चंद वंशीय राजाओं की राजधानी रही चम्पावत को मंदिरों का शहर के नाम से भी जाना जाता है। भाद्र कृष्ण पक्ष की दशमी को होने वाला फूलडोल मेला(Phooldol Mela) कई वर्षो से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
मेले की शुरुआत वर्ष 1944 में तत्कालीन तहसीलदार B.D.भंडारी के प्रयासों से हुई। मेला समिति का गठन कर इसका आयोजन कराया गया और नागनाथ मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से तीन दिवसीय अखंड कीर्तन के बाद दशमी को बालेश्वर मंदिर तक श्रीकृष्ण डोले की भव्य शोभायात्रा निकाली गई।
तब से यह मेला हर वर्ष आस्था के सैलाब के साथ बढ़ता चला जा रहा है। पूर्व कमेटी के सदस्य बताते हैं कि शुरुआती दौर में इस मेले को संचालित करने के लिए जो सामूहिकता की भावना पैदा हुई थी, वह आज भी जिंदा है। मेले का नाम फूलडोल क्यों पड़ा? इस पर पुजारी बताते हैं कि श्रीकृष्ण डोले को फूलों से आकर्षक रूप से सजाने पर ही इस को फूलडोल नाम दिया गया।
शुरुआती दौर में इसे डोल मेला ही कहा जाता था। मेले में रूहेलखंड, बुंदेलखंड व कुमाऊं के साथ ही उत्तरप्रदेश के अन्य कस्बों से आने वाले व्यापारियों के कारण यह व्यावसायिक मेले के रूप में पहचान बनाने लगा है। वहीं डोल यात्रा में हिस्सा लेने के लिए जनपद के ओर छोर से भारी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
हालांकि बदलते परिवेश के चलते अब तीन दिवसीय होने वाले अखंड कीर्तन के स्वर धीमे पड़े हैं, लेकिन भक्ति संगीत की स्वर लहरियां अब भी गुंजायमान रहती है। कई सालों तक हरे रामा हरे कृष्णा के अखंड कीर्तन की एक टोली होती थी। बकायदा उसे पारिश्रमिक मिलता था।
Read Also : |
|
---|---|
Uttarakhand Study Material in Hindi Language (हिंदी भाषा में) | Click Here |
Uttarakhand Study Material in English Language |
Click Here |
Uttarakhand Study Material One Liner in Hindi Language |
Click Here |
Uttarakhand UKPSC Previous Year Exam Paper | Click Here |
Uttarakhand UKSSSC Previous Year Exam Paper | Click Here |
MCQ in English Language | Click Here |