Economic Survey 2018-19

आर्थिक समीक्षा 2018 -19 (Economic Survey 2018-19)

सतत विकास और जलवायु परिवर्तन

  • भारत का एसडीजी सूचकांक अंक राज्यों के लिए 42 से 69 के बीच और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 57 से 68 के बीच है।
  • राज्यों में 69 अंकों के साथ केरल और हिमाचल प्रदेश सबसे आगे है।
  • केन्द्रशासित प्रदेशों में चंडीगढ़ और पुद्दुचेरी क्रमशः 68 और 65 अंकों के साथ सबसे आगे हैं।
  • नामामि गंगे मिशन को एसडीजी-6 को हासिल करने के लिए नीतिगत प्राथमिकता के आधार पर लॉन्च किया गया था। इस कार्यक्रम के लिए 2015-20 की अवधि के लिए 20,000 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन किया गया था।
  • एसडीजी को हासिल करने के लिए संसाधन दक्षता पर राष्ट्रीय नीति का सुझाव दिया गया था।
  • 2019 में पूरे देश के लिए एमसीएपी कार्यक्रम लॉन्च किया गया। इसका उद्देश्य है 
  • वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कम करना।
  • पूरे देश में वायु की गुणवत्ता के निगरानी नेटवर्क को मजबूत करना।
  • 2018 में कटोविस, पौलेंड में आयोजित सीओपी-24 की उपलब्धियां
  • विकसित और विकासशील देशों के लिए विभिन्न शुरुआती बिंदुओं (स्टार्टिंग पाइंट) की पहचान।
  • विकासशील देशों के प्रति रुख में लचीलापन।
  • समानता व साझा परन्तु पृथक जिम्मेदारी और कार्यक्षमता सहित सिद्धांतों पर विचार।
  • पेरिस समझौता जलवायु वित्त की भूमिका पर जोर देता है जिसके बिना प्रस्तावित एनडीसी का लाभ नहीं मिल सकता।
  • अंतर-राष्ट्रीय समुदाय ने अनुभव किया कि विकसित देश जलवायु वित्त प्रवाह के बारे में विभिन्न दावे कर रहे हैं। परन्तु वास्तविकता में वित्त प्रवाह इन दावों से काफी कम है।
  • भारत के एनडीसी को लागू करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों के वित्तीय सहायता के साथ घरेलू बजटीय सहायता की भी आवश्यकता हैं।    

विदेशी क्षेत्र

  • डब्ल्यूटीओ के अनुसार विश्व व्यापार का विकास 2017 के 4.6 प्रतिशत की तुलना में 2018 में कम होकर 3 प्रतिशत रह गया है। कारण :
    • नई और बदला लेने की प्रवृत्ति से प्रेरित टैरिफ उपाय।
    • यूएस-चीन के बीच व्यापार तनाव में बढ़ोत्तरी।
    • कमजोर वैश्विक आर्थिक विकास।
    • वित्तीय बाजार में अनिश्चितता (डब्ल्यूटीओ)।
  •  भारतीय मुद्रा के संदर्भ में रुपये के अवमूल्यन के कारण जहां 2018-19 के दौरान निर्यात में वृद्धि दर्ज की गई, वहीं आयात में कमी आई।
  • 2018-19 के अप्रैल-दिसंबर के दौरान कुल पूंजी प्रवाह मध्यम स्तर का रहा जबकि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के प्रवाह में तेजी रही। इसका कारण पोर्टफोलियो निवेश के अंतर्गत निकासी की उच्च मात्रा रही।
  • दिसंबर, 2018 तक भारत का विदेशी ऋण 521.1 बिलियन डॉलर था। यह मार्च, 2018 के स्तर से 1.6 प्रतिशत कम है।
  • विदेशी ऋण के संकेतक बताते हैं कि भारत का विदेशी ऋण दीर्घावधि का नहीं है।
  • कुल देयताएं और जीडीपी का अनुपात (ऋण और गैर-ऋण घटकों के समावेश के साथ)  2015 के 45 प्रतिशत से कम होकर 2018 में 38 प्रतिशत हो गया है।
  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की हिस्सेदारी बढ़ी है और कुल देयताओं में कुल पोर्टफोलियो निवेश में कमी आई है। यह दिखाता है कि चालू खाते के घाटे को धन उपलब्ध कराने के लिए अधिक स्थिर स्रोतों की ओर स्थानांतरण हुआ है।

