Indian Geography in Hindi

भारत के प्रमुख फसलें – चावल (Rice)

चावल (Rice)

चावल (Rice) भारत की सर्वप्रमुख फसल है जिस पर भारत की लगभग आधी से भी अधिक जनसंख्या रहती करती है। चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल का सर्वाधिक उत्पादक करता है। विश्व का लगभग 29% चावल क्षेत्र भारत में ही होता हैं। भारत की कुल कृषि भूमि के 25% भाग पर चावल बोया जाता हैं। 150 से० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल लोगों का मुख्य आहार है।

चावल की उपज के लिए निम्नलिखित दशाएँ अनुकूल हैं:

तापमान – यह एक उष्ण कटिबंधीय फसल है जिसके लिए कम-से-कम 24° सेल्सियम तापमान होना आवश्यक है। इसे बोते समय 21° सेल्सियस बढ़ते समय 24° सेल्सियस तथा पकते समय 27° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती हैं।

वर्षा – चावल की फसल के लिए 125 से 200 से०मी० वार्षिक वर्षा आवश्यक है।

मिट्टी – चावल के लिए बहुत उपजाऊ मिट्टी चाहिए। इसके लिए उपजाऊ चीका या दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी में यह पौधा भली-भाँति उगता हैं।

भूमि – चावल की कृषि के लिए हल्की ढाल वाले मैदानी भाग अनुकूल होते हैं। नदियों के डेल्टों तथा बाढ़ के मैदानों में चावल खूब फलता है।

श्रम – चावल की कृषि में मशीनों से काम नहीं लिया जा सकता, इसलिए इसकी कृषि के लिए अत्यधिक श्रम की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि चावल साधारणतया घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बोया जाता हैं।

उत्पादन – भारत में चावल का उत्पादन निरन्तर बढ़ रहा है। 1950-51 में केवल 205 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था। यह उत्पादन 2017-2018 बढ़कर 1115.2 लाख टन हो गया।

यद्यपि हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में चावल की कृषि में उल्लेखनीय प्रगति हुई है फिर भी हम अन्य देशों की तुलना में काफी पिछड़े हुए हैं। उदाहरणतः भारत में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज केवल 1990 किलोग्राम हैं जबकि रूस में 2,630, चीन में 3,600 अमेरिका में 4,770 जापान में 6,220 तथा कोरिया में 6,670 किलाग्राम प्रति हेक्टेयर चावल प्राप्त किया जाता है।

वितरण – यदि जल उपलब्ध हो तो हिमालय के 2440 मीटर से अधिक ऊँचे भागों को छोड़कर शेष समस्या भारत में ग्रीष्म ऋतु में चावल की कृषि की जा सकती है। भारत में बोई गई भूमि के अन्तर्गत सबसे अधिक क्षेत्रफल चावल का है।

भारत का अधिकांश चावल डेल्टाई तथा तटीय भागों में होता है। इसके अतिरिक्त इसकी कृषि दक्षिणी पठार के कुछ भागों में भी की जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों से सतलुज-गंगा के मैदान में चावल की कृषि ने उल्लेखनीय उन्नति की है। इसका मुख्य कारण सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार तथा उत्तम बीजों का प्रयोग हैं। हिमालय पर्वत की निचली घाटियों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर चावल की कृषि की जाती हैं। मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब आदि है। पश्चिमी बंगाल, असम, बिहार, उड़ीसा तथा तमिलनाडु में वर्ष में कहीं-कहीं चावल की तीन-तीन फसलें उगाई जाती हैं क्योंकि यहाँ पर शरद और ग्रीष्म ऋतुओं में भी चावल उगाया जाता है।

