History of journalism development in Uttarakhand

उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का तीसरा चरण (1941 – 1947)

स्वतंत्रता पूर्व उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का तीसरा व अन्तिम चरण सन् 1940 से 1947 के मध्य मात्र 7 वर्षों का रहा। यह चरण अन्य दोनों चरणों की अपेक्षा अत्यन्त अल्पावधि का रहा। चूंकि इस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपने चरम पर था। पत्रकारिता के इस तृतीय चरण में प्रकाशित समाचार-पत्रों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है –

सन्देश (Sandesh)

  • प्रकाशित – सन् 1940 ई0
  • सम्पादन – हरिराम ‘चंचल’
  • कृपाराम मिश्र ‘मनहर’ ने अपने छोटे भाई हरिराम मिश्र ‘चंचल’ के सहयोग से सन् 1940 में कोटद्वार से ‘सन्देश’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • हरिराम ‘चंचल’ इस पत्र के सहकारी सम्पादक व प्रकाशक थे।
  • सन् 1941 में कृपाराम मिश्र के व्यक्तिगत सत्यागृह में जेल चले जाने के कारण संदेश का प्रकाशन बन्द करना पड़ा।

समाज (Samaj)

  • प्रकाशित – सन् 1942 ई0
  • सम्पादन – राम प्रसाद बहुगुणा
  • स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बहुगुणा द्वारा सन् 1942 में एक हस्तलिखित पत्र ‘समाज’ का सम्पादन किया गया।
  • वे चमोली जिले में तत्कालीक पत्रकारिता के आधार स्तम्भ थे।
  • दो वर्ष तक यह पत्र नियमित रूप से चलता रहा।
  • इसके पश्चात् भारत छोड़ो आन्दोलन में इनके जेल चले जाने पर यह पत्र बन्द हो गया।

मंसूरी एडवरटाइजर (Mansuri Advertiser)

  • प्रकाशित – सन् 1942 ई0
  • सम्पादन – के0 एफ0 मेकागोन
  • मंसूरी के कुलडी स्थित प्रिन्टिंग प्रेस से छपने वाले समाचार-पत्र ‘मंसूरी एडवरटाइजर’ का प्रकाशन सन् 1942 में के0 एफ0 मेकागोन के द्वारा शुरू किया गया।
  • सन् 1947 तक नियमित प्रकाशित होने के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् यह समाचार पत्र बन्द हो गया।

स्वराज संदेश, (पाक्षिक) (Svaraaj Sandesh)

  • प्रकाशित – सन् 1942 ई0
  • सम्पादन – हुलास वर्मा

युगवाणी (साप्ता/मासिक) (Yugwani (Weekly/Monthly))

  • प्रकाशित – सन् 1947 ई0
  • सम्पादन – भगवती प्रसाद पांथरी
  • टिहरी के मूल निवासी काशी विद्यापीठ के प्राचार्य ‘भगवती प्रसाद पांथरी’ के सम्पादन में 15 अगस्त 1947 को देहरादून से युगवाणी नामक समाचार पत्र का पहला अंक प्रकाशित हुआ।
  • प्रजामंडल के सक्रिय कार्यकर्ता तेजराम भट्ट का इसके प्रकाशन में भी सक्रिय सहयोग रहा।
  • प्रारम्भ में कुछ समय पाक्षिक प्रकाशन के बाद इसका स्वरूप साप्ताहिक हो गया और अब सम्पादन का पूर्ण दायित्व आचार्य गोपेश्वर कोठियाल पर आ गया।
  • टिहरी रियासत की जनक्रान्ति में ‘युगवाणी’ की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण थी कि इतिहासकारों ने इसे रूस की क्रान्ति में लेनिन द्वारा सम्पादित पत्र ‘इस्त्रां’ के समकक्ष रखा।
  • गोविन्द नेगी ‘आग्नेय तथा अन्य कई पत्रकारों ने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत इसी पत्र से की।
  • गोपेश्वर कोठियाल की मृत्यु के पश्चात् उनके सुपुत्र संजय कोठियाल पत्र के सम्पादन का दायित्व निभा रहे है।
  • सन् 2001 से ‘युगवाणी’ मासिक पत्रिका के रूप में नियमित प्रकाशित हो रही है।

प्रजाबन्धु (साप्ता) (Prjabandhu (Weekly))

