कर्जन की शिक्षा नीति

कर्जन की शिक्षा नीति
(Curzon’s Education Policy)

भारतीय शिक्षा के इतिहास में लॉर्ड कर्जन (Lord Curzon) का काल महत्वपूर्ण है। कर्जन विद्वान, कुशल प्रशासक तथा पाश्चात्य सभ्यता का परम भक्त था। शिक्षा में स्वतंत्रता एवं विस्तार की नीति का कर्जन विरोधी था। उसका विश्वास था कि शिक्षा का स्तर उँचा करने के लिए शिक्षण संस्थाओं पर सरकार का अधिक से अधिक कठोर नियंत्रण होना चाहिए एवं प्राइमरी शिक्षा पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

कर्जन का विचार था कि भारत की शिक्षा-संस्थाएँ मुख्यतया विश्वविद्यालय राजनीतिक दलबन्दियों अथवा षडयत्रों के केन्द्र बन गये थे। निश्चय ही शिक्षित भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रादुर्भाव हो गया था ओर वे ही अंग्रेजी साम्राज्यवाद के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते थे। इस कारण कर्जन का मुख्य आशय शिक्षा-संस्थाओं को सरकारी नियंत्रण में लेकर भारतीयों की राजनीतिक गतिविधियों को दुर्बल करने का था। 

कर्जन ने 1901 मे शिमला में सरकारी शिक्षा अधिकारियों और विश्वविदयालयों के प्रतिनिधियों की एक सभा बुलाई। उस सभा ने शिक्षा के संबंध में एक सौ पचास प्रस्ताव स्वीकार किये। कर्जन ने 1902 में सर थॉमस रैले की अध्यक्षता में एक शिक्षा कमीशन की नियुक्ति की। उसका मुख्य कार्य भारतीय विश्वविद्यालयों की शिक्षा के सम्बन्ध के सुझाव देना था। उसकी रिपोर्ट के आधार पर 1904 का भारतीय विश्वविद्यालय कानून बनाया गया जिसकी मुख्य धाराएँ निम्नवत् थी – 

  1. विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा और अनुसंधान पर ध्यान दे। वे योग्य प्रोफेसरों और अध्यापकों की नियुक्ति करें तथा उचित पुस्तकालयों एवं प्रयोगशालाओं की स्थापना का प्रबंध करें । 
  2. विश्वविद्यालय की सीनेट के सदस्यों की संख्या कम से कम पचास और अधिक से अधिक सौ निश्चित की गयी। उनके कार्यकाल की अवधि 3 वर्ष निश्चित की गयी। 
  3. सरकारी नियंत्रण विश्वविद्यालय एवं अशासकीय कॉलेजों पर कड़ा हो गया। उनका समय-समय पर निरीक्षण कडी सम्बद्धता की शर्त, कार्यक्षमता का वांछित उच्च स्तर बनाये रखने के नियम बनाये गये । 
  4. विश्वविद्यालयों की क्षेत्रीय सीमा निर्धारित करने का अधिकार गवर्नर जनरल का था ।
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लॉर्ड कर्जन के इस अधिनियम ने भारतीय विश्वविद्यालय को संसार के सर्वाधिक सरकारी विश्वविद्यालयों बना दिया। इस अधिनियम की असेम्बली के अन्दर व बाहर कड़ी आलोचना हुई। फ्रेजर के अनुसार “जिसने भारतीय नेताओं तथा जनमत में सर्वाधिक कड़वाहट उत्पन्न की तथा जिसने कर्जन को सबसे अधिक अलोकप्रियता प्रदान की वह 1904 का शिक्षा अधिनियम ही था।” आलोचनाओं की चिंता न करते हुए लॉर्ड कर्जन ने 1904 का भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम बना दिया। 

कर्जन के अधिनियम में बहुत सी अच्छी सिफारिशें थीं। कर्जन ने मुख्यतया विशेष व्यवसायिक पाठ्यक्रमों जैसे डॉक्टरी, कृषि, इंजीनियरिंग, पशु चिकित्सा तथा अन्य तकनीकी विषयों की ओर अधिक ध्यान दिया। विश्वविद्यालय केवल परीक्षा संचालन संस्थाएँ ही नहीं रह गई बल्कि शिक्षण संस्थाएँ भी बन गई, इससे कालांतर में उच्च शिक्षा का स्तर बढ़ा। इस अधिनियम के बारे में सत्य ही कहा गया है कि विश्वविद्यालय अधिनियम का कोई विशेष महत्व नहीं है परन्तु विश्वविद्यालय में सुधार लाने के लिये आंदोलन प्रारंभ करने का श्रेय कर्जन को है । यह आंदोलन धीमी गति से परन्तु दृढ़ता पूर्वक अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ता जा रहा है ।

 

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