उत्तराखंड की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं पौराणिक महत्ता की भांति यहां का इतिहास भी मानव सभ्यताओं के विकास का साक्षी है। प्रागैतिहासिक काल से ही इस भू-भाग में मानवीय क्रियाकलापों के प्रमाण मिलते हैं। विभिन्न कालों के अनुक्रम में उत्तराखंड के इतिहास का अध्ययन तीन भागों में किया जाता है –
1. प्रागैतिहासिक काल स्रोत :- पाषाणयुगीन उपकरण व गुहालेख चित्र
2. आद्यएतिहासिक काल स्रोत :- पुरातात्विक प्रमाण व साहित्यिक प्रमाण
3. ऐतिहासिक स्रोत :- मुद्राए, ताम्रपत्र, अभिलेख, शिलालेख
प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Times)
प्रागैतिहासिक काल वह काल है जिसकी जानकारी पुरातात्विक स्त्रोतों, पुरातात्विक स्थलों जैसे पाषाण युगीन उपकरण गुफा शैल चित्र आदि से प्राप्त होती है। इस समय के इतिहास की जानकारी लिखित रूप में प्राप्त नहीं हुई है। प्रागैतिहासिक काल को ‘प्रस्तर युग’ भी कहते हैं।
उत्तराखंड में प्रागेतिहासिक काल के साक्ष्य
पाषाणयुगीन उपकरण
पाषाणयुगीन उपकरण वे उपकरण थे जिनका उपयोग मानव ने अपने विकास के विभिन्न चरणों में किया जैसे हस्त कुठार (Hand Axe), क्षुर (Choppers), खुरचनी (Scrapers), छेनी, आदि।
उत्तराखंड में पाषाणयुगीन उपकरण अलकनन्दा नदी घाटी (डांग, स्वीत), कालसी नदी घाटी, रामगंगा घाटी आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि पाषाणयुगीन मानव उत्तराखंड में भी निवास करते थे।
लेख व गुहा चित्र
उत्तराखंड के प्रमुख जिलों अल्मोड़ा, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ आदि में लेख व गुहा चित्र मिले है।
अल्मोड़ा (Almora)
अल्मोड़ा जनपद के निम्नलिखित स्थानों से हमें प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी मिलती हैं –
लाखू उडुयार (लाखू गुफा)
- स्थान – अल्मोड़ा (सुयाल नदी के तट पर बसे दलबैंड, बाड़ेछीना गाँव में।)
- खोज – 1968 ई०
- खोजकर्ता – श्री यशवंत सिंह कठौर और एम.पी. जोशी
- उत्तराखंड में प्रागैतिहासिक शैलाश्रय चित्रों की पहली खोज थी।
- लखुउडियार का हिन्दी में अर्थ हैं ‘लाखों गुफायें’ अर्थात इस जगह के पास कई अन्य गुफायें भी हैं।
- विशेषताएं –
- मानव आकृतियों का अकेला व समूह में नृत्य करते हुए।
- विभिन्न पशु पक्षियों का चित्रण किया गया है।
- चित्रों को रंगों से सजाया गया है।
- इन शैलचित्रों में भीमबेटका-शैलचित्र के समान समरूपता देखी गयी है।
ल्वेथाप गाँव
- स्थान – अल्मोड़ा जिले में
- विशेषताएं
- शैल-चित्रों में मानव को हाथो में हाथ डालकर नृत्य करते तथा शिकार करते दर्शाया गया हैं।
- यहाँ से लाल रंग से निर्मित चित्र प्राप्त हुए है।
पेटशाला
- स्थान – अल्मोड़ा जिले में (पेटशाला व पुनाकोट गाँव के बीच स्थित कफ्फरकोट में)
- खोज – 1989 ई०
- खोजकर्ता – श्री यशोधर मठपाल
- विशेषताएं –
- शैल-चित्रों में नृत्य करते हुए मानवों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
- मानव आकृतियां रंग से रंगे है।
फलसीमा
- स्थान – अल्मोड़ा के फलसीमा में
- विशेषताएं –
- मानव आकृतियों में योग व नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।
कसार देवी मंदिर
- स्थान – अल्मोड़ा से 8 किलोमीटर दूर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर
- विशेषताएं –
- इस मंदिर से 14 मृतकों का सुंदर चित्रण प्राप्त हुआ है।
चमोली (Chamoli)
चमोली जनपद के निम्नलिखित स्थानों से हमें प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी मिलती हैं –
गवारख्या गुफा
- स्थान – चमोली जनपद में (अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव के पास स्थित।)
- खोजकर्ता – श्री राकेश भट्ट, इसका अध्ययन डॉ. यशोधर मठपाल ने किया।
- विशेषताएं –
- इस उड्यार में मानव, भेड़, बारहसिंगा आदि के रंगीन चित्र मिले हैं।
- यहाँ प्राप्त शैल-चित्र लाखु गुफा के चित्रों (मानव, भेड़, बारहसिंगा, लोमड़ी) से अधिक चटकदार है।
- डॉ. यशोधर मठपाल के अनुसार इन शिलाश्रयों में लगभग 41 आकृतियाँ है, जिनमें 30 मानवों की, 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों की है।
- चित्रकला की दृष्टि से उत्तराखंड की सबसे सुंदर आकृतियां मानी जाती है।
- चित्रों की मुख्य विशेषता मनुष्यों द्वारा पशुओं को हाँकते हुए और घेरते हुए दर्शाया गया है।
किमनी गाँव
- स्थान – चमोली जनपद के थराली विकासखंड में
- विशेषताएं –
- हथियार व पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए हैं ।
- हल्के सफेद रंग का प्रयोग किया गया है।
मलारी गाँव
- स्थान – तिब्बत से सटा मलारी गांव चमोली में।
- खोजकर्ता – 2002 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा अध्ययन।
- विशेषताएं –
- हजारों वर्ष पुराने नर कंकाल मिट्टी के बर्तन जानवरों के अंग प्राप्त हुए।
- 2 किलोग्राम का एक सोने का मुखावरण (Gold Mask) प्राप्त हुआ।
- नर कंकाल और मिट्टी के बर्तन लगभग 2000 ई०पू० से लेकर 6 वीं शताब्दी ई०पू० तक के हो सकते है।
- डॉ. शिव प्रसाद डबराल द्वारा गढ़वाल हिमालय के इस क्षेत्र में शवाधान खोजे गए है।
- यहाँ से प्राप्त बर्तन पाकिस्तान की स्वात घाटी के शिल्प के समान है।
मलारी गांव में गढ़वाल विश्विद्यालय के खोजकर्ताओं ने दो बार सर्वेक्षण किया –
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उत्तरकाशी (Uttarkashi)
हुडली
- स्थान – उत्तरकाशी में
- विशेषताएं –
- यहां नीले रंग के शैल चित्र प्राप्त हुए।
पिथौरागढ़ (Pithoragarh)
बनकोट
- स्थान – पिथौरागढ़ के बनकोट क्षेत्र से
- विशेषताएं –
- 8 ताम्र मानव आकृतियां मिली हैं।
चंपावत (Champawat)
देवीधुरा की समाधियाँ
- स्थान – चंपावत जिले में
- खोज – 1856 में हेनवुड द्वारा
- विशेषता
- बुर्जहोम कश्मीर के समान समाधियाँ।
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