  • प्रकाशित – सन् 1947 ई0
  • सम्पादन – जयदत्त वैला
  • प्रजाबन्धु साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन रानीखेत से प्रारम्भ हुआ।
  • यह पत्र प्रारम्भ से ही कांग्रेसी विचारधारा का समर्थक रहा किन्तु कुछ समय नियमित चलने के पश्चात् यह बन्द हो गया।

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उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का दूसरा चरण (1871-1940)

रियासत टिहरी (पाक्षिक) (Riyasat Tehri (Half Monthly))

  • प्रकाशित – सन् 1901 ई0
  • सन् 1901 में टिहरी रियासत के तत्कालीन राजा कीर्तिशाह पंवार ने राजधानी टिहरी में रियासत का पहला मुद्रणालय स्थापित किया।
  • इस प्रिन्टिंग प्रेस में ‘रियासत टिहरी’ नामक एक पाक्षिक पत्र प्रकाशित किया गया।
  • यह पत्र एक प्रकार से रियासत का गजट मात्र था।
  • इसमें छपने वाले समाचार जन समस्याओं से कोसो दूर थे।

द मसूरी टाइम्स (The Mussoorie Times)

  • प्रकाशित – सन् 1900 ई0
  • सम्पादन – एफ0 बॉडीकार
  • कुलड़ी की मेफिसलाइट प्रेस (मंसूरी) से प्रकाशित यह समाचार-पत्र अपने युग का सर्वाधिक लोकप्रिय व लम्बे समय तक चलने वाला अखबार था।
  • प्रसिद्ध लेखक एफ0 बॉडीकार ने इसे छपवाना प्रारम्भ किया था। बाद में जे0 एच0 जॉन्सन इसके स्वामी व सम्पादक हुए।
  • सन् 1947 में यह समाचार-पत्र बन्द हो गया।
  • वर्तमान में यह समाचार-पत्र अपनी पुरानी लोकप्रियता के साथ हिन्दी में प्रकाशित हो रहा है।

गढ़वाली (Garhwali) 

  • प्रकाशित – सन् 1905 ई0
  • सम्पादन – पंडित विशम्भरदत्त चन्दोला
  • उत्तराखण्ड में एक उद्देश्य पूर्ण पत्रकारिता के प्रारम्भ का श्रेय ‘गढ़वाली’ मासिक को जाता है।
  • इसमें क्षेत्रीय समाचार, स्थानीय लेखकों की रचनाएं तथा सुधारवादी लेखों को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता था।
  • इसके अतिरिक्त यातायात साधनों में सुधार, बाल विवाह, बहुविवाह, कन्या विक्रय जैसी सामाजिक कुरीतियों का भी गढ़वाली ने पुरजोर विरोध किया।
  • वह क्रान्ति की नीति पर नहीं वरन् गांधीवाद की सत्याग्रही नीति पर चलने वाला समाचार पत्र था।

कास्मोपोलिटिन (साप्ता) (Cosmopolitan (Weekly))

  • प्रकाशित – सन् 1910 ई0
  • सम्पादन – बैरिस्टर बुलाकी राम
  • देहरादून में कांग्रेस के सूत्रधार रहे बैरिस्टर बुलाकी राम ने कचहरी रोड़ पर भास्कर नामक प्रेस खोली।
  • यह एक अंग्रेजी सप्ताहिक का पत्रिका थी।
  • यह देहरादून से प्रकाशित होने वाला पहला आंग्ल भाषी साप्ताहिक समाचार-पत्र था।
  • सन् 1913 में ‘कुमाऊँ केसरी’ बद्रीदत्त पाण्डेय ने भी इस समाचार-पत्र के सम्पादकीय में काम किया।
  • सन् 1923 में बैरिस्टर साहब अपने पैतृक निवास पंजाब (पाकिस्तान) लौट गये।

निर्बल सेवक (साप्ता) (Nirbal Sevak (Weekly))

  • प्रकाशित – सन् 1913 ई0
  • सम्पादन – महेन्द्र प्रताप
  • वृन्दावन रियासत के तात्कालिक राजा महेन्द्र प्रताप ने देहरादून से ‘निर्बल सेवक’ नाम के साप्ताहिक समाचार-पत्र का सम्पादन व प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • राजा साहब प्रारम्भ से ही उग्र क्रान्तिकारी विचारों के थे। अतः उनके अखबार में भी उग्र क्रान्तिकारी विचारों वाले लेख व सम्पादकीय होते थे।
  • इस समाचार पत्र की कुछ प्रतियाँ समुद्र पार, जहाज से अप्रवासी भारतीय क्रान्तिकारियों को भी भेजी जाती थी।

