अशोक “प्रियदर्शी” (273 - 236 ईसा पूर्व) | TheExamPillar
Ashoka

अशोक “प्रियदर्शी” (273 – 236 ईसा पूर्व)

बिन्दुसार की मृत्यु पश्चात् सुयोग्य पुत्र अशोक (Ashoka) विशाल मौर्य साम्राज्य के राजसिंहासन पर बैठा। वह केवल मौर्य वंश का ही नहीं अपितु भारतीय इतिहास का सबसे महान् सम्राट् माना जाता है।

प्रारम्भिक जीवन – बिन्दुसार की अनेक रानियाँ और पुत्र-पुत्रियाँ थीं। उनके ज्येष्ठपुत्र का नाम सुमन या सुसीम था। बिन्दुसार की सुभद्रांगी नामक एक और रानी थी। इस रानी से बिन्दुसार के दो पुत्र हुए, अशोक (Ashoka) और विगताशोक। अशोक सुसीम से छोटा और शेष भाइयों में सबसे बड़ा था। अशोक का जन्म 294 ई. पूर्व में हुआ था। अशोक बचपन से ही अधिक बुद्धिमान, तेजस्वी, योग्य और प्रतिभावान था। अशोक के स्वभाव के विषय में अनेक उल्लेख मिलते हैं, उसे बौद्ध साहित्य में चण्ड, और क्रोधी राजा के रूप में चित्रित किया गया है। उन बौद्ध ग्रन्थों ने बाद में उसे धम्मराजा, देवानांप्रिय, चण्डाशोक, कालाशोक नाम भी दिए हैं। अशोक द्वारा अपने भाईयों का वध, अशोक नरकागार में अपराधियों का वध आदि के कारण ही संभवतः उसे चण्ड अभिहित किया गया है। पुराणों में ‘अशोकवर्द्धन’, अभिलेखों में ‘देवानामप्रिय’, प्रियदर्शी, दीपवंश में प्रियदर्शी एवं प्रियदर्शन कहा गया है लेकिन मास्की, मध्यप्रदेश के गुजरी अभिलेख एवं कर्नाटक के कनगनहल्ली से प्राप्त अशोक नामांकित उत्कीर्ण प्रतिमा में ‘अशोक’ नाम का उल्लेख मिलता है। ऐसा जान पड़ता है कि उसका प्राथमिक नाम अशोक था, ‘प्रियदर्शी’ व ‘प्रियदर्शन’ उसकी उपाधियाँ थीं। कलिंग युद्ध के पश्चात् जब उसने बौद्ध धर्म अपना लिया तब उसे देवानांप्रिय तथा धम्मराजा सम्बोधन प्राप्त हुए। अशोक ने अपने शिलालेखों में भी स्वतः के लिए धम्मराजा और प्रिय उल्लिखित करवाया है।

साम्राज्य विस्तार – सम्राट् बनने के पश्चात् अशोक ने साम्राज्यवादी नीति को अपनाया। दिग्विजय द्वारा भारत में साम्राज्य का विस्तार करना चाहा। इस हेतु उसने अनेक प्रदेशों पर आक्रमण कर मौर्य साम्राज्य में मिला लिया जिसमें विशेषकर कश्मीर और कलिंग वो राज्य थे जो मौर्य साम्राज्य के बाहर थे। इन विजयों के परिणाम स्वरूप मौर्य साम्राज्य की सीमाएँ उत्तर-पश्चिम में हिन्दुकुश और कश्मीर से लेकर दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक और उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण में मैसूर तक फैल गई थीं। समस्त उत्तरी भारत और मध्य प्रदेश अशोक के साम्राज्य के अन्तर्गत था। उसने भारत के ही नहीं बल्कि विदेशी राज्यों के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किए। 

कलिंगयुद्ध और मध्यप्रदेश (Kalinga war and Madhya Pradesh)

सम्राट अशोक ने अपनी राज्य सीमाओं के विस्तार हेतु 262 – 261 ईसा पूर्व में कलिंग राज्य पर आक्रमण किया। यह मगध राज्य की सीमाओं के पार बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित था। कलिंग की सेना ने वीरता पूर्वक अशोक का सामना किया। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। कलिंग देश के निवासी अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए वीरतापूर्वक लड़े अन्त में विजयश्री अशोक के हाथ लगी। उसने कलिंग को अपने साम्राज्य में मिला लिया। 

इस युद्ध के परिणाम से मध्यप्रदेश भी प्रभावित हुए नहीं रह सका। कारण कि युद्ध में हुए लाखों लोगों के नरसंहार के कारण अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ और उसने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। अब अशोक ने संघर्ष और साम्राज्य विस्तार की नीति त्याग दी। उसने निश्चय किया कि वह भविष्य में राज्य विस्तार के लिए युद्ध न करेगा। भेरिघोष (युद्ध के नगाड़े का शब्द) के स्थान पर अब वह धर्मघोष (धर्म प्रचार की घोषणा) करेगा। सबसे मैत्री और सद्भावना पूर्वक व्यवहार करेगा। अशोक ने केवल स्वयं युद्ध न करने का दृढ़ संकल्प किया, अपितु उसने अपने मित्रों, पुत्रों और पोत्रों को भी युद्ध न करने के आदेश दिए। अब उसकी नीति में युद्ध नीति के स्थान पर धर्म की नीति की विजय हुई। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में अशोक कालीन बौद्धधर्म के पुरावशेष बहुसंख्यक रूप में पाये गये। 