वैश्विक परिदृश्य

विश्व उत्पादन : चावल  विश्व की दूसरी सर्वाधिक क्षेत्रफल पर उगाई जाने वाली फ़सल है। विश्व में लगभग 15 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर 45 करोड़ टन चावल का उत्पादन होता है। विश्व में कुल चावल उत्पादन का 90% चावल दक्षिण – पूर्वी एशिया में प्राप्तकिया जाता है।एशिया में प्रमुख उत्पादन देश चीन, भारत , जापान , बांग्लादेश , पाकिस्तान, इण्डोनेशिया, ताइवान, म्यांमार, मलेशिया, फिलिपींस, वियतनाम तथा कोरिया आदि हैं। एशिया से बाहर चावल के प्रमुख उत्पादक देश मिस्र, ब्राज़ील, अर्जेण्टीना, संयुक्त राज्य अमरीका, इटली, स्पेन, तुर्की गिनी कोस्ट तथा मलागासी हैं। चावल का अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान मनीला (फिलीपींस ) में स्थित है।

चीन : चीन विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। यहाँ पर 3.2 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर 17.1 करोड़ मीट्रिक टन चावल पैदा किया जाता है जो विश्व के कुल उत्पादन का लगभग एक तिहाई है।

भारत : भारत विश्व में चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। भारत विश्व में चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ पर विश्व के कुल उत्पादन का 20% चावल पैदा किया जाता है। भारत में 4.2 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर 9.2 करोड़ मीट्रिक टन चावल काउत्पादन किया जाता है। चावल भारत की सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित की जाने वाली फ़सल है।

इण्डोनेशिया : इण्डोनेशिया विश्व का तीसरा बड़ा उत्पादक देश है जो कुल उत्पादन का 8% चावल उत्पादन करता है। यहाँ पर  जावा द्वीप  में सबसे अधिक चावल का उत्पादन होता है।

बांग्लादेश: विश्व का 5% चावल उत्पादन कर बांग्लादेश  विश्व का चौथा बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ पर भूमि के 60% भाग में चावल का उत्पादन किया जाता है। यहाँ वर्ष में चावल की तीन फ़सलें उगाई जाती हैं।

इसके अतिरिक्त थाईलैण्ड , जापान , म्यांमार तथा कोरिया चावल के प्रमुख उत्पादक देश हैं। चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश थाईलैण्ड है।

इसके अतिरिक्त म्यांमार , वियतनाम , संयुक्त राज्य अमेरिका , संयुक्त अरब गणराज्य , पाक़िस्तान , इटली ,ब्राजील , पेरू तथा आस्ट्रेलिया आदि बड़े निर्यातक देशों में शामिल हैं।

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भूगर्भ का तापमान, दबाव तथा घनत्व

भूगर्भ का तापमान (Temperature of the Underground)

  • गहरी खानों और गहरे कूपों से जानकारी मिलती है कि पृथ्वी के भीतर गहराई बढ़ने के साथ तापमान बढ़ता है।
  • यह बात ज्वालामुखी के उद्गारों में पृथ्वी के अन्दर से निकले अत्यन्त गर्म लावा से भी सिद्ध होती है कि भूगर्भ की ओर तापमान बढ़ता जाता है।
  • विभिन्न प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि भूगर्भ में धरातल से केन्द्र की ओर तापमान बढ़ने की दर एक समान नहीं है।
  • प्रारम्भ में तापमान बढ़ने की औसत दर प्रत्येक 32 मीटर की गइराई पर 1° C है।
  • तापमान की इस स्थिर वृद्धि के आधार पर 10 किलोमीटर की गहराई में तापमान धरातल की अपेक्षा 3000 से अधिक होना चाहिये और 40 किलोमीटर की गहराई में इसे 1200° C होना चाहिये ।
  • तापमान की इस वृद्धि दर के अनुसार भूगर्भ के सभी पदार्थ पिघली हुई अवस्था में होने चाहिये। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है।
  • चट्टानें जितनी अधिक गहराई में होंगी उनके पिघलने का तापमान-बिन्दु उतना ही ऊँचा होगा। इसका कारण यह है कि भूगर्भ में नीचे दबी शैलों पर ऊपर की शैलों का इतना अधिक दाब होता है जिससे उनके पिघलने का तापमान–बिन्दु धरातल की तुलना में बहुत अधिक हो जाता है।
  • भूकम्प की तरंगों के व्यवहार से भी यह बात सिद्ध होती है। उनसे इस बात की भी पुष्टि होती है कि भूगर्भ में तापमान के बदलने के साथ पदार्थों की संरचना में भी परिवर्तन आता है।
  • भूगर्भ के ऊपरी 100 किलोमीटर में तापमान के बढ़ने की दर 120° C प्रति किलोमीटर है, अगले 300 किलोमीटर में यह वृद्धि दर 20° C प्रति किलोमीटर है और इसके बाद यह वृद्धि दर केवल 10° C प्रति किलोमीटर रह जाती है।
  • धरातल के नीचे तापमान के बढ़ने की दर पृथ्वी के केन्द्र की ओर घटती जाती है। इस गणना के अनुसार पृथ्वी के केन्द्र का तापमान लगभग 4000° से 5000° C के बीच है।
  • भूगर्भ में इतना ऊँचा तापमान उच्च दाब के फलस्वरूप हुई रासायनिक प्रक्रियाओं और रेडियोधर्मी तत्वों के विखंडन के कारण ही संभव है।