विशाल कीर्ति (Vishal Kartik)

  • प्रकाशित – सन् 1913 ई0
  • सम्पादन – सदानन्द कुकरेती
  • पौड़ी गढवाल से सबसे पहले प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्रों में विशाल कीर्ति का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
  • पौड़ी में ब्रहमानन्द थपलियाल की बदरी-केदार प्रेस से फरवरी 1913 में विशाल कीर्ति का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
  • पुस्तक के आकार वाला यह पत्र मासिक छपता था जिसमें गढ़वाली साहित्य के अतिरिक्त राजनीतिक व्यंग्य प्रमुखता से छपते थे।
  • फरवरी 1913 से दिसम्बर 1915 तक नियमित अंक छपने के बाद आर्थिक अभाव के कारण यह बंद हो गया।

गढ़वाल समाचार (Garhwal News)

  • प्रकाशित – सन् 1902 ई0
  • सम्पादन – गिरिजादत्त नैथाणी
  • गिरिजादत्त नैथाणी को गढ़वाल में पत्रकारिता का जनक कहा जाता है।
  • यह समाचार-पत्र फुलस्कैप साइज में 16 पृष्ठों का होता था।
  • प्रारम्भ में इसे मुरादाबाद से मुद्रित किया जाता था।
  • जनसामान्य की सुविधा को देखते हुए बाद में वे कोटद्वार आ गये तथा अक्टूबर 1902 में ‘गढ़वाल समाचार’ का छठा अंक यही से प्रकाशित हुआ परन्तु आर्थिक अभाव के कारण यह पत्र दो वर्ष भी न चल सका।
  • गिरिजादत्त नैथाणी को पत्रकारिता से अत्यधिक लगाव होने के कारण वे अधिक दिन इससे दूर न रह सके तथा सन् 1912 में उन्होंने दुगड्डा में एक प्रेस की स्थापना की और फरवरी 1913 में इसी प्रेस से ‘गढ़वाल समाचार का पुनः प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • दिसम्बर 1914 तक यह नियमित रूप से चलता रहा।

शक्ति (साप्ताहिक) (Shakri (Weekly))

  • प्रकाशित – सन् 1918 ई0
  • सम्पादन – बद्रीदत्त पाण्डे
  • सन् 1918 में देशभक्त प्रेस की स्थापना हुई तथा 18 अक्टूबर 1918 को विजयदशमी के अवसर पर बद्रीदत्त पाण्डे के सम्पादन में ‘शक्ति’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ।
  • सन् 1942-45 के मध्य शक्ति का प्रकाशन बन्द रहा।
  • 1946 में इसका प्रकाशन पुनः प्रारम्भ हुआ।
  • ‘शक्ति’ में गौर्दा, श्यामचरण पंत, रामलाल वर्मा के अतिरिक्त सुमित्रा नन्दन पंत, हेमचन्द्र जोशी तथा इलाचन्द्र जोशी जैसे तात्कालिक जागरूक कवियों की कविताएं भी छपती थी जो सदैव ही समाज के लिए एक प्रेरक का कार्य करती थी।

क्षत्रिय वीर (Kshatriya Veer)

  • प्रकाशित – सन् 1922 ई0
  • सम्पादन – प्रताप सिंह नेगी
  • विशाल कीर्ति के पश्चात् पौड़ी से निकलने वाला यह दूसरा पत्र था।
  • 15 जनवरी 1922 से इस पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था।
  • यह एक जातिवादी समाचार पत्र था जिसका मूल उद्देश्य क्षत्रिय जाति का सामाजिक व शैक्षणिक विवरण प्रस्तुत करना था।
  • प्रारम्भ में प्रताप सिंह नेगी द्वारा इसका सम्पादन किया जाता था। इनके बाद यह पत्र एडवोकेट कोतवाल सिंह नेगी एवं शकर सिंह नेगी के सम्पादन में सन् 1938 तक प्रकाशित होता रहा।
  • आगरा से छपने वाले इस समाचार-पत्र के संस्थापक ग्राम सूला, असवालस्यूं पट्टी, गढवाल के रायबहादुर जोध सिंह नेगी थे।

