मौर्य साम्राज्य की सामाजिक स्थिति (Social Status of Mauryan Empire)
भारत के अन्य क्षेत्रों की सामाजिक व्यवस्था की भांति ही मध्य प्रदेश की परम्परागत सामाजिक व्यवस्था थी। मौर्यकालीन समाज में वर्णाश्रम व्यवस्था और जाति व्यवस्था पूर्णतया विकसित हो गई थी। चारों वर्ण अनेक जातियों में विभक्त थे। जिनके कार्य एवं व्यवसाय परम्परागत ही थे। शिलालेखों से विदित होता है कि समाज में ब्राह्मण एवं क्षत्रिय वर्ग का सम्मान अधिक था। जाति प्रथा का स्वरूप भी बड़ा जटिल था। जातियों में आपसी लेन-देन और खान-पान लगभग समाप्त हो गया था।
मेगस्थनीज ने उस युग के समाज को सात जातियों में विभाजित बताया है, जिसमे दार्शनिक, कृषक, पशुपालक, कारीगर, योद्धा, निरीक्षक और मंत्री थे। वस्तुतः यह विभाजन कार्यों और विभिन्न व्यवसायों के आधार पर सोचा गया था। उस समय मुख्यतया चार वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र थे। इसके अतिरिक्त वर्णसंकर जातियों में अम्बष्ठ, पारसव, सूत, वैदेहक, रथकार, चाण्डाल आदि जातियाँ थी। चाण्डाल नगर के बाहर रहते थे। उज्जयिनी का समीपस्थ चाण्डाल नगर प्रसिद्ध था। अशोक के अभिलेख और बौद्ध साहित्य से प्रकट होता है कि जाति प्रथा और सामाजिक व्यवहार में अभी काफी लचक थी। लोग अपना व्यवसाय बदल सकते थे।
मौर्य साम्राज्य की आर्थिक स्थिति (Economic condition of Mauryan Empire)
मौर्ययुग सम्पन्नता का युग था। राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन और वाणिज्य-व्यापार पर आधारित थी। इनको सम्मलित रूप में ‘वार्ता’ कहा गया है। इनमें कृषि का महत्व सबसे अधिक रहा है क्योंकि देश की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी। इसलिए प्राचीन भारतीय शिक्षणालयों में यह विषय शिक्षा का अनिवार्य अंग था। कृषि व्यवस्था लोक जीवन का आधार ही नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति के विकास का सर्वप्रथम सोपान माना गया है। उसने मानवीय जीवन में स्थायित्वता प्रदान की। मध्य प्रदेश के वर्तमान समय में भी मानव के आर्थिक विकास का मुख्य आधार कृषि ही है।
Read Also : |
---|