Early Movement against British rule

ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रारंभिक आंदोलन भाग – 4

फरैजी आंदोलन (Farazi Movement)

फरैजी आंदोलन, पूर्वी बंगाल में वर्ष 1804-60 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व शरायतुल्लाह तथा मुहम्मद मुशीन (जिसे -दूधु मियां के नाम से जाना जाता था) ने किया था। बाद में बहाई आंदोलन से जुड़ गया।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • इस्लामी पतन तथा अंग्रेजों द्वारा सत्ता पर अधिकार कर लेना ।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • फरीदपुर के शरायतुल्लाह द्वारा आंदोलन की शुरुआत। 
  • 1837 ई० में शरायतुल्लाह की मृत्यु, दूधु मियां द्वारा आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में लेना।
  • दूधु मियां ने पूर्वी बंगाल के सभी मुस्लिम कृषकों को जमींदारों एवं नील खेतीहरों के विरुद्ध करने में सफल रहा।
  • दूधु मियां को गिरफ्तार कर अलीपुर जेल में कैद कर दिया गया।

वहाबी आंदोलन (Wahabi Movement)

वहाबी आंदोलन, उत्तरी भारत एवं दक्कन में वर्ष 1820 – 70 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व सैयद अहमद (आंदोलन के संस्थापक) ने किया था। 

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • इस्लामी समाज का अध:पतन तथा अंग्रेजों द्वारा मुस्लिम शासकों की सत्ता पर अधिकार कर लेना।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • वहाबियों द्वारा अंग्रेजों से 50 वर्षों तक लड़ाई तथा 1860 के दशक तक अंग्रेजों द्वारा पूर्णतया दमन।

पागलपंथियों का आंदोलन (Movement of Lunatics)

पागलपंथियों का आंदोलन, शेरपुर (पूर्वी बंगाल) में वर्ष 1825 – 33 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व करमशाह एवं टीपू ने किया था। 

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • जमींदारों के शोषण के विरुद्ध कृषकों की नाराजगी।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव

  • करमशाह के नेतृत्व में यह एक धार्मिक आंदोलन था, लेकिन टीपू (शाह का पुत्र एवं उत्तराधिकारी) के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध राजनैतिक आंदोलन बन गया। 
  • अंग्रेजों द्वारा बड़ी संख्या में सैनिक अभियान द्वारा आंदोलन का दमन। 

कूका आंदोलन (Kuka Movement)

कूका आंदोलन, पंजाब में वर्ष 1845 – 72 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व भगत जवाहरमल (संस्थापक) ने किया था। 

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • सिख संप्रदाय का अध:पतन तथा सिख प्रभुत्व की समाप्ति।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव

  • यह आंदोलन धार्मिक सुधार के रूप में शुरू हुआ था लेकिन अंग्रेजों का पंजाब पर अधिकार करने के पश्चात यह सिखों के प्रभुत्व के पुनरुद्धार का आंदोलन बन गया।

 

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ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रारंभिक आंदोलन भाग – 3

सतवंदी विद्रोह (Rebellion of Satwandi)

सतवंदी विद्रोह, सतवंदी (महाराष्ट्र) में वर्ष 1839 – 45 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व फोंड सावंत (प्रमुख सामंत) और अन्ना साहिब (प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी) ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • खेन सावंत (सतवंदी के शासक) की पदच्युति और राज्य का प्रशासन चलाने के लिए एक ब्रिटिश अधिकारी की नियुक्ति, ब्रिटिश प्रशासन व्यवस्था से लोगों की नाराजगी।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • सामंतों द्वारा विद्रोह एवं अंग्रेजों को हटाने का प्रयास।
  • विद्रोह में पूरे राज्य की जनता अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट हो गई।
  • अंग्रेजों द्वारा मार्शल कानून लागू कर आंदोलन का दमन करना।

राजू विद्रोह (Rebellion of Raju) 

राजू विद्रोह, विशाखापट्टनम (आन्ध्र प्रदेश) में वर्ष 1827 – 33 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व वीरभद्र राजू ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • वीरभद्र को अंग्रेजों द्वारा पेंशन की एक छोटी रकम देकर अपनी जागीर से हटा दिया गया।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • वीरभद्र द्वारा अंग्रेजी शासक की अवज्ञा तथा विद्रोह जब तक वह पकड़ा नहीं गया।

पलकोंडा विद्रोह (Rebellion of Palakonda

पलकोंडा विद्रोह, पलकोंडा (आंध्र प्रदेश) में वर्ष 1831 – 32 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व पलकोंडा के जमींदार ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • कर की अदायगी नहीं करने के कारण जमींदारों की संपत्ति जब्त।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • पलकोंडा की जागीर को ब्रिटिश शासन के अधीन ले लेना।