कुमाऊँ कुमुद (पाक्षिक) (Kumaon Kumud (Half Monthly))

  • प्रकाशित – सन् 1922 ई0
  • सम्पादन – बसन्त कुमार जोशी
  • इसका प्रकाशन अल्मोड़ा में प्रारम्भ किया गया।
  • यह समाचार-पत्र राष्ट्रीय विचारधारा का प्रबल समर्थक था परन्तु इसकी नीतियाँ ‘शक्ति’ से भिन्न थी।
  • यह समाचार पत्र तात्कालिक लोकभाषी रचनाकारों को निरन्तर प्रोत्साहित करता रहा।

तरूण कुमाऊँ (Tarun Kumaon)

  • प्रकाशित – सन् 1922 ई0
  • सम्पादन – बैरिस्टर मुकुन्दी लाल
  • सन् 1922 में लैन्सडौन से ‘तरूण कुमाऊँ’ नामक एक हिन्दी साप्ताहिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • इस साप्ताहिक का नाम बैरिस्टर साहब ने मैजनी के ‘यंग इटली’ की तर्ज पर रखा था।
  • सन् 1923 में वे कौंसिल के लिए चुन लिए गये फलतः लगभग डेढ़ वर्ष तक नियमित चलने के पश्चात् ‘तरूण कुमाऊँ’ का प्रकाशन बन्द हो गया।

अभय (Abhay)

  • प्रकाशित – सन् 1928 ई0
  • सम्पादन – स्वामी विचारानन्द सरस्वती
  • इसका प्रकाशन देहरादून से हुआ था।

पुरूषार्थ (Purusharth)

  • प्रकाशित – सन् 1917 ई0
  • सम्पादन – गिरिजादत्त नैथाणी
  • पुरूषार्थ का मुद्रण बिजनौर में होता था परन्तु इसका प्रकाशन कभी दुगड्डा से तो कभी उनके पैतृक गांव नैथाणा से होता था।
  • इसके कुछ अंक बाराबंकी से भी छपे।
  • कुछ समय चलने के पश्चात् यह अखबार भी बन्द हो गया। अपने पत्रकारिता प्रेम के चलते उन्होंने 1921 में अपने गांव नैथाणा से पुरूषार्थ का पुनः प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • किन्तु कुछ अंक निकलने के बाद यह पुनः बन्द हो गया।
  • पत्रकारिता के प्रति गिरिजादत्त नैथाणी के लगाव का परिचय इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल के अन्तिम समय में पुरूषार्थ का तीसरी बार प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • किन्तु अभी इसका एक ही अंक निकला था कि 21 नवम्बर 1927 को गढवाल में पत्रकारिता के जनक के निधन के साथ ही पुरूषार्थ एक बार पुनः बन्द हो गया।

स्वाधीन प्रजा (साप्ता) (Swadhin Prja (Weekly))

  • प्रकाशित – सन् 1930 ई0
  • सम्पादन – मोहन जोशी
  • 1 जनवरी 1930 को ‘स्वाधीन प्रजा’ का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ।
  • यह पत्र अंग्रेजी प्रशासन को खलने लगा तथा 10 मई 1930 को इस पत्र से छः हजार रूपये की जमानत मांगी गई जो अब तक की मांगी गई सर्वाधिक जमानत थी।
  • इतना होने पर भी मोहन जोशी ने हार नहीं मानी तथा भगतसिंह की फांसी की सूचना को ‘स्वाधीन प्रजा’ में सरकार का गुंडापन बताकर छापा गया। इसके बाद पत्र का छपना और भी असम्भव हो गया तथा इसके उन्नीसवें अंक के दो पृष्ठ बिना छपे ही रह गये।
  • अक्टूबर 1930 में ‘स्वाधीन प्रजा’ पुनः प्रकाशित होने लगा।
  • कृष्णानन्द शास्त्री के सम्पादन में दो वर्ष तक नियमित प्रकाशित होने के पश्चात् सन् 1932 में एक बार फिर यह पत्र बन्द हो गया।

गढ़देश (Garhdesh)

