Education System of Mauryan Empire

मौर्य साम्राज्य की शिक्षा व्यवस्था (Education System of Mauryan Empire)

शिक्षा व्यवस्था (Education System)

प्राचीन काल से उज्जयिनी शिक्षा का केन्द्र रही है। मौर्य काल मे बौद्धों एवं जैनों के विशिष्ट प्रभाव से शिक्षा व्यवस्था विहारों और मठों में थीं। ब्राह्मण धर्म के लोग अपने पुत्रों को शिक्षा हेतु ऋषि-महर्षियों के आश्रमों में भेजते थे। राज्य शासन की ओर से शिक्षा के केन्द्र बने हुए थे जिनके आचार्यों को राजकोष से वेतन मिलता था। राजा की ओर से वानप्रस्थ आचार्यों को भी आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता था।

उज्जयिनी में सांदीपनि आश्रम शिक्षा का केन्द्र रहा है। यहाँ धर्मशास्त्रों से संबन्धित शिक्षा दी जाती रही। लेकिन इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम बौधायन धर्मसूत्र में उल्लेख मिलता है कि अवन्ति प्रदेश में ब्राह्मण आचार्यों को यात्रा नहीं करना चाहिए। इससे ज्ञात होता है कि जैन और बौद्ध धर्म की शिक्षा के प्रति लोगों का झुकाव अधिक हो गया था। साथ ही अनेक ब्राह्मण परिवारों ने जैनधर्म और बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था।

राजा प्रद्योत के पुरोहित महाकात्यायन ने स्वयं तथागत से प्रभावित हो कर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था और इसके प्रचार-प्रसार हेतु अनेक बौद्ध शिक्षा के केन्द्र खुलवाये थे। इसी परम्परा में मौर्य युग ने इसे और प्रोत्साहन दिया। राज्य द्वारा स्थापित बौद्ध मठों में शिक्षा का प्रमुख विषय गौतम बुद्ध के उपदेश तथा व्याख्यान थे। विद्यार्थियों की रूचि के अनुसार शिक्षा दी जाती थी। 

राजकुमार अशोक, महेन्द्र, संघमित्रा, कुणाल और सम्प्रति ने अपनी शिक्षा उज्जयिनी में प्राप्त की थी जिसकी पुष्टि कालान्तर में ई. सन् सातवीं में ह्वेनसाँग के यात्रा विवरण से होती है। उसने लिखा है कि उज्जयिनी में 300 से अधिक विद्यार्थी हीनयान एवं महायान का अध्ययन करते थे। 

सम्राट् अशोक ने उज्जयिनी में एक महाविद्यालय की स्थापना की थी, जिसमें बौद्ध धर्म, ज्योतिष तथा नक्षत्र विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। दिव्यावदान में उल्लेख है कि उज्जयिनी में प्रभाव डालने वाले उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नगर समृद्धशाली हो जायेगा। अशोक के काल में भारत के ज्योतिषि केन्द्र के रूप में उज्जयिनी प्रसिद्ध हो गई थी। भूमध्य रेखा से याम्योत्तर वृत्त-रेखांशों का परिगणन प्रायः इसी समय से प्रारम्भ हुआ। 

उज्जयिनी प्रमुख रूप से बौद्ध धर्म के थेरवाद शाखा का केन्द्र था। यहाँ भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ बौद्ध धर्म का अध्ययन करते थे और बौद्ध धर्म में निष्णात भिक्षुओं को धर्म प्रचार हेतु विदेशों में भेजा जाता था। अशोक ने बौद्ध धर्म और मानव धर्म की शिक्षा को बिहारों तक ही सीमित नहीं रखा अपितु शिलालेखों तथा अभिलेखों द्वारा बिना गुरु के माध्यम से जन-सामान्य तक पहुँचाने का प्रयास किया। जन-सामान्य की भाषा ही शिक्षा का माध्यम रही है। इस काल में शिक्षा का सम्भवतः उचित प्रबन्ध था और इस समय के बहुत से लोग शिक्षित थे। अशोक ने अपने शिलालेखों में और स्तम्भ लेखों पर जो सिद्धान्त लिखवाए थे वे जन साधारण के लिए ही थे ताकि लोग उन्हें पढ़कर जीवन में उन पर अमल करें।

 

Read Also :

Read Related Posts

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!