन के अंग : कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका – तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में उनके अन्तरसम्बन्ध ।
  • दल-प्रणालियाँ तथा दबाव – समूहः चुनावी व्यवस्थाएँ ।
  • राजनीतिक विकास, राजनीतिक संस्कृति और राजनीतिक समाजीकरण ।
  • राजनीतिक अभिजन प्रजातंत्र का अभिजात्य सिद्धान्त ।

3. भारतीय शासन एवं राजनीति

  • राष्ट्रीय आन्दोलन –
    1. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रभाव ।
    2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का निर्माण एवं कार्य ।
    3. स्वतंत्रता आंदोलन में गाँधी जी की भूमिका ।
    4. स्वतंत्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों का योगदान ।
  • संविधान सभा – रचना एवं कार्य ।
  • प्रस्तावना, नागरिकता, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति-निदेशक – सिद्धान्त तथा मौलिक कर्तव्य । संवैधानिक संशोधन – प्रक्रिया एवं सामाजिक परिवर्तन ।
  • संरचना और प्रकार्य – 1 – राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रि-परिषद्, संसदात्मक व्यवस्था की कार्य- शैली ।
  • संरचना और प्रकार्य – 2 – राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रि-परिषद्, राज्य विधायिका ।
  • स्थानीय स्वायत्त शासन : (ग्रामीण और नगरीय), उत्तराखंड राज्य के विशेष संदर्भ में, स्थानीय स्वायत्त शासन में महिलाओं हेतु आरक्षण और उसका प्रभाव ।
  • संघवाद : भारत में संघवाद की संरचना, स्वायत्तता की माँगें और पृथकतावादी आन्दोलन, केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के उभरते प्रतिमान ।
  • न्यायपालिका : उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय (संरचना एवं प्रकार्य), न्यायिक पुनरावलोकन, न्यायिक सक्रियता, जनहित याचिका सम्बन्धी मुकदमों सहित, न्यायिक सुधार । भारत में पंथ निरपेक्षवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद एवं जातिवाद की राजनीति ।
  • भारत में लोकपाल एवं लोकायुक्त ।
  • भारत के नवीन सामाजिक आन्दोलन (कृषक आन्दोलन, महिला आन्दोलन, पर्यावरण तथा विकास प्रभावित जन आन्दोलन)
  • राजनैतिक दल एवं जनमत।
  • उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महिलाओं की भूमिका ।
  • नीति आयोग – संरचना एवं प्रकार्य ।
  • भारत में चुनाव आयोग और चुनाव सुधार ।
  • उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण ।
  • उत्तराखंड में मानवाधिकार आयोग की रचना एवं कार्यविधि ।

4. लोक प्रशासन

  • लोक प्रशासन : अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र ।
  • संगठन के सिद्धान्त: सूत्र और स्टाफ पद सोपान, आदेश की एकता, नियंत्रण का क्षेत्र, केन्द्रीयकरण और विकेन्द्रीकरण, संगठन के प्रकार- औपचारिक एवं अनौपचारिक, संगठन के प्रारूप- विभाग और लोक निगम ।
  • मुख्य कार्यपालिका : प्रकार, कार्य और भूमिका ।
  • कार्मिक प्रशासन : भर्ती, प्रशिक्षण और पदोन्नति ।
  • नौकरशाही : प्रकार तथा भूमिका, मैक्स वेबर और उनकी आलोचना ।
  • वित्तीय प्रशासन : बजट, भारत में बजट निर्माण प्रक्रिया तथा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका ।
  • सुशासन : प्रशासनिक भ्रष्टाचार की समस्याएँ, पारदर्शिता, जवाबदेही उत्तराखंड के विशेष संदर्भ में सूचना का अधिकार ।

5. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध

  • अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अर्थ प्रकृति एवं क्षेत्र ।
  • शक्ति : शक्ति के तत्व, राष्ट्रीय हित का निर्माण और उन्नयन, विदेश नीति के निर्धारक तत्व ।
  • शस्त्र : पारम्परिक, नाभिकीय एवं जैवरासायनिक, परमाणु निवारण ।
  • शस्त्रस्पर्धा, शस्त्र नियंत्रण एवं निःशस्त्रीकरण ।
  • विवादों का शान्तिपूर्ण समाधान एवं कूटनीति ।
  • गुट निरपेक्षता तथा वैश्वीकरण ।
  • नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था, उत्तर-दक्षिण संवाद, दक्षिण-दक्षिण सहयोग, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू0 टी० ओ०) ।
  • संयुक्त राष्ट्र : उद्देश्य, लक्ष्य, संरचना ।
  • संयुक्त राष्ट्र की कार्य प्रणाली: शान्ति, विकास तथा पर्यावरणीय संदर्भ में ।
  • क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय संगठन विशेषतः ‘सार्क, आसियान’ और ‘ओपेक’ ।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में भारत की भूमिका : भारत के पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, भूटान, बाग्लादेश और श्रीलंका) एवं प्रमुख देशों (ब्रिटेन, अमेरिका, रूस और चीन) से सम्बन्ध, भारतीय विदेश नीति और कूटनीति, भारत की परमाणु नीति ।
  • आतंकवाद और राज्य प्रायोजित आतंकवाद ।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा की बदलती अवधारणा एवं राष्ट्र राज्य की चुनौतियां ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Biology)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
जीव विज्ञान 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (जीव विज्ञान)

1. पादप और जन्तुओं में विविधताएं

. सूक्ष्मजीवों की सामान्य अवधारणा । आकृति विज्ञान, संरचना, प्रजनन और जीवाणु और विषाणु के जीवन चक्र ।

.  कवकों की संरचना, प्रजनन और जीवन चक्र

. मिक्जोमाइकोटीना, मैस्टिगोमोकोटीना, उमाइकोटिना, जाइगोमाइकोटिना, एस्कोमाइकोटीना, बेसिडोमाइकोटीना और ड्यूट्रोमाइकोटिना की विशिष्ट विशेषताओं के साथ कवक का वर्गीकरण ।

. कवकों का आर्थिक महत्व ।

. रोग की सामान्य अवधारणा, पादपों में रोगों के लक्षण, संक्रमण के तरीके ।

. संरचना, रोग चक्र और भिगोना, विल्ट, जड़ सड़ांध, स्टेम रोट, पाउडर और डाउनीमिल्डीयू, रस्ट, स्मुट्स, पत्ती के धब्बे और पत्ती के ब्लाइट्स के नियंत्रण के तरीकों का संक्षिप्त विवरण ।

. रोगाणुओं का आर्थिक महत्व ।

. शैवाल का वर्गीकरण ।

. प्रोटोक्लोरोफाइटा, क्लोरोफायटा, कैरौफाइटा, जैन्थौफाईटा, बैसिलैरियोफाइटा, फियोफाइटा, रोडोफाइटा और साइनोफाइटा की मुख्य विशेषताएं ।

. विभिन्न शैवालों के जीवन चक्रों का सामान्य उल्लेख ।

. शैवाल का आर्थिक महत्व ।

. ब्रायोफाइट्स के आकारिकी, संरचना, प्रजनन और जीवन इतिहास का सामान्य विवरण।

. ब्रायोफाइट्स का वर्गीकरण ।

. ब्रायोफाइट्स का आर्थिक महत्व ।

. टेरिडोफाइट्स का वर्गीकरण ।

. साइलोफाइटोपसीडा, साइलोटोपसीडा, लाइकोपसीडा, स्फिीनोपसीडा, टेरोपसीडा का आकृति विज्ञान और जीवन इतिहास।

. टेरिडोफाइट्स का आर्थिक महत्व ।

. अनावृतबीजीयों का वर्गीकरण ।

. टेरिडोर्म्यमेल्स, बेनेटिटेल्स, साइकेडेल्स, गिंगकोऐल्स, कोनिफरेल्स, टेक्सेल्स, एफीडरेल्स, वेलवीस्चिीयेल्स और नीटेल्स की आकृति विज्ञान एवं जीवनचक्र

. जिमनोपम का आर्थिक महत्व ।

. एंजियोपम्स के वर्गीकरण की महत्वपूर्ण प्रणाली ( बेंन्थम और हुकर, हचिन्सन और क्रॉनिकिस्ट) ।

फ. पवर्गीकरण में शरीर रचना, भ्रूण विज्ञान, कोशिका विज्ञान, फाइटोकेमिस्ट्री और पैलेनौलाजी की भूमिका ।