  • प्रकाशित – सन् 1929 ई0
  • सम्पादन – कृपाराम मिश्र ‘मनहर’
  • गढ़देश पत्र का मुद्रण कभी-कभी मुरादाबाद, कभी बिजनौर तो कभी मेरठ में होता था परन्तु प्रकाशन सदैव कोटद्वार से होता था।
  • वर्षान्त में महेशानन्द थपलियाल द्वारा इन्हे सम्पादकीय सहयोग प्राप्त हुआ। 1930 के प्रारम्भ में नई व्यवस्था के तहत कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ द्वारा जिला देवबन्द, सहारनपुर, से इसका सम्पादन करना प्रारम्भ किया। अब इसका मुद्रण भी सहारनपुर में ही होने लगा।
  • इसी बीच सत्याग्रह आन्दोलन में सहभागिता के चलते पत्र के सम्पादक व प्रकाशक दोनो के जेल हो जाने के कारण 13जून,1930 के अंक के साथ गढ़देश का प्रकाशन बंद हो गया।
  • 1934 में ‘मनहर’ ने इसे पुनः प्रकाशित किया, अब इसका मुद्रण देहरादून से होने लगा।
  • अपने कुछ लेखों के कारण गढ़देश के सम्पादक व मुद्रक दोनों से दो-दो हजार रूपये की जमानत मांगी गई। जमानत की व्यवस्था न होने के कारण इसका प्रकाशन बन्द कर दिया गया।

स्वर्गभूमि (Swargbhumi)

  • प्रकाशित – सन् 1934 ई0
  • सम्पादन – देवकीनन्दन ध्यानी
  • अल्मोड़ा निवासी देवकीनन्दन ध्यानी ने 1930 में मुरादाबाद से ‘विजय’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • सत्यागृह आन्दोलन के चलते इन्हें जेल जाना पड़ा। इस समय तक ‘विजय’ के मात्र 8-10 अंक ही प्रकाशित हुए थे कि इसका प्रकाशन बंद हो गया।
  • जेल से छूटने के पश्चात् इन्होंने हल्द्वानी पहुँच कर एक बार फिर प्रकाशन के क्षेत्र में कदम रखा।
  • 15 जनवरी, 1934 को इनके नये पाक्षिक ‘स्वर्ग-भूमि’ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
  • ‘स्वर्ग-भूमि’ के 3-4 अंक ही निकले थे कि वे अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के आमंत्रण पर पौड़ी चले गये और स्वर्गभूमि का प्रकाशन बंद हो गया।
  • सन् 1936 में इनका देहान्त हो गया।

समता (Samta)

  • प्रकाशित – सन् 1934 ई0
  • सम्पादन – मुंशी हरिप्रसाद टम्टा
  • अल्मोडा से सन् 1934 में समता नामक साप्ताहिक हिन्दी समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
  • टम्टा अपने समय के प्रसिद्ध समाजसेवी, दलितोद्धारक तथा पत्रकार रहे है।
  • अपने पत्र के माध्यम से उन्होंने शिल्पी समाज की आवाज को बुलन्द किया।
  • सन् 1935 में श्रीमती लक्ष्मी देवी टम्टा ने, जो उत्तराखण्ड की पहली दलित महिला पत्रकार थी, इस साप्ताहिक पत्र के सम्पादकीय का दायित्व सम्भाला।
  • वर्तमान में दया शंकर टम्टा ‘समता’ का सम्पादन कर रहे है।
  • यह उत्तराखण्ड का एक मात्र ऐसा समाचार पत्र है जो दलित समाज के उत्थान को प्रेरित करता है।

हादी-ए-आजम (मासिक) (Hadie-e-Azam (Monthly))

  • प्रकाशित – सन् 1936 ई0
  • सम्पादन – मोहम्मद इकबाल सिद्दकी  
  • हल्द्वानी निवासी मोहम्मद इकबाल सिद्दकी द्वारा लिखित व प्रकाशित की गई यह मासिक पत्रिका उत्तराखण्ड की पहली उर्दू धार्मिक पत्रिका थी।
  • अत्यन्त अल्पावधि के लिए प्रकाशित हुई यह पत्रिका सन् 1936 में अपने प्रारम्भिक 2-3 अंको के प्रकाशन के बाद ही बंद हो गई थी।

हितैषी (पाक्षिक) (Hitaishee (Half Monthly))

  • प्रकाशित – सन् 1934 ई0
  • सम्पादन – पीताम्बर दत्त पसबोला
  • पौड़ी गढ़वाल निवासी पीताम्बर दत्त पसबोला ने सन् 1936 में लैन्सडौन से ‘हितैषी’ नामक एक पाक्षिक समाचार पत्र का सम्पादन व प्रकाशन किया।
  • यह पत्र औपनिवेशक सत्ता का समर्थक था।
  • अंग्रेज सत्ता को समर्थन के कारण पीताम्बर दत्त को ‘रायबहादुर’ की पदवी अवश्य दिला गया।

