नरेन्द्रशाह (Narendra Shah)
- नरेन्द्रशाह का जन्म 3 अगस्त 1898 ई0 को प्रतापनगर में हुआ था।
- अपने पिता की मृत्यु के समय वे अल्पव्यस्क थे। अगस्त 1913 ई0 में वे टिहरी रियासत की गद्दी पर बैठे किन्तु शासन संचालन को लिए उनकी माता डोगरा महारानी नेपालिया की अध्यक्षता में चार सदस्यीय संरक्षक मण्डल की स्थापना की गई।
- नरेन्द्रशाह ने लगभग 27 वर्ष तक शासन किया।
- वन विभाग की उन्नति के लिए उन्होंने विशेष प्रयास किया। अपने राज्य के युवकों को फॉरेस्ट ट्रेनिंग कॉलेज, देहरादून में प्रशिक्षण दिलवाया।
- शिक्षा के क्षेत्र में नरेन्द्रशाह ने कई छोटे-छोटे विद्यालयों की स्थापना की।
- प्रताप हाई स्कूल टिहरी को को उच्चीकृत का प्रताप इण्टरमीडिएट कालेज में तबदील किया।
- इनके द्वारा जनपद गढ़वाल स्थिति लैन्सडाउन स्कूल को रूपये चार हजार और कर्णप्रयाग के स्कूल को तीन हजार रूपये की सहायता दी गई।
- इन्होंने वर्ष 1933 ई0 में अपने पिता की स्मृति में एक लाख रूपये की एकमुश्त रकम एवं छ: हजार रूपये की सालाना राशि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को सहायता के रूप में प्रदान की।
- इसी रकम से स्थापित ‘महाराजा कीर्तिशाह चैम्बर ऑफ केमस्ट्री’ से बी0 एच0 यू0 वर्तमान में भी प्रतिवर्ष यह छात्रवृति प्रदान करता है।
- उन्होनें टिहरी, देवप्रयाग, उत्तरकाशी एवं राजगढ़ी के औषधालयों को उन्नत करने के लिए नवीनतम उपकरणों से युक्त किया।
- नरेन्द्रनगर में एक चिकित्सालय और ड़ियार एवं पुरोला में दवाखाने की व्यवस्था की।
- मध्यकालीन शासक शेरशाह की तरह सड़क निर्माण के कार्यों में रूचि ली एवं राजधानी नरेन्द्रनगर को सड़क मार्ग से मेदानी क्षेत्रों से जोड़ा।
- नरेन्द्रशाह ने नरेन्द्रनगर से मुनि की रेती, मुनि की रेती से गंगा नदी के बाएं तट पर देवप्रयाग होते कीर्तिनगर तक और नरेन्द्रनगर से पुरानी टिहरी तक सड़कों का निर्माण करवाया था।
- वर्ष 1921 में उन्होंने अपने नाम पर नरेन्द्रनगर की स्थापना की जिसे 1925 ई0 में टिहरी रियासत की नई राजधानी बनाया गया।
- उनके प्रयासों, सुधारों की प्रवृत्ति को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने उन्हें अठारहवीं गढ़वाल राईफल रेजीमेण्ट का मानद लेफ्टिीनैण्ट एवं के0सी0एम0आई0′ की उपाधियों से भी अंलकृत किया।
- बनारस विश्वविद्यालय ने भी इन्हें वर्ष 1937 ई0 में एल0एल0डी0 उपाधि प्रदान की।
- नरेन्द्रशाह की योग्यता पर उनके काल की दो घटनाएँ प्रश्न उठाती है।
- प्रथम घटना वर्ष 1930 में यमुना नदी तट पर स्थित तिलाड़ी मैदान की घटना है जिसे रवांई कांड के नाम से जाना जाता है एवं
- दूसरी घटना टिहरी कारागार में बन्दी श्रीदेव सुमन की चौरासी दिनों तक की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु का मामला है।
यद्यपि यह भी स्पष्ट है कि इन दोनों ही घटनाओं के समय नरेन्द्रशाह अपनी रियासत से बाहर थे। तिलाड़ी कांड की घटना से पूर्व नरेन्द्रशाह यूरोप की यात्रा पर थे। श्रीदेव सुमन के बलिदान के अवसर पर वे नरेन्द्रमण्डल की बैठक में भाग लेने मुम्बई गए थे। यद्यपि जाने से पूर्व वे अपने अधीनस्थों को सुमनजी को मुक्त करने का आदेश दे गए थे। स्वयं सुमन जी महाराज नरेन्द्रशाह का बड़ा सम्मान करते थे।
- नरेन्द्रशाह ने वर्ष 1948 ई0 में स्वयं गद्दी का परित्याग कर दिया।
- उनके पश्चात् उनका पुत्र मानवेन्द्र गद्दी पर बैठा।
- नरेन्द्रशाह की वर्ष 1950 ई0 में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु से पूर्व टिहरी रियासत का भारत में विलय कर दिया गया था।