2017-18 के दौरान भारतीय रुपये का मूल्य प्रति डॉलर 65-68 रुपये था। परन्तु अवमूल्यन के साथ भारतीय रुपये का मूल्य 2018-19 के दौरान प्रति डॉलर 70-74 रुपये हो गया।

  • आयात की क्रय क्षमता को दर्शाने वाले रूझानों में लगातार तीव्र बढ़ोतरी हो रही है। ऐसा शायद इसलिए संभव हुआ है क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों में भारत के निर्यात की तुलना में अभी भी तेजी नही आई है।
  • 2018-19 में विनिमय दर में पिछले वर्ष की तुलना में ज्यादा उतार-चढ़ा रहा। ऐसा कच्चे तेल की कीमतों में हलचल की वजह से हुआ।
  • 2018-19 में भारत के निर्यात आयात बास्केट का स्वरूप
  • निर्यात (पुनर्निर्यात सहित): 23,07,663 करोड़ रुपये
  • आयातः 35,94,373 करोड़ रुपये
  • सबसे ज्यादा निर्यात वाली वस्तुओं में पेट्रोलियम उत्पाद, कीमती पत्थर, दवाएं के नुस्खे, स्वर्ण और अन्य कीमती धातु शामिल रहीं।
  • सबसे ज्यादा आयात वाली वस्तुओं में कच्चा तेल, मोती, कीमती पत्थर तथा सोना शामिल रहा।
  • भारत के मुख्य व्यापार साझेदारों में अमेरिका, चीन, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात और सउदी अरब शामिल रहे।
  • भारत ने 2018-19 में विभिन्न देशों/देशों के समूह के साथ 28 द्विपक्षीय, बहु-पक्षीय समझौते किए।
  • इन देशों को कुल 121.7 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया, जोकि भारत के कुल निर्यात का 36.9 प्रतिशत था।
  • इन देशों से कुल 266.9 अरब डॉलर मूल्य का आयात हुआ, जो भारत के कुल आयात का 52.0 प्रतिशत रहा।

कृषि और खाद्य प्रबंधन

  • देश के कृषि क्षेत्र में चक्रवार विकास होता है।
  • सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) 2014-15 में देश के कृषि क्षेत्र ने 0.2 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि से उबरकर 2016-17 में 6.3 प्रतिशत की विकास दर हासिल की, लेकिन 2018-19 में यह घटकर 2.9 प्रतिशत पर आ गई।
  • सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) 2017-18 में कृषि क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण 15.2 प्रतिशत घटा। 2016-17 में यह 15.6प्रतिशत रहा था।
  • कृषि में 2016-17 के दौरान  सार्वजनिक क्षेत्र का जीसीएफ जीवीए के प्रतिशत के रूप में 2.7 प्रतिशत बढ़ा। 2013-14 में यह 2.1 प्रतिशत के स्तर पर था। 
  • कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 2005-06 के अवधि के 11.7 प्रतिशत की तुलना में 2015-16 में बढ़कर 13.9प्रतिशत हो गई। छोटे और सीमांत किसानों में ऐसी महिलाओं की संख्या 28 प्रतिशत रही।
  • छोटे और सीमांत किसानों में भूमि स्वामित्व वाले परिचालन वाली खेती के मामलों में बदलाव देखा गया।
  • 89 प्रतिशत भू-जल का इस्तेमाल सिंचाई कार्य के लिए किया गया है। ऐसे में भूमि की उत्पादकता से अधिक ध्यान सिंचाई के लिए जल की उत्पादकता पर दिया जाना चाहिए।
  • उर्वरकों के प्रभाव का अनुमात लगातार घट रहा है। जीरो बजट सहित जैविक और प्राकृतिक खेती की तकनीक सिंचाई जल के तर्कसंगत इस्तेमाल और मिट्ठी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
  • लघु और सीमांत किसानों के बीच संसाधनों के इस्तेमाल को अधिर न्याय संगत बनाने के लिए आईसीटी को लागू करना और कस्टम हायरिंग सेंटर के जरिए सक्षम प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ावा देना जरूरी।
  • कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के समग्र और सतत विकास के लिए आजीविकाओं के संसाधनों का वैविधिकरण। इसके लिए नीतियों में इन बातों पर ध्यान देना होगाः-
  • दुनिया में दुध के सबसे बड़े उत्पादक देश भारत में डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा।
  • पशु धन का विकास।
  • दुनिया में मछलियों के दूसरे बड़े उत्पादक देश भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र को बढ़ावा देना।

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