उत्तर भारत (North India)

  • प्रकाशित – सन् 1936 ई0
  • सम्पादन – महेशानन्द
  • प्रारम्भ में यह पत्र पुस्तक के साइज में निकला, किन्तु कुछ अंकों के पश्चात् इसका स्वरूप बदल दिया गया।
  • कुछ समय तक नियमित चलने के पश्चात् सन् 1937 में यह पत्र बन्द हो गया।

उत्थान (सप्ता) (Utthan (Weekly))

  • प्रकाशित – सन् 1937 ई0
  • सम्पादन – ज्योति प्रसाद माहेश्वरी
  • यह समाचार पत्र अपने नाम के अनुरूप क्षेत्रीय आन्दोलन का मार्गदर्शन करने तथा अपनी निष्पक्ष, सतही व बेबाक पत्रकारिता के लिए प्रसिद्ध था।

जागृत जनता (Jaagrt Janata)

  • प्रकाशित – सन् 1938 ई0
  • सम्पादन – पीताम्बर पाण्डे
  • ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के चलते उन्हें जेल जाना पड़ा जिससे कुछ समय तक यह पत्र अल्मोड़ा से प्रकाशित हुआ था।
  • जेल से छूटने के पश्चात् हल्द्वानी आ गये तथा मृत्युपर्यन्त यहीं से ‘जागृत जनता’ का प्रकाशन करते रहे।

 

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उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का पहला चरण (1842-1870)

28 वर्षों का यह काल खण्ड उत्तराखण्ड में पत्रकारिता (Journalism) का प्रारम्भिक दौर था। इसी काल में अंग्रेजों द्वारा मंसूरी में पत्रकारिता की पाठशाला की नीवं रखी गई। इस काल में उत्तराखण्ड में जितने भी समाचार-पत्र प्रकाशित हुए वे सभी मंसूरी से प्रकाशित हुए तथा सभी का संचालन व सम्पादन (Operation and Editing) अंग्रेजों द्वारा किया गया।

द हिल्स (The Hills)

  • प्रकाशित – सन् 1842 ई0
  • सम्पादन – जॉन मेकिनन
  • जॉन मेकिनन नाम के ईसाई पादरी ने ‘द हिल्स’ नाम से उत्तराखण्ड का पहला आंग्ल भाषी समाचार पत्र प्रकाशित किया।
  • उस समय ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ देश का प्रसिद्ध समाचार पत्र हुआ करता था।
  • प्रारम्भ में यह पत्र गाजियाबाद से छपता था लेकिन बाद में मेकिनन ने मसूरी सेमीनरी में अपनी प्रिन्टिग प्रेस खोली जो उत्तराखण्ड की पहली प्रिन्टिग प्रेस थी।
  • जॉन मेकिनन मूलतः आइरिश थे।
  • जॉन मेकिनन ने ‘द हिल्स’ के सम्पादकीय के माध्यम से आयरलैण्ड–इग्लैण्ड के आपसी संघर्षों को लेकर इग्लैण्ड की घोर आलोचना की।
  • सन् 1849-50 में मेकिनन द्वारा इस पत्र का प्रकाशन बंद कर दिया गया।
  • सन् 1860 में डॉ0 स्मिथ द्वारा ‘द हिल्स’ का प्रकाशन पुनः प्रारम्भ किया गया।
  • अपने जीवन काल की दूसरी पारी में ‘द हिल्स’ के आकार में परिवर्तन किया गया।
  • पांच वर्ष प्रसिद्धि के साथ चलने के बाद 1865 ई0 में उत्तर भारत को पत्रकारिता से परिचित कराने वाला यह समाचार-पत्र सदैव के लिए बन्द हो गया।

मेफिसलाइट (Mafasilite)

  • प्रकाशित – सन् 1850 ई0
  • सम्पादन – मि0 जान लेंग
  • कुछ इतिहासकार इसका प्रकाशन वर्ष सन् 1845 बताते है तो कुछ इसके लगभग एक दशक बाद बताते है।
  • आंग्ल भाषी यह समाचार-पत्र उत्तर भारत का एक प्रमुख तथा अंग्रेज प्रशासन विरोधी क्रांन्तिकारी पत्र था।
  • पेशे से वकील मि0 जान लेंग इस पत्र के प्रकाशक व सम्पादक थे।

