
टिहरी गढ़वाल (Tehri Garhwal)
- मुख्यालय – टिहरी गढ़वाल
- अक्षांश – 30°30′ उत्तरी अक्षांश
- देशांतर – 78°56′ पूर्वी देशांतर
- अस्तित्व – 01 अगस्त, 1949
- क्षेत्रफल – 3,642 वर्ग किलोमीटर
- परगना – 5 (नरेन्द्रनगर, टिहरी, प्रतापनगर, घनसाली, कीर्तिनगर)
- तहसील – 12 (नरेन्द्रनगर, टिहरी, जाखणीधार, धनोल्टी, नैनबाग, कंडीसौड़, प्रतापनगर, मदननेगी, घनसाली, बालगंगा, देवप्रयाग, कीर्तिनगर)
- उप-तहसील – 2 (गजा, पाव की देवी)
- विकासखंड – 9 (फकोट (नरेन्द्रनगर), चम्बा, जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, जाखणीधार, हिण्डोलाखाल, कीर्तिनगर, भिलंगना)
- ग्राम – 1,868
- ग्राम पंचायत – 1,038
- नगर पालिका – 5 (नरेन्द्रनगर, नई टिहरी, देवप्रयाग, चंबा, मुनि की रेती)
- जनसंख्या – 6,16,409
- पुरुष जनसंख्या – 2,96,604
- महिला जनसंख्या – 3,19,805
- शहरी जनसंख्या – 70,139
- ग्रामीण जनसंख्या – 5,48,792
- साक्षरता दर – 76.36%
- पुरुष साक्षरता – 89.76%
- महिला साक्षरता – 64.28%
- जनसंख्या घनत्व – 170
- लिंगानुपात – 1077
- जनसंख्या वृद्धि दर – 2.35%
- प्रसिद्ध मन्दिर – श्री रघुनाथ जी, सुरकंडा, सेममुखेम नागराज, रमणा मंदिर, महतकुमारिका, कुंजापुरी, ओनेश्रवर महादेव, बूढा केदार, घंटाकर्ण
- प्रसिद्ध मेले – कुंजापुरी मेला, सुरकंडा मेला, वीरगब्बर सिंह मेला, नागेन्द्र सकलानी मेला, गुरुमाणिकनाथ मेला, नागटीब्बा मेला, यमुनाघाटी क्रीडा मेला
- प्रसिद्ध पर्यटक स्थल – टिहरी बांध, धनोल्टी, ईको पार्क, घुत्तु कैम्पटी फॉल, चम्बा, नई टिहरी, झड़ीपानी
- बुग्याल – पावंली काठा
- ताल – मंसूरताल, सहस्त्रताल, अप्सराताल
- जलविद्धुत परियोजनायें – टिहरी परियोजना, कोटेश्वर बांध परियोजना, भिलंगना हाइड्रो प्रोजेक्ट
- सीमा रेखा
- पूर्व में रुद्रप्रयाग,
- पश्चिम में देहरादून,
- उत्तर में उत्तरकाशी,
- दक्षिण में पौड़ी
- राष्ट्रीय राजमार्ग – NH-94 (ऋषिकेश – यमुनोत्री)
- कॉलेज/विश्वविद्यालय – एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय एसआरटी कैंपस चम्बा, श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय, स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट
- संस्थान – टी.एच.डी.सी. हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज, एन.सी.ई.आर.टी. नरेन्द्रनगर
- विधानसभा क्षेत्र – 6 (टिहरी, घनसाली(अनुसूचित जाति ), देवप्रयाग, नरेन्द्रनगर, प्रतापनगर, धनोल्टी)
- लोकसभा सीट – 1 (टिहरी लोकसभा सीट के अंतर्गत)
- नदी – भिलंगना, भागीरथी, जलकुर नदी, टकोली गाड़, हेंबल नदी,
Source – https://tehri.nic.in
इतिहास
टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड राज्य के बाहरी हिमालयी दक्षिणी ढलान पर पड़ने वाला एक पवित्र पहाड़ी जिला है। कहा जाता है की इस ब्रह्माण्ड की रचना से पूर्व भगवान् ब्रह्मा ने इस पवित्र भूमि पर तपस्या की थी। इस जिले में पड़ने वाले दो स्थान मुनिकीरेती एवं तपोवन प्राचीन काल में ऋषियों की तप स्थली थी। यहाँ के पर्वतीय इलाके एवं संचार के साधनों की कमी के कारण यहाँ संस्कृति अभी तक संरक्षित है। टिहरी गढ़वाल का नाम दो शब्द टिहरी एवं गढ़वाल से मिल कर बना है , जिस में उपसर्ग टिहरी वास्तव में त्रिहरी का अपभ्रंश है जो की उस स्थान का प्रतीक है जो तीन प्रकार के पापों को धोने वाला है ये तीन पाप क्रमश 1. विचारों से उत्पन्न पाप (मनसा) 2. शब्दों से उत्पन्न पाप (वचसा) 3. कर्मों से उत्पन्न पाप (कर्मणा)। इसी प्रकार दुसरे भाग गढ़ का अर्थ है देश का किला । वास्तव में पुराने दिनों में किलों की संख्या के कब्जे को उनके शासक की समृधि और शक्ति को मापने वाली छड़ी मन जाता था । 