भूगर्भ का दबाव (Pressure of the Underground)

  • भूगर्भ में ऊपरी परतों के बहुत अधिक भार के कारण पृथ्वी के सतह से केन्द्र की ओर जाने पर दबाव भी निरन्तर बढ़ता जाता है।
  • पृथ्वी के केन्द्र पर अत्यधिक दबाव है। यह दबाव समुद्र तल पर वायुमंडल के दाब से 30-40 लाख गुना अधिक है।
  • केन्द्र पर उच्च तापमान होने के कारण यहां पाये जाने वाले पदार्थों को द्रव रूप में होना स्वाभाविक है, परन्तु इस ऊपरी भारी दबाव के कारण यह द्रव रूप ठोस का आचरण करता है।

भूगर्भ का घनत्व (Density of the Underground)

  • पृथ्वी के केन्द्र की ओर निरन्तर दबाव के बढ़ने और भारी पदार्थों के होने के कारण उसकी परतों का घनत्व भी बढ़ता जाता है।
  • अतः सबसे गहरे भागों में अत्यधिक घनत्व वाले पदार्थों का होना स्वाभाविक है।
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भारत के तटीय मैदान और भारतीय द्वीप

हमारे देश का विशाल पठार चारों ओर से घिरा हुआ है। उत्तर में उत्तरी विशाल मैदान तथा दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में तटीय मैदान हैं।

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पूर्वी तटीय मैदान उत्तर में गंगा नदी के मुहाने से ले कर कन्याकुमारी तक बंगाल की खाड़ी के तट के साथ-साथ फैला है। पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में यह अधिक चौड़ा है।

  • इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के डेल्टा सम्मिलित हैं।
  • इस मैदान में चिल्का और पुलीकट दो बड़े-बड़े अनूप (लैगून) हैं।
  • ये झीलें बंगाल की खाड़ी के थोड़े से जलीय भाग के बालू-भित्ति के द्वारा घिर जाने से बनी हैं।
  • चिल्का महानदी डेल्टा के दक्षिण में हैं। यह 75 किलोमीटर लम्बी है।
  • पुलीकट झील चेन्नई नगर के उत्तर में है।
  • गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाओं के मध्य में कोल्लेरू झील है।
  • पूर्वी तटीय मैदान बहुत उपजाऊ है। इसमें धान की फसल बहुत अच्छी होती है।

भारत का भौतिक पश्चिमी तटीय मैदान उत्तर में कच्छ के तट से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक अरब विन्यास सागर के साथ-साथ फैला है।