समय विनोद (Samay Vinod)

  • प्रकाशित – सन् 1868 ई0
  • सम्पादन – जयदत्त जोशी
  • उत्तराखण्ड से प्रकाशित होने वाला हिन्दी का यह पहला समाचार-पत्र था।
  • भारत में हिन्दी पत्रकारिता की शुरूआत सन् 1826 में ‘उन्ड मार्तण्ड’ से हो चुकी थी, जो कलकता से प्रकाशित होता था।
  • यह पत्र सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र से देशी अथवा हिन्दी भाषा का पहला समाचार-पत्र था।
  • नैनीताल प्रेस से छपने वाले ‘समय विनोद’ के संस्थापक व सम्पादक जयदत्त जोशी थे, जो पेशे से वकील थे।
  • इस समाचार पत्र में अंग्रेजी राज की नीतियों की समीक्षा के साथ-साथ सामाजिक मुददों को भी स्थान दिया जाता था।

मंसूरी एक्सचेंज (Mussoorie Exchanges)

  • प्रकाशित – सन् 1870 ई0
  • इस समाचार पत्र के सम्बन्ध में अधिक जानकारी नहीं मिलती।
  • इसके विषय में कहा जाता है कि यह पत्र विज्ञापनों तक ही सीमित रहा।
  • अतः अधिक न चल पाने के कारण कुछ ही महीनों में बंद हो गया।

अल्मोड़ा अखबार (Almora Akhbar)

  • प्रकाशित – सन् 1871 ई0
  • सम्पादन –  बुद्धिबल्लभ पंत
  • अल्मोड़ा के कुछ शिक्षित व जागृत व्याक्तियों ने तत्कालिक समाज में व्याप्त राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक समस्याओं के सम्यक् समाधान हेतु एक छोटी सी संस्था ‘डिबेटिग क्लब’ की स्थापना की।
  • ‘डिबेटिग क्लब’ का संरक्षक, चंद राजवंश से सम्बन्धित राजा भीमसिंह को चुना गया।
  • इसकी स्थापना व उद्देश्यों के पीछे मूलरूप से बुद्धिबल्लभ पंत के विचार व आकांक्षा जुड़ी हुई थी।
  • सन् 1871 में बुद्धि बल्लभ पंत के सम्पादन में ‘अल्मोड़ा अखबार’ नाम के समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
  • अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अधिकांश समय तक यह पत्र अंग्रेजी प्रशासन की ओर ही झुका हुआ नजर आता है।
  • बंग-भंग की घटना के पश्चात सही मायनों में यह पत्र आम जनता की ओर उन्मुख हुआ।
  • सन् 1918 में पत्र के बन्द होने तक इसमें कुलीबेगार, वन सम्बन्धी समस्या तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता सम्बन्धी अनेक लेख प्रकाशित हो चुके थे।
  • सन् 1909 तक क्रमशः मुंशी इम्तियाज अली, जीवानन्द जोशी तथा मुंशी सदानन्द सनवाल द्वारा ‘अल्मोड़ा अखबार’ का सम्पादन किया गया।
  • सन् 1909 से 1913 तक विष्णु दत्त जोशी इसके सम्पादक रहे।
  • सन् 1918 में अल्मोड़ा अखबार के बंद होने तक बद्रीदत्त पांडे द्वारा इसका सम्पादन किया जाता रहा।

मंसूरी सीजन (Mussoorie Season)

  • प्रकाशित – सन् 1872 ई0
  • सम्पादन – कोलमेन व नार्थम
  • यह पत्र मसूरी से प्रकाशित हुआ।
  • 1874 में कोलमेन द्वारा मंसूरी छोड़ने के साथ ही ‘मंसूरी सीजन’ नाम का यह समाचार-पत्र सदा के लिए बन्द हो गया।

मंसूरी क्रानिकल (Mussoorie Chronicle)

  • प्रकाशित – सन् 1875 ई0
  • सम्पादन – जॉन नार्थम
  • कुछ समय तक नियमित मंसूरी से निकलने के पश्चात् इसका प्रकाशन मेरठ से किया जाने लगा।

द ईगल (The Eagle)

