61. दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की कौन सी धारा “संदिग्ध व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति” से संबंधित है ?
(1) धारा 106
(2) धारा 107
(3) धारा 109
(4) धारा 110
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62. भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 218 के अन्तर्गत लोक सेवक द्वारा अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना करने का अपराध विचारणीय है
(1) केवल सेशन न्यायालय द्वारा
(2) कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा
(3) कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा
(4) प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा
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63. यदि कोई व्यक्ति विधिपूर्ण अभिरक्षा में से निकल भागता है तो वह व्यक्ति जिसकी अभिरक्षा से वह निकल भागा है, उसका तुरन्त पीछा कर सकता है और उसे गिरफ्तार कर सकता है :
(1) भारत के किसी स्थान में
(2) उस पुलिस थाने की सीमाओं में किसी स्थान में
(3) उस जिले के किसी स्थान में
(4) उस राज्य के किसी स्थान में
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64. निम्न में से कौन सा दण्डादेश अपर सेशन न्यायाधीश दे सकता है ?
(1) कोई भी दण्डादेश किन्तु मृत्यु दण्डादेश के उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट किये जाने की आवश्यकता होगी।
(2) मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक अवधि के लिए कारावास के दण्डादेश के सिवाय कोई भी दण्डादेश ।
(3) मृत्यु या आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक अवधि के लिए कारावास के दण्डादेश के सिवाय कोई भी दण्डादेश
(4) (कोई भी दण्डादेश किन्तु मृत्यु दण्डादेश के उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट किये जाने की आवश्यकता होगी) और (मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक अवधि के लिए कारावास के दण्डादेश के सिवाय कोई भी दण्डादेश) दोनों ।
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65. दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की निम्न में से कौन सी धारा “फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा” से संबंधित है ?
(1) धारा 80
(2) धारा 81
(3) धारा 82
(4) धारा 83
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66. दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 का अध्याय VII संबंधित है ।
(1) चीजें पेश करने को विवश करने के लिए आदेशिकाएँ
(2) हाजिर होने को विवश करने के लिए आदेशिकाएँ
(3) परिशान्ति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति
(4) पुलिस का निवारक कार्य
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67. निम्नलिखित में से कौन सा मजिस्ट्रेट डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में किसी दस्तावेज, पार्सल या अन्य चीज की तलाशी के लिए वारण्ट जारी करने के लिए प्राधिकृत है ?
(1) न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग
(2) कोई भी कार्यपालक मजिस्ट्रेट
(3) जिला मजिस्ट्रेट
(4) महानगर मजिस्ट्रेट
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68. निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य नहीं है ?
(1) गिरफ्तारी का वारण्ट एक से अधिक पुलिस अधिकारियों को निर्दिष्ट हो सकता है।
(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 74 के अन्तर्गत किसी पुलिस अधिकारी को निर्दिष्ट वारण्ट का निष्पादन अन्य पुलिस अधिकारी द्वारा नहीं किया जा सकता।
(3) गिरफ्तारी के लिए वारण्ट तब तक प्रवर्तन में रहेगा जब तक उसे रद्द नहीं कर दिया जाता है या निष्पादित नहीं कर दिया जाता है ।
(4) गिरफ्तारी का वारण्ट भारत के किसी भी स्थान में निष्पादित किया जा सकता है।
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69. निम्नलिखित में से कौन सा कथन असत्य है ?
(1) दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 161 के अधीन अन्वेषण के दौरान अभिलिखित किए गए साक्षियों के कथन केस डायरी में अन्तः स्थापित किये जाते हैं।
(2) कोई दण्ड न्यायालय पुलिस डायरी का उपयोग उस मामले में साक्ष्य के रूप में नहीं कर सकता।
(3) दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 167 के अधीन कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को उच्च न्यायालय द्वारा विशेषतया सशक्त नहीं किया गया है, पुलिस की अभिरक्षा में निरोध प्राधिकृत नहीं करेगा।
(4) मजिस्ट्रेट को पुलिस रिपोर्ट भेजने के बाद उस अपराध के संबंध में आगे और अन्वेषण नहीं किया जा सकता।
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70. _____ किसी द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को ऐसे अपराधों का, जिनकी जाँच या विचारण करना उसकी क्षमता के अन्दर है, दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 190 (1) के अधीन संज्ञान लेने के लिए सशक्त कर सकता/सकती है।
(1) उच्च न्यायालय
(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट
(3) राज्य सरकार
(4) सेशन न्यायालय
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71. निम्नलिखित में से किस मामले में यदि अन्वेषण अभियुक्त के गिरफ्तार किये जाने की तारीख से छ: मास की अवधि के भीतर समाप्त नहीं होता है तो मजिस्ट्रेट आगे और अन्वेषण को रोकने का आदेश दे सकता है ?