ब. रेननकुलेसी, मैगनोलिएसी, रूटेसी, फैबेसी, रोजेसी, एपीएसी, एस्टरएसी, प्रिमुलेसी, एस्क्लेपीडियेसी, लैमिऐसी, वर्बिनेसी, कोनवौल्वुलेसी, एकैन्थैसी, सोलेनैसी, अमेरेनथैसी, युफोरबिएसी, ऑर्किडेसी, साइपेरेसी और पोएसी की विभेदीय विशेषताएं एवं उनका आर्थिक महत्व ।

भ. प्रोटोजोआ, पोरिफेरा, सिलेन्टीरेटा, प्लैटिहेलमैनथिस, एस्कीहेलमैनथिस, एनीलिडा, आथ्रोपोड़ा, मोलस्का, इकाईनोर्डरमेटा और कोर्डटा के सामन्य लक्षण एवं वर्ग तक वर्गीकरण ।

म. प्रोटोजोआ में संचलन, पोरिफेरा में नहर प्रणाली, सिलेनट्रेटा में बहुरूपता, हेलमेंन्थस् में परजीवी अनुकूलता और कीटों में सामाजिक जीवन।

य. हेमिकोर्डेटा, सिफैलोकोर्डेटा, यूरोकोर्डेटा में सम्बन्ध । उभयचर प्राणियों में पैत्रिक देखभाल, विष एवं विषहीन सर्प और पक्षियों में प्रवास । प्रोटोथिरिया, मैटाथिरिया और यूथिरिया के सामान्य लक्षण एवं उनकी समानताएं ।

2. कोशिका विज्ञान और आनुवांशिकी

क. कार्बोहाइड्रेट, लिपिड प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, विटामिन और वर्णकों की संरचना, कार्य एवं चयापचय ।

ख. एंजाइमों का वर्गीकरण, एंजाइम बलगतिकी, किण्वक विनियमन, किण्वक उत्प्रेरक प्रकिया, समकिण्वक और सह- किण्वक ।

ग. प्रोटीन्स की प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक संरचनाएं ।

घ. मॉडल झिल्ली, लिपिड बाइलेयर की संरचना तथा झिल्ली प्रोटीन प्रसार, परासरण, आयन चैनल सक्रिय परिवहन ।

ङ. कोशिका भित्ति, केन्द्रक, माईटोकाँन्ड्रीया, गोल्गी काँय, लाइसोम्स, अंतगर्द्रविक जालिका, परआक्सीसोम, प्लास्टीड्स, रिक्तिकाएं, साइटोपंजर की संरचना एवं कार्य तथा गतिशीलता में इसकी भूमिका ।

च. गुणसूत्रों और विशालकाय गुणसूत्रों की संरचना ।

छ. समसूत्रीय और अर्धसूत्रीय विभाजन, सेल चक्र, सेल चक्र का विनियमन एवं नियंत्रण ।

ज. प्रतिकृति की इकाई, इसमें शामिल किण्वक, गुणसूत्रवाय प्रतिकृतियां, डी एन ए क्षति एवं मरम्मत तंत्र ।

झ. न्यूक्लिक एसिड की संरचना: हेलिक्स ( ए, बी, जेड) ।

ञ. आर एन ए संश्लेषण एवं प्रसंस्करण ।

ट. मेंडेलियन के सिद्धांत, प्रभुत्व, अलगाव, अपव्यूहन, वंशानुगतता और विविधता ।

ठ. जीन की अवधारणा एलिल, एकाधिक एलील्स, स्यूडोंएलिल्स ।

ड. मेंडेलियन सिद्धांतों का विस्तारण : सहप्रभुत्वता, अधूरा वर्चस्व, जीन परस्पर क्रिया, सहलंग्नता, क्रोसिंग ओवर, लिंग सहलंग्नता, लिंग प्रभावित लक्षण, उत्परिवर्तन के कारण एवं प्रकार ।

ढ. अतिरिक्त गुणसूत्र वंशानुगतता, माइटोकोन्ड्रिया और क्लोरोप्लास्ट जीन का उत्तराधिकार, मातृ वंशानुगतता ।

ण. गुणसूत्रों में संरचनात्मक एवं संख्यात्मक फेर बदल : विलोपन, दोहराव, उलटाव, स्थानान्तरण, प्लॉइडी ।

