उत्तर प्रदेश की कला व संस्कृति (Art and Culture) | TheExamPillar
Art and Culture in Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश की कला व संस्कृति

नृत्य (Dance)

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद अनेकानेक कलाकारों ने उत्तर प्रदेश में शरण ली, जहां प्रमुख रूप से अवध के नवाबों ने उन्हें समुचित आश्रय एवं संरक्षण दिया। इसमें अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह, जो संगीत-मर्मज्ञता तथा कलाकारों को राज्याश्रय देने हेतु विख्यात थे, ने विशिष्ट भूमिका निभाई। नवाब साहब ने इन कलाकारों को अपने दरबार में समुचित सम्मान दिया। कथक-शैली के प्रख्यात मर्मज्ञ तथा विशेषज्ञ ठाकुर प्रसाद के प्रिय शिष्य नवाब वाजिद अली शाह ने नृत्य की ‘कथक शैली’ को नई दिशा-नए आयाम प्रदान किए। उल्लेखनीय तथ्य है कि नृत्य की ‘कथक शैली’ उत्तर प्रदेश की ही एक विशिष्ट देन है, जिसे नवाब वाजिद अली शाह ने भरपूर आश्रय दिया। फलतः ‘कथक-नृत्य’ मन्दिरों की सीमाएं लांघकर राज-दरबार की शोभा बढ़ाने लगा। उसके स्वरूप तथा प्रस्तुति में अधिकाधिक निखार तो आया, किन्तु उसकी धार्मिक एवं भक्ति भावना लुप्त होती गई। कालान्तर में कथक-नृत्य के सर्वप्रथम उन्नायक ठाकुर प्रसाद ने ही उसे नवजीवन और एक महान गौरव प्रदान किया। ‘ठुमरी’ के प्रणेता महाराज बिन्दादीन ने ‘कथक’ की अवधारणा में ‘अभिनव’ एवं ‘भावाभिव्यक्ति हेतु ‘ठुमरी’ का प्रयोग किया। इसके बाद कालका महाराज के सुपुत्रगण अच्छन महाराज, लच्छू महाराज, शम्भू महाराज और उनके पौत्र बिरजू महाराज ने इसकी तकनीकीगत विशेषताओं को और भी परिष्कृत किया। इन महान कथक नर्तकों ने कथक नृत्य क्षेत्र में जो महान परम्पराएं स्थापित कीं, उन्हें ‘लखनऊ घराना’ नाम से जाना-माना गया।

लोक -नृत्य

  • चरकुला – ब्रज क्षेत्र के इस घड़ा-नृत्य में रथ अथवा बैलगाड़ी के पहिए पर अनेकानेक घड़े रखकर, फिर उसे अपने सिर पर रखकर नृत्य किया जाता है।
  • दीपावली – बुन्देलखण्ड के अहीरों द्वारा अनेकानेक दीपकों को प्रज्ज्वलित करके नृत्य किया जाता है।
  • पाई डण्डा – बुन्देलखण्ड के अहीरों द्वारा छोटे-छोटे डण्डे लेकर गुजरात के ‘डांडिया नृत्य’ की भांति नृत्य किया जाता है।
  • राई – कृष्ण-जन्मोत्सव के समय बुन्देलखण्ड की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला ‘मयूर-नृत्य’ ‘राई’ नृत्य कहलाता है।
  • शैरा – यह बुन्देलखण्ड के कृषकों द्वारा फसल काटते समय हर्षोल्लास व्यक्त करने हेतु किया गया नृत्य होता है।
  • घुरिया – बुन्देलखण्ड के कुम्हारों द्वारा महिला परिवेश में किया जाने वाला गीत-नृत्य है।
  • ख्याल – पुत्र जन्मोत्सव पर रंग-बिरंगे कागजों तथा बांसों द्वारा निर्मित मन्दिर को सिर पर रखकर किया जाने वाला नृत्य है।
  • थुबिया – धोबी जाति के इस लोक-नृत्य में एक नर्तक धोबी तथा दूसरा गधा बनकर नृत्य करते हैं।
  • धीवर – कहार जाति द्वारा शुभ अवसरों पर किया जाने वाला नृत्य है।
  • कार्तिक – बुन्देलखण्ड क्षेत्र में कार्तिक माह में नर्तकों द्वारा श्रीकृष्ण तथा गोपी बनकर किया जाने वाला नृत्य है।
  • छपेली – एक हाथ में रूमाल तथा दूसरे में दर्पण लेकर किए जाने वाले इस नृत्य में आध्यात्मिक समुन्नति की कामना की जाती है।
  • छोलिया – राजपूतों के इस विवाह-नृत्य में एक हाथ में तलवार तथा दूसरे में ढाल लेकर नृत्य किया जाता है।
  • पासी – पासी जाति के इस लोक-नृत्य में सात पृथक्-पृथक मुद्राओं की एक गति तथा एक ही लय में युद्धक भूमिका अभिनीत की जाती है।
  • देवी – बुन्देलखण्ड के इस लोक-नृत्य में एक नर्तक ‘देवी’ का स्वरूप धारण करता है तथा शेष नर्तक उसके सम्मुख नृत्य करते हैं।
  • नटवरी – राज्य के पूर्वांचल में अहीरों द्वारा नक्कारे की लय पर किया जाने वाला नृत्य है।
  • धोबिया – शुभावसरों पर एक नर्तक अन्य नर्तकों के घेरे के अन्दर एक ‘कच्ची घोड़ी पर बैठकर नृत्य करता है।
  • कलाबाजी – अवध क्षेत्र के इस नृत्य में नर्तक ‘मोर बाजा’ (विंडपाइप) लेकर ‘कच्ची घोड़ी पर बैठकर नृत्य करते हैं।
  • जोगिनी – अवध के इस क्षेत्र में रामनवमी के पर्व पर पुरुष नर्तक तथा उनमें से कुछ महिला-वेश धारण करके साधुओं के रूप में नृत्य करते हैं।

