भारत के गवर्नर जनरल (Governor General of India) | TheExamPillar
Governor General of India

भारत के गवर्नर जनरल (Governor General of India)

भारत के गवर्नर जनरल (Governor General of India) भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश राज का प्रधान पद था। भारतीय उपमहाद्वीप में गवर्नर जनरल का पद 1828 – 1858 तक रहा था।

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भारत के गवर्नर जनरल (Governor General of India)

लॉर्ड विलियम बैंटिक (Lord William Bentinck)

कार्यकाल – 1828 – 35 ई.

  • लॉर्ड विलियम बैंटिक ने 1828 ई. में बंगाल के गवर्नर – जनरल का कार्यभार सँभाला। बैंटिक को भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल का पद सुशोभित करने का गौरव प्राप्त है।
  • इसके पूर्व वह 1803 ई. में मद्रास का गवर्नर नियुक्त किया गया था। 
  • 1806 ई. में उसने सैनिकों के माथे पर जातीय चिहन लगाने और कानों में बालियाँ पहनने पर रोक लगा दी थी, जिससे वेल्लोर में प्रथम धार्मिक सैनिक विद्रोह हुआ। बैंटिक अपनी विजय के कारण नहीं, बल्कि सामाजिक सुधारों के लिए याद किया जाता है।

सामाजिक सुधार (Social Reform)

  • सती तथा ठगी-प्रथा का अन्त बैंटिक ने सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाकर दिसम्बर, 1829 ई. में धारा XVII द्वारा विधवाओं के सती होने को अवैध घोषित किया।
  • प्रारम्भ में यह कानून केवल बंगाल प्रेसीडेन्सी में लागू किया गया था, पर 1830 ई. में इसे बम्बई एवं मद्रास प्रेसीडेन्सियों में भी लागू किया गया। 
  • ठगी प्रथा की समाप्ति के लिए बैंटिक ने कर्नल स्लीमन की नियुक्ति की। 1830 ई. तक ठगी प्रथा का अन्त हो गया। 

नरबलि व शिशु हत्या पर प्रतिबन्ध (Ban on Cannibalism and Infanticide)

  • बैंटिक ने नरबलि तथा राजपूतों में लड़कियों की शिशु-हत्या पर भी प्रतिबन्ध लगाया। 

सरकारी सेवाओं में भेदभाव का अन्त (End of Discrimination in Government Services)

  • बैंटिक ने सरकारी सेवाओं में भेदभावपूर्ण व्यवहार को खत्म करने के लिए 1833 ई. के एक्ट की धारा 87 के अनुसार जाति या रंग के स्थान पर योग्यता को ही सेवा का आधार माना तथा कम्पनी के अधीनस्थ किसी भी भारतीय नागरिक को “उसके धर्म, जन्मस्थान, जाति अथवा रंग” के आधार पर किसी पद से वंचित नहीं रखा जा सकेगा; यह बात स्वीकार की गई। 

समाचार-पत्रों के प्रति उदार नीति (Liberal Policy towards Newspapers) 

  • सामाचार-पत्रों के प्रति बैंटिक की नीति उदार थी। वह इसे असन्तोष से रक्षा का अभिद्वार मानता था। 
  • उसके भत्ता बन्द करने तथा अन्य वित्तीय सुधारों पर समाचार-पत्रों में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। इस पर भी वह उनकी स्वतन्त्रता के पक्ष में ही रहा। 

न्यायिक सुधार (Judicial Reform)

  • न्याय सम्बन्धी सुधारों के कार्य में सर चार्ल्स मैटकॉफ, बटरवर्थ, बेली तथा हाल्ट मैकेंजी ने बैंटिक की मदद की। 

वित्तीय सुधार (Financial Reform)