त. पुनर्संयोजनः ट्रांसपोजिशन सहित समरूप और गैर-समरूप पुनर्संयोजन ।

थ. पादप प्रजनन के लक्ष्य, उद्देश्य और बुनियादी तकनीक ।

द. फसल सुधार विधियाँ-पादप परिचय, चयन, अनुकूलन, संकरण, कायिक प्रवर्धन और कलम बांधना ।

ध. संकरीकरण : अन्तराजातिय एवं अन्तरावंशीय, शुद्ध वंशक्रम, बेक कास संकरण, स्व-असंगति प्रणाली ।

3. विकास एवं व्यवहार

क. लैमार्कवाद एवं डार्विनवाद, अनुकूलन, संघर्ष, परिपूर्णता और प्राकृतिक चयन मेन्डलवाद : विकासवादी संश्लेषण, जैविक विकास के प्रमाण

ख. बुनियादी जैविक अणुओं का उद्धभव, कार्बनिक एकलकों एवं बहुलकों का अजैविक संश्लेषण, ओपरिन और हल्दने की अवधारणा, मिलर का प्रयोग (1953), प्रथम कोशिका, प्रोकेरियोट्स का विकासः यूकेरियोटिक कोशिकाओं का उद्धभवः एक कोशिकिय यूकेरियोट्स का विकास : अवायवीय चयापचय, प्रकाश संश्लेषण तथा वायवीय चयापचय ।  

ग. भू वैज्ञानिक समय मापक्रम, विकासवादी समय पैमाने की प्रमुख घटनाऐं: एक कोशिकीय एवं बहुकोशिकीय जीवधारीयों का उद्धभव : जन्तुओं के प्रमुख समूहः प्रमुख जीवाश्म अभिलेख | घोडा, हाथी एवं मानव का विकास ।

घ. प्राकृतिक विकास की अवधारणा ।

4. व्यावहारिक जीव विज्ञान

क. रेशा उत्पादक पादप, औषधीय एवं सुगंधित पादप ।

ख. महत्वपूर्ण काष्ठ – उपज देने वाले पादप एवं अकाष्ठ – वन उत्पाद ( एन टी एफ पीज्) जैसे बांस, गोंद, टैनिन्स, रंजक, रेजिन, पेय पदार्थ और सजावटी पादप ।

ग. बौद्धिक संपदा अधिकार ।

घ. सूक्ष्म जीवधारी किण्वन एवं छोटे और बडें अणुओं का उत्पादन।

ङ. प्रतिरक्षाविज्ञानीय सिद्धांतों की प्रयोज्यता, टीके, जाँच। पौधों एवं जन्तुओं में ऊतक एवं कोशिका संवर्धन की विधियाँ ।

च. परा–उत्पत्तिमूलक पादप एवं जन्तु, स्ट्रेन की पहचान एवं लक्षणों का आणविक दृष्टिकोण।

छ. जीनोमिक्स एवं जीन उपचार सहित स्वास्थ्य एवं कृषि में इसका उपयोग।

ज. चिन्ह्क-सहायता प्रदान चयन सहित पादप एवं जन्तुओं में जनन करना ।

झ. मानव एवं घरेलू पशुओं के आम परजीवी एवं रोगजनक ।

ञ. रेशम कीट पालन, मधुमक्खी पालन, लाख पालन, कृमि संवर्धन, मोती संवर्धन, मतस्य पालन ।

ट. औषधि, जैव-नियंत्रण एवं भोजन में उपयोग में आने वाले कीट।

ठ. एकीकृत कीट प्रबंधन ।

5. पादप एवं जन्तु कार्यिकी

क. पादप जल सम्बन्धः प्रसार, परासरण, पानी की क्षमता और इसके घटक, प्लाज्मोलाइसिस, पानी का अन्तःशोषण तथा अवशोषण, जड़ दबाव तथा पौधों में रस आरोहण ।

ख. पौधों में जल हानिः वाष्पोत्सर्जन तथा उसका महत्व, वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक, रंन्ध्र खुलने एवं बन्द होने की प्रक्रिया, बिन्दु स्त्राव ।

ग. खनिज पोषण– आवश्यक तत्व, दीर्घ एवं सूक्ष्म तत्व, तत्वों की आवश्यकताओं के मानदंड, आवश्यक तत्वों की भूमिका, खनिजों की कमी के लक्षण, कोशिका झिल्ली के आरपार आयनों का परिवहन, सक्रिय एवं निष्क्रिय परिवहन |