(1) समन मामला
(2) वारण्ट मामला
(3) संज्ञेय मामला
(4) असंज्ञेय मामला
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72. “लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों के लिए और साक्ष्य में दिये गये दस्तावेजों से संबंधित अपराधों के लिए लोक सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के लिए अभियोजन” संबंधित प्रावधान निहित हैं
(1) दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 195 में
(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 195 क में
(3) दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 196 में
(4) दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 194 में
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73. निम्न में से किस अपराध का संज्ञान, न्यायालय, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना ही, ले सकता है ?
(1) भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 124-क के अधीन अपराध
(2) भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 153-क के अधीन अपराध
(3) भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 505(1) के अधीन अपराध
(4) भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 216-क के अधीन अपराध
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74. दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 192 के अन्तर्गत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मामले को जाँच या विचारण के लिए अपने अधीनस्थ किसी सक्षम मजिस्ट्रेट के हवाले कर सकता है
(1) अपराध का संज्ञान करने के पहले
(2) अपराध का संज्ञान करने के पश्चात्
(3) अपराध का संज्ञान करने के पहले या पश्चात्
(4) इनमें से कोई नहीं
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75. परिवाद पर किसी अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट
(1) परिवादी की और वहाँ उपस्थित साक्षी की शपथ पर परीक्षा करेगा।
(2) केवल परिवादी की शपथ पर परीक्षा करेगा, वहाँ उपस्थित साक्षी की नहीं।
(3) वहाँ उपस्थित केवल साक्षी की शपथ पर परीक्षा करेगा, परिवादी की नहीं।
(4) परिवादी और वहाँ उपस्थित साक्षी की शपथ पर परीक्षा नहीं करेगा।
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76. दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 203 संबंधित है
(1) परिवादी की परीक्षा से
(2) आदेशिका के जारी किए जाने को मुल्तवी करने से
(3) परिवाद को खारिज किये जाने से
(4) अपराधों का सेशन न्यायालयों द्वारा संज्ञान से
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77. परिवाद के आधार पर संस्थित मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा की जाने वाली जाँच या विचारण के दौरान उसके समक्ष यह प्रकट होता है कि उसी अपराध के संबंध में पुलिस द्वारा अन्वेषण हो रहा है, तब मजिस्ट्रेट –
(1) अन्वेषण प्रक्रिया को रोक देगा।
(2) उस जाँच या विचारण की प्रक्रिया को रोक देगा।
(3) अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा ।
(4) अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा।
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78. दण्ड प्रक्रिया संहिता की किस धारा के अंतर्गत किसी वाद को सत्र न्यायालय को विचारार्थ सुपुर्द किया जा सकता है जब अपराध केवल उसी के द्वारा विचारणीय है ?
(1) दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 207
(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 208
(3) दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 209
(4) दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 210
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79. दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 257 के अन्तर्गत यदि मजिस्ट्रेट की अनुज्ञा से परिवाद वापस ले लिया जाता है तो मजिस्ट्रेट
(1) अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा।
(2) अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा।
(3) अभियुक्त को दोषसिद्ध कर देगा।
(4) अभियुक्त को न तो उन्मोचित करेगा और न ही दोषमुक्त ।
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80. निम्नलिखित में से कौन से अपराध का संक्षिप्त विचारण नहीं किया जा सकता ?
(1) वह अपराध जो दो वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय नहीं है।
(2) भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 379 के अधीन चोरी, जहाँ चुराई हुई सम्पत्ति का मूल्य दो हजार रुपये से अधिक नहीं है।
(3) भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 456 के अधीन कारित अपराध
(4) भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 460 के अधीन कारित अपराध
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