गुम्सर विद्रोह (Rebellion of Gumsar)

गुम्सर विद्रोह, गुम्सर (गंजाम जिला) में वर्ष 1835 – 37 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व धनंजय भांजा (गुम्सर के जमींदार) ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों को कर बकाया चुकाने में उसकी असफलता

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • जमींदार विद्रोह, मिस्टर रसेल की आयुक्त के रूप में नियुक्ति।
  • 1837 ई० में बड़ी संख्या में सैनिक अभियान के बाद अंदोलन की समाप्ति। 

परलाकीमेडी विद्रोह (Rebellion of Parlakimedi)

परलाकीमेडी विद्रोह, परलाकीमेडी (उड़ीसा) में वर्ष 1829 – 35 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व जगन्नाथ गजपति एवं  नारायण राव ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • 1827 ई० में अंग्रेजों द्वारा बकाया के लिए जमींदारी की संपत्ति जब्त कर ली गई।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • जमींदार का विद्रोह जिससे जनता द्वारा एक लोकप्रिय आंदोलन शुरू, आंदोलन का दमन।

 

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ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रारंभिक आंदोलन भाग – 2

किट्टर विद्रोह (Rebellion of Kittar)

किट्टर विद्रोह किट्टर (कर्नाटक में धारवाड़ के नजदीक) में वर्ष 1824 – 29हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व चेन्नमा तथा रयप्पा ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • किट्टर के शिवलिंग देसाई की मृत्यु (1824) में हुई जिसका कोई पुरुष संतान नहीं थी। अंग्रेजों द्वारा दत्तक पुत्र को देसाई मानने से इनकार एवं किट्टर प्रशासन को अपने हाथों में ले लेना।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • 1824 ई० में चेन्नमा (स्व० देसाई 1 की विधवा) का विद्रोह एवं ठाकरे (धारवाड़ का कलक्टर) सहित कई अंग्रेजों की हत्या की गई। 
  • किट्टर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। 
  • 1829 में रयण्या के नेतृत्व में किट्टर लोगों द्वारा विद्रोह एवं अपने को स्वतंत्र घोषित कर दत्तक पुत्र को देसाई बनाया गया ।
  • रयप्पा को अंग्रेजों द्वारा फांसी और चेन्नमा की धारवाड़ जेल में मृत्यु। 

संबलपुर का विद्रोह (Revolt of Sambalpur)

संबलपुर का विद्रोह संबलपुर (उड़ीसा) में वर्ष  1827 – 40 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व सुरेंद्र साई ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों द्वारा संबलपुर के आंतरिक मामलों जैसे उत्तराधिकार के मामलों में दखलंदाजी करना ।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • महाराज साई (शासक) की मृत्यु तथा सिविल युद्ध की शुरुआत।
  • मोहन कुमारी (स्व० राजा की विधवा) का अंग्रेजों की सहायता से राज्यारोहण तथा सुरेंद्र साई के नेतृत्व में अन्य दावेदारों द्वारा विद्रोह।
  • अंग्रेजों द्वारा 1840 ई० में सुरेंद्र साई को बंदी बनाना और उसे आजीवन कारावास की सजा देना। 

सतारा अशांति (Disturbance of Satara)

सतारा अशांति सतारा (महाराष्ट्र) में वर्ष  1840 – 41 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व धरराव पवार एवं नर सिंह दत्तात्रेय पाटेकर ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों द्वारा प्रतापसिंह की पदच्युति एवं देश निकाला, जो कि सतारा का लोकप्रिय शासक था।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • 1840 ई० में धरराव के नेतृत्व में सतारा की जनता द्वारा विद्रोह।
  • 1841 ई० में नरसिंह के नेतृत्व में उनका विद्रोह तथा बादामी पर कब्जा।
  • अंग्रेजों द्वारा नरसिंह की हार तथा उस पर कब्जा (उसे आजीवन काला पानी की सजा हुई)।

बुंदेला विद्रोह (Rebellion of Bundela)

बुंदेला विद्रोह, सागा एवं दमोह (बुदेलखंड) में वर्ष 1842 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व मधुकर शाह एवं जवाटीर सिंह ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • ब्रिटिश भूमि कर नीति से नाराजगी।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • शाह तथा सिंह के नेतृत्व में बुंदेलों का विद्रोह।
  • पुलिस अधिकारियों की मृत्यु एवं ब्रिटिश प्रशासन का विघटन।
  • अंग्रेजों द्वारा मधुकर शाह एवं सिंह को फांसी देना।

