हंटर कमीशन (1882-83)

हंटर कमीशन 1882 – 83
(Hunter Commission 1882-83)

1854 के घोषणा-पत्र से शिक्षा के क्षेत्र में जितनी प्रगति की आशा की जाती थी, वास्तव में उतनी न हो सकी। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अदृश्य कुछ माध्यमिक विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी, परन्तु प्राथमिक शिक्षा के लिए कुछ भी नहीं किया गया। भारत पहुँचने पर लॉर्ड रिपन ने 3 फरवरी 1882 को गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी के सदस्य विलियम हण्टर की अधीनता में “भारतीय शिक्षा आयोग” की नियुक्ति की। इसी कारण इसे हंटर कमीशन कहा जाता है। यद्यपि उसका लक्ष्य प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिए सुझाव प्रस्तुत करना था, परन्तु उसने उच्च शिक्षा के लिए भी सुझाव दिये। मार्च, 1883 में हंटर कमीशन (Hunter Commission) ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें भारतीय शिक्षा के विषय में महत्त्वपूर्ण सुझाव रखे ।

इसने यह सलाह दी, कि देशी भाषाओं की शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जाए और शिक्षा-प्रसार के लिए वैयक्तिक प्रयत्नों और व्यवस्था पर अधिक निर्भर रहा जाये – 

  1. प्राथमिक शिक्षा के विकास और सुधार पर सरकार को ध्यान देना चाहिए । प्राथमिक शिक्षा देशी भाषाओं में होनी चाहिए। स्थानीय जिला परिषदों और नगर पालिकाओं की देखरेख में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए । 
  2. माध्यमिक शिक्षा दो प्रकार की होनी चाहिए – साहित्यिक जो अध्ययनशील उच्च शिक्षा के लिए छात्र तैयार करे तथा दूसरी व्यावसायिक जो छात्रों को जीवनयापन के लिए प्रशिक्षित करे । 
  3. शिक्षा के क्षेत्र में सरकार निजी प्रयत्नों को प्रोत्साहन तथा अनुदान देकर प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा को निजी उपक्रम बनाने का प्रयास करे । 
  4. सरकार को उच्च शिक्षण-संस्थानों के प्रत्यक्ष संचालन तथा प्रबंधन से अपना हाथ धीरे-धीरे हटा लेना चाहिए | इसके स्थान पर सरकार द्वारा कॉलेजों तथा माध्यमिक स्कूलों के लिए वित्तीय सहायता तथा विशेष अनुदान की व्यवस्था की जानी चाहिए । 
  5. कॉलेजों और माध्यमिक स्कूलों की स्थापना मुख्यतया सामाजिक संस्थाओं और व्यक्तिगत प्रयत्नों के दवारा की जानी चाहिए । सरकार उन पर नियंत्रण रखे और उन्हें आर्थिक सहायता दे । 
  6. स्त्री शिक्षा पर बल देना चाहिए ।
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अगले बीस वर्षों में भारत में शिक्षा का अभूतपूर्व विस्तार हुआ । इसी समय में ऐसे विश्वविद्यालय स्थापित हुए जो केवल परीक्षा ही नहीं लेते थे बल्कि जहाँ शिक्षा की व्यवस्था भी की गयी। 1882 में पंजाब विश्वविद्यालय और 1885 में लाहौर में दयानन्द कॉलेज के आधार पर ही देश भर में अनेक कॉलेजों की स्थापना हुई। 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय, श्रीमती एनी बेसेन्ट ने 1898 ई. में बनारस में हिन्दू कॉलेज का निर्माण करवाया जो आगे चलकर हिन्दू विश्वविदयालय के रूप में परिणित हुआ। परन्तु प्राथमिक शिक्षा पर सरकार ने अधिक ध्यान नहीं दिया। इस प्रकार 1902 तक पाँच विश्वविद्यालय तथा कॉलेजों की संख्या 194 हो गयी थी जिसमें बारह कॉलेज महिलाओं के लिए भी थे ।

भारतीय शिक्षा आयोग, भारतीय शिक्षा के इतिहास में प्रथम आयोग नियुक्त हुआ था जिसने शिक्षा की जाँच नियमित ढंग से की और अपने सुझाव देकर शिक्षा की एक निश्चित नीति का सूत्रपात किया । भारत सरकार ने हंटर कमीशन की अधिकांश सिफारिशें स्वीकार कर ली ।

 

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