  • गुजरात के मैदान को छोड़कर यह मैदान पूर्वी तटीय मैदान से कम चौड़ा है।
  • दक्षिणी गुजरात से लेकर मुंबई तक पश्चिमी तटीय मैदान अपेक्षाकृत चौड़ा है और दक्षिण की ओर संकरा होता गया है।
  • गुजरात, कच्छ के रन तथा काठियावाड़ के मैदानों में कहीं-कहीं चट्टानी टीले और छोटी पहाड़ियां दिखाई पड़ती हैं।
  • गुजरात का मैदान काली मिट्टी से बना है।
  • उत्तर में दमण से लेकर दक्षिण में गोवा तक लगभग 500 कि.मी. का तटीय भाग कोंकण कहलाता है। यह कटा-फटा है।
  • इसमें कई छोटी-छोटी नदियां बहती हैं।
  • गोवा से मंगलोर तक के तट को कर्नाटक तट कहते हैं।
  • मंगलौर से कन्याकुमारी तक के तट को मलाबार तट कहते हैं।
  • यहां तटीय मैदान कुछ चौड़ा है।
  • मलाबार तट में अनेक लंबे और सकरे अनूप हैं।
  • 80 कि.मी. से भी अधिक लंबा वेम्बनाड ऐसा ही एक अनूप है। इसी पर कोच्चि बन्दरगाह बसा है।

भारतीय द्वीप (Indian Islands)

भारत में छोटे-छोटे द्वीप समूह भी हैं। एक द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के तट से कुछ दूरी पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह है। दूसरा लक्षद्वीप द्वीप समूह केरल तट से कुछ दूरी पर अरब सागर में स्थित है

अंडमान द्वीप

अंडमान द्वीपों में (i) उत्तरी (ii) मध्य (iii) दक्षिणी तथा (iv) लघु अंडमान द्वीप सम्मिलित है।

  • पोर्टब्लेअर नगर इस संपूर्ण संघ राज्य क्षेत्र की राजधानी है। यह दक्षिण अंडमान में स्थित है।
  • 10° जलमार्ग इस द्वीप समूह को निकोबार द्वीप समूह से अलग करता है।
  • निकोबार द्वीप समूह की स्थिति अंडमान द्वीप समूह के दक्षिण में है। इस द्वीप समूह में कार निकोबार, लघु निकोबार तथा वृहत् निकोबार द्वीप सम्मिलित हैं।
  • भारत संघ का दक्षिणतम छोर वृहत् निकोबार द्वीप में है। श्रीमती इन्दिरा गांधी के नाम पर इसका नाम इन्दिरा पाइण्ट रखा गया है।
  • ये द्वीप समूह समुद्री जल में डूबी पर्वत श्रृंखला के जैसा प्रतीत होता है।
  • अंडमान का बैरन द्वीप भारत का अकेला जागृत ज्वालामुखी है।
  • सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण इन द्वीपों में वायु सेना और नौसेना के अड्डे हैं।
  • सात देशों – बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर, इण्डोनेशिया और श्रीलंका के सम्मुख इस द्वीप समूह की स्थिति है।

लक्षद्वीप

  • लक्षद्वीप समूह केरल तट के पश्चिम में अरब सागर में स्थित है।
  • ये सभी प्रवाल द्वीप हैं।
  • इनका निर्माण प्रवाल जैसे अत्यन्त सूक्ष्म जीवों के चूने से बने कवचों के लगातार जमाव से हुआ है। ये सभी द्वीप बहुत छोटे हैं।
  • इनमें सबसे बड़े द्वीप मिनीकाय का क्षेत्रफल 4.5 वर्ग कि.मी. है।
  • कवारत्ती इस द्वीप समूह की राजधानी है।
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भारत के उत्तरी विशाल मैदान

यह मैदान हिमालय के दक्षिण में तथा भारतीय विशाल पठार के उत्तर में पश्चिम से पूर्व तक विस्तृत है। यह मैदान पश्चिम में राजस्थान के शुष्क और अर्ध शुष्क भागों से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी तक फैला है। इस मैदान का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है। यह मैदान बहुत उपजाऊ है। देश की कुल जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग इसी मैदान के असंख्य गाँवों और अनेक बड़े नगरों में रहता है।

