उत्तराखण्ड की मूर्तिकला (Sculpture of Uttarakhand)
उत्तराखण्ड में अधिकांश मूर्तियाँ स्थापत्य कृतियों के रूप में मिलती हैं। इनका निर्माण प्रायः मन्दिरों की प्राचीरों, गवाक्षों, आधार पीठिकाओं, छतों, द्वार स्तम्भों तथा शिलापट्टिकाओं पर हुआ है। उत्तराखण्ड में विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
शैव धर्म से सम्बन्धित मूर्तियाँ
- लकुलीश की मूर्तियाँ – जागेश्वर के लकुलीश मन्दिर में शिव की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, इनमें शिव का ‘त्रिरूप’ उल्लेखनीय है। जिनमें मध्य मुख जटाओं से मण्डित है तथा कानों से लटकते आभूषण कारुणिक आभा को दर्शाते हैं। बायाँ मुख परोपकारिता का सूचक है तथा दायाँ मुख सृष्टि के संहारकर्ता का रौद्र रूप प्रतीत होता है।
- नृत्य की मुद्रा में शिव – शिव का यह रूप भारत में सदैव से प्रधान रहा है। उत्तराखण्ड के अधिकांश मन्दिरों में शिव के इसी रूप को उभारा गया है। इस सन्दर्भ में जागेश्वर के नटराज मन्दिर तथा गोपेश्वर मन्दिर में प्राप्त नृत्यधारी मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं।
- वज्रासन मुद्रा – केदारनाथ मन्दिर की द्वारपट्टिका पर शिव की वज्रासन मुद्रा उत्कीर्ण है। शिव का वीणाधर स्वरूप, नाग, डमरू तथा अमरफल से मण्डित है। इसमें द्वारपट्टिका का बहुत-सा भाग खण्डित हो चुका है।
- बैजनाथ की मूर्ति – इस मूर्ति के चार हाथ हैं, जो विभिन्न मुद्राओं में दिखाई देते हैं। बाईं जाँघ पर पार्वती जी विराजमान हैं, जिन्होंने माला, हार एवं करधनी इत्यादि आभूषण धारण किए हुए हैं। बैजनाथ का प्राचीन नाम ब्रह्मनाथ है।
- शिव की संहारक मूर्ति – लाखामण्डल से शिव की संहारक मूर्ति प्राप्त हुई है। यह मूर्ति धनुषाकार मुद्रा में आठ भुजाओं से युक्त है। इस मूर्ति को शिव के त्रिपुरान्तक रूप एवं अपस्मार रूप से जोड़ा जाता है। शैली और सज्जा की दृष्टि से यह मूर्ति 8वीं शताब्दी की मानी जाती है।
- शिव-पार्वती की एक संयुक्त मूर्ति – यह मूर्ति स्थापित है। इसमें शिव ललितासन में पार्वती की ओर उन्मुख हैं।
- बद्रीनाथ की मूर्ति – इस मूर्ति के अधिकांश लक्षण कालीमठ की प्रतिमा से मिलते हैं। इस मूर्ति की दस भुजाएँ तथा तीन मुख हैं, जो अब तक प्राप्त शैव मूर्तियों में सबसे विशिष्ट लक्षण हैं। इस मूर्ति के साथ गरुड़ प्रतिमा पर एक 10वीं शताब्दी का अभिलेख उत्कीर्ण है, जिसके आधार पर इस प्रतिमा को 10वीं शताब्दी का स्वीकार किया जा सकता है।
- नृत्य करते गणपति की मूर्ति – जोशीमठ में गणेश की केवल एक नृत्यधारी मूर्ति मिलती है, जो शैली एवं मुद्रा की दृष्टि से उत्तराखण्ड की विशिष्ट कृति है। इस मूर्ति में गणेश देवता नृत्य मुद्रा में आठ भुजाओं से युक्त हैं।
- लाखामण्डल की मूर्ति – यह गणपति की एक विशिष्ट मूर्ति है। मूर्ति के चार हाथ एवं छः सिर हैं, जो क्रमशः दो पंक्तियों में तीन-तीन की संख्या में स्थापित हैं। इसमें गणपति एक मोर की पीठ पर सवार हैं तथा दोनों ओर दो मोर हैं, जो देवता की ओर निहार रहे हैं। इस मूर्ति पर दक्षिण कला का प्रभाव दिखाई पड़ता है।