लोक-नृत्य विषयक प्रमुख तथ्य

ब्रज का प्रमुख पारम्परिक नृत्य ‘चरकुला है। गुजरात के ‘डांडिया नृत्य’ सरीखा उत्तर प्रदेश का लोक-नृत्य ‘पाई डंडा’ होता है। मिर्जापुर के ‘घरकरही नृत्य’ में पुरुष नर्तक उछल-कूद तथा कलाबाजी का प्रदर्शन करते हैं। डोम जाति के प्रति आदर प्रदर्शित करने हेतु ‘धसिया’ तथा ‘गोंड’ जनजातियों के नर्तक ‘डोमकच’ नृत्य करते हैं। लोक-नृत्य ‘करमा’ में नर्तक वनों से पेड़ की शाखाएं काटकर पुजारी को देते हैं और नृत्य के मध्य शराब तथा फूल-पत्ती चढ़ाई जाती है। लोक-नृत्य ‘नटवरी’ में नर्तक कुश्ती लड़ते, कबड्डी खेलते तथा चिड़ियों जैसा व्यवहार करते हैं।

प्रमुख लोक-वाद्य (Folk Instruments)

उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोक-वाद्य हैं – ढोलक, नगाड़ा, इंका, ढोल, झांझ, चिमटा, मंजीरा, बेला, थाली, झुनझुना, अलगोजा, चुंघरू, इकतारा, मृदंग, बांसुरी, घड़ा, शंख, घण्टा, रणसिंघा, तुरही, वीणा, सारंगी तथा बीन आदि।

लोक-वाद्यों विषयक प्रमुख तथ्य

  • लगभग 4.5 फुट व्यास के पशु की खाल को नगाड़े पर चढ़ाकर फिर उसे इंडियों द्वारा बजाए जाने वाले वाद्य को ‘बम्ब-वाद्य’ करते हैं।
  • धुरिया समाज के संगीत में बड़े आकार के इमरूओं, जंजीरों तथा सुंघरूओं का प्रयोग किया जाता है।
  • उत्तर प्रदेश में मंजीरा, वीणा, मृदंग, इकतारा, ढोलक, नगाड़ा, सुंघरू, चिमटा, बेला, घड़ा, थाली, सितार तथा इमरू आदि लोक-वाद्यों का आविष्कार हुआ।

रीति-रिवाज (Customs and Traditions)

उत्तर-प्रदेश को भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र ही नहीं, बल्कि उद्भव राज्य भी कहते है। कहने को तो राज्य को हिन्दू प्रधान जनसंख्या वाला राज्य कहा जाता है, किन्तु यहां के मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध तथा पारसी निवासियों ने एक मिश्रित संस्कृति अपनाई है। गंगा-यमुना की संस्कृति पर राज्य के भगवान, महापुरुषों, सन्तों, फकीरों तथा अन्य विशिष्टजनों की जन्मस्थलियों एवं कार्यक्षेत्र का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। यही कारण है कि राज्य के निवासी पारस्परिक प्रेम एवं सौहार्द के वातावरण में भाईचारे की भावना से प्रायः अनुप्राणित हैं। वे मात्र अपने धार्मिक एवं सामाजिक  रीति-रिवाजों में ही नहीं, अपितु अन्य मित्रगणों के रीति-रिवाजों में भी सक्रियता से भाग लेते हैं। यह राज्य भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान | बुद्ध, सूरदास, तुलसीदास, कबीर, शेख सलीम चिश्ती, गुरु तेगबहादुर, आदि का जन्म अथवा कर्मस्थल रहा है। यहां गंगा, यमुना, गोमती, सरयू जैसी पवित्र नदियां बहती हैं। यहां के ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पुरातत्त्वीय स्थलों में सभी धर्मों का समावेश दृष्टिगोचर होता है।

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