888 से पहले पूरा गढ़वाल क्षेत्र अलग अलग स्वतंत्र राजाओं द्वारा शासित छोटे छोटे गढ़ों में विभाजित था। जिनके शासकों को राणा , राय और ठाकुर कहा जाता था । ऐसा कहा जाता है की राज कुमार कनक पाल जो मालवा से श्री बदरीनाथ जी के दर्शन को आये जो की वर्तमान मे चमोली जिले में है वहां उनकी भेंट तत्कालीन राजा भानुप्रताप से हुयी। राजा भानुप्रताप ने राज कुमार कनक पाल से प्रभावित होकर अपनी एक मात्र पुत्री का विवाह उनके साथ तय कर दिया और अपना सारा राज्य उन्हें सौंप दिया । धीरे धीरे कनक पाल एवं उनके वंशजों ने सरे गढ़ों पर विजय प्राप्त कर साम्राज्य का विस्तार किया. इस प्रकार 1803 तक अर्थात 915 सालों तक समस्त गढ़वाल क्षेत्र इनके आधीन रहा।
1794-95 के दौरान गढ़वाल क्षेत्र गंभीर अकाल से ग्रस्त रहा तथा पुन 1883 में यह क्षेत्र भयानक भूकंप से त्रस्त रहा तब तक गौरखाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था और इस क्षेत्र पर उनके प्रभाव की शुरुवात हुयी। इस क्षेत्र के लोग पहले ही प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त होकर दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति में थे और इस कारणवश वो गौरखाओं के आक्रमण का विरोध नहीं कर सके वहीँ दूसरी तरफ गोरखा जिनके लंगूरगढ़ी पर कब्ज़ा करने के लाखों प्रयत्न विफल हो चुके थे, अब शक्तिशाली स्थिति में थे। सन 1803 में उन्होंने पुनः गढ़वाल क्षेत्र पर महाराजा प्रद्युम्न शाह के शासन काल में आक्रमण किया । महाराजा प्रद्युम्न शाह देहरादून में गौरखाओं से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए परन्तु उनके एक मात्र नाबालिग पुत्र सुदर्शन शाह को उनके विश्वास पात्र राजदरबारियों ने चालाकी से बचा लिया। इस लड़ाई के पश्चात गौरखाओं की विजय के साथ ही उनका अधिराज्य गढ़वाल क्षेत्र में स्थापित हुआ । इसके पश्चात उनका राज्य कांगड़ा तक फैला और उन्होंने यहाँ 12 वर्षों तक राज्य किया जब तक कि उन्हें महाराजा रणजीत के द्वारा कांगड़ा से बाहर नहीं निकाल दिया गया। वहीँ दूसरी ओर सुदर्शन शाह ईस्ट इंडिया कम्पनी से मदद का प्रबंध करने लगे ताकि गौरखाओं से अपने राज्य को मुक्त करा सके। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कुमाउं देहरादून एवं पूर्वी गढ़वाल का एक साथ ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया तथा पश्चिमी गढ़वाल को राजा सुदर्शन शाह को सौंप दिया जो की टिहरी रियासत के नाम से जाना गया।
महाराजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी नगर में स्थापित की तथा इसके पश्चात उनके उत्तराधिकारियों प्रताप शाह, कीर्ति शाह तथा नरेंद्र शाह ने अपनी राजधानी क्रमशः प्रताप नगर, कीर्ति नगर एवं नरेंद नगर में स्थापित की। इनके वंशजों ने इस क्षेत्र में 1815 से 1949 तक शासन किया। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय इस क्षेत्र के लोगों ने सक्रीय रूप से भारत की आजादी के लिए बढ़ चढ़ कर भाग लिया और अंत में जब देश को 1947 में आजादी मिली टिहरी रियासत के निवासियों ने स्वतंत्र भारत में विलय के लिए आन्दोलन किया। इस आन्दोलन के कारण परिस्थियाँ महाराजा के वश में नहीं रही और उनके लिए शासन करना कठिन हो गया जिसके फलस्वरूप पंवार वंश के शासक महाराजा मानवेन्द्र शाह ने भारत सरकार की सम्प्रभुता स्वीकार कर ली। इस प्रकार सन 1949 में टिहरी रियासत का उत्तर प्रदेश में विलय हो गया। इसके पश्चात टिहरी को एक नए जनपद का दर्जा दिया गया। एक बिखरा हुआ क्षेत्र होने के कारण इसके विकास में समस्यायें थी परिणाम स्वरुप 24 फ़रवरी 1960 को उत्तर प्रदेश ने टिहरी की एक तहसील को अलग कर एक नए जिले उत्तरकाशी का नाम दिया।
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