घ. पौधों में प्रकाश संश्लेषण ।

ङ. अवायवीय एवं वायवीय श्वसन, ग्लाइकोलाईसिस, क्रेब्स चक्र ( साइट्रिक अम्ल चक्र), ऑक्सीकरणी फॉस्फोराइलेशन, इलेक्ट्रॉन परिवहन प्रणाली, किण्वन, आर. क्यू ।

च. नाइट्रोजन निर्धारण, नाइट्रेट और अमोनियम सम्मिलन एमिनो अम्लों का जैव संश्लेषण ।

छ. पादप वृद्धि नियंन्त्रक – ऑक्जिन्स, जिबेरिलिन्स साइटोकिनिन, इथाइलीन, ऐबस्सिसिक अम्ल, पोलीएमाइन्स, जैसमोनिक अम्ल, हार्मोन अभिग्राही एवं विटामिन्स की कर्यिकी प्रभाव एवं क्रियाविधि ।

ज. प्रकाशकालिता एवं इसका महत्व ।

झ. टरपिन्स, फिनॉल, नाइट्रोजनीय यौगिकों का जैवसंश्लेषण एवं उनकी भूमिका ।

ञ. पौधों पर जैविक एवं अजैविक तनावों की प्रतिक्रिया ।

ट. हृदय की तुलनात्मक आंतरिक शरीर रचना पेशीजनक एवं तंत्रिकाजनक हृदय, हृदय चक्र, हृदयी निर्गम, स्ट्रोक आयतन, रक्त चाप, हृदय का हार्मोनल और तंत्रिकीय नियंत्रण । तन्त्रिका कोशिकाओं के आकारकीय प्रकार, तन्त्रिका आवेग का उद्धभव संचरण एवं कार्यिकी । जन्तुओं में नाइट्रोजीनी अपशिष्ट के प्रकार, स्तनधारियों में मूत्र निर्माण कार्यिकी, किण्वक एवं विटामिन्स तथा उनका मानव कार्यिकी में महत्व । अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ तथा उनके स्त्राव एवं कार्य । मानव में पाचन की कार्यिकी ।

6. पारिस्थितिकी

क. पारिस्थितिकी तन्त्र के प्रकार, संरचना और कार्य (जलीय एवं स्थलीय) ।

ख. ऊर्जा प्रवाह, एवं पोषक खाद्य चकण (N, P, C, O) खाद्य श्रृंखला, खाद्य जाल और पारिस्थितिक पिरामिड ।

ग. जनसंख्या पारिस्थितिकी : लक्षण, जनसंख्या वृद्धिवक, जनसंख्या नियमन, डीम्स एवं प्रसार ।

घ. समुदाय पारिस्थितिकी : संरचना एवं संगठन, विशेषताएँ, नाम पद्धति ।

ङ. पारिस्थितिकीय अनुक्रम : प्रकार, क्रियावली, अनुक्रम में शामिल परिर्वतन ।

च. पर्यावरणीय प्रदूषण वायु : जल, ध्वनि, नाभिकीय (स्रोत, प्रभाव एवं अल्पीकरण)

छ. जैवविविधता : आनुवांशिक, प्रजाति तथा पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता का मूल्य, जैव विविधता में ह्रास के कारण तथा इसका संरक्षण (अंतस्थ तथा संसगत संरक्षण) ।

7. पादप एवं जन्तुओं में प्रजनन और विकास –

परागण, निषेचन और भ्रूणपोष का विकास। पौधों में भ्रूण का विकास और बीज गठन । बीजांड की संरचना, गुरूबीजाणुजनन, का विकास एवं भ्रूण – कोष का सगंठन । युग्मनन, निषेचन एवं मेंढक, चूजों और स्तनधारीयों में आरम्भिक विकास, ब्लास्टुला गठन, कंदुकन तथा जन्तुओं में जर्म परतों का गठन। युग्मनज का गठन, भ्रणोंद्भय । चूजें में आंख, मस्तिष्क और हृदय का विकास, अपरा का वर्गीकरण, स्तनधारियों में अपरा की कार्यिकी एवं कार्य । जन्तुओं में कायान्तरण के प्रकार एवं हार्मोन नियन्त्रण। चूजों में अतिरिक्त भ्रूणीय झिल्लीयां ।