  • वित्तीय सुधारों के परिणामस्वरूप नवम्बर, 1828 ई. में एक आदेश प्रकाशित किया गया जिसके द्वारा कलकत्ता के चार सौ मील के क्षेत्रों में भत्तों में 50% की कटौती की गई। 
  • बंगाल में भू-राजस्व को एकत्र करने के क्षेत्र में प्रभावकारी प्रयास किए गए। 
  • रॉबर्ट मार्टिन्स बर्ड के निरीक्षण में पश्चिमोत्तर प्रान्त में ऐसी भू-कर की व्यवस्था की गई, जिससे अधिक कर एकत्र होने लगा। 
  • अफीम के व्यापार को नियमित करते हुए इसे केवल बम्बई बन्दरगाह से निर्यात की सुविधा दी गई, इसका परिणाम यह हुआ कि कम्पनी को निर्यात कर का भी भाग मिलने लगा, जिससे उसके राजस्व में वृद्धि हुई। 
  • बैंटिक ने लोहे तथा कोयले के उत्पादन, चाय तथा कॉफी के बगीचों तथा नहरों की परियोजनाओं को भी प्रोत्साहन दिया।

शिक्षा सम्बन्धी सुधार (Education Reform)

  • 1835 में एक प्रस्ताव द्वारा विलियम बैंटिक ने घोषणा की “ब्रिटिश सरकार का प्रमुख उद्देश्य भारतीयों में साहित्य तथा विज्ञान की उन्नति करना होना चाहिए तथा शिक्षा के लिए स्वीकृत धन का व्यय सर्वोत्तम रूप से केवल अंग्रेजी शिक्षा पर ही होना चाहिए।”
  • इस प्रकार अंग्रेजी को भारत में उच्च शिक्षा का माध्यम मान लिया गया। 1835 ई. में बँटिक ने कलकत्ता में मेडिकल कॉलेज की नींव रखी। 

सार्वजनिक सुधार के कार्य (Public Improvement Works)

  • लॉर्ड मिण्टो के समय में प्रारम्भ की गई सिंचाई योजनाओं को विलियम बैंण्टिक के समय में कार्यान्वित किया गया। 
  • उत्तर-पश्चिमी प्रान्त में जल को बाँटने के सम्बन्ध में नहरें खोदी गईं। 
  • सड़कों में सुधार किया गया। 
  • कलकत्ता से दिल्ली तक की जी.टी. रोड की मरम्मत व बम्बई से आगरा तक एक सड़क बनाने का कार्य आरम्भ हुआ। 

भारतीय रियासतों के प्रति नीति (Indian States Policy)

बँटिक ने रियासतों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति अपनाई, परन्तु कुछ रियासतों में अव्यवस्था का आरोप लगाकर बैंटिक ने 1831 ई. में मैसूर 1834 ई. में कुर्ग तथा कछार की रियासतों को अपने प्रदेश में मिला लिया। 

  • हैदराबाद, बूंदी, जोधपुर, कोटा तथा भोपाल में बैंटिक ने अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया था। इस काल में आगरा एक नई प्रेसीडेन्सी बनी तथा यहाँ एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई। 
  • इसने डिविजनल कमिश्नर (मण्डलायुक्त) की नियुक्ति की।

सर चार्ल्स मैटकॉफ (Sir Charles Matcof)

कार्यकाल – 1835 – 36 ई.

  • मेटकॉफ ने ही 1809 ई. में रणजीत सिंह के साथ अमृतसर सन्धि से सम्बन्धित बातचीत की थी। 
  • मात्र एक वर्ष तक भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर कार्य करने वाले चार्ल्स मैटकॉफ को प्रेस पर से नियन्त्रण हटाने के लिए याद किया जाता है। समाचार-पत्रों पर से प्रतिबन्ध हटाने के कारण उसे समाचार-पत्रों के मुक्तिदाता के रूप में जाना जाता है।

लॉर्ड ऑकलैण्ड (Lord Auckland)

कार्यकाल – 1836 – 42 ई.