गदकारी विद्रोह (Rebellion of Gadkari)

गदकारी विद्रोह, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में वर्ष 1844 – 45 हुआ था। 

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों द्वारा कोल्हापुर पर अधिकार करना ।
  • गदकारियों की कर सुधार नीति से नाराजगी।

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • गदकारी विद्रोह पूरे कोल्हापुर में एवं कोल्हापुर राज्य के सभी भागों में एक लोकप्रिय विद्रोह था।
  • अंग्रेजों द्वारा इस आंदोलन का निर्णायक दमन कर दिया गया।
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ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रारंभिक आंदोलन भाग – 1

कट्टाबोम्मन का विद्रोह (Rebellion of Kattabomman)

कट्टाबोम्मन का विद्रोह तमिलनाडु में तीरूनेलवेली में वर्ष 1792 – 99 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व वीरपांड्य कट्टाबोम्मन (पंचालावुरिचि) के शासक ने किया था ।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों द्वारा कट्टाबोम्मन को अधिराज्य मानने के लिए दबाव

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • कट्टाबोम्मन द्वारा 7 वर्षों तक अंग्रेजों की अवज्ञा; तथा अंग्रेजों द्वारा उस पर निर्णायक कब्जा तथा वीरपांड्य कट्टाबोम्मन को फांसी पर लटका देना (16 अक्टूबर 1799), 
  • वीरपांड्य कट्टाबोम्मन के क्षेत्रों पर अंग्रेजों द्वारा अधिकार कर लेना (1799)। 

पायक विद्रोह (Rebellion of Payak )

पायक विद्रोह उड़ीसा में वर्ष 1804 – 06 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व पहली बार खुरदा के राजा एवं बाद में जगबन्धु ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • उड़ीसा पर अंग्रेजों का कब्जा (1803)

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • खुरदा के राजा द्वारा पायको के सहयोग से एक विद्रोही संगठन बनाने की कोशिश। 
  • अंग्रेजों द्वारा उसके क्षेत्रों को अपने अधिकार में लेना नेतृत्व में 1804 और 1806 ई० के बाद में बीच पायकों के बीच अशांति, 
  • जंगबंधु के नेतृत्व में पायकों का उदय एवं अंग्रेजों द्वारा दमन।

वेलु थांबी का विद्रोह (Rebellion of Velu Thambi)

वेलु थांबी का विद्रोह त्रावणकोर में वर्ष 1808 – 09 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व वेल थांबी (त्रावणकोर का दीवान) ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • सहायक व्यवस्था के अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा आर्थिक बोझ देना; वहां के ब्रिटिश रेजिडेंस की निरंकुशता; 

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • अंग्रेजों और वेल थांबी के बीच दिसंबर 1808 ई० में लड़ाई की शुरुआत हुई, 
  • त्रिवेंद्रम (त्रावणकोर की राजधानी) पर अंग्रेजों द्वारा फरवरी 1809 ई० में अधिकार कर लिया गया, 
  • वेल थांबी घायल होने के कारण जंगल में मृत्यु। 

राव भारमल का विद्रोह (Rebellion of Rao Bharmal)

राव भारमल का विद्रोह कच्छ और का विद्रोह काठियावाड़ में वर्ष 1816-19 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व राव भारमल (कच्छ का शासक) ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों की राज्य विस्तारण नीतिः एवं कच्छ के आंतरिक मामलों में दखल-अंदाजी के कारण अंग्रेज विरोधी भावना 

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • राव भारमल की हार 
  • कच्छ पर सहायक संधि लागू होना। 

 

रामोसी का विद्रोह (Rebellion of Ramosi)

रामोसी का विद्रोह पूना में वर्ष 1822 – 29 हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व चित्तूर सिंह एवं उमा जी ने किया था।

आन्दोलन का मुख्य कारण

  • अंग्रेजों द्वारा 1818 ई० में पेशवा के क्षेत्रों पर अधिकार कर लेने के परिणामस्वरूप रामोसियों (जो पेशवा के अधीन पुलिस का कार्य करते थे) की एक बड़ी संस्था का बेकार हो जाना। 

आंदोलन का घटनाक्रम तथा प्रभाव 

  • चित्तर सिंह के नेतृत्व में रामोसी विद्रोह (1822-24); एवं उमा जी के नेतृत्व में उनका विद्रोह (1822 – 24); अंग्रेजों द्वारा रामोसियों की गलतियों को माफ कर, उन्हें पहाड़ी क्षेत्रों में पुलिस की नौकरी, भूमि वितरण कर शांति व्यवस्था करना। 
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