यह मैदान उत्तर में हिमालय और दक्षिण में भारतीय विशाल पठार से बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है। लाखों वर्षों से प्रति वर्ष पर्वतीय क्षेत्रों से मिट्टी ला कर इस मैदान में जमा करती रहती हैं। अतः इस मैदान में मिट्टी की परतें बहुत गहराई तक पाई जाती हैं। कहीं-कहीं तो इनकी गहराई 2000 से 3000 मीटर तक है।

  • समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई लगभग 200 मीटर है।
  • समुद्र की ओर मंद ढाल होने के कारण इस मैदान में नदियाँ बहुत ही धीमी गति से बहती हैं।
  • वाराणसी से गंगा के मुहाने तक ढाल केवल 10 से.मी. प्रति किलोमीटर है।
  • अंबाला के आस-पास की भूमि अपेक्षाकृत ऊँची हैं। अतः यह भाग पूर्व में गंगा और पश्चिम में सतलुज नदी-घाटियों के बीच जल विभाजक का काम करता है।
  • इस जल विभाजक के पूर्व की ओर की नदियाँ बंगाल की खाड़ी में तथा पश्चिम की ओर की नदियाँ अरब सागर में मिलती हैं।

मैदान के अपेक्षाकृत ऊँचे भाग को ‘बॉगर’ कहते हैं। इस भाग में नदियों की बाढ़ का पानी कभी नहीं पहुँचता। इसके विपरीत ‘खादर’ मैदान का अपेक्षाकृत नीचा भाग है, जहाँ बाढ़ का पानी हर साल पहुँचता रहता है।

  • पंजाब में खादर को ‘बेट’ कहते हैं।
  • पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में शिवालिक पर्वत श्रेणी के साथ-साथ 10-15 कि. मी. चौड़ी मैदानी पट्टी को ‘भाबर’ कहते हैं। यह पट्टी कंकरीली बलुई मिट्टी से बनी है।
  • ग्रीष्म ऋतु में छोटे-छोटे नदी-नाले इस पट्टी में भूमिगत हो जाते हैं और इस पट्टी को पार करके इनका जल धरातल पर पुनः आ जाता है। यह जल भाबर के साथ-साथ फैली 15-30 कि.मी. चौड़ी ‘तराई’ नाम की पट्टी में जमा हो जाता है। इससे यहाँ दलदली क्षेत्र बन गया है। तराई का अधिकांश क्षेत्र कृषि योग्य बना लिया गया है।

Indias Northern Plains

उत्तरी विशाल मैदान को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है – 

  1. पश्चिमी मैदान
  2. उत्तरी मध्य मैदान
  3. पूर्वी मैदान
  4. ब्रह्मपुत्र का मैदान

1. पश्चिमी मैदान

  • राजस्थान का मरुस्थल तथा अरावली पर्वत श्रेणी का पश्चिमी बांगर क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  • मरुस्थल का कुछ भाग चट्टानी तथा कुछ भाग रेतीला है।
  • प्राचीन काल में यहाँ सरस्वती और दृषद्वती नाम की सदानीरा नदियाँ बहती थीं।
  • उत्तरी मैदान के इस भाग में बीकानेर का उपजाऊ क्षेत्र भी है।
  • पश्चिमी मैदान से लूनी नदी कच्छ के रन में जाकर विलीन हो जाती हैं।
  • सांभर नाम की खारे पानी की प्रसिद्ध झील इस क्षेत्र में है।

2. उत्तरी मध्य मैदान

  • पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैला है।
  • इस मैदान का पंजाब और हरियाणा में फैला भाग, सतलुज, रावी, और व्यास नदियों के द्वारा लाई गई मिट्टी से बना है।
  • यह भाग बहुत उपजाऊ है।
  • इस मैदान का उत्तर प्रदेश में फैला भाग गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक नदियों के द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है।
  • मैदान का यह भाग भी बहुत उपजाऊ है और भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पालना रहा है।