  • 1836 ई. में लॉर्ड ऑकलैण्ड भारत का गवर्नर-जनरल बनकर आया। 
  • इसके शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना प्रथम अफगान युद्ध था। 
  • प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध (1839 – 42 ई.) में अंग्रेजों को भारी क्षति हुई। 
  • अफगानिस्तान की समस्या के समाधान के लिए शाहशुजा, रणजीत सिंह व अंग्रेजों के बीच एक त्रिपक्षीय सन्धि (1838 ई.) हुई। इस सन्धि के द्वारा शाहशुजा को अफगानिस्तान की गद्दी पर बैठाया जाना तय हुआ, परन्तु बाद में रणजीत सिंह इस सन्धि से अलग हो गए। 
  • लॉर्ड ऑकलैण्ड ने भारत के विभिन्न सरकारी स्कूलों में अनेक छात्रवृत्तियां प्रारम्भ की, उसने बम्बई तथा मद्रास में मेडिकल स्कूल स्थापित किए। 
  • 1839 ई. में ऑकलैण्ड ने कलकत्ता से दिल्ली तक जी.टी. रोड का निर्माण शुरू करवाया तथा इसी के समय में ‘शेरशाह सूरी मार्ग’ का नाम बदलकर जी. टी. रोड (ग्राण्ड ट्रंक रोड) रख दिया गया। 
  • ऑकलैण्ड ने दोआब में सिंचाई की एक विस्तृत योजना को स्वीकृति दी। 
  • अवध के साथ सन्धि की, परन्तु ब्रिटिश सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया और उसे वापस बुला लिया।

लॉर्ड एलनबरो (Lord Ellenborough)

कार्यकाल – 1842 – 44 ई.

  • लॉर्ड एलनबरो की 1842 ई. में भारत में गवर्नर जनरल के पद पर नियुक्ति हुई।
  • भारत में आने से पूर्व उसने कम्पनी के नियन्त्रक बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। एलनबरो के समय में सर चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में 1843 ई. में सिन्ध का विलय किया गया।
  • एलनबरो का कार्यकाल कुशल अकर्मण्यता की नीति का काल कहा जाता है।
  • एलनबरो ने 1843 ई. के अधिनियम 5 द्वारा दास प्रथा का अन्त कर दिया

लॉर्ड हॉर्डिंग (Lord Hardinge)

कार्यकाल – 1844 – 48 ई.

  • भारत में गर्वनर-जनरल के रूप में आने से पूर्व लॉर्ड हॉर्डिंग 20 वर्षों तक पार्लियामेण्ट में रहा था। 
  • वह द्वीप पेनिनसुलर युद्ध का नायक था तथा वाटरलू की लड़ाई में भी उसने भाग लिया था। 
  • लॉर्ड हॉर्डिंग के शासनकाल की सबसे मुख्य घटना प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध थी। यह युद्ध दिसम्बर, 1845 ई. में प्रारम्भ हुआ, जिसमें चार लड़ाइयाँ मुदकी, फिरोजशाह, बद्दोवल व आलीवाल में हुई, परन्तु सबरॉव की लड़ाई में सिख हार गए तथा युद्ध की समाप्ति लाहौर की सन्धि (1846 ई.) से हुई। इस युद्ध का परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा व हेनरी लॉरेन्स को रेजीडेण्ट के रूप में नियुक्त किया गया और अंग्रेजों ने अपना साम्राज्य जालन्धर से पंजाब तक विस्तृत कर लिया।
  • लॉर्ड हॉडिंग ने अपने सुधारों में नमक-कर कम कर दिया तथा बहुत-से चुंगी कर हटा दिए। अनियन्त्रित व्यापार को प्रोत्साहन दिया तथा देसी रियासतों का अपनी-अपनी सीमाओं में सती-प्रथा खत्म करने को कहा। 
  • गोण्ड एवं मध्य भारत में मानव बलि प्रथा का दमन तथा हत्या पर रोक हॉर्डिंग के काल की महत्वपूर्ण घटना थी

लॉर्ड डलहौजी (Lord Dalhousie)

कार्यकाल – 1848 – 56 ई.