8. जैव प्रौद्योगिकी

क. विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव ।

ख. आनुवांशिक अभियांत्रिकी की तकनीक एवं कार्यक्षेत्र पर संक्षिप्त विचार ।

ग. जीन प्रतिरूपण : संकल्पना एवं बुनियादी कदम, आनुवंशिक अभियांत्रिकी के उपयोग के परिपेक्ष में इ, कोलाई तथा जीवाणुभोजी का आनुवंशिक विकास में जीवाणुओं एवं विषाणुओं का उपयोग ।

घ. पादप कोशिका, ऊतक और अंग संवर्धन, ऊतक संवर्धन की तकनीक, जनन्द्रव का संग्रहण एवं भंडारण (निम्न ताप परिरक्षण) । पादप ऊतक संवर्धन का उपयोग । ट्रान्सजेनिक पौधें ।

ङ. खेतों में जैव उर्वरक एवं जैविक नियंत्रण

च. आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित खाद्य फसलों, नैनो जैव प्रौद्योगिकी, पी सी आर आर टी पी सीआर, जीन लायब्रेरी, जीन बैंक की प्रारंभिक जानकारी ।

ज. आणविक चिन्हकों के प्रकार एवं उनकी भूमिका ।

9. जीव विज्ञान में विधियाँ

क. आणविक जीवविज्ञान और पुनः संयोजक डी०एन०ए० विधि :

एक और द्विआयामी जैल वैद्युतकणसंचलन द्वारा आर०एन०ए०, डी0एन0ए0 और प्रोटीन का विश्लेषण, समविधुत विभव फोकसिंग जैल्स ।

जीवाणु और यूकेरियोटिक प्रणालियों में डी०एन०ए० या आर०एन०ए० टुकड़ों का आणविक प्रतिरूपण। जीवाण्विक, जन्तुओं एवं पादप वाहकों का उपयोग करके पुनः संयोजक प्रोटीन की अभिव्यक्ति। विशिष्ट अमिनों अम्ल अनुक्रमों का अलगाव ।

प्लाज्मिड, फेज, कॉस्मीड, बी ए सी और वाई ए सी, वाहकों में जीनोमिक और सी डी एन ए पुस्तकालयों का निर्माण ।

प्रोटीन अनुक्रमण विधियाँ : प्रोटीन के पोस्ट अनुवाद रूपान्तरण का अवलोकन डी एन ए अनुक्रमण विधियां, जीनोम अनुक्रमण के लिए रणनितियाँ ।

आर०एन०ए० और प्रोटीन स्तर पर जीन अभिव्यक्ति के विश्लेषण के तरीके, बड़े पैमाने पर अभिव्यक्ति जैसे सूक्ष्म सरणी आधारित तकनीक । कार्बोहइड्रेट एवं लिपिड अणुओं का अलगाव, प्रथककरण एवं विश्लेषण |

आर०एफ०एल०पी, आर०ए०पी०डी० और ए०एफ०एल०पी तकनीकें ।

ख. सांख्यिकीय विधियां : केंद्रीय प्रवृत्ति और वितरण का मापआंकन : संभावना बंटन (द्विपदीय, प्वाइजन, साधारण) नमूने का विक्षेपण” प्राचल और अप्राचल के बीच अंतर : विश्वास अंतराल त्रुटियाँ, आँकड़ों के स्तर ” महत्व, समाश्रयण और सहसंबंध टी- परीक्षण, विचरता का विश्लेषण, X2 परीक्षण |

ग. सूक्ष्मदर्शी तकनीक : प्रकाश सूक्ष्मदर्शी द्वारा कोशिकाओं और सबसेल्यूलर, घटकों को देखने की प्रक्रिया विसर्जन, विभिन्न सूक्ष्मदर्शीयों की शक्तियों का हल । जीवित कोशिकाओं की माइक्रोस्कोपी, स्कैनिंग और ट्रांसमिशन सूक्ष्मदर्शी ।

घ. क्षेत्र जीव विज्ञान की विधियाँ: रेन्जिंग पैर्टन द्वारा प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष तथा सुदूर अवलोकन, व्यवहार के अध्ययन की प्रतिचयन विधियाँ। वास, लक्षण वर्णन, धरातल एवं सदुर संवेदन विधियाँ ।

 

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