सल्ट क्रांति (Salt Revolution)

सल्ट क्रांति (Salt Revolution)

अल्मोड़ा का सल्ट क्षेत्र उस समय बहुत ही पिछड़ा था। इस क्षेत्र में पटवारी अफसरों को घूस देकर तबादला करवाते थे। गाँव में पहली बार पहुँचने पर पटवारी टीका का पैसा भी वसुलते थे। फसल कटान पर एक पसेरी अनाज और खाने-पीने का सामान जबरन वसुला जाता था। सन् 1921 को सरयु नदी तट पर कुली–बेगार न करने का संकल्प लिया गया तो अफसरों ने पौड़ी  के गुजुडु पट्टी और कुमाऊँ के सल्ट में बेगार लेने का फैसला किया। इसकी सूचना मिलने पर हरगोविन्द सल्ट पहुँच गए। विभिन्न स्थानों पर सभाएं हुई और जनता ने कुली और बेगार न देने का संकल्प दोहराया। खुमाड़ को केन्द्र बनाकर क्षेत्र में आंदोलन को संचालित किया गया। यहीं के प्राईमरी स्कूल के हेडमास्टर पुरुषोत्तम उपाध्याय ने इसको नेतृत्व प्रदान किया। उनके द्वारा रचनात्मक कार्यों स्वच्छता, सफाई, अछूतोद्धार का अभियान छेड़ा गया। इस क्षेत्र की चारों पट्टियों में पंचायतें गठित हुई, जिसने सभी मामलों पर निर्णय दिए। स्वयं सेवकों की भर्ती की जाने लगी। पुरुषोत्तम के साथ उनके सहायक लक्ष्मण सिंह ने भी इस्तीफा दिया। उस इलाके के समृद्ध ठेकेदार पान सिंह ने भी आंदोलन में भाग लिया। 1927 को प्रेम विद्यालय ताड़ीखेत में गांधीजी के आगमन पर सल्टवासी भी उनका स्वागत करने पहुँचे थे। 1917 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में पुरुषोत्तम के नेतृत्व में सल्ट के कार्यकत्र्ताओं ने भी भाग लिया।

1942 में भारत छोडो आन्दोलन के समय अल्मोड़ा के सल्ट, देघाट व स्लाम क्षेत्र विशेष चर्चा में थे इनका नेतृत्व मदन मोहन उपाध्याय कर रहे थे जिन्हें गिरफ्तार का लिया गयाफलस्वरूप 5 सितम्बर 1942 को अल्मोड़ा के खुमाड क्षेत्र में एक जनसभा का आयोजन किया गया अंग्रेज़ अधिकारी जॉन्सन द्वारा सभा पर गोलिया चलवा दी, इसमें गंगाराम व खिमदेव शहीद हो गए, गाँधी जी ने इसे दूसरा बारदोली (उत्तराखण्ड का बारदोली) कहा 

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Uttarakhand Current Affairs Jan - Feb 2023 (Hindi Language)
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