Education Policy of 1913

1913 का शिक्षा-नीति संबंधी सरकारी प्रस्ताव

1913 का शिक्षा-नीति संबंधी सरकारी प्रस्ताव
(Government Resolution on Education Policy of 1913)

देश में शिक्षा की माँग बढ़ जाने तथा गोखले के आन्दोलन के कारण भारतीय सरकार के लिए आवश्यक हो गया था कि वह अपनी शिक्षा-नीति को दोहराये । साथ ही 1911 ई. के दिल्ली-दरबार में सम्राट जॉर्ज पंचम ने प्राथमिक शिक्षा पर 50 लाख रुपए की अतिरिक्त धनराशि व्यय करने का आदेश प्रदान किया। उपर्युक्त कारणों से शिक्षा का पूर्ण रूप से अवलोकन करने के लिए 11 फरवरी, 1913 ई. को सरकार ने शिक्षा-नीति पर अपना प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव के अन्दर शिक्षा के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डाला गया तथा शिक्षा विस्तार के लिए निम्न सिफारिशें प्रस्तुत की गई।

प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिए सुझाव

  • सरकार का कर्तव्य है कि वह पूर्व-प्राथमिक (Lower Primary) विद्यालयों का अधिक से अधिक विकास करे। इन स्कूलों में लिखने-पढ़ने के अतिरिक्त ड्राइंग, गाँव का मानचित्र, प्रकृति-निरीक्षण तथा शारीरिक व्यायाम आदि की शिक्षा भी प्रदान की जाये।
  • सुविधानुसार उचित स्थानों पर उत्तर-प्राथमिक (Upper-Primary) विद्यालयों का निर्माण किया जाये और आवश्यकता के साथ लोअर प्राइमरी स्कूलों को बदला जाये।
  • मकतब तथा पाठशालाओं को यथा संभव अधिक से अधिक सहायता प्रदान की जाये।
  • जिला-परिषद और स्थानीय संस्थाएँ अधिक से अधिक स्कूलों की स्थापना करें। जहाँ पर इस प्रकार के नवीन स्कूल नहीं खोले जा सकते, वही पर व्यक्तिगत स्कूलों की स्थापना की जाये।
  • शिक्षक प्रशिक्षित और मिडिल पास हों। 
  • प्रत्येक कक्षा में 50 से अधिक छात्र न हों। छात्रों की संख्या साधारणतया 40 हो। 
  • दीक्षित अध्यापकों का वेतन कम से कम 12 रुपये प्रतिमास हो।
  • मिडिल स्कूल और वर्नाक्यूलर स्कलों में सुधार किया जाये।

माध्यमिक शिक्षा के विकास के लिए सिफारिशें

  • माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र से सरकार का पूर्ण रूप से हट जाना अनुचित है । 
  • परन्तु साथ ही राजकीय विद्यालयों के बढ़ाने पर असहमति प्रकट की गई । यथासम्भव पूर्व स्थापित विद्यालयों को ही आदर्श रूप प्रदान किया जाये । 
  • परीक्षा-प्रणाली तथा पाठ्यक्रम में सुधार किया जाये।
  • राजकीय विद्यालय में केवल दीक्षित अध्यापकों की ही नियुक्ति की जाये। 
  • अध्यापकों का वेतन निर्धारित किया जाये । 
  • गैर-सरकारी विद्यालयों को सरकार उचित प्रकार से सहायता अनुदान दे। 
  • पाठ्यक्रम में विज्ञान तथा काष्ठकला (मेनुअल ट्रेनिंग), जैसे -आधुनिक विषयों को भी सम्मिलित किया जाये।
  • कार्य-क्षमता में वृद्धि करने के लिए माध्यमिक विद्यालयों पर कड़ा नियन्त्रण लगाया जाये । 

विश्वविद्यालयी शिक्षा के विकास के लिए सुझाव

  • विश्वविद्यालयों की दशा शोचनीय है, अत: उनमें सुधार किया जाये । 
  • सम्पूर्ण देश की माँग तथा आवश्यकताओं को दृष्टि में रखते हुए 5 विश्वविद्यालय तथा 185 कॉलेज अपर्याप्त है । इस कारण प्रत्येक प्रान्त में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये।
  • विश्वविद्यालयों को हाई स्कूलों को मान्यता प्रदान करने से मुक्त कर दिया जाये। इससे विश्वविद्यालयों के कार्य-भार में कमी आ जायेगी । 
  • शिक्षण करने वाले विश्वविद्यालयों की स्थापना पर अधिक बल दिया जाये।
  • उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में औद्योगिक विषयों को सम्मिलित किया जाये । अनुसंधान के इच्छुक छात्रों को सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाये । 
  • विश्वविद्यालयों में समुचित छात्रावास, पुस्तकालय और प्रयोगशालाएँ स्थापित की जाएँ। 
  • छात्रों के नैतिक, चारित्रिक विकास की ओर मी ध्यान दिया जाये।

1913 के सरकारी प्रस्ताव में शिक्षा के प्रत्येक अंग पर प्रकाश डाला गया था | शिक्षा के स्तर में सुधार तथा शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार करने के सुझाव अत्यन्त सराहनीय थे, परन्तु यह दुःख का विषय है कि 1914 ई. में विश्व युद्ध की घोषणा के कारण और भारत के युद्ध में भाग लेने से 1913 ई. के प्रस्तावों पर विचार तक न किया जा सका। युद्ध समाप्त होने के पश्चात् 1917 ई. में भारत सरकार ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के विषयों की जाँच पड़ताल करने के लिए एक आयोग का आयोजन किया।

 

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