बौद्ध धर्म के प्रभाव से ही अशोक ने अपनी प्रजा को पुत्रवत् समझा, लोक कल्याण के अनेकानेक कार्य किए और अपनी प्रजा को धार्मिक तथा आध्यात्मिक उन्नति करने में तथा उसका नैतिक स्तर अत्याधिक ऊँचा उठाने में उसने राज्य की सारी शक्ति और समस्त साधन लगा दिए। बौद्ध स्तूप, चैत्य, विहार आदि बनवाये जिससे कला को बहुत प्रोत्साहन मिला। इस युग में शांति, अहिंसा, नैतिकता, पवित्रता, सहिष्णुता, उदारता और धर्म प्रचार की प्रधानता रही। देश की अर्थिक समृद्धि, सामाजिक प्रगति और सूत्रधार में वृद्धि हुई।

अशोक की मृत्यु 236 ईसा पूर्व के लगभग हुई। उसके पश्चात् लगभग पचास वर्षों तक उसके कई उत्तराधिकारियों ने शासन किया। पुराणों, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में अशोक के उत्तराधिकारियों की विभिन्न सूचियाँ दी गई हैं लेकिन इन सूचियों के आधार पर मध्यप्रदेश के क्रमिक इतिहास का अध्ययन करना कठिन है।

अशोक के चार पुत्र थे – महेन्द्र, तीवर, कुणाल तथा जालौक। अशोक की मृत्यु पश्चात् मौर्य साम्राज्य का विभाजन हो गया था। महेन्द्र बौद्ध भिक्षु हो गया था। तीवर की मृत्यु हो गई थी। अशोक के राज्यकाल में कुणाल उज्जयिनी का प्रान्तीय शासक था। अशोक ने अपने पुत्र कुणाल की शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध उज्जयिनी में ही किया था। वह अत्यन्त योग्य शासक था। उसने यहाँ का शासन सुचारु रूप से किया। उसके विद्याध्ययन से सम्बन्धित निर्देश अशोक भेजा करता था। वह अत्यन्त सुन्दर और गन्धर्व विद्या में प्रवीण था। बौद्ध और जैन ग्रन्थों में उसे अन्धा चित्रित किया है। उसके अन्धत्व से सम्बन्धित कथाएँ मिलती हैं। एक कथा के अनुसार अशोक की एक अन्य रानी ने द्वेषपूर्व कुणाल की आँखों की ज्योति नष्ट करवा दी थी। इसे जानकर अशोक बहुत दुखित हुआ। उसने अवन्ति प्रदेश के कुछ ग्राम और उनसे प्राप्त कर आदि सभी कुणाल को देने की आज्ञा प्रदान की।

वायुपुराण के अनुसार उज्जैन में अशोक के पुत्र कुणाल ने आठ वर्ष तक राज्य किया। अशोक की मृत्यु पश्चात् वह यहाँ पर प्रान्तीय शासक के रूप में शासन करता रहा। इसके पश्चात् उसका पुत्र सम्प्रति उज्जयिनी का प्रान्तीय शासक हुआ। 

मौर्ययुगीन अन्य शासक

सम्प्रति के पश्चात् पारस्परिक गृहकलह से मौर्य साम्राज्य शिथिल हो गया। उसके उत्तराधिकारी राजकार्य ठीक ढंग से नहीं चला पा रहे थे। सम्प्रति के पश्चात् मौर्य वंश का इतिहास साहित्यिक ग्रन्थों में बहुत ही कम मिलता है। पुराणों और बौद्ध ग्रन्थों में दशरथ (बंधुपालित), शालिशुक, देवशर्मन्, शतधन्वन् तथा बृहद्रथ का नामोल्लेख मिलता है। दशरथ ने नौ वर्षों तक राज्य किया। दशरथ का उत्तराधिकारी शालिशुक था। गार्गी संहिता के युगपुराण में उसके विषय में उल्लेख मिलता है कि उसने धर्म विजय की नीति अपनायी थी। शालिशुक स्वयं भी अच्छा योद्धा था। वह सब धर्मों को आदर देता था। लेकिन उसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती। शालिशुक के उत्तराधिकारी देववर्मन् के साथ तदन्तर शतधन्वन् ने आठ वर्ष राज्य किया। 

मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक बृहद्रथ था। बृहद्रथ भी एक बौद्ध शासक था। उसका सेनापति पुष्यमित्र शुंग अत्यन्त चालाक एवं कुशल प्रशासक था। सम्पूर्ण सेना पुष्यमित्र के हाथों में थी। शासक से रुष्ट होकर सेनापति ने षडयन्त्र पूर्वक सेना के निरीक्षण करते समय राजा बृहद्रथ की 187 ईसा पूर्व में हत्या कर दी। राजा की हत्या के कारण राज्य में विद्रोह नहीं हो सका और इस तरह मौर्य वंश का शासन हमेशा के लिए समाप्त हो गया।

 

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