3. पूर्वी मैदान

  • गंगा की मध्य और निचली घाटी में फैला है।
  • इस मैदान का विस्तार बिहार और पश्चिम बंगाल के राज्यों में है।
  • बिहार राज्य में गंगा नदी इस मैदान के बीच से होकर बहती है।
  • उत्तर की ओर से घाघरा, गंडक और कोसी तथा दक्षिण की ओर से सोन इसी मैदान में गंगा में मिलती हैं।
  • पश्चिम बंगाल राज्य में जो मैदानी भाग है, उसका विस्तार हिमालय के पाद प्रदेश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक है। यहां यह मैदान कुछ अधिक चौड़ा हो गया है। इसका दक्षिणी भाग डेल्टा क्षेत्र है। इस डेल्टा क्षेत्र में गंगा अनेक वितरिकाओं में बंट जाती है।
  • हुगली गंगा की वितरिका का सबसे अच्छा उदाहरण है। यह मैदानी भाग भी बहुत उपजाऊ है।

4. ब्रह्मपुत्र का मैदान

  • भारतीय विशाल मैदान का उत्तर पूर्वी भाग असम में विस्तृत है।
  • यह मैदान ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है।
  • ब्रह्मपुत्र की धारा में बना माजुली (1250 वर्ग कि.मी.) द्वीप संसार का सबसे बड़ा नदी द्वीप है।
  • यह मैदानी भाग भी बहुत उपजाऊ है।
  • यह मैदानी भाग तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा है।
  • गंगा और ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों के द्वारा संयुक्त रूप से बनाए गए मैदान और डेल्टा प्रदेश में बांगलादेश स्थित हैं।
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भारत की स्थिति, विस्तार एवं सीमाएँ

प्राचीनकाल में हमारा देश आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था। बाद में इसे भारत, हिन्दुस्तान और ‘इण्डिया’ कहने लगे। हिन्द महासागर का नाम हमारे देश के नाम पर ही रखा गया है। यही एक मात्र ऐसा महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम पर रखा गया है। संविधान में हमारे देश के दो ही नाम स्वीकृत हैं – भारत या इण्डिया।

भारतीय उपमहाद्वीप के
उत्तर-पश्चिम, उत्तर और उत्तर पूर्व में ऊँचे-ऊँचे नवीन वलित पर्वत हैं।
दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर,
दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा
दक्षिण में हिन्द महासागर हैं।

India map

भारत की अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार (India’s Latitudes and Littoral Extensions)

  • भारत पूरी तरह से उत्तरी गोलार्ध में स्थित है।
  • भारत की मुख्य भूमि 8°4′ और 37°6′ उत्तरी अक्षाशों तथा 68° 7′ व 97°25′ पूर्वी देशान्तरों के बीच फैली है।
  • इस प्रकार भारत का अक्षांशीय तथा देशान्तरीय विस्तार लगभग 29° में है। लेकिन धरातल पर वास्तविक दूरी उत्तर से दक्षिण 3214 कि.मी. तथा पूर्व से पश्चिम तक 2933 कि.मी. हैं।

अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार समान होने पर भी वास्तविक दूरी में इतना बड़ा अन्तर क्यों है?

