Lokpal

लोकपाल (Lokpal)

March 19, 2019

वर्तमान में NDA सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में लोकपाल की नियुक्ति कर लिया है, जो मामला कई सालों से लटका हुआ था। इस प्रकार देश को अपना पहला लोकपाल मिलने वाला है। 

विश्व के अधिकांश देशों में जिस संस्था को ऑम्बुड्समैन (Ombudsman) कहा जाता है, उसे हमारे देश में लोकपाल या लोकायुक्त के नाम से जाना जाता है। भारत में लोकपाल या लोकायुक्त नाम 1963 में मशहूर कानूनविद डॉ. एल. एम. सिंघवी ने दिया था। लोकपाल शब्द संस्कृत भाषा के शब्द लोक (लोगों) और पाला (संरक्षक) से बना है।

  • भारत के पहले लोकपाल – सेवानिवृत्त न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष 

भारत में लोकपाल

सन 1967 के मध्य तक लोकपाल संस्था 12 देशों में फैल गई थी। भारत में भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रशासन के खिलाफ नागरिकों की शिकायतों को सुनने एवं प्रशासकीय भ्रष्टाचार रोकने के लिए सर्वप्रथम लोकपाल संस्था की स्थापना का विचार रखा था। जिसे उस समय स्वीकार नहीं किया गया था। भारत में साल 1971 में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया जो पांचवी लोकसभा के भंग हो जाने से पारित नहीं हो सका। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकपाल विधेयक 26 अगस्त 1985 को संसद में पेश किया गया और 30 अगस्त 1985 को संसद में इस विधेयक के प्रारूप को पुनर्विचार के लिए संयुक्त प्रवर समिति को सौंप दिया, जो पारित नहीं हो सका। इसके बाद भी कई बार इसे लोकसभा में पेश किया गया, लेकिन हर बार इसमें किसी न किसी कारण से अड़ंगा लगता रहा। उसके बाद इस बिल को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे ने एक अनशन किया और वो एक बड़ी लड़ाई में तब्दील हो गई। उसके बाद लोकसभा ने 27 दिसंबर, 2011 को लोकपाल विधेयक पास किया। फिर 23 नवंबर 2012 को प्रवर समिति को भेजने का फैसला किया. उसके बाद 17 दिसंबर 2013 को राज्यसभा में लोकसभा विधेयक पारित हुआ।

कौन हो सकता है लोकपाल?

लोकपाल भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या फिर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायधीश या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकते हैं। लोकपाल में अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए। इसके अलावा कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए।

लोकपाल का कार्यकाल

लोकपाल अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने जो भी पहले हो तक के लिए पद पर बने रहेंगे। 

कौन करता है चयन?

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 4(1) के अनुसार, अध्यक्ष एवं सदस्य, राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किए जाएंगे। जिसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे –

  • प्रधानमंत्री – अध्यक्ष
  • लोकसभा अध्यक्ष – सदस्य
  • लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष – सदस्य
  • भारत के मुख्य न्यायधीश या उनके द्वारा नामांकित उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश – सदस्य
  • अध्यक्ष एवं सदस्यों द्वारा अनुशंसित एक प्रख्यात न्यायविद, राष्ट्रपति द्वारा नामांकित – सदस्य

लोकपाल के अधिकार क्षेत्र 

लोकपाल के पास सेना को छोड़कर प्रधानमंत्री से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक किसी भी जन सेवक (किसी भी स्तर का सरकारी अधिकारी, मंत्री, पंचायत सदस्य आदि) के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की सुनवाई का अधिकार होगा। साथ ही वह इन सभी की संपत्ति को कुर्क भी कर सकता है। विशेष परिस्थितियों में लोकपाल को किसी आदमी के खिलाफ अदालती ट्रायल चलाने और 2 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का भी अधिकार होगा। लोकपाल के अधिकार इस प्रकार है –

  • तलाशी और जब्तीकरण।
  • कुछ मामलों में लोकपाल के पास दीवानी अदालत के अधिकार भी होंगे।
  • लोकपाल के पास केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवा का इस्तेमाल करने का अधिकार होगा।
  • संपति को अस्थाई तौर पर अटैच करने का अधिकार।
  • विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीकेसे कमाई गई संपति, आय, प्राप्तियों या फायदों को जब्त करने का अधिकार।
  • भ्रष्टाचार के आरोप वाले सरकारी कर्मचारी के स्थानांतरण या निलंबन की सिफारिश करने का अधिकार।
  • शुरुआती जांच के दौरान उपलब्ध रिकॉर्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए निर्देश देने का अधिकार।
  • अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार।
  • केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए उतनी विशेष अदालतों का गठन करना होगा जितनी लोकपाल बताए।


विदेशों में लोकपाल

भारत में ओम्बुड्समैन (Ombudsman) को लोकपाल के नाम से जाना जाता है। फिनलैंड में 1918 में, डेनमार्क में 1954 में, नार्वे में 1961 में और ब्रिटेन में 1967 में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए लोकपाल की स्थापना की गई। विभिन्न देशों में लोकपाल को विभिन्न नामों से जाना जाता है। इंगलैंड, डेनमार्क और न्यूजीलैंड में इसे संसदीय आयुक्त, सोवियत संघ में ‘वक्ता’ अथवा ‘प्रोसिक्यूटर (Prosecutor)’ के नाम से जानते हैं।

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