वैष्णव धर्म से सम्बन्धित मूर्तियाँ
- शैव धर्म के पश्चात् उत्तराखण्ड का दूसरा प्रमुख धर्म वैष्णव धर्म है। यहाँ केदार की भाँति पंचबद्री की कल्पना तथा विष्णु के विभिन्न जन्मों से सम्बन्धित मूर्तियाँ मिलती हैं। वैष्णव धर्म से सम्बन्धित निम्नलिखित मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं –
- विष्णु की देवलगढ़ की खड़ी मूर्ति – इस मूर्ति में साज-सज्जा पर विशेष बल दिया गया है, जिससे शरीर के खाली भागों को सुगमता से देखना कठिन है।
- वामन मूर्ति – विष्णु के 5वें अवतार के प्रतीक वामन की प्रतिमा काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) में मिली है, जो रेतीले पत्थर से निर्मित है।
- शेषशयन मूर्ति – विष्णु के इस रूप की अधिकांश मूर्तियाँ उत्तराखण्ड के मन्दिरों की प्राचीरों, पट्टिकाओं, छतों तथा द्वारों पर उत्कीर्ण मिलती हैं। बैजनाथ तथा द्वाराहाट (अल्मोड़ा) की स्वतन्त्र मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। इन दोनों मूर्तियों में देवता शेषनाग की पीठ पर विश्राम अवस्था में विराजमान है।
ब्रह्मा की मूर्तियाँ
- ब्रह्मा देवता की सर्वप्रथम मूर्ति द्वाराहाट (अल्मोड़ा) में रत्नदेव के छोटे मन्दिर की द्वारशीर्ष पट्टिका पर उत्कीर्ण मिलती है। देवता की चार भुजाएँ हैं और वह कमलासन पर आसीन हैं।
- इसकी दूसरी मूर्ति बैजनाथ संग्रहालय से प्राप्त हुई है।
सूर्य तथा नवग्रहों की मूर्तियाँ
सूर्य पूजा से सम्बन्धित उत्तराखण्ड में जितनी मूर्तियाँ मिलती हैं, उनमें जागेश्वर, द्वाराहाट तथा बैजनाथ की सूर्य प्रतिमाएँ उल्लेखनीय हैं।
- जागेश्वर की सूर्य मूर्ति – यह मूर्ति तीन फीट ऊँची है तथा काले पत्थर से निर्मित मण्डित रथ में खड़े हैं। मध्य के अश्व पर अरुण आसीन है।
- द्वाराहाट की सूर्य मूर्ति – इस मूर्ति में देवता समभंग मुद्रा में खड़े हैं।
देवियों की मूर्तियाँ
- मेखण्डा की पार्वती मूर्ति – पार्वती को उमा या गौरी नामों से भी पुकारा गया है। उत्तराखण्ड में इनकी अनेक मूर्तियाँ मिलती हैं। मेखण्डा से प्राप्त प्रतिमा में देवी अंजलि हस्त मुद्रा में आसीन हैं। यह कला की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण मूर्ति है।
- लाखामण्डल की गौरी प्रतिमा – इस मूर्ति में देवी को तपस्या करते हुए दिखाया गया है। देवी चार लपटों के मध्य खड़ी हैं। शैली की दृष्टि से यह मूर्ति 8वीं-9वीं शताब्दी की प्रतीत होती है।
- दुर्गा की मूर्तियाँ – बैजनाथ संग्रहालय से प्राप्त दुर्गा खड़ी मूर्ति तथा जागेश्वर एवं कालीमठ की सिंहवाहिनी प्रतिमाएँ विशिष्ट हैं।
- महिषासुर मर्दिनी – शक्ति रम्भा देवी का देवी के इस रूप की प्रथम मूर्ति चम्बा से मिली है।
- गजलक्ष्मी मूर्ति – राज्य में द्वाराहाट (अल्मोड़ा) से प्राप्त हुई है।
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