  • प्रकाशित – सन् 1878 ई0
  • सम्पादन – मौर्टन
  • आंग्ल भाषी यह पत्र काफी लोकप्रिय था।
  • 7-8 वर्ष नियमित निकलने के पश्चात् सन् 1885 में यह पत्र सदा के लिए बन्द हो गया।

 

उत्तराखण्ड में पत्रकारिता के विकास का इतिहास

 

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उत्तराखण्ड में पत्रकारिता के विकास का इतिहास

भारत में सर्वप्रथम प्रिन्टिंग प्रेस (Printing Press) लाने का श्रेय पुर्तगालियों (Portuguese) को जाता है। सर्वप्रथम मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में सन् 1557 में पुर्तगाली मिशनरी द्वारा पहला प्रिंटिंग प्रेस गोवा में स्थापित किया गया। 1557 में गोवा के पादरियों ने अपनी पहली पुस्तक भारत में छापी।

सन् 1870 में अल्मोड़ा में पहली बार सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु ‘डिबेटिंग क्लब’ नामक एक छोटी सी संस्था आस्तित्व में आयी। सन् 1871 में अल्मोड़ा से ही देश का पहला हिन्दी भाषी आंचलिक समाचार पत्र ‘अल्मोड़ा अखबार’ प्रकाशित हुआ। यद्यपि इससे पूर्व सन् 1868 में ‘समय विनोद’ नाम से एक हिन्दी सामाचार-पत्र नैनीताल से जय दत्त जोशी नामक वकील के संपादन में प्रकाशित हुआ था। परन्तु यह आज भी अपरिचित व गुमनाम है। इन आंचलिक हिन्दी समाचार-पत्रों से पहले सन् 1842 – 1870 के मध्य कुछ आंग्लभाषी (English Language) समाचार-पत्र प्रकाशित तो हुए किन्तु एक-दो को छोड़कर सभी अल्पजीवी रहे। सन् 1842 में एक अंग्रेज व्यावसायी व समाजसेवी जान मेकिन्न (John MacKinnon) द्वारा उत्तर भारत का पहला समाचार-पत्र ‘द हिल्स (The Hills)’ का मंसूरी से प्रकाशन किया गया। 7-8 वर्ष चलने के पश्चात् इसे बन्द कर दिया गया। लगभग एक दशक तक अखबार विहीन रहने के पश्चात् सन् 1860 में एक बार पुनः उतरी भारत में डॉ0 स्मिथ (Dr. Smith) द्वारा इस समाचार-पत्र का पुनः प्रकाशन प्रारम्भ किया गया, परन्तु 5 वर्ष चलने के बाद यह अखबार सन् 1865 में हमेशा के लिए बन्द होकर इतिहास का एक छोटा सा हिस्सा बन गया। ‘मसूरी एक्सचेज (Mussoorie Exchanges)’ ‘मसूरी सीजन (Mussoorie Season)’ तथा ‘मंसूरी क्रानिकल (Mussoorie Chronicle)’ नामक कुछ आंग्लभाषी समाचार-पत्रों का क्रमशः सन् 1870, 1872 तथा 1875 में मसूरी से प्रकाशन शुरू हुआ परन्तु इनमें से कोई भी अधिक समय तक न चल सका।

इसी समय झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के वकील रह चुके जान लेंग (John Leng) द्वारा अंग्रेज विरोधी समाचार-पत्र ‘मेफिसलाइट (Mafasilite)’ का प्रकाशन मसूरी से किया गया। कुछ इतिहासकार इसका प्रकाशन वर्ष सन् 1845 को मानते है एवं हमें इस समाचार पत्र के बन्द होने की भी कोई प्रमाणित तिथि उपलब्ध नहीं होती है। इसके सन् 1882-83 के प्रकाशित अभिलेखों के कुछ अंको से ज्ञात होता है कि लिडिल (Lidil) इसके तत्कालीन सम्पादक थे। लगभग 130 वर्षों के लंबे अन्तराल के पश्चात् पत्रकार जयप्रकाश उत्तराखण्डी द्वारा ‘मेफिसलाइट’ को पुर्नजीवित किया गया। सन् 2003 से आप इस समाचार-पत्र को हिन्दी-अंग्रेजी में साप्ताहिक प्रकाशित कर रहे है।

उत्तराखण्ड की पत्रकारिता के इतिहास की काल विधि को 3 भागों में विभाजित किया जा सकता है। – 

 

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