ऐसा इसलिए है कि विषुवत वृत्त पर दो क्रमिक देशान्तरो के बीच की दूरी घटती जाती है और ध्रुवों पर यह शून्य हो जाती है। ऐसा इसलिए है कि सभी देशान्तर रेखाएँ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर एक बिन्दु में मिल जाती है। इसके विपरीत किसी भी देशान्तर रेखा पर दो क्रमिक अक्षांश वृत्तों के बीच उत्तर से दक्षिण की दूरी सदैव एक समान अर्थात 111 कि. मी. ही रहती है। निम्नलिखित सारिणी से यह बात भली भांति स्पष्ट हो जाती है।

अक्षांश 0 10 20 30 40 50 60 70 80 90
दूरी कि.मी. 111 109.6 104.6 96.4 85.4 71.7 55.8 38.2 19.4 0

भारत की मुख्य भूमि का उत्तरी छोर जम्मू-कश्मीर राज्य में है तथा तमिलनाडु में कन्याकुमारी इसका दक्षिणी छोर है। लेकिन देश का दक्षिणतम छोर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में है। इसे इन्दिरा पाइंट कहते हैं। यह 6°30′ उत्तरी अक्षांश पर स्थित है। भारत का पश्चिमी सिरा गुजरात में तथा पूर्वी सिरा अरूणाचल प्रदेश में है।

भारत के उत्तरी भाग विषुवत वृत्त से काफी दूर हैं। अतः इन भागों में सूर्य की किरणे अधिक तिरछी पड़ती है। फलस्वरूप यहाँ सूर्यातप कम मिलता है। अतः दक्षिणी भारत का भौतिक भागों के विपरीत ये भाग ठंडे हैं। अधिक अक्षांशीय विस्तार का प्रभाव दिन और रात विन्यास की अवधि पर भी पड़ता है। विषुवत वृत्त के निकट स्थित भारतीय क्षेत्रों में दिन और रात की अवधि में लगभग 45 मिनट का अन्तर होता है। भारत के उत्तरी भागों में दिन और रात की अवधि में यह अन्तर क्रमशः बढ़ता ही जाता है। उत्तरी भाग में यह अंतर 5 घंटे तक का हो जाता है।

कर्क रेखा भारत के लगभग बीच से होकर गुजरता है। इस प्रकार कर्क रेखा के दक्षिण का भाग उष्ण कटिबंध में स्थित है और कर्क रेखा के उत्तर का शेष आधा भाग शीतोष्ण कटिबंध में आता है।

भारत का देशान्तीय विस्तार लगभग 29° का है। अतः भारत के पूर्वी और पश्चिमी छोरों के वास्तविक समय में लगभग दो घंटे का अन्तर रहता है। इस प्रकार जब भारत के पूर्वी छोर पर सूर्योदय होता है तब पश्चिम छोर अंधकार में डूबा होता है। समय के अन्तर की इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए अन्य देशों की तरह भारत ने भी एक मानक मध्याह्न रेखा का चुनाव किया है। मानक मध्याह्न रेखा पर जो स्थानीय समय होता है, उस समय को देश का मानक समय माना जाता है।

भारत की मानक मध्याह्न रेखा 82°30′ पूर्वी देशान्तर है। इस का स्थानीय समय ही सारे भारत का मानक समय माना गया है। मध्याह्न रेखा का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह देश के लगभग मध्य से गुजरे तथा 7°30′ से पूरी-पूरी विभाजित हो जाए। 82°30′ देशान्तर रेखा इन दोनों ही कसौटियों पर खरी उतरती है।

भारत का उत्तरी मध्य भाग चौड़ा है, जबकि इसका दक्षिणी भाग हिन्द महासागर की ओर संकीर्ण होता गया है। इस प्रकार हिन्द महासागर भारतीय प्रायद्वीप के कारण दो भागों में विभाजित हो गया है। उत्तरी हिन्द महासागर का पश्चिमी भाग अरब सागर के नाम से तथा पूर्वी भाग बंगाल की खाड़ी के नाम से जाना जाता है। द्वीप समूहों सहित भारत की तट रेखा की कुल लंबाई 7516.6 कि.मी. है। पाक जल-सन्धि भारत की मुख्य भूमि को श्रीलंका से पृथक करती है।

भारत की भू-सीमा 15200 कि.मी. लंबी है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, नेपाल, म्याँमार, भूटान और बांग्लादेश से हमारे देश की सीमाएँ मिलती हैं।

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