  • लॉर्ड डलहौजी 36 वर्ष की आयु में गवर्नर-जनरल के रूप में भारत आया था। 
  • भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को बढ़ाने के लिए उसने यथा सम्भव कार्य किया। 
  • उसने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त (Doctrine of Lapse) के आधार पर अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार करते हुए अनेक महत्वपूर्ण सुधारात्मक कार्यों को भी सम्पन्न किया। 

पंजाब का विलय (Merger of Punjab) 

  • द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848 ई.) डलहौजी के समय में हुआ। 
  • सिख पूर्ण रूप से पराजित हुए तथा पंजाब को अंग्रेजी राज्य में 1849 ई. में मिला लिया गया। 

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध (Second Anglo-Burma War)

  • लॉर्ड डलहौजी के समय में फॉक्स युद्धपोत के अधिकारी कामेडोर लैम्बर्ट को रंगून भेजा गया और द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया, जिसका परिणाम बर्मा की हार था तथा लोअर बर्मा एवं पीगू का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय (1852 ई.) कर लिया गया।

सिक्किम का विलय (Merger of Sikkim)

  • यह नेपाल और भूटान राज्यों के बीच एक छोटा-सा राज्य था, जिसमें दार्जिलिंग भी सम्मिलित था। 
  • इसे 1850 ई. में अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। 

व्यपगत का सिद्धान्त (Theory of Lapse)

डलहौजी का शासनकाल व्यपगत सिद्धान्त के कई मामलों को लागू करने के लिए प्रसिद्ध है। 

  • इस सिद्धान्त का मूल आधार यह था कि चूँकि अंग्रेजी कम्पनी भारत में सबसे बड़ी शक्ति है। इसलिए अधीन रियासतों अथवा राज्यों को उसकी स्वीकृति के बिना किसी को गोद लेने का अधिकार नहीं था तथा कम्पनी को यह अधिकार प्राप्त था कि वह जब चाहे इस प्रकार की स्वीकृति को लौटा ले। 
  • डलहौजी ने तत्कालीन रजवाड़ों को तीन भागों में बाँटा है : – 
    • वे रजवाड़े जो न ही किसी को कर देते थे तथा न ही किसी के नियन्त्रण में थे तथा बिना अंग्रेजी हस्तक्षेप के गोद ले सकते थे।
    • वे रजवाड़े जो पहले मुगलों एवं पेशवाओं के अधीन थे, परन्तु इसके समय में अंग्रेजों के अधीन थे, उन्हें गोद लेने से पहले अंग्रेजों से अनुमति लेना आवश्यक था।
    • वे रियासतें जिनका निर्माण स्वयं अंग्रेजों ने किया था। उन्हें गोद लेने का अधिकार नहीं था। अपने व्यपगत सिद्धान्त का पालन करते हुए डलहौजी ने 1848 ई. में सतारा, 1849 ई. में जैतपुर तथा सम्बलपुर, 1850 ई. में बघाट, 1852 ई. में उदयपुर, 1853 ई. में झाँसी, 1854 ई. में नागपुर को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। 
  • 1856 ई. में अवध को (आउटम रिपोर्ट के आधार पर कुशासन के आरोप में) तथा 1853 ई. में बकाया धनराशि वसूलने के लिए बराड़ को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms)

  • डलहौजी ने प्रशासनिक सुधारों के अन्तर्गत भारत के गवर्नर-जनरल के कार्यभार को कम करने के लिए बंगाल के एक लेफ्टिनेण्ट गवर्नर की नियुक्ति की व्यवस्था की। 
  • उन नए प्रदेशों को जिन्हें हाल ही में ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया था, के लिए डलहौजी ने सीधे प्रशासन की व्यवस्था प्रारम्भ की जिसे नॉन-रेगूलेशन प्रणाली कहा जाता है। 
  • इसके अन्तर्गत ही प्रदेशों में नियुक्त कमिश्नरों को प्रत्यक्ष रूप से गवर्नर-जनरल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। 

सैन्य सुधार (Military Reform)

  • सैन्य सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने कलकत्ता में स्थित तोपखाने का कार्यालय मेरठ में तथा सेना का मुख्य कार्यालय शिमला में स्थापित किया। 
  • उसने पंजाब में नई अनियमित सेना का गठन एवं गोरखा रेजीमेण्ट के सैनिकों की संख्या में वृद्धि की। 
  • डलहौजी के समय भारतीय सेना एवं अंग्रेजी सेना का अनुपात (6 : 1) था। 

शिक्षा सम्बन्धी सुधार (Educational Reform)

  • 1854 ई. का चार्ल्स वुड का डिस्पैच जो विश्वविद्यालयी शिक्षा से सम्बन्धित था, डलहौजी के समय में पारित हुआ। इसी तरह प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी स्तर की शिक्षा के लिए एक व्यापक योजना बनाई गई। 

रेल एवं तार (Rail and Tar)

  • डलहौजी ने तार तथा रेल विभाग को अत्यन्त महत्व दिया। उसने रेलों के निर्माण के सम्बन्ध में अंग्रेजी निगमों के साथ ठेकों का निश्चय किया। 
  • उसके काल में भारत में 1853 ई. में प्रथम रेलवे लाइन बम्बई से थाणे व दूसरी रेलवे लाइन 1854 ई. में कलकत्ता से रानीगंज के बीच बिछाई गई। (ब्रिटेन में 1825 ई. से ही रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थीं) 
  • डलहौजी के ही काल में प्रथम विद्युत तार सेवा कलकत्ता से आगरा के बीच प्रारम्भ हुई

डाक सुधार (Postal Reform)

  • आधुनिक काल की डाक व्यवस्था का आधार भी डलहौजी के काल में ही निश्चित किया गया। 
  • डलहौजी ने डाक विभाग में सुधार करते हुए 1854 ई. में नया पोस्ट ऑफिस एक्ट पास किया। 
  • इस एक्ट के अन्तर्गत तीनों प्रेसीडेन्सियों में एक-एक महानिदेशक नियुक्त करने की व्यवस्था की गई। 
  • देश में पहली बार डाक टिकटों का प्रचलन आरम्भ हुआ। अब डाक विभाग आय का एक स्रोत बन गया। 

वाणिज्यिक सुधार (Commercial Reform)

  • वाणिज्यिक सुधार के अन्तर्गत डलहौजी ने खुले व्यापार की नीति का अनुसरण किया तथा भारत के बन्दरगाहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया।
  • कराची, बम्बई, कलकत्ता के बन्दरगाहों का विकास किया गया। 

सार्वजनिक निर्माण विभाग (Public Works Department)

  • डलहौजी से पूर्व फौजी सदस्य ही सार्वजनिक निर्माण कार्य के उत्तरदायी थे। 
  • नागरिक विभाग के कार्यों की उपेक्षा होती थी। 
  • डलहौजी ने पहली बार एक सार्वजनिक निर्माण विभाग बनाया। 
  • गंगा नहर का निर्माण कर 8 अप्रैल, 1854 ई. को उसे सिंचाई के लिए खोल दिया गया
  • डलहौजी ने जी.टी. रोड का निर्माण कार्य भी पुन: शुरू करवाया। 
  • पंजाब में बारी दोआब नहर का निर्माण कार्य आरम्भ किया गया। 
  • संथाल विद्रोह (1855 – 56 ई.) इसके काल की महत्वपूर्ण घटना है।